नालंदा विश्वविद्यालय की पुनर्स्थापना से भारत का गौरवबोध जागृत होगा और भारत के विश्वगुरु बनने का मार्ग सुलभ होगा। अतीत की राख से उठ खड़े होने की यही अजेय सनातन शक्ति हमें विश्व में ऐतिहासिक तौर पर विशिष्ट बनाती है।
दुनिया में नालंदा विश्वविद्यालय को ज्ञान का भंडार कहा जाता रहा है। इस विश्वविद्यालय में धार्मिक ग्रंथ, साहित्य, धर्मशास्त्र, तर्कशास्त्र, दवाएं, दर्शनशास्त्र, खगोल विज्ञान जैसे कई विषयों की पढ़ाई होती थी। उस समय जिन विषयों की पढ़ाई यहां पर होती थी, वो कहीं भी नहीं पढ़ाए जाते थे। 700 साल तक यह विश्वविद्यालय दुनिया के लिए ज्ञान का मार्ग था। 700 साल की लम्बी यात्रा के बाद 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने इसे जला दिया था। नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार को 2006 में गति मिली जब भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने बिहार राज्य विधानसभा के एक सत्र के दौरान इसकी पुनर्स्थापना का प्रस्ताव रखा।
बिहार के विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय ने 825 साल बाद फिर एक बार इतिहास रचा। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को राजगीर स्थित इसके नए परिसर का उद्घाटन किया। प्रधान मंत्री मोदी ने उद्घाटन कर नालंदा के उन खंडहरों का भी दौरा भी किया, जिसे बख्तियार खिलजी ने अपने जिद के चलते खंडहर बनाया था। नालंदा विश्वविद्यालय का प्राचीन परिसर अपनी विशाल पुस्तकालय और अद्भुत ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन बख्तियार खिलजी ने उसमें आग लगवा दी थी। पुस्तकालय इतनी ब़ड़ा था कि किताबें तीन महीने से अधिक समय तक सुलगती रहीं।
नालंदा विश्वविद्यालय का नया परिसर पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) देशों और भारत के बीच एक सकारात्मक पहल है। उद्घाटन समारोह में 17 देशों के मिशन प्रमुख व प्रतिष्ठित नागरिक शामिल थें। भारत के अलावा इन 17 देशों में ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मॉरीशस, म्यांमार, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में 40 कक्षाओं के साथ दो शैक्षणिक ब्लॉक हैं। जहां 1,900 छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर सकेंगे। 300-300 सीट की क्षमता के दो सभागार हैं। 550 छात्रों के लिए छात्रवास की भी व्यवस्था होगी। इसके अलावा परिसर में अंतरराष्ट्रीय केंद्र, 2,000 लोगों की क्षमता वाला एम्फीथिएटर, संकाय क्लब और खेल परिसर भी उपलब्ध है। नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर पूरी तरह से इको फ्रेंडली है। यहां अपशिष्ट जल पुन:प्रक्रिया प्लांट के साथ सौर संयंत्र, घरेलू और पेयजल उपचार संयंत्र उपलब्ध है। 100 एकड़ के जल निकायों व कई अन्य पर्यावरण के अनुकूल सुविधाओं के साथ पूरी तरह से आत्मनिर्भर परिसर है। 1,600 साल पहले स्थापित मूल नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था। इसका नया परिसर भी इतिहास से काफी सम्बंधित है। 2016 में नालंदा के खंडहरों को संयुक्त राष्ट्र विरासत स्थल घोषित किया गया था।
