महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरु हो गई है। लोकसभा चुनाव में मिली कम सीटों की भरपाई भाजपा विधानसभा चुनाव जीतकर करना चाहेगी। इसके लिए विपक्ष के रचे गए चक्रव्यूह से भाजपा को पार पाना होगा।
हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जिन राज्यों में नुकसान उठाना पड़ा है, उनमें से तीन राज्यों में अगले कुछ महीनों के अंदर ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। ये राज्य हैं महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड। भाजपा के सामने बड़ी चुनौती है कि इन चारों राज्यों में अपनी सरकारें बनाकर गिरी साख को पुनर्स्थापित करने की। विदित हो कि हाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपेक्षा से कम सीटें मिली थी। इनमें सबसे बड़ा राज्य 288 विधानसभा सीटों वाला महाराष्ट्र है, जहां फिलहाल भाजपानीत महायुति की ही सरकार चल रही है। इस सरकार में उसके साथ शिवसेना (शिंदे) और राकांपा (अजित) शामिल हैं। इन दोनों दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बावजूद महायुति हाल के लोकसभा चुनाव में राज्य की 48 में से सिर्फ 17 सीटें ही जीत सकी है। दूसरी ओर कांग्रेस, शिवसेना उबाठा और राकांपा (शप) की महाविकास आघाड़ी (मविआ) के हौसले 31 सीटें जीतकर बुलंद हैं।
इस जीत से उत्साहित राकांपा के अध्यक्ष शरद पवार अगले विधानसभा चुनाव में मविआ के 155 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं। महाराष्ट्र की राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी पवार जानते हैं कि आसन्न विधानसभा चुनावों में यदि उनका गठबंधन सरकार बनाने लायक सीटें जीत लेता है, तो वह किंग मेकर की भूमिका में होंगे। यह और बात है कि उनके सहयोगी दलों कांग्रेस और शिवसेना के भी हौसले कम बुलंद नहीं हैं। शिवसेना का स्ट्राइक रेट भले कम रहा हो, लेकिन कांग्रेस तो 17 सीटें लड़कर 13 जीतने में सफल रही है। भविष्य में उसके तेवर शिवसेना और राकांपा दोनों को परेशान कर सकते हैं। करीब एक दशक से सत्ता से दूर रही कांग्रेस इस बार फिर मुख्य मंत्री की कुर्सी को ध्यान में रखकर ही सीट समझौते की बातचीत करने बैठेगी।
दूसरी ओर पिछली बार की 23 सीटों से सीधे 9 पर आ गिरी भाजपा के सामने साख और सत्ता दोनों बचाने की चुनौती है। निश्चित रूप से अपने गठबंधन में वह वर्तमान विधानसभा एवं हाल के लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा दल है। इस हिसाब से सीट बंटवारे में उसे प्राथमिकता भी मिलेगी, लेकिन उसके दोनों मित्र दलों शिवसेना और राकांपा में अभी से हार का ठीकरा एक-दूसरे पर फोड़ने की तकरार शुरू हो गई है। अगले चार महीनों में ऊंट किस करवट बैठेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। महायुति के सामने एक और बड़ी चुनौती मराठा आरक्षण और ओबीसी आरक्षण कार्यकर्ताओं के बीच कोई समझौतापूर्ण रास्ता निकालना भी है। राज्य में मनोज जरांगे पाटिल की सभी मराठों को कुनबी का दर्जा देकर उन्हें ओबीसी कोटे के अंतर्गत आरक्षण देने की मांग ओबीसी समाज हजम नहीं कर पा रहा है। भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले अपने पुराने ओबीसी वोट बैंक को आश्वास्त कराने में नाकाम रही थी कि वह मराठा आरक्षण के कारण उनका कोई नुकसान नहीं होने देगी। इसका परिणाम यह हुआ कि मराठों के साथ-साथ ओबीसी भी उससे दूर हो गए। विधानसभा चुनाव घोषित होने से पहले भाजपा को मराठा और ओबीसी दोनों को समझाकर कोई बीच का रास्ता निकालना होगा, वरना इन दिनों समुदायों के टकराव में पिसेगी भाजपा ही। हालांकि केंद्रीय नेतृत्व ने दो केंद्रीय मंत्रियों भूपेंद्र यादव एवं अश्विनी वैष्णव को महाराष्ट्र का चुनाव प्रभारी बनाकर सतर्क होने का संदेश दे दिया है, लेकिन जमीनी निर्णय तो प्रदेश के नेताओं को ही करना होगा।
