ऐसा नहीं है कि सऊदी अरब में हज यात्रा के दौरान दुर्घटना पहले नहीं हुई हैं। 26 सितंबर 2015 में वहां मची भगदड़ में 700 से अधिक यात्रियों की मौत हो गई थी, जिसमें 14 भारतीय भी थे। 2 जुलाई 1990 में मक्का में 1400 से अधिक हज यात्रियों की मौत हुई थी। इस वर्ष ये आंकड़ा 1300 को पार कर चुका है। समाचार एजेंसी एएफपी ने एक अरब राजनयिक के माध्यम से बताया है कि मरने वालों में सबसे अधिक (638 से अधिक) यात्री मिस्र के थे। इंडोनेशिया के लगभग 200 से अधिक लोग मारे गए हैं। भारत ने 98 यात्रियों के मारे जाने की जानकारी दी है। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान, मलेशिया, जॉर्डन, ईरान, सेनेगल, ट्यूनेशिया, सूडान, कुर्दिस्तान और अमेरिका आदि ने भी अपने नागरिकों के मारे जाने की भी पुष्टि की है।
पिछले महीने सऊदी अरब से आई एक खबर ने दुनिया के लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। पवित्र हज यात्रा के लिए सऊदी अरब गए यात्रियों में से 24 जून तक लगभग 1300 यात्रियों की मौत हो गई। इन मृतकों में भारत के भी लगभग 98 यात्री शामिल थे। हालांकि इस खबर पर हमारे यहां कोई बहुत अधिक हो-हल्ला नहीं मचा। अभी हाल ही में, हाथरस में हुए एक आयोजन में मची भगदड़ के कारण 121 से अधिक लोगों की मौत पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले सऊदी में हुए इस दुर्घटना के बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। हाथरस दुर्घटना के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराने वाले सऊदी में हुई मौत पर वहां की सरकार से कोई प्रश्न नहीं पूछ रहे हैं। हाथरस में मरे लोगों के घर जाकर संवेदना प्रकट करने और सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाले विपक्ष के नेता राहुल गांधी को सऊदी अरब में मरने वाले भारतीय नागरिकों के प्रति संवेदना और उनकी मौत पर वहां की सरकार से प्रश्न पूछने का साहस भी नहीं है। ऐसे आयोजनों में हुई दुर्घटना पर राजनीति करने की कोई आवश्यकता भी नहीं है, लेकिन जब आप भारत में हुए दुर्घटना के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहरा कर जनता के दुख को आक्रोश में बदलकर उन्हें भड़काने का काम करते हैं तो कहीं ना कहीं आपकी जिम्मेदारी बनती है कि सउदी जैसे दुर्घटना में मरने वाले भारतीय नागरिकों के हित के लिए वहां की सरकार से प्रश्न पूछें। अगर आप ऐसा नहीं करते तो आपकी नियत पर संदेह होता है।
ऐसा नहीं है कि सऊदी अरब में हज यात्रा के दौरान दुर्घटना पहले नहीं हुई हैं। 26 सितंबर 2015 में वहां मची भगदड़ में 700 से अधिक यात्रियों की मौत हो गई थी, जिसमें 14 भारतीय भी थे। 2 जुलाई 1990 में मक्का में 1400 से अधिक हज यात्रियों की मौत हुई थी। इस वर्ष ये आंकड़ा 1300 को पार कर चुका है। समाचार एजेंसी एएफपी ने एक अरब राजनयिक के माध्यम से बताया है कि मरने वालों में सबसे अधिक (638 से अधिक) यात्री मिस्र के थे। इंडोनेशिया के लगभग 200 से अधिक लोग मारे गए हैं। भारत ने 98 यात्रियों के मारे जाने की जानकारी दी है। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान, मलेशिया, जॉर्डन, ईरान, सेनेगल, ट्यूनेशिया, सूडान, कुर्दिस्तान और अमेरिका आदि ने भी अपने नागरिकों के मारे जाने की भी पुष्टि की है।
मौत का कारण इस वर्ष सऊदी अरब में पड़ी भीषण गर्मी को बताया जा रहा है। स्थानीय प्रशासन का ये भी कहना है कि इस वर्ष मरने वालों में से अधिकांश हज यात्री वो थे जो हज यात्रा के लिए पहले से अनुमति नहीं लेकर आए थे। वह सामान्य टूरिस्ट वीजा पर पहुंचे थे, उनके पास हज यात्रा का परमिट नहीं था, इसलिए उनको हज यात्रियों को मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिली थी। पर प्रश्न ये उठता है कि क्या बिना परमिट यात्री पहली बार वहां पहुंचे थे? यदि हां तो इस दुर्घटना के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं होगा। यदि वहां हर वर्ष इस तरह बिना परमिट के कुछ लोग पहुंचते हैं तो क्या प्रशासन को उनके लिए कुछ व्यवस्था नहीं रखनी चाहिए थी? सच तो ये है कि वहां मरे 1300 यात्रियों में सभी बिना परमिट के थे, ऐसा नहीं है। वहां गए हज यात्रियों ने इस दुर्घटना के लिए सऊदी अरब के प्रशासन को जिम्मेदार बताया है।
वहां मौजूद कुछ यात्रियों के अनुभवों को सच माना जाए तो हज यात्रियों के लिए की गई व्यवस्था अच्छी नहीं थी। टेंटों में पर्याप्त एसी का ना होना, जहां कूलर थे उनमें पानी का ना होना, सफाई ना होना, क्षमता से अधिक यात्रियों को ठहराना, पीने के पानी की पर्याप्त व्यवस्था ना होना आदि कुछ प्रमुख कारण थे, जिनकी वजह से यात्री भीषण गर्मी के शिकार हुए। कह सकते हैं कि स्थानीय प्रशासन गर्मी से निपटने में असफल रहा। एक पीड़ित यात्री का कहना था कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हज यात्रियों को जो जगह दी गई थी वो पहाड़ों के बीच गहराई में थी, जिसकी वजह से वहां लोग घुटन का शिकार हुए। संकट के समय हज यात्रियों को सहायता और सलाह देने में स्थानीय प्रशासन विफल रहा। हालांकि सऊदी प्रशासन का दावा है कि उन्होंने हज यात्रियों के लिए पर्याप्त व्यवस्था की थी। 189 अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र और मोबाइल क्लीनिक बनाए गए थे, जिनमें 6500 बेड हैं। इसके अलावा 40 हजार से अधिक चिकित्सकीय सुविधा, तकनीकी प्रशासनिक कर्मचारी और वालेंटियर हज यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखने के लिए 24 घंटे काम कर रहे थे।
मुसलमानों के लिए जीवन में एक बार हज करना फर्ज है। ये मुसलमानों की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा है। इसके लिए कई लोग तो सारे जीवन पैसा इकठ्ठा करते हैैं और हज करते हैं। कहा जाता है कि यहां मरने वाले लोगों को यहीं की धरती में दफनाया जाता है। उनका मृत शरीर उनके देश वापिस नहीं भेजा जाता है। इसलिए कई बुजुर्ग यहां होने वाली मृत्यु को अपने लिए अच्छा मानते हैं। गौरतलब हो कि इस बार 18 लाख से अधिक यात्री हज करने यहां पहुंचे हैं।
दुर्घटना पर राजनीति करना किसी के लिए भी ठीक नहीं है। मौत किसी भी धर्म या मजहब में हो परिवार के लिए कष्टकारी होती है, लेकिन सऊदी प्रशासन से इतना अनुरोध करना तो बनता है कि वह बदलते मौसम का पूर्वानुमान लगा कर हज यात्रियों के लिए उतनी सुविधाएं तो दें, जिससे उनके जीवन पर संकट ना आए। साथ ही बिना परमिट आने वाले यात्रियों को सख्ती से रोके और यदि फिर भी कुछ लोग पहुंच ही जाएं तो उनको अल्लाह के भरोसे ना छोड़कर उनके लिए भी कुछ सुविधाएं उपलब्ध कराए। प्रकृति के कोप से बचना मुश्किल है, लेकिन यदि पूर्व तैयारी हो तो उससे मुकाबला तो किया जा सकता है। साथ ही वहां हज करने जाने वाले यात्रियों को भी अधिक जिम्मेदार होना होगा। अपने स्वास्थ्य, उम्र का ख्याल रखते हुए पूर्व तैयारी के साथ हज यात्रा के लिए जाना ही उनके लिए उचित होगा। समस्या के बारे में चर्चा करने से बेहतर उसके समाधान के लिए काम किया जाए। स्थानीय प्रशासन के साथ उचित समन्वय ही आने वाले वर्षों में इस तरह के दुर्घटना को दोबारा होने से रोक सकेगा। यही सबके हित में होगा।