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क्रांतिकारी कदमों वाला संसद का विशेष सत्र

क्रांतिकारी कदमों वाला संसद का विशेष सत्र

by हिंदी विवेक
in पनवेल विकास विशेष अक्टूबर-२०२३, विशेष
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गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर संसद के नए भवन में प्रवेश करने के बाद महिला आरक्षण बिल प्रस्तुत कर देने से समूचा विपक्ष भौेंचक्का रह गया है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की यही कार्यशैली उन्हें वैश्विक स्तर पर सबसे अलग करती है।

विपक्षी खेमे की राजनीति की सत्ता पक्ष से हर वक्त एक ही उम्मीद रहती है कि वह पारम्परिक शैली में ही काम करे। आज की विपक्षी राजनीति के धुरंधर अतीत में लम्बे वक्त तक सत्ता पक्ष में रहे हैं, इसलिए उन्हें गैर पारम्परिक तरीके की राजनीति से परेशानी होती है। लगता है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को इसी तरह की राजनीति में आनंद आता है। इसलिए उनका हर कदम चौंकाऊ होता है। संसद का विशेष सत्र बुलाते वक्त भी उन्होंने चौंकाऊ राजनीति का ही दर्शन कराया। विपक्ष दबाव पर दबाव बनाता रहा कि विशेष सत्र का लक्ष्य और एजेंडा बताया जाए। मोदी सरकार ने विशेष सत्र के लिए एजेंडा बताया भी, जिसमें चार लम्बित विधेयकों पर चर्चा कराना रहा। लेकिन ठीक गणेश चतुर्थी के दिन के लिए प्रधान मंत्री मोदी ने देश को सुखद आश्चर्य से भरते हुए महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में प्रस्तुत कर दिया। लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को तैंतीस फीसद आरक्षण देने वाला विधेयक दोनों सदनों से पारित हो चुका है।

जब सवाल पूछा जाएगा कि संसद के विशेष सत्र का हासिल क्या रहा? इस सवाल का जवाब महिला आरक्षण बिल ही माना जाएगा। वैसे तो एजेंडे के मुताबिक चार और विधेयकों पर भी चर्चा हो चुकी है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर मोदी हमेशा चौंकाऊ अंदाज में गैर पारम्परिक ढंग से फैसले क्यों लेते हैं? इसका एक मात्र जवाब यह है कि साल 2002 से लेकर अब तक विपक्ष का उनके प्रति जो रवैया रहा है, वह लोकतांत्रिक विरोध से कहीं ज्यादा घृणा के हद तक निजी रहा है। महिला आरक्षण की पहली बार मांग 1973 में उठी थी। पिछली सदी के आखिरी दशक में जब सामाजिक न्याय की अवधारणा चरम पर रही, तब महिला आरक्षण की मांग परवान चढ़ी। केंद्र में देवेगौड़ा सरकार के रहते यह विधेयक पहली पर संसद में पेश भी हुआ था। तब जनता दल के बिहार के बाहुबली सांसद सुरेंद्र यादव की अगुआई में इसे पेश होने से पहले ही मंत्री के हाथ से छीनकर फाड़ दिया गया।

वाजपेयी सरकार ने जब 1999 में इसे पेश करने का प्रयास किया तो तत्कालीन कानून मंत्री राम जेठमलानी के हाथ से विधेयक को समाजवादी पार्टी के सांसदों ने छीनकर उसकी चिंदी उड़ाकर लोकसभा में फैला दिया था। मुलायम सिंह यादव तब लोकसभा के सदस्य थे और इन पंक्तियों के लेखक ने लोकसभा की रिपोर्टर गैलरी से अपनी आंखों से देखा है कि किस तरह वे अपने सांसदों को बिल छीनने के लिए उकसा रहे थे। उस बिल को छीनने के लिए जो सांसद आगे नहीं बढ़ा, उसे उन्होंने आंखें भी दिखाई थीं। बिल छीनने वालों में उस वक्त के सांसद अखिलेश सिंह, आज के समाजवादी प्रवक्ता अनुराग भदौरिया की मां और तत्कालीन सांसद सुशीला सरोज, कभी भाजपा में रही उस वक्त की महिला सांसद रीना चौधरी आदि आगे रहे। दिलचस्प यह है कि तब राम जेठमलानी को बचाने और उनसे बिल छीनने से रोकने के लिए घेरा बनाने के लिए उस वक्त की रेल मंत्री ममता बनर्जी और वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ही आगे आए थे। यह भी दिलचस्प रहा कि जनता दल की सरकार के वक्त इस बिल का विरोध करने वाले शरद यादव उस सरकार में बतौर नागरिक उड्डयन मंत्री शामिल थे। शरद यादव इसके पहले बिल को परकटी महिलाओं का बिल बता चुके थे। तब वे बीजेपी को लोटा बाबा, बाल्टी बाबा की पार्टी भी कहते रहे।