प्रधान मंत्री मोदी ने इसे भारत के शिक्षा क्षेत्र के लिए एक विशेष दिन बताया और इस बात पर जोर दिया कि नालंदा का भारत के गौरवशाली इतिहास से गहरा नाता है। नालंदा का हमारे गौरवशाली अतीत से गहरा नाता है। यह विश्वविद्यालय निश्चित रूप से युवाओं की शैक्षणिक जरूरतों को पूरा करने में एक लम्बा रास्ता तय करेगा। नए नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन करने के बाद अपने भाषण में प्रधान मंत्री मोदी ने कहा, यह भारत के विकास की यात्रा में एक महत्वपूर्ण कदम है, यह केवल एक नाम नहीं है, बल्कि एक पहचान और गौरव है। नालंदा के बंद होने से भारत अंधकार में चला गया। नालंदा भारत की शैक्षणिक विरासत और जीवंत सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक है। हमें नालंदा की पुरानी परम्परा को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। मुझे खुशी है कि तीसरी बार प्रधान मंत्री के रूप में शपथ लेने के 10 दिनों के भीतर मुझे नालंदा जाने का अवसर मिला। नालंदा एक मूल्य और मंत्र है। आग किताबों को जला सकती है, लेकिन ज्ञान को नष्ट नहीं कर सकती।
नया नालंदा विश्वविद्यालय परिसर प्राचीन वास्तुकला विरासत और आधुनिक स्थिरता प्रथाओं का मिश्रण दर्शाता है। बिहार के राजगीर में स्थित यह परिसर 455 एकड़ में फैला हुआ है और इसमें नेट-जीरो दृष्टिकोण को शामिल किया गया है, जिसका लक्ष्य कार्बन तटस्थ और शून्य अपशिष्ट होना है। इसमें 6.5 मेगावाट के सौर फार्म, 1.5 मेगावाट के बायोगैस प्लांट और 100 एकड़ से अधिक जल निकायों और 300 एकड़ से अधिक हरे भूनिर्माण के लिए समर्पित सौर ऊर्जा का व्यापक उपयोग शामिल है। विश्वविद्यालय का डिजाइन प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को श्रद्धांजलि देता है, जो प्राचीन भारत में शिक्षा का एक प्रसिद्ध केंद्र था।
बुनियादी ढांचे में पारम्परिक जली हुई मिट्टी की ईंटों के बजाय संपीड़ित स्थिर मिट्टी के ब्लॉक (सीएसईबी) का उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान देता है। विकेंद्रीकृत अपशिष्ट उपचार (डीवेट) प्रणाली सहित कुशल जल प्रबंधन प्रथाएं इसकी पर्यावरण अनुकूल साख को और बढ़ाती हैं। वास्तुकला की दृष्टि से परिसर में मोटी गुहा दीवारें हैं, जो कुशल तापीय प्रतिरोध के लिए डेसीकैंट इवेपोरेटिव (डीईवीएपी) प्रौद्योगिकी का उपयोग करती हैं, जिससे न्यूनतम ऊर्जा उपयोग के साथ आरामदायक आंतरिक जलवायु सुनिश्चित होती है। नया परिसर सतत विकास और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रमाण है, साथ ही यह नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन गौरव को पुनर्स्थापित करने के देश के प्रयासों का भी प्रतीक है।
बिहार, भारत में 5वीं शताब्दी ई. में स्थापित नालंदा विश्वविद्यालय, दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक था और प्राचीन भारत में शिक्षा के लिए एक प्रतिष्ठित केंद्र था। इसमें 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक थे, जो चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, तुर्की, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया सहित पूरे एशिया से विद्वानों को आकर्षित करते थे। धर्मगंज (सत्य का पर्वत) के नाम से जाना जाने वाला पुस्तकालय ज्ञान का खजाना था, जिसमें तीन बड़ी बहुमंजिला भवनों में संग्रहीत लाखों पांडुलिपियां और ग्रंथ शामिल थे। ये ग्रंथ उस समय के विद्वानों और शोधकर्ताओं के लिए अमूल्य संसाधन थे। विनाश से बची कुछ पांडुलिपियां अब लॉस एंजिल्स काउंटी म्यूजियम ऑफ आर्ट और तिब्बत के यारलुंग म्यूजियम में सुरक्षित हैं।
सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और बौद्धिक पुनर्जागरण को बढ़ावा देने के लिए यह पुनरुद्धार महत्वपूर्ण है। हिंदुओं ने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के स्थलों को पुनः प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयास किया है और ऐसा करना जारी रखा है, चाहे वह अयोध्या राम मंदिर हो, बिहार में नालंदा हो या वाराणसी में भगवान काशी विश्वेश्वर के वैध निवास और मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि के लिए चल रहा संघर्ष हो।