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विद्या भारती के स्तम्भ लज्जाराम तोमर

विद्या भारती के स्तम्भ लज्जाराम तोमर

by विजय कुमार
in जुलाई -२०२४, व्यक्तित्व, सामाजिक
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हजारों सरस्वती शिशु मंदिरों का राष्ट्रीय संजाल बनाने और सभी को एकसूत्र में पिरोने के लिए ‘विद्या भारती’ संस्था की स्थापना की गई, जिसका नेतृत्व लज्जाराम तोमर ने किया। राष्ट्रीय संगठन मंत्री के तौर पर उन्होंने देश भर में खूब प्रवास किया और विद्या भारती को उन प्रदेशों में भी स्थापित किया, जहां वह नहीं थी।

भारत में लाखों सरकारी एवं निजी विद्यालय हैं पर शासकीय सहायता के बिना स्थानीय हिंदू जनता के सहयोग एवं विश्वास के बल पर काम करने वाली संस्था ‘विद्या भारती’ सबसे बड़ी शिक्षा संस्था है। इसे देशव्यापी बनाने में जिनका बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा, वे थे 21 जुलाई, 1930 को गांव वघपुरा (मुरैना, म.प्र.) में जन्मे लज्जाराम तोमर।

लज्जाराम के परिवार की उस क्षेत्र में अत्यधिक प्रतिष्ठा थी। मेधावी छात्र होने के कारण सभी परीक्षाएं उच्च श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने 1957 में एम.ए. तथा बी.एड. किया। उनकी अधिकांश शिक्षा आगरा में हुई। 1945 में वे संघ के सम्पर्क में आए। उस समय उ.प्र. के प्रांत प्रचारक थे भाऊराव देवरस। अपनी पारखी दृष्टि से वे लोगों को तुरंत पहचान जाते थे। लज्जाराम पर भी उनकी दृष्टि थी। अब तक वे आगरा में एक इंटर कॉलेज में प्राध्यापक हो चुके थे। उनकी गृहस्थी भी भली प्रकार चल रही थी।

लज्जाराम इंटर कॉलेज में और भी उच्च पद पर पहुंच सकते थे पर भाउराव के आग्रह पर वे सरकारी नौकरी छोड़कर सरस्वती शिशु मंदिर योजना में आ गए। यहां शिक्षा सम्बंधी उनकी कल्पनाओं के पूरा होने के भरपूर अवसर थे। उन्होंने अनेक नए प्रयोग किए, जिसकी ओर विद्या भारती के साथ ही अन्य सरकारी व निजी विद्यालयों के प्राचार्य तथा प्रबंधक भी आकृष्ट हुए। आपातकाल के विरोध में उन्होंने जेल यात्रा भी की। इन्हीं दिनों उनके एकमात्र पुत्र के देहांत से उनका मन विचलित हो गया। वे छात्र जीवन से ही योग, प्राणायाम, ध्यान और साधना करते थे। अतः इस मानसिक उथल-पुथल में वे संन्यास लेने पर विचार करने लगे, पर भाऊराव देवरस उनकी अंतर्निहित क्षमताओं को जानते थे। उन्होंने उनके विचारों की दिशा बदल कर उसे समाजोन्मुख कर दिया। उनके आग्रह पर लज्जाराम ने संन्यास के बदले अपना शेष जीवन शिक्षा विस्तार के लिए समर्पित कर दिया।

उस समय तक पूरे देश में सरस्वती शिशु मंदिर के नाम से हजारों विद्यालय खुल चुके थे, पर उनका कोई राष्ट्रीय संजाल नहीं था। 1979 में सब विद्यालयों को एक सूत्र में पिरोने के लिए ‘विद्या भारती’ का गठन किया गया और लज्जाराम को उसका राष्ट्रीय संगठन मंत्री बनाया गया। उन्हें पढ़ने और पढ़ाने का व्यापक अनुभव तो था ही। इस दायित्व के बाद पूरे देश में उनका प्रवास होने लगा। जिन प्रदेशों में विद्या भारती का काम नहीं था, उनके प्रवास से वहां भी इस संस्था ने जड़ें जमा लीं।

विद्या भारती की प्रगति को देखकर विदेश के लोग भी इस ओर आकृष्ट हुए। अतः उन्हें अनेक अंतरराष्ट्रीय गोष्ठियों में आमंत्रित किया गया। उन्होंने भारतीय चिंतन के आधार पर अनेक पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें भारतीय शिक्षा के मूल तत्व, प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति, विद्या भारती की चिंतन दिशा, नैतिक शिक्षा के मनोवैज्ञानिक आधार आदि प्रमुख हैं।

उनके कार्यों से प्रभावित होकर उन्हें कई संस्थाओं ने सम्मानित किया। कुरुक्षेत्र के गीता विद्यालय परिसर में उन्होंने संस्कृति संग्रहालय की स्थापना कराई, पर इसी बीच वे कैंसर से पीड़ित हो गए। समुचित चिकित्सा के बाद भी उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ। 17 नवम्बर, 2004 को विद्या भारती के निराला नगर, लखनऊ स्थित परिसर में उनका शरीरांत हुआ। उनकी अंतिम इच्छानुसार उनका दाह संस्कार उनके पैतृक गांव में ही किया गया।

 

 

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Tags: #hindivivek #vidyabharti #work #india #world #education #hindi

विजय कुमार

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