परिवर्तन का शिल्पकार विहिप का तलासरी प्रकल्प

विपरीत परिस्थितियों के बीच कार्य करने की जिजीविषा और समाज के लिए कुछ सकारात्मक करने की दृढ़ इच्छा का परिणाम है, विहिप का तलासरी प्रकल्प। यहां से निकलकर हजारों बच्चे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। यह प्रकल्प वनवासी बच्चों में पारम्परिक मूल्यों का निर्वहन करते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़ने के कौशल का निर्माण कर रहा है।

पालघर जिले के संघ कार्य के इतिहास में तलासरी प्रकल्प का अहम स्थान है। 1964 में मुंबई में पवई स्थित पूज्य स्वामी चिन्मयानंद के संदीपनी आश्रम में विश्व हिंदू परिषद् की स्थापना हुई। पूरे देश में चल रहे धर्मांतरण और हिंदुत्व विरोधी गतिविधियों पर विमर्श हुआ और सेवा कार्यों की श्रृंखला निर्माण करने का संकल्प हुआ। पूरे देश में सबसे विपरीत परिस्थिति का स्थान निश्चित कर तलासरी में सर्व प्रथम छात्रावास प्रकल्प की नींव रखी गई।

1967 में तलासरी और आसपास के वनवासी क्षेत्र में स्थिति विकट थी। गरीबी, कुपोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, कम्युनिस्टों का राजनीतिक दमन और शोषण आदि समस्याएं थीं। ईसाई मिशनरी धोखे से बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करा रही थी। ऐसी स्थिति में तत्कालीन कल्याण नगर परिषद के महापौर माधवराव काणे ने महापौर के पद से त्यागपत्र देकर तलासरी आकर स्वयं को वनवासियों के कार्य में समर्पित किया। भगवान श्रीराम की तरह राजपद त्याग कर माधवराव वनवास में आये और विशुद्ध सात्विक प्रेम और निष्काम सेवा के माध्यम से वनवासियों के अंतर में अपना स्थान बनाया। प्रारम्भ का स्थानिक विरोध नष्ट हुआ और अगल-बगल के पाडों से छात्र और छात्राएं छात्रावास में आने लगीं।

एक झोपड़ी में सात छात्रों के साथ छात्रावास शुरू हुआ। इस क्षेत्र में शिक्षा की गंगा बहने लगी। 1972 में सरकार ने तलासरी प्रकल्प के लिए 10 एकड़ जमीन दी और प्रकल्प का विस्तार हुआ। पहले लड़कों का छात्रावास, फिर लड़कियों का छात्रावास, मशीन वर्कशॉप, स्वास्थ्य केंद्र, मोबाइल क्लीनिक, एम्बुलेंस, स्वास्थ्य शिविर, महालक्ष्मी यात्रा में जल वितरण, बोरवेल जैसे कई सारे कार्यशुरू किए गए।

पिछले 55 साल में साढ़े तीन हजार से ज्यादा वनवासी छात्र छात्राओं ने छात्रावास से शिक्षा प्राप्त की। आठ सौ से अधिक लोगों को नौकरी मिली। अनेकों के घर बस गए।

तलासरी के प्रयोग के आधार पर कुछ ही वर्षों में वनवासी कल्याण आश्रम, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिन्दू सेवा संघ जैसे अनेक संगठनों के माध्यम से चलतवाड़, बेरीस्ते, खानवेल, अम्भान, देवबंध में भी छात्रावास शुरू किए गए। सूत्रकार, दापचेरी, चिंचले में स्कूल शुरू किए गए। दहाणू और भिवंडी में कॉलेज छात्रावास शुरू किए गए। वर्त्तमान तलासरी छात्रावास में 100 लड़के और 48 लड़कियां पढ़ रहे हैं। परमहंस गणेश विद्यालय वर्ष 2002 में शुरू किया गया, जहां 700 बच्चे पढ़ रहे हैं।

यह प्रवास अनेक संकटों से भरा हुआ था। प्रारम्भ में प्रकल्प में आने वाले छात्रों के घरों के ऊपर हमले, पथराव करने, विरोध करने जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ा। 14अगस्त 1991 को प्रकल्प पर 200 लोगों ने आक्रमण किया। प्रकल्प में उस वक्त पूर्णकालिक आप्पा जोशी और उनकी पत्नी वसुधाताई को ज़िंदा जलाने का प्रयास हुआ। अपितु संघ कार्यकर्ता की निर्भयता और कार्य के प्रति अडिग निष्ठा के कारण ऐसे आघातों को सहन कर कार्य दुगनी गति से प्रवाहमान हुआ।

धर्मजागरण के विषय में काम शुरू हुआ। गणेशोत्सव शुरू हुए। मुंबई से 7 मूर्तियां वितरण के लिए आई उसमे से 6 कम्युनिस्टों ने फोड़ दी। केवल एक ही उत्सव सम्पन्न हुआ। आज तलासरी में 150 से ज्यादा गणेशोत्सव धूमधाम से होते हैं। विवाह करना महंगा था, उस समस्या पर सामुदायिक विवाह की कल्पना को आगे लाकर समाज में एक बड़ी व्यवस्था का निर्माण हुआ। घरवापसी के कार्यक्रम शुरू हुए।

मुंबई से कई सारे डॉक्टर्स आने लगे। मेडिकल कैम्प, मोबाइल डिस्पेंसरी जैसे प्रयोग शुरू हुए। धीरे धीरे समाज में विहिप प्रकल्प को मान्यता मिलाने लगी।

प्रकल्प के दहाणू केंद्र से कई सरकारी परियोजनाओं को लागू किया। चाहे वह मोबाइल क्लीनिक हो, बालमृत्यु रोकने हेतु गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए केंद्र सरकार की आरसीएच परियोजना में ठाणे जिले के लिए मदर एनजीओ- मातृसंस्था के रूप में चयन, अलर्ट इंडिया के द्वारा ठाणे जिले में एड्स-टीबी जागरण, कम्प्यूटर, सिलाई, कौशल विकास जैसे अनेक विषयों में पथदर्शी कार्य हुए। काम पर जाने वाली महिलाओं की सुविधा के लिए नर्सरी हो या 450 गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं के लिए बचत समूह; यह काम 2014 तक चल रहा था।

पूरे पालघर जिले में वनवासी समाज आज संक्रमण से गुजर रहा है। मुंबई की नजदीकी के कारण शहरीकरण ग्रामों और पाडों तक पहुंच गया है। डीजे, केबल टीवी हर घर और मोबाइल हर हाथ में है। पर्यावरणीय बदलाव के कारण कृषि पर बुरा असर पड़ रहा है। उपजाऊ जमीन कम होने के कारण जंगल काट कर खेती बढ़ रही है। पालघर, बोईसर, उमरगाम, भिलाड, वापी और सेलवास जैसे औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो रहे हैं और वहां मजदूर के तौर पर आदिवासी बहुत बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। इससे जंगल आधारित जीवनशैली से हटकर नौकरी आधारित जीवनशैली पर आधारित समाज परिवर्तित हो रहा है।

आठ वर्ष पूर्व हमने पालघर जिले के 98 वनवासी ग्रामों का अध्ययन किया। मुख्य रूप से जिले में जल, जमीन, जंगल, पशुपालन, कृषि और स्थलांतर (पलायन) जैसे विषयों के अध्ययन में वनवासी समाज की भीषण वर्तमान परिस्थिति सामने आई। जंगल पूरी तरह से उजड़ चुका है, जल स्तर हर साल घटता जा रहा है। प्रति व्यक्ति कृषि जमीन घट रही है। रासायनिक खाद और संकर बीजों के प्रयोग से खेती घाटे में जा रही है और उसपर निर्वाह असम्भव है। पारम्परिक बीज खत्म हो गया है। युवा पीढ़ी कृषि से मुंह मोड़ चुकी है।

वनवासी जीवन और सभ्यता स्वाभाविक रूप से जंगल से जुड़ी है और उनका भविष्य भी जंगल और कृषि की समृद्धि पर निर्भर करता है। उनकी अपनी उज्जवल और विकसित सभ्यता है। उन मान्यताओं और परम्पराओं के साथ आधुनिक विज्ञान को जोड़कर उनके ग्राम या पाडे को आत्मनिर्भर बनाने के मूल उद्देश्य के साथ आज प्रकल्प काम कर रहा है, उनकी परम्परा और मान्यताओं को संरक्षित करने की कोशिश कर रहा है। छात्रावास में स्कूली पाठ्यक्रम के साथ-साथ बच्चों को विभिन्न कौशल आधारित तकनीक भी सिखाए जाते हैं। पालघर जिले में वन संरक्षण, जल और मृदा संवर्धन, जैविक खेती, प्रसंस्करण उद्योग जैसे कई विषयों में काम करने जा रहे हैं। विनोबा भावे द्वारा दिए गए सूत्र – ‘स्वतंत्र गांवों का स्वतंत्र देश’ को साकार करने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए तलासरी प्रकल्प अपने भविष्य की दिशा में नियोजन कर रहा है।

वनवासियों को जगाने का कार्य गोदू ताई ने किया और उन वनवासियों को संस्कारित कर अपने समाज के लिए हमें ही कार्यरत होना चाहिए, यह माधवराव ने सिखाया।

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