राष्ट्रहित में समर्पित महापुरुष बालासाहब देवरस

समाज व राष्ट्र निर्माण में रा. स्व. संघ की भूमिका स्वयंसिद्ध है। संघ संस्थापक से लेकर वर्तमान सरसंघचालक तक सभी ने अपने मार्गदर्शन में कार्यकर्ताओं की देवदुर्लभ टोली खड़ी की है। तृतीय सरसंघचालक पू. बालासाहब देवरस ने संघ को जो व्यापक आयाम दिए है,  वे एक चमत्कारिक कार्य के रूप में ही है। उन्होंने संघ को राष्ट्रीय व सामाजिक सरोकारों के परिप्रेक्ष्य में जिस भाव से सींचा है वह अदभुत ही कहा जाएगा।

बालासाहब ने संघ को वैचारिकता के साथ-साथ आचार व्यवहार के शिखर तक पहुंचाया, यही डॉ. हेडगेवार जी का सपना था। बालासाहब देवरस सच्चे अर्थों में डॉक्टर जी के प्रतिबिंब थे। संकटकाल में जिस सन्नधता व संजीदगी से संघ को न केवल उबारा वरन और अधिक मजबूत किया, इसके लिए संघ के इतिहास में बालासाहब को सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।

बालासाहब देवरस के लिए श्रीगुरुजी का भाव किस कोटि का था, यह बात हम विभिन्न अवसरों पर उनके द्वारा कहे उद्धगारो से समझ सकते है।

  • एक बैठक में परिचय कराते हुए श्रीगुरुजी ने कहा कि एक समय में दो सरसंघचालक नहीं हो सकते है, इसलिए बालासाहब सरकार्यवाह है।

  • जिन्होंने डॉक्टर जी को नहीं देखा वे बालासाहब को देख सकते है कि डॉक्टर जी कैसे थे।

  • श्रीगुरुजी ने डॉक्टर जी के निधन के समय कहा था कि बालासाहब भावी सरसंघचालक है।

अपने से आयु में 9 वर्ष छोटे कार्यकर्ता के लिए इतने गौरव पूर्ण उद्धगार सहज रूप से कहने के लिए उसकी गुणवत्ता पहचानने का सामर्थ्य पास में होना आवश्यक होता है। इसी के साथ इन वक्तव्य द्वारा बालासाहब की योग्यता सूचित होती है। पूना की बसंत व्याख्यानमाला में बालासाहब ने कहा था कि यदि अस्पृश्यता पाप नहीं है तो दुनिया में कुछ भी पाप नहीं है। बालासाहब सामाजिक समरसता के पुरोधा थे। वे बचपन से ही छुआछूत के खिलाफ थे। उन्होंने अपनी माता जी से कहा कि घर आए किसी स्वयंसेवक की जाति नहीं पूछी जाएगी। बालासाहब कहा करते थे कि समाजवाद कसमें खाने से नहीं आएगा। उन्होंने कहा कि संघ का सामाजिक मूल्यांकन करें, राजनीतिक नहीं। संघ हिन्दुओं को संगठित करने निकला है। 1939 कलकत्ता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को शाखा में लाने वाले बालासाहब ही थे। मा. रज्जू भैया ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि  बालासाहब सामाजिक समरसता के पक्षधर थे।

बालासाहब ने अपने जीवन में उच्च आदर्शो की स्थापना की। अपने रहते हुए सरसंघचालक का दायित्व छोड़ना, निधन के बाद अन्तिम संस्कार रेशम बाग में नहीं करने की घोषणा करते हुए सामान्य शमशान घाट पर करना, कार्यक्रमों में चित्र डॉ. जी व गुरुजी के ही लगेंगे, उनका नहीं,  सामूहिक रूप से चर्चा व निर्णय की पद्धति प्रारंभ करना आदि कई अवसरों पर उन्होंने उच्च आदर्श प्रस्तुत किए।

जलते जीवन के प्रकाश में, अपना जीवन तिमिर हटाएं।

उस दधीचि की तप ज्योति से, एक-एक कर दीप जलाएं।।

लो श्रद्धांजलि राष्ट्रपुरुष!

     भगवती प्रकाश शर्मा

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