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यूपी में योगी ही अभी भी उपयोगी!

यूपी में योगी ही अभी भी उपयोगी!

by मृत्युंजय दीक्षित
in ट्रेंडींग, देश-विदेश, राजनीति, सामाजिक
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उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन नहीं अपितु व्यापक सुधार और प्रचार तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता आन पड़ी है। स्थानीय स्तर पर विरोधी दल जो नैरेटिव खड़ा करते हैं उससे निपटने के लिए एक वृहद तंत्र बनाने की आवश्यकता आन पड़ी है। किसी भी कठिन परिस्थिति से उबरने के दो ही मार्ग होते हैं – चिंतन और परिश्रम की पराकाष्ठा और यही हमारे मोदी-योगी की पहचान है जो चिंतन और परिश्रम का मूर्त रूप हैं।

लोकसभा चुनाव-2024 के चुनाव परिणाम आने के बाद केंद्र में तीसरी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बनने जा रही है, लेकिन इस बार यह सहयोगियों के भरोसे चलने वाली सरकार होगी क्योंकि भाजपा पूर्ण बहुमत का जादुई आंकड़ा नहीं छू सकी है और उसको सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा है जहां वह मात्र 33 सीटों पर सिमट गई है। उत्तर प्रदेश का परिणाम निराशाजनक है क्योंकि राम मंदिर, महिला सुरक्षा, प्रदेश की माफियाओं से मुक्ति, प्रशासन और निवेश जैसे क्षेत्रों में दमदार प्रदर्शन को देखते हुए मुख्य मंत्री ने इस बार अस्सी में अस्सी सीटों का लक्ष्य रखा था। सभी लोग हतप्रभ हैं ऐसा कैसे – इतनी अच्छी सरकार देने के बाद भी इतनी कम सीटें कैसे ? सबने पिछले 7 वर्षों में प्रदेश की बदलती व्यवस्था को देखा है, योगी जी की लोकप्रियता चरम पर है, मोदी जी ने 500 वर्षों का स्वप्न साकार किया है – दुःख है, शोक है और चिंता है, लेकिन उससे उबर कर अब आगे चिंतन की ओर बढ़ना है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटें कम होने के साथ ही साथ अयोध्या जहां प्रभु श्रीराम अपने टेंट से निकलकर भव्य मंदिर में निवास कर रहे हैं, अयोध्यावासियों को भव्य एयरपोर्ट, नए रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, मेडिकल कालेज, सड़कें मिली हैं, अयोध्या को विश्व का सबसे भव्य तीर्थाटन केंद्र बनाया जा रहा है, वहां भाजपा हार गई।

अयोध्या (फैजाबाद लोकसभा सीट) में भाजपा की पराजय का कारण – फैजाबाद में भाजपा की पराजय से हर रामभक्त दुःखी है, छटपटा रहा है और वहां की हार का कारण जानना चाहता है। कुछ कारण जो सामने आ रहे हैं उनमें  फैजाबाद के सांसद लल्लू सिंह का अहंकार महत्वपूर्ण है। 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वह अपने पास सहायता के लिए आने वाले लोगों से कहते थे, आप लोगों ने मोदी को वोट दिया वहीं जाइए। रामपथ का निर्माण होने के समय जब जनता अपने मुआवजे या अन्य विषयों पर बात करने जाती थी तो कहते थे मामला सरकार का है। उन्होंने जनता की आवाज को दबाया और जनता ने अपने वोट की ताकत से सांसद को बाहर का रास्ता दिखा दिया। फैजाबाद की पराजय से मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले सभी दल व विश्लेषक आनंद प्राप्त कर रहे हैं और तंज कस रहे हैं।

