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ऊर्जा के प्रति जागरूकता

ऊर्जा के प्रति जागरूकता

by डॉ. रामेन्द्र सिंह
in फरवरी २०१६, सामाजिक
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अहमदाबाद के श्रमिक क्षेत्रों की चाल के छप्परनुमा घरों में ’उजाला’ ने दस्तक दे दी है। दरअसल छप्परनुमा खपरैल के एक हिस्से को खोल कर उसमें फाइबर-प्लास्टिक का सोलर स्ट्रक्चर बैठाया गया है। उसकी खिड़कियां खोलीं और बंद की जा सकती हैं। इसकी डिजाइन ऐसी है कि उससे होकर प्राकृतिक सूर्य किरणें अंधेरे कमरे में दो ट्यूब लाइट के बराबर रोशनी सा उजाला किए रहती हैं। यही नहीं गर्मी में समुचित वेंटिलेशन के चलते घर में नैसर्गिक ठंडक भी बनी रहती है। रात में सौर ऊर्जा काम करने लगती है। इस ‘उजाले’ की लागत है १५०० रुपए मात्र, जिसके लिए कर्ज भी सेल्फ एम्प्लाएड वुमेंस एसोसिएशन (सेवा) उपलब्ध कराता है। बिहार में भी इसी तरह के दृश्य अब आम हैं। स्वयंसेवी बचत समूह की महिलाएं बैंक से कर्ज लेकर सोलर लैंप का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही हैं।

दूसरी ओर कुछ इस तरह के समाचार भी पिछले दिनों छपे :

* मध्य प्रदेश के २७ प्रतिशत गांवों तक ही पहुंची बिजली
* मध्य प्रदेश सरकार बेचेगी ११० रुपए में एलईडी बल्ब
* सम-विषम प्लान: दिल्ली की सड़कों पर कम होंगी १० लाख निजी गाड़ियां
* प्रदूषण कम करने को मोदी की पहल, सांसदों को देंगे बैटरी वाली बसें
* २०६० तक ४ डिग्री बढ़ जाएगा धरती का तापमान

ये कुछ संकेत हैं ऊर्जा और पर्यावरण के अन्योन्याश्रित संबंध और उस पर आसन्न संकट के। भारत जैसे विकसित होते देश में बढ़ती ऊर्जा जरूरतों में आर्थिक विकास और संपन्नता, शहरीकरण की बढ़ती रफ्तार, प्रति व्यक्ति लगातार बढ़ता जा रहा ऊर्जा उपभोग और देश की विविध प्रक्रियाओं के संचालन में बढ़ती ऊर्जा जरूरतों ने हमें इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां उपलब्ध ऊर्जा का विस्तार वैकल्पिक तरीकों में ढूंढ़ना समय की आवश्यकता हो गई है। लगभग डेढ़ दशक पहले भारत विश्व का सातवां सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश था और आज हालात यह है कि यह विश्व का चौथा सबसे ज्यादा ऊर्जा उपभोक्ता देश बन गया है। जाहिर है, हमारी ऊर्जा जरूरतें लगातार बढ़ रही हैं और इसके मुकाबले हमारे पास संसाधन बहुत सीमित हैं। यही कारण है कि देश में वैकल्पिक ऊर्जा की हर तरफ बात हो रही है।

गैर नवीकरणीय उर्जा स्रोतों का अस्तित्व खतरे में

ऊर्जा आपूर्ति के लिए गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयला, कच्चा तेल आदि पर निर्भरता इतनी बढ़ चुकी है कि इन स्रोतों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगले ४० वर्षों में इन स्रोतों के खत्म होने की संभावना है। ऐसे में विश्वभर के सामने ऊर्जा आपूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली प्राप्त करने का विकल्प रह जाएगा। अक्षय ऊर्जा नवीकरणीय होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी है। हालांकि यह भी सत्य है कि देश की ८० प्रतिशत विद्युत आपूर्ति गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरी हो रही है। जिसके लिए भारी मात्रा में कोयले का आयात किया जाता है। वर्तमान में देश की विद्युत आपूर्ति में ६४ प्रतिशत योगदान कोयले से बनाई जाने वाली तापीय ऊर्जा का है। ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति और अन्य कार्यों के लिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का भी आयात किया जाता है।

बढ़े नवीकरणीय ऊर्जा के संसाधन

भारत में पिछले कुछ सालों में नवीकरणीय ऊर्जा के संसाधन काफी बढ़े हैं। वित्तीय वर्ष २००८ से २०१३ के बीच देश के सकल नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में क्रमश: ७.८ से १२.३ फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। इसमें पवन ऊर्जा का योगदान लगभग ६८ फीसदी है और यह सकल स्थापित क्षमता में १९.२ गीगावाट का योगदान करती है। पवन ऊर्जा का प्रचलन दिनोंदिन बढ़ रहा है और आज स्थिति यह है कि भारत पवन ऊर्जा उत्पादन में विश्व में पांचवा स्थान रखता है। जहां तक लघु जल विद्युत परियोजनाओं का सवाल है, इनका सकल उत्पादन ३.६ गीगावाट, जैव ऊर्जा का भी ३.५ गीगावाट और सौर ऊर्जा से १.७ गीगावाट ऊर्जा हमें प्राप्त हो रही है।

देश के टेलीकॉम टॉवर प्रति वर्ष लगभग ५ हजार करोड़ का तेल जला रहे हैं। यदि वह अपनी आवश्यकता सौर ऊर्जा से प्राप्त करते हैं तो बड़ी मात्रा में डीजल बचाया जा सकता है। नेशनल सोलर एनर्जी मिशन सौर ऊर्जा के अधिकाधिक उपयोग और उत्पादन की कोशिश कर रही है, ताकि फॉसिल आधारित तेल के लगातार दोहन को कम किया जा सके। नवीकरणीय ऊर्जा का एक अच्छा पहलू यह है कि यह फॉसिल आधारित ऊर्जा संसाधनों से सस्ते होते हैं और पर्यावरण पर भी इनका प्रतिकूल असर नहीं पड़ता है। इन्हें दूरदराज के उन इलाकों में स्थापित और वितरित किया जा सकता है, जो दुर्गम हैं और जहां की अधिकांश आबादी को सामान्य ऊर्जा जरूरतें जैसे- रोशनी, खाना बनाने और आटा चक्की चलाने जैसी जरूरतों से रोज जूझना पड़ता है। भारत में बायोमास ऊर्जा की भी वृहद संभावनाएं हैं। कृषि उत्पादों और मवेशियों को गोबर से ऊर्जा उत्पादन पिछले एक दशक में काफी बढ़ा है और गांवों में लोग इन वैकल्पिक ऊर्जा से काफी लाभान्वित भी हुए हैं।

अपशिष्ट ऊर्जा की जरूरतें पूरी करने में इनकी वृहद भूमिका

अपने देश में बहुतायात से उपलब्ध वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन जैसे पवन, सौर,

लघु जल, बायोमास और अपशिष्ट ऊर्जा की जरूरतें पूरी करने में अपनी वृहद भूमिका निभा सकते हैं। भारत के समुद्री तट पर पवन चक्कियां लगाकर पवन ऊर्जा उत्पादित हो सकती है। इसके लिए ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, केरल आदि राज्यों में काफी संभावनाएं हैं। यहां पवन चक्कियां लगाना पारंपरिक संसाधनों पर खर्च की तुलना में काफी सस्ता पड़ेगा। ग्रामीण जरूरतें जैसे पानी गर्म करने, खाना बनाने और कुछ छोटे शहरों में उद्योगों के लिए बिजली मुहैया कराने में सौर ऊर्जा की उपयोगिता प्रमाणित हो चुकी है। इसके लिए सोलर वॉल्टेइक पॉवर की आवश्यकता होती है, जो हालांकि फिलहाल थोड़ा महंगा है, लेकिन इस प्रविधि में सुधार करते हुए इसे भविष्य की ऊर्जा जरूरतों के मुताबिक ढाला जा सकता है। अभी देश के कई शहरों में ताप ऊर्जा के रूप में उच्च तापमान संग्राहक, दर्पण, लेंस और वाष्प टरबाइन का काम चल रहा है जो भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को काफी हद तक पूरी करने में अपनी अहम भूमिका निभाएंगे।
सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए लोगों को इसकी ओर आकर्षित करना जरूरी है। लोग इसको समझने तो लगे हैं लेकिन इसका प्रयोग करने से कतराते हैं। छोटे स्तर पर सोलर कूकर, सोलर बैटरी, सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहन, मोबाइल फोन आदि का प्रयोग देखने को मिल रहा है लेकिन ज्यादा नहीं। विद्युत के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करने से लोग अभी भी बचते हैं जिसका कारण सौर ऊर्जा का किफायती न होना है। सौर ऊर्जा अभी महंगी है और इसके प्रति आकर्षण बढ़ाने के लिए जागरूकता जरूरी है।

मो. ७६९४९०५९५२

डॉ. रामेन्द्र सिंह

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