इतिहास के पन्नों को पलटे तो अनेकानेक ऐसे तथ्य उभरते हैं जो नेहरू-गांधी खानदान के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सत्ता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। कांग्रेस की सरकार के दौरान यदि सबसे ज्यादा हानि हुई है तो वह भारत के ‘स्व’ की हुई है। शिक्षा से लेकर समस्त संवैधानिक संस्थानों और सम्पूर्ण तंत्र में भारत और भारतीयता को त्याग कर पाश्चात्य के रंग में राष्ट्र को रंगने के लिए पूरी ताकत झोंक दी गई। इसी बीच एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद देश की जनता ने 2014 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा पर भरोसा जताया। देश में पूर्ण बहुमत वाली तीसरी बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी।
भारत 15 अगस्त 1947 को स्वाधीन हुआ, लेकिन स्वाधीनता के साथ विभाजन की वीभत्स त्रासदी ने राष्ट्र को कभी न भर पाने वाले असहनीय घाव दिए। राष्ट्र स्वाधीनता के 7 दशक पूर्ण कर 8वें दशक की यात्रा में गतिमान है। अपनी इतनी बड़ी यात्रा में भारत ने कई उतार चढ़ाव देखें। यद्यपि देश में लम्बे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस सरकार के कार्यों ने राष्ट्र को गति देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, किंतु राष्ट्र और भारतीय जनमानस जो अपेक्षा रखता था, जो भारतीय स्वभाव रहा है, उसे पूर्ण करने में कांग्रेस विफल रही है।
इतिहास के पन्नों को पलटे तो अनेकानेक ऐसे तथ्य उभरते हैं जो नेहरू-गांधी खानदान के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सत्ता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। कांग्रेस की सरकार के दौरान यदि सबसे ज्यादा हानि हुई है तो वह भारत के ‘स्व’ की हुई है। शिक्षा से लेकर समस्त संवैधानिक संस्थानों और सम्पूर्ण तंत्र में भारत और भारतीयता को त्याग कर पाश्चात्य के रंग में राष्ट्र को रंगने के लिए पूरी ताकत झोंक दी गई। इसी बीच एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद देश की जनता ने 2014 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा पर भरोसा जताया। देश में पूर्ण बहुमत वाली तीसरी बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधान मंत्री पद की शपथ ली और एक नए इतिहास का सूत्रपात किया। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आते ही भारत, भारतीयता और ‘स्व’ केंद्रित अधिष्ठान पर द्रुत गति से कार्य किया। यह उसी का सुखद परिणाम रहा कि देश में असम्भव माने जाने वाले निर्णय लिए गए और उनका सफल क्रियान्वयन भी हुआ।
धारा 370, अयोध्या में श्रीराम मंदिर, नवीन संसद भवन का निर्माण, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, भारतीय न्याय संहिता, राष्ट्र के धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व के स्थलों का विकास प्रमुखता से हुआ। इसके अतिरिक्त 10 वर्षों के शासनकाल में भारत की सबसे मजबूत विदेश नीति, स्टार्टअप, शिक्षा एवं आर्थिक क्षेत्रों में सशक्तिकरण, आत्मनिर्भरता, मेक इन इंडिया, अंतिम पायदान के व्यक्ति तक योजनाओं की सफल पहुंच और डीबीटी से लेकर देश के आधारभूत ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले।
हवाई यात्रा से लेकर रेलवे में सुधार, सड़कों का विस्तृत जाल, पारदर्शिता सहित कम से कम सरकारी तंत्र पर केंद्रित व्यवस्थाओं के संचालन की धारा देखने को मिलती रही है।
जनजातीय समाज के उत्थान एवं कल्याण के साथ समाज के वंचितों व उपेक्षितों को मुख्य धारा में लाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की प्रतिबद्धता देखने को मिली हैं। वहीं राष्ट्रीय पुरस्कार (पद्म पुरस्कार/ भारत रत्न) उसके वास्तविक अधिकारी तक पहुंचे हैं। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव से लेकर स्वच्छता एवं अज्ञात नायकों की खोज और खेल, कला, संस्कृति, विज्ञान और सेना को सशक्त और सर्वसमर्थ बनाने में नरेंद्र मोदी सरकार ने बढ़-चढ़कर अपनी महनीय भूमिका निभाई है।
वर्तमान में भारत की धाक का पूरी दुनिया लोहा मानती है, क्योंकि भारत ने वसुधैव कुटुम्बम् के मंत्र के साथ नए भारत की तस्वीर गढ़ी है। ॠ20 से लेकर समस्त अंतरराष्ट्रीय मंचों में भारत की सशक्त गूंज सुनाई देती है। पिछले स्वतंत्रता दिवस पर प्रधान मंत्री मोदी ने पंच प्रणों का आह्वान किया था। भारत की सर्वांगीण उन्नति के ये पंच प्रण हैं-
- विकसित भारत का लक्ष्य।
- गुलामी के हर अंश से मुक्ति।
- अपनी विरासत पर गर्व करना।
- एकता और एकजुटता।
- नागरिकों में कर्तव्य की भावना का होना।
इसके साथ ही औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति। ऐसे अनेकानेक निर्णयों ने भारतीय मानस में शासन के ‘स्व’-तंत्र पर विश्वास स्थापित किया है। शासन के साथ सभी को नागरिक कर्तव्यों को निभाने के लिए सामूहिक संकल्प लेने की आवश्यकता है।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (14 अगस्त)
साथ ही 14 और 15 अगस्त का दिन विभाजन विभीषिका की दु:खद स्मृतियों से बारम्बार हमारा साक्षात्कार कराता है। भारत की स्वाधीनता के साथ ही बंटवारे के चलते जो विभीषिका झेलनी पड़ी, उसकी अंतहीन त्रासदी ने समूची मानवता को दहला कर रख दिया था। भारत के इतिहास पर विभाजन की विभीषिका एक ऐसे ही क्रूर, वीभत्स, भयावह दौर के रूप में दर्ज हुई, जिसकी मर्मांतक चीखें अब भी सुनाई देती हैं। भारत विभाजन के लिए किस प्रकार से अंग्रेज अपनी चाल चल रहे थे। मुस्लिम लीग किस प्रकार से दंगों के आतंकी क्रूर चेहरे के रूप में उभर रही थी। उसी समय जवाहरलाल नेहरू, भारत विभाजन के लिए आए माउंटबेटन और उसकी पत्नी एडविना के साथ 10 मई 1947 से कई दिनों तक शिमला में पार्टी कर रहे थे। इतना ही नहीं माउंटबेटन ने एलिजाबेथ द्वारा दी गई महंगी कