पाकिस्तान की ही तरह कनाडा भी अब खुलकर आतंकवाद और अलगाववाद का पोषक व संरक्षक देश बन चुका है। जिस तरह आतंकवाद ने पाकिस्तान का बेड़ागर्क कर दिया, उसी तरह कनाडा भी खालिस्तानी अलगाव व सिख उग्रवादियों का शिकार अवश्य होगा।
मई के अंतिम सप्ताह में कनाडा के वैंकुवर शहर में सिखों ने एक बार फिर जुलूस निकालकर स्व. प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी दिखाई, लेकिन एक-दो राजनीतिज्ञों के अलावा कनाडा की सरकार ने इसकी निंदा नहीं की। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का तर्क दे कर अलगाववादी हिंसा को बढ़ावा देने वाली इन गतिविधियों को कनाडा की सरकार नजरअंदाज करती है। कनाडा में इस तरह खुलेआम किसी दूरस्थ देश की सम्प्रभुता को चोट पहुंचाई जा रही है, जिस पर भारत सरकार मौन नहीं रह सकती।
हैरान करने वाली बात है कि पंजाब में खालिस्तान के लिए एकोई व्यापक जनआंदोलन नहीं चल रहा, लेकिन कनाडा के गुरुद्वारों में आप जाएं तो महसूस होगा कि वे खालिस्तान में तब्दील हो चुके हैं। गुरुद्वारों की चहारदीवारियों पर खालिस्तान के नारे और खालिस्तानी धंधेबाजों के चित्र व पोस्टर चारों ओर दिखाई देते हैं। इससे कनाडा के सिखों को लगता है कि खालिस्तान अब बनने ही वाला है। पंजाब में अपराध कर भागने वाले सिख कनाडा में खालिस्तान आंदोलन नहीं बल्कि खालिस्तान का धंधा चला रहे हैं। एसाल्ट राइफलों से लैस ये खालिस्तानी कनाडा में रह रहे सिखों पर अपनी दादागीरी दिखाते हैं और खालिस्तान के नाम पर वे दुनिया भर में सिखों से जबरदस्ती चंदा वसूलते हैं। इन्हीं खालिस्तानी धंधेबाजों को कनाडा सरकार का पूर्ण राजनीतिक और सरकारी संरक्षण मिला हुआ है। कनाडा में करीब 8 लाख सिख और करीब इतने ही हिंदू रहते हैं, लेकिन हिंदू, सिखों जैसे मुखर नहीं। इसलिए वे कनाडा के राजनीतिक दलों के वोट बैंक नहीं बनते। जबकि सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में एकजुट हो कर अपनी राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन करते हैं। उनका मनोबल इस बात से बढ़ता है कि कनाडा के राजनीतिज्ञ और यहां तक कि मंत्री व प्रधान मंत्री गुरुद्वारों में मत्था टेकने जाते हैं और उन्हें सम्मानित करते हैं।
भारत के जिस पंजाब प्रांत में कथित खालिस्तानी आंदोलन को कनाडा से हवा दी जा रही है वहां कुछ मुट्ठी भर सिखों को खालिस्तान का हथकंडा बनाया जा रहा है। विदेशी चंदों से ये खालिस्तानी अपना धंधा चमका रहे हैं। विचारणीय बात यह है कि आखिर कनाडा सरकार क्यों इसे हवा दे रही है। कनाडा और भारत के बीच विवाद का ऐसा कोई द्विपक्षीय मसला नहीं है जैसा कि भारत और पाकिस्तान के बीच है। फिर भी कनाडा भारत से रिश्ते क्यों खराब करने पर तुला है। इसे हम कनाडा के राजनीतिज्ञों की विवेकहीनता और अदूरदर्शिता ही कह सकते हैं। कनाडा की धरती से खालिस्तानी तत्वों को बढ़ावा देने से कनाडा के राजनीतिज्ञों को तो अल्पकालिक राजनीतिक लाभ हो सकता है, लेकिन कनाडा को कतई नहीं। दोनों देश अपने आर्थिक हितों के संवर्धन के लिए एक दूसरे की क्षमताओं से काफी लाभ उठा सकते हैं। आज जब कि विश्व कई चुनौतियों का सामना कर रहा है और इससे निपटने के लिए कनाडा और भारत के बीच सहयोग की जरुरत है, कनाडा भारत के साथ रिश्तों को खराब कर अपने राष्ट्रीय हितों का ही नुकसान कर रहा है। ऐसा अनजाने में नहीं बल्कि एक सुनियोजित षडयंत्र के साथ दशकों से चलाया जा रहा है, जिसने अब उग्र रुप धारण कर लिया है।
किसी भी दृष्टि से इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है कि कनाडा के नागरिकों द्वारा किसी देश के प्रधान मंत्री को खुलेआम धमकियां दी जाए, वहां के राजनयिकों को धमकाया जाए और इसके पूर्व प्रधान मंत्री की हत्या की झांकी सार्वजनिक जुलूस में दिखाई जाए। कनाडा की सरकार द्वारा इसे अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने उचित ठहराने पर भारत सरकार ने साफ कहा है कि कनाडा आतंकवादियों की सुरक्षित शरणगाह बन चुका है। कनाडा में भारत के राजनयिक अपने जीवन पर संकट महसूस करते हैं, लेकिन कनाडा की सरकार इन धमकियों को संज्ञान में नहीं लेती। कनाडा में भारतीय मूल के हिंदू नागरिकों को भी सिख उग्रवादियों द्वारा धमकाना शुरु हो गया है, क्योंकि वे हिंदुओ को खालिस्तान आंदोलन में रोड़ा मानते हैं। पिछले साल कनाडा के जिस आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में जिन चार लोगों को दो महीना पहले कनाडा में गिरफ्तार किया गया है, उनसे पूछताछ के आधार पर ऐसी कोई जानकारी भारत सरकार से साझा नहीं की गई है जिस पर भारत सरकार कोई कार्रवाई कर सके।
कनाडा की सरकार का कहना है कि कनाडा के सिख नागरिकों की हत्या में भारतीय एजेंटो का हाथ होने को लेकर गुप्तचर जानकारी फाइव आईज इंटेलिजेंस अलायंस के एक सदस्य से मिली है। भारत के लिए चिंता की एक बड़ी बात यह है कि फाइव आईज इंटेलिजेंस अलायंस के सदस्य देशों अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया में प्रवासी सिखों की काफी जनसंख्या है। इसलिए इन देशों द्वारा भी सिख उग्रवादियों की हरकतों को नजरअंदाज किया जाता है। ऐसा लगता है कि फाइव आईज इंटेलिजेंस अलायंस खालिस्तानी तत्वों का सबसे बड़ा हमदर्द बन रहा है। सिख उग्रवादियों की भारत विरोधी गतिविधियों को लेकर इन देशों की सरकारों से भारत चर्चा करता है, लेकिन ये सभी देश भारत विरोधी उग्रवादी ताकतों पर लगाम लगाने को तैयार नहीं दिखते। भारतीय राजनयिक हलकों में चिंता है कि चूंकि इन देशों में भी किसी न किसी रुप में खालिस्तानियों को संरक्षण मिला हुआ है इसलिए इन देशों के साथ भी रिश्तों पर आंच आ सकती है। भारत और अमेरिका के बीच एक अमेरिकी खालिस्तानी गुरपतवंत सिंह पन्नु की एक भारतीय एजेंट द्वारा कथित तौर पर हत्या के प्रयासों के आरोपों को लेकर तनाव तो बनने ही लगा है।
कनाडा के शहरों में भारत की पूर्व प्रधान मंत्री स्व. इंदिरा गांधी को आतंकवादी की गोली से खून से लथपथ मृत दिखाकर उनके कथित शौर्य का महिमामंडन किया जाता है और वहां से सीमा पार आतंकवाद को जिस तरह बढ़ावा दिया जा रहा है उसके मद्देनजर क्या भारत को संयुक्त राष्ट्र में यह मांग करनी चाहिए कि कनाडा को एक आतंकवाद समर्थक देश घोषित किया जाए। भारत पाकिस्तान को यह दर्जा देने की मांग संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सालों पहले कर चुका है और अब समय आ गया है कि कनाडा को लेकर भी इस तरह की मांग विश्व समुदाय के सामने रखे। कनाडा में जिस तरह वहां का सिख समुदाय बड़े जुलूस निकालकर इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी दिखाता है और जिस तरह कनाडा की पुलिस इसे देखती ही रहती है, वह इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि कनाडा न केवल दूसरे देशों के अंदरुनी मामलों में हस्तक्षेप करता है बल्कि दूसरे देश में अलगाववाद को बढ़ावा देकर अपने देश में राजनीतिक लाभ अर्जित करना चाहता है। यह भारत के विरुद्व खुला युद्ध है जिसका मुकाबला भारत के लिए एक बड़ी राजनयिक चुनौती है।
सीमा पार आतंकवाद को कनाडा जिस तरह नजरअंदाज कर रहा है और जिस तरह कनाडा ने 2019 में आतंकवाद को लेकर अपनी सालाना रिपोर्ट में सिख उग्रवाद और आतंकवाद का जिक्र हटा दिया है तथा जिस तरह कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रुडो सिखों की सभाओं और कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित हो कर सिखों की भावनाओं से खेलते हैं, इससे भारत के प्रति उनकी दुश्मनी साफ झलकती है। लम्बे अर्से से भारत पाकिस्तान पर इस तरह के आरोप लगाता रहा है कि वह भारत में आतंकवादी हमले करवाता है, लेकिन भारतीयों के लिए कनाडा अब पाकिस्तान से बड़ा सिरदर्द साबित हो रहा है।
– रंजीत कुमार