विदेशी मीडिया में भी फैजाबाद में भाजपा की पराजय पर लगातार चर्चा हो रही है। विदेशी मीडिया लिख रहा है कि अयोध्या में राम मंदिर बनवाने और उदघाटन के बाद भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। पाकिस्तान मीडिया में चर्चा हो रही है कि “मोदी सरकार की नफरत की राजनीति को भारतीय जनता ने नकार दिया है।” पाक मीडिया कह रहा है कि बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनवाने वाली बीजेपी ने अपनी हार मान ली है और उसे अब अपनी सरकार चलाने के लिए बैसाखियों की जरूरत पड़ेगी। बांग्लादेश का अखबार भी राम मंदिर के उद्घाटन की बात लिख रहा है और तुर्की के अखबार मानवाधिकारों के हनन की बात उठा रहे हैं। भाजपा व हिंदू मतदाता की एक जरा सी भूल ने बहुत बड़ा झटका दिया है।

भारतीय जनता पार्टी केवल फैजाबाद में ही नहीं हारी है अपितु आसपास की मध्य यूपी की 24 में से 22 सीटों पर भाजपा की पराजय हुई है। 2019 में भाजपा ने इस क्षेत्र से 22 सीटों पर कब्जा किया था और इस बार वह केवल 9 सीटों पर ही विजय पाप्त करने में सफल रही है। यही नहीं पश्चिम से लेकर पूर्वाचंल तक बीजेपी का सफाया हो गया।

यूपी में भाजपा के खिलाफ बहुत सारे नैरेटिव गढ़ दिए गए जिसमें कुछ सही कहे जा सकते हैं और कुछ फर्जी। युवाओं की दृष्टि से पेपर लीक का मामला बड़ा रहा। अमित शाह के एआई जनरेटेड आरक्षण वीडियो ने भारी नुकसान किया। गुजरात के भाजपा सांसद रूपाला के क्षत्रियों को लेकर दिए गए बयान पर पश्चिम से लेकर पूर्व तक राजपूतों की महापंचायत व सम्मेलन तक होने लगे और इसको सपा, बसपा व कांग्रेस ने हाथों हाथ लिया। अंतिम समय में कांग्रेस के खटाखट एक लाख रुपए के जुमले ने भी कुछ लोगों को भरमा दिया, लेकिन ये प्रायः मुस्लिम ही थे और इससे भाजपा वोटों पर अधिक असर नहीं पड़ा।

मोदी–योगी को हराने के लिए सपा व कांग्रेस ने हाथ मिलाया और जमकर मुस्लिम तुष्टीकरण कार्ड खेला। माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के बाद सभी विरोधी दलों के नेता अंसारी परिवार के प्रति अपनी सहानुभूति दिखाने के लिए उसके यहां फातिहा पढ़ने गए। गाजीपुर व उसके आसपास की मुस्लिम बाहुल्य वाली सीटों पर मुसलमानों ने एकतरफा वोट दिया, जबकि हिंदू मतदाता राजपूत, ब्राह्मण, बनिया, अगड़ा, पिछड़ा करता रहा या बड़ी गर्मी है कहकर घर पर बैठ गया या छुट्टी मनाने चला गया। कुछ सीटों पर भाजपा का खेल बिगाड़ने में राजा भैया व धनंजय सिंह जैसे बाहुबलियों का भी योगदान रहा। राजा भैया जिन्होंने विधानसभा सत्र के दौरान राम मंदिर व हिंदुत्व को पूर्ण समर्थन दिया, उनकी खूब प्रशंसा हुई और फिर अचानक वह आखिरी समय में अलग हो गए, जिसके कारण भाजपा प्रतापगढ़ व कौशाम्बी सीट गंवा बैठी। राजा भैया के साथ विवादों के कारण मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल हारती-हारती बची हैं। सुल्तानपुर से मेनका गांधी ने अकेले दम पर बहुत संघर्ष किया पर अपने पुत्र वरुण गांधी के कारण उनका राजनैतिक कैरियर समाप्त हो गया। बाराबंकी में भाजपा के पास सशक्त उम्मीदवार न होने और स्थानीय स्तर पर गुटबाजी तथा कुप्रबंधन भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण बने।

