भये प्रगट कृपाला

इस बार अयोध्या श्रीरामजन्मभूमि स्थित राम मंदिर में धूमधाम और हर्षोंल्लास के साथ रामनवमी का महाउत्सव मनाया जाएगा। जिसे देखने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आएंगे। इस अवसर पर अयोध्या नगरी दियों की रोशनी से जगमग होगी।

चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी कहते हैं। इसी दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। इस दिन वैष्णव मंदिरों में राम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। बहुत से तीर्थों में इस तिथि को मेला भी लगता है। इस अवसर पर अयोध्या पुरी में विशेष समारोह का आयोजन होता है।

इस नगर के जन्म भूमि पर अनेकों सघंर्षों के बाद पौष शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत् 2080 सोमवार 22 जनवरी 2024 के शुभदिन पूर्ण शास्त्रोंक्त विधि से श्रीराम के बाल रूप नूतन विग्रह को गर्भगृह में विराजित कर के प्राण-प्रतिष्ठा कर दी गई है। तब से लगातार अत्यंत आनंद के वातावरण में प्रभु राम के दर्शन का लाभ विश्व वासियों को अनवरत प्राप्त हो रहा है। इस वर्ष चैत्रमास, शुक्ल पक्ष नवमी को पड़ने वाले रामनवमी का रामजन्मोत्सव विशेष आकर्षण का केंद्र रहेगा। तदनुसार जन-जन में अत्यंत उत्साह का वातावरण व्याप्त है। सम्पूर्ण विश्व से रामभक्त का आगमन होगा। उत्तर प्रदेश की जनता और सरकार भी इस आयोजन को शांति व्यवस्था व सम्पूर्ण भव्यता के साथ मनाने को उद्यत है। इस अवसर पर अयोध्या के चारों ओर पावनपथ चौदह कोसीय परिक्रमा तथा चौरासी कोसीय परिक्रमा की अद्भुत व्यवस्था की जा रही है।

अयोध्या में महाराज मनु, इक्ष्वाकु, ककुत्स्थ, रघु, श्री सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, महषिर्र् भगीरथ, चक्रवर्ती सम्राट दशरथ, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जन्म ले कर तथा सुशासन प्रदान कर इसे विश्व का सर्वश्रेष्ठ तीर्थ बना दिया है। भारतवर्ष की सात मोक्षदायिनी पुरियों में क्रमानुसार ‘अ’ अभ्यांकित अयोध्या को प्रथम स्थान पर रख कर महिमा प्रदान की गई है।

अयोध्या मधुरा माया काशी कांची अवंतिका।

पुरी द्वारावती चैव सप्तैते मोक्षदायिकाः॥

श्रीसरयू के दक्षिणी तट पर अयोध्या को स्वयं महाराज मनु ने बसाया था। यह कोसल राज्य की राजधानी थी। अयोध्या में प्रत्येक वर्ष चैत्र पूर्णिमा को प्रारम्भ हो कर बैसाख मास में पड़ने वाली जानकी नवमी तक चौरासी कोसी परिक्रमा (लम्बाई एक सौ अड़सठ मील) दो सौ बावन किलोमीटर है, पर पूरी की जाती है। यह परिक्रमा जनमानस व श्रद्धालु पैदल व वाहनों से भी पूरा करते हैं। यह परिक्रमा बस्ती, अयोध्या, अम्बेडकर नगर, बाराबंकी आदि जनपदों के कुछ गांवों को आंशिक स्पर्श करती हुई चलती है। रास्तें के अनेक पड़ावों, आश्रय स्थल, धर्मशालाओं, कुण्ड स्थान सरोवरों, मंदिरों तथा भण्डारा स्थलों से पूर्ण है। परिक्रमा जनपद बस्ती के मनोरमा नदी के तट पूर स्थित मखौड़ा (मरव भूमि) से चलकर पुन: मखौड़ा में ही वापस आ कर समाप्त होती है। त्रेतायुग में महाराज दशरथ की तीनों रानियों को जब पुत्र प्राप्ती नहीं हुई तो महर्षि वशिष्ठ के परामर्श से भरवभूमि पर यज्ञशाला का निर्माण कर श्रृंगी ऋषि के आचार्यत्व में पुत्रेष्ठि-यज्ञ सम्पन्न कराया था जिससे श्रीराम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। रामनवमी को अपार भीड़ उमड़ती है तथा रामजन्मभूमि स्थान पर दर्शन कर मखौड़ा नामक स्थान से यात्रा प्रारम्भ कर यहीं पूर्ण करती है। इस लोकयात्रा के पथ में भगवान राम से जुड़े अनेक तीर्थस्थल, मायम मंदिर-कूप, सरोवर स्थित है जो पवित्र माने जाते हैं। पथ का चौड़ीकरण तथा सुंदर निर्माण किया जा चुका है। साधन, ठहराव, भोजन जल व जनसुविधाओं की व्यवस्था मठ, मंदिर, हट तथा सरकार करती है। परिक्रमा मार्ग में कुल 21 पड़ाव आते हैं। मान्यता है कि राजा दशरथ की अयोध्या 84 कोस में फैली थी।

अयोध्या के सम्पूर्ण मठ, मंदिर, आश्रम, जन्मस्थान सहित सम्पूर्ण क्षेत्र राममय लगते हैं। जब रामनवमी, उत्सव मनाया जाता है। कथा, प्रवचन, झांकी, रामोत्सव के अंग होते हैं। नगर को भव्य रूप में सजाया जाता है। बधाइयां और सोहर गीत गूंजायमान हो जाते हैं। क्यों न हो – प्रभुराम ने मनुष्य रूप में यहां जन्म जो लिया है। अयोध्या नगरी के रक्षक भगवान हनुमान हैं। प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी में दर्शन का क्रम टूटता ही नहीं है। रामनवमी पर पुन: सरयूघाट लाखों दीयों से जगमगाने की योजना है। सम्पूर्ण अयोध्या इस अवसर पर जगमग होगी। सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र अयोध्या नगरी बन गई है। यहां का विकास तथा नगर योजना अंतरराष्ट्रीय स्तर की हो रही है। अयोध्या इस बार रामनवमी के अवसर पर पुन: राम भक्तों के आगमन की प्रतीक्षा में सजा है।

समय की चुनौतियों के आगे आस्था कैसे अखण्ड रहती है, इसका प्रमाण अयोध्या है। दुनिया का यह पहला नगर है जिसके आगे जी जुड़ा है। जनमानस यह नगरी अयोध्याजी है।

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