हरियाणा में किसकी होगी हार-जीत-
जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें महाराष्ट्र के बाद बड़ा राज्य 90 विधानसभा सीटों वाला हरियाणा है। हरियाणा में पिछले 10 साल से भाजपा की सरकार चल रही है। 2014 में वह 47 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही थी, लेकिन 2019 में उसकी सीटें घटकर 40 रह गईं, तो उसे दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी थी। ये सरकार भी करीब-करीब साढ़े चार साल ठीक-ठाक चल गई, लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्रीय नेतृत्व को अहसास हुआ कि मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर अगला चुनाव जिताने में सफल नहीं होंगे, तो 12 मार्च 2024 को उन्हें मुख्य मंत्री पद से त्यागपत्र दिलवाकर पिछड़े वर्ग के नायबसिंह सैनी को मुख्य मंत्री बनाया गया। इसके साथ ही दुष्यंत चौटाला ने भी अपने 10 विधायकों के साथ भाजपा सरकार से बाहर निकलने का फैसला कर लिया। चौटाला का कहना था कि लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे पर बात न बनने के कारण भाजपा से उनका समझौता टूटा है। दुष्यंत चौटाला के अलग होने के एक माह बाद ही तीन निर्दलीय विधायकों ने भी भाजपा सरकार का साथ छोड़ दिया था। हालांकि इतने विधायकों के साथ छोड़ने के बावजूद नायबसिंह सैनी की सरकार तो अभी चल रही है, लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। 2019 में राज्य की सभी 10 सीटें जीतनेवाली भाजपा की 2024 में सीटें आधी हो गई हैं। कांग्रेस ने पांच सीटें जीतकर संकेत दे दिया है कि आनेवाले विधानसभा चुनाव में वह भाजपा के सामने तगड़ी चुनौती पेश करेगी। पिछले 10 वर्षों से गैरजाट मुख्य मंत्री बनाकर जाटों के प्रभुत्व वाले हरियाणा में राज कर रही भाजपा को इस बार किसी नई रणनीति पर विचार करना होगा। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान एवं त्रिपुरा के पूर्व मुख्य मंत्री बिप्लव कुमार देव को हरियाणा का चुनाव प्रभारी नियुक्त कर दिया है।
झारखंड में खिलेगा भाजपा का कमल!
जिन राज्यों में भाजपा की सीटें घटी हैं, उनमें एक राज्य झारखंड भी है। इस जनजातीय बहुल राज्य में भाजपा की लोकसभा सीटें 2019 की 12 से घटकर 9 हो गई हैं। 81 सदस्यों वाली झारखंड की विधानसभा में इस समय सरकार भी झारखंड मुक्ति मोर्चा एवं कांग्रेस की है। 2014 में भाजपा ने यहां भी गैरजनजातीय नेता रघुबरदास को मुख्य मंत्री बनाकर हरियाणा जैसा ही खेल खेला था, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव में इसका असर अच्छा नहीं रहा।
भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए पूर्व मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन इन दिनों जनजातीय समाज की सहानुभूति पाने का पूरा प्रयास कर रही हैं। हालांकि भाजपा ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं असम के मुख्य मंत्री हिमंता बिस्वसरमा को झारखंड जिताने का जिम्मा सौंपा है। इस समय भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी जनजातीय समाज के बाबूलाल मरांडी हैं।
लेखक – विमलेश तिवारी