महिला आरक्षण को लेकर अतीत में राजनीतिक दलों का जो रवैया रहा है, शायद यही वजह है कि प्रधान मंत्री ने महिला आरक्षण विधेयक को विशेष सत्र में पेश करने के लिए चुना। इसकी अचानक घोषणा की स्थिति ऐसी रही कि अतीत के विरोधी रहे दलों को भी इस बिल को समर्थन के लिए आगे आना पड़ा। यही वजह रही कि लोकसभा में बिल के समर्थन में 456 वोट पड़े, जबकि विरोध में सिर्फ दो वोट ही पड़े। दिलचस्प यह है कि दोनों वोट मुस्लिम सांसदों के रहे। जिनमें से एक ओबैसी रहे। इसी तरह राज्यसभा में इस विधेयक के समर्थन में 215 वोट पड़े। इस तरह इतिहास रच दिया गया। अन्यथा अब तक यह विधेयक मुंह की ही खाता रहा है।

सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वजह रही कि अतीत में इस विधेयक के विरोधी रहे राजनीतिक दल इस बार साथ आने को मजबूर हो गए। इसकी वजह यह है कि पिछले दो चुनावों से भारतीय राजनीति को नए वोटिंग पैटर्न ने प्रभावित किया है। अब महिलाएं अतीत की तरह अपने पतियों, बेटों या घर के पुरूषों के फैसले के आधार पर किसी दल को वोट नहीं देतीं, बल्कि अपने विवेक और अपनी पसंद से वोट डाल रही हैं। जाहिर है कि दो आम चुनावों में इसका सीधा फायदा नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को मिला है। महिलाओं के इस वोटिंग पैटर्न को अब राजनीतिक दल समझ गए हैं। अतीत में इस बिल के विरोधी रहे और उसे फाड़ने वाले दलों को लगा कि अगर उन्होंने इस विधेयक का विरोध किया तो महिला वोटरों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता था। इसीलिए उन्होंने या तो बिल का समर्थन किया या फिर संसद से वोटिंग के वक्त बहिर्गमन कर गए।

अब सवाल उठता है कि प्रधान मंत्री ने पूरी तैयारी के साथ पहले से प्रचारित करके इस विधेयक को संसद में क्यों नहीं पेश किया। इसकी वजह भी अतीत रहा है। अगर पहले की तरह पूर्व तैयारी के साथ इस विधेयक को गाजे-बाजे के साथ संसद के मैदान में उतारा जाता तो शायद आज जैसे हालात नहीं होते। तब शायद एक बार फिर विधेयक विरोध के पचड़े में पड़ जाता।

बीते संसद सत्र को एक और वजह से भी याद किया जाएगा। स्वाधीन भारत की संसद का कामकाज स्वाधीन भारत में स्वाधीन हाथों और स्वदेशी धन से निर्मित नए संसद भवन में चलना शुरू हुआ। भारतीय संस्कृति में हर शुभ कार्य और पूजा-पाठ की गणेश वंदना के साथ शुरूआत होती है। विशेष सत्र के दौरान पहले दिन यानी 18 सितम्बर को जहां संसद के दोनों सदनों में संसद के 75 साल के कामकाज को याद करने की कोशिश हुई, वहीं अगले दिन यानी गणेश चतुर्थी के शुभ मूहूर्त में भारतीय सम्प्रभुता की प्रतीक संसद का कामकाज नए भवन में शुरू हुआ। भारतीय संस्कृति और भारतीय रंग में रंगे नए संसद भवन में कामकाज का शुरू होना लोकतंत्र के भारतीय स्वरूप का प्रतीक है। इसे इस रूप में भी हमें देखना और समझना होगा।

पुराने संसद भवन में स्वतंत्र भारत के संविधान का निर्माण हुआ था। दो साल 11 महीने और 18 दिन की कार्यवाही के बाद भारत की संविधानसभा ने पुराने भवन में ही भारत का नया विधान रचा था। अब वह भवन संविधान सदन के नाम से जाना जाएगा। इसका प्रस्ताव खुद प्रधान मंत्री ने रखा था, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 20 सितम्बर को ही स्वीकार करते हुए नोटिफिकेशन जारी कर दिया।

विपक्ष की ओर से आरोप लग रहा है कि सरकार चाहती तो महिला आरक्षण विधेयक को दिसम्बर में होने वाले संसद के शीत सत्र में भी प्रस्तुत कर सकती थी। वैसे शीत सत्र मौजूदा लोकसभा के हिसाब से संसद का आखिरी पूर्णकालिक सत्र होगा और उस पर कई तरह के वैधानिक दबाव रहते। अगर महिला आरक्षण विधेयक तब रखा जाता तो उसे ही तवज्जो मिलता, जिसकी वजह से कई जरूरी विधायी कामकाज अटक सकते थे। शायद यही वजह है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद के विशेष सत्र को ना सिर्फ महिला आरक्षण विधेयक प्रस्तुत करने के लिए चुना, बल्कि गणेश चतुर्थी के पावन मौके पर नए भवन में संसदीय कामकाज शुरू कराया।

                                                                                                                                                                                     उमेश चतुर्वेदी 

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