आश्चर्यजनक रूप से वाराणसी संसदीय सीट और लखनऊ संसदीय सीट से क्रमशः प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी भी मात्र चुनाव जीतने में ही सफल हो सके हैं। इन दोनों सीटों पर जिस तरह मत गणना में उतार चढ़ाव होता रहा और जीत का अंतर सामने आया वो भाजपा और इसके कार्यकर्ताओं के लिए लज्जाजनक है।

यूपी में योगी ही उपयोगी ?- यूपी में बीजेपी की हार का एक बड़ा कारण विपक्ष और दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल का यह दुष्प्रचार भी माना जा रहा है कि बीजेपी अगर केद्र में फिर आ गई तो योगी को मुख्य मंत्री पद से हटा देगी, ठीक उसी तरह से जिस प्रकार से मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटा दिया था। इस दुष्प्रचार का बीजेपी ने समय रहते खंडन नहीं किया, जिसके कारण बहुत सारे लोगो में नाराजगी व भ्रम पैदा हो गया। वैसे भी न केवल विपक्ष वरन भाजपा संगठन व सरकार के अंदर से भी बीच-बीच में कुछ लोग योगी आदित्यनाथ व केंद्रीय नेतृत्व विशेष रूप से मोदी तथा अमित शाह के मध्य संबंधों को लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैलाया करते हैं। योगी व केंद्रीय नेतृत्व के मध्य दरार डालने का हर सम्भव प्रयास किया जाता रहा है, इसका असर भी इस बार चुनावों में देखने को मिला है। प्रदेश भाजपा के कुछ नेता लगातर षड्यंत्र रचते रहते हैं। कुछ नेता निकम्मे हैं और योगी-मोदी के कंधे पर ही अपना रास्ता तय करते हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी निष्प्रभावी रहे हैं।

प्रदेश विधानसभा का चुनाव 2027 में है, अतः इस दुर्गति को देखते हुए भाजपा को आज से ही काम पर लग जाना चाहिए। जिन मंत्रियों तथा पार्टी पदाधिकारियों पर भ्रष्टाचार और जनता से गलत व्यवहार करने का आरोप है, अहंकार जिनके सिर पर चढ़ चुका है उनको बाहर का रास्ता दिखाने का सही समय आ गया है। स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओे में व्याप्त हो रहा असंतोष थामकर धरातल को अभी से तैयार किया जाए।

भाजपा शासित स्थानीय निकायों जैसे नगर निगमों पर नगर पालिकाओं की कठोर समीक्षा अपेक्षित है। पार्षद वोट लेने के अलावा कभी दिखाई नहीं देते जबकि इन्हें प्रति सप्ताह अपने क्षेत्र का भ्रमण करना चाहिए और प्रत्येक भाजपा मतदाता परिवार के साथ आत्मीय सम्बंध रखना चाहिए। पार्षदों को जिम्मेदारी देनी चाहिए कि उसके क्षेत्र का हर हिंदू परिवार कम से कम एक लाभार्थी योजना से लाभान्वित हो। महापौरों को भ्रष्टाचार से बाहर आने की सख्त हिदायत देकर उनके काम की प्रतिमाह समीक्षा की जानी चाहिए। नगर निकाय के आपके प्रतिनिधि आम जनता के साथ आपके पहले संपर्क बिंदु हैं।

उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन नहीं अपितु व्यापक सुधार और प्रचार तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता आन पड़ी है। स्थानीय स्तर पर विरोधी दल जो नैरेटिव खड़ा करते हैं उससे निपटने के लिए एक वृहद तंत्र बनाने की आवश्यकता आन पड़ी है। किसी भी कठिन परिस्थिति से उबरने के दो ही मार्ग होते हैं – चिंतन और परिश्रम की पराकाष्ठा और यही हमारे मोदी-योगी की पहचान है जो चिंतन और परिश्रम का मूर्त रूप हैं।

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