अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर
वेब सीरीज़ ‘पाताल लोक’ में पालतू कुतिया का नाम ‘सावित्री’ रख दिया गया। अब अगर ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो ये एकतरफ़ा क्यों हैं? आज से 40 वर्ष बाद विश्व में मुस्लिम समुदाय का चित्रण करने की हिम्मत किसी में हैं?
वेब सीरीज़ ‘पाताल लोक’ में पालतू कुतिया का नाम ‘सावित्री’ रख दिया गया। अब अगर ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो ये एकतरफ़ा क्यों हैं? आज से 40 वर्ष बाद विश्व में मुस्लिम समुदाय का चित्रण करने की हिम्मत किसी में हैं?
आज भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बात हो रही है। उसी स्वर्णिम गौरव शाली वैभव को वापस पाने की बात की जा रही है जब हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था। इस स्वप्न को साकार करने में मनोरंजन जगत की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है।
सच पूछिए तो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर फिल्मों ने एक मीठे जहर की तरह हमें हमारे ही विरुद्ध कब खड़ा कर दिया गया पता ही नहीं चला। आज भगवान का मज़ाक उड़ाती ‘ओह माई गॉड’, ‘पीके’ जैसी फिल्मों को देख कर लोग ताली बजाते हैं। लेकिन क्या कभी अल्लाह का मज़ाक उड़ाती किसी फिल्म को आपने देखा है?