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संविधान हत्या दिवस की आवश्यकता क्यों?

संविधान हत्या दिवस की आवश्यकता क्यों?

by मृत्युंजय दीक्षित
in अगस्त २०२४, ट्रेंडींग, समाचार..
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संविधान हत्या दिवस की अधिसूचना आने के बाद अब हर वर्ष 25 जून को कांग्रेस के काले कारनामे जनता को याद दिलाए जाएंगे। स्वाभाविक है इससे कांग्रेस और इंडी गठबंधन असहज है और अनाप-शनाप बयानबाजी कर रहे हैं। प्रियंका गांधी वाडरा से  लेकर शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे गुट के संजय राउत तक सभी बहुत ही विकृत बयान दे रहे हैं। इनका कहना है कि जिस घटना को 50 वर्ष हो चुके हैं, भाजपा उसे क्यों याद रखना चाहती है? इनका तर्क मानें तो फिर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस भी नहीं मनाना चाहिए, क्योंकि उसके तो पचहत्तर वर्ष बीत गए हैं? कुतर्क कांग्रेस का चरित्र बन गया है।

 लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व में इंडी गठबंधन ने एक झूठा नैरेटिव व्यापक स्तर पर चलाया था कि यदि केंद्र में नरेंद्र मोदी इस बार 400 सीटों के साथ सरकार बनाने में सफल हो जाते हैं तो संविधान बदल दिया जाएगा। इस झूठ ने चुनाव को प्रभावित किया और भाजपा अकेले पूर्ण बहुमत नहीं ला पाई।

चुनाव के बाद संसद के प्रथम सत्र में इंडी गठबंधन के नेता संविधान के पॉकेट साइज संस्करण को लहराते दिखाई दिए। संविधान की सुरक्षा को लेकर देश में तीखी राजनैतिक बहस चल रही है। विपक्ष का इरादा आगामी विधानसभा चुनावों में भी संविधान की आड़ में नैरेटिव चलाने का है, क्योंकि अब उसे लग रहा है कि संविधान, आरक्षण और लोकतंत्र की रक्षा के झूठे नैरेटिव के सहारे ही भाजपा का विजय रथ रोका जा सकता है।  संविधान की रक्षा के नाम पर दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों आदि को भाजपा से दूर किया जा सकता है।

इस वर्ष देश को कांग्रेस द्वारा आपातकाल के अंधेरे में झोंकने के भी 50 वर्ष हो रहे हैं। संविधान के पॉकेट साइज संस्करण को लहराते लोगों को वास्तविकता का स्मरण कराते हुए संसद के प्रथम संक्षिप्त सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला व फिर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल को याद करते हुए कांग्रेस सहित सम्पूर्ण विपक्ष को आईना दिखा दिया। राष्ट्रपति ने अपने सम्बोधन में आपातकाल को सबसे बड़ा काला अध्याय बताया था। आपातकाल कांग्रेस व उसके सहयोगियों की एक दुखती रग है। लोकसभा अध्यक्ष आपातकाल की भर्त्सना का प्रस्ताव लाए और सदन में दो मिनट का मौन रखा।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की राजनीति के सबसे काले अध्याय आपातकाल से वर्तमान और भावी पीढ़ियों को अवगत कराने के लिए अब केंद्र सरकार ने प्रतिवर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लेते हुए इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है। ये एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय है, क्योंकि जन सामान्य जिसने आपातकाल का दौर नहीं देखा, उसे पता होना चाहिए कि संविधान बदलना और उससे खिलवाड़ करना वास्तव में क्या होता है, जो कांग्रेस ने आज से 50 साल पहले किया था।

संविधान हत्या दिवस की अधिसूचना आने के बाद अब हर वर्ष 25 जून को कांग्रेस के काले कारनामे जनता को याद दिलाए जाएंगे। स्वाभाविक है इससे कांग्रेस और इंडी गठबंधन असहज है और अनाप-शनाप बयानबाजी कर रहे हैं। प्रियंका गांधी वाडरा से  लेकर शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे गुट के संजय राउत तक सभी बहुत ही विकृत बयान दे रहे हैं। इनका कहना है कि जिस घटना को 50 वर्ष हो चुके हैं, भाजपा उसे क्यों याद रखना चाहती है? इनका तर्क मानें तो फिर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस भी नहीं मनाना चाहिए, क्योंकि उसके तो पचहत्तर वर्ष बीत गए हैं? कुतर्क कांग्रेस का चरित्र बन गया है।

वास्तविकता यह है कि 25 जून हर उस व्यक्ति और परिवार के घाव पर मलहम लगाने और स्मरण करने का दिन है जो इंदिरा गांधी की सत्ता लोलुपता के लिए लगाए गए आपातकाल की क्रूरता का पीड़ित है। इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए जिस तरह संविधान का गला घोंटा था वह संविधान की हत्या के रूप में ही याद किया जा सकता है। उस दौरान देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी तरह से छीन लिया गया था। लाखों लोगों को बिना कारण जेल भेज दिया गया था। जेल में लोगों पर क्रूर अमानवीय अत्याचार किए गए थे। लाखों परिवारों  को आपातकाल में अथाह दुःख सहन करना पड़ा था। इस दौरान सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेताओं ने भयंकर भ्रष्टाचार किया और देश की सम्पत्ति को अंग्रेजों और मुगल आक्रमणकारियों की तरह लूटा। चाहे फिल्म और संगीत जगत रहा हो या समाचार जगत या फिर राजनीति, कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा था जहां आपातकाल के अत्याचार न पहुंचे हों। डर और कुंठा के उस माहौल को क्यों भूल जाना चाहिए? देश को पता चलना चाहिए कि आपातकाल और तानाशाही क्या होता है, जिससे कोई भी व्यक्ति कभी भी इंदिरा गांधी जैसी हरकत दोबारा न कर सके।

आपातकाल के दौरान जो सबसे जघन्य अपराध संविधान के साथ हुआ वो थे उसकी आत्मा की हत्या करके उसकी प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष और समाजवाद शब्द जोड़ा जाना, यह तुष्टीकरण का सबसे घृणित उदाहरण है।प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को हिटलर कहने वाली कांग्रेस की रग रग में तानाशाही भरी है। एक समय था जब कांग्रेस समाज के हर वर्ग को अपनी इच्छा के अनुरूप ही नियंत्रित करती थी, फिर वह चाहे कार्यपालिका हो, न्यायपालिका या फिर मीडिया और मनोरंजन जगत। राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों को ताश के पत्तों के घर की तरह गिरा दिया जाता था। कांग्रेस ने केवल 25 जून को ही संविधान की हत्या नहीं की अपितु कई अवसरों पर संविधान का गला घोंटा। गांधी परिवार ने कई बार देश की न्यायपालिका के आदेशों को अस्विकार करवाया, जिसमें शाहबानो प्रकरण की चर्चा अभी भी हो रही है। कांग्रेस के आपातकाल में सबसे अधिक संविधान संशोधन किए गए थे और जमकर मुस्लिम तुष्टिकरण का खेल भी खेला गया।

राहुल गांधी अपने पूर्वजों की राह पर चलते हुए वर्तमान समय में भी तानाशाही रवैया अपना रहे हैं और देश में अराजकता का वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अट्ठारहवी लोकसभा के संसद के प्रथम सत्र में देश के इतिहास में पहली बार प्रधान मंत्री को बोलने से रोकने के लिए गजब का हंगामा किया गया। नेता प्रतिपक्ष ने स्वयं सांसदों को वेल में जाकर हल्ला मचाने को बाध्य किया। ये किसी भी स्थिति में स्वस्थ लोकतंत्र का परिचायक नहीं है और कांग्रेस की तानाशाही मानसिकता दिखाता है। कुछ लोग संविधान हत्या दिवस नामकरण का विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि यह नाम उचित नहीं है, जबकि यह नाम पूरी तरह से सही भी है और एकदम सटीक भी, क्योंकि कांग्रेस लगातार संविधान की हत्या ही करती आ रही है। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या के विवादित ढांचे के टूट जाने के बाद भाजपा शासित चार राज्यों की चुनी हुई सरकारों को बिना कारण बर्खास्त कर दिया गया था।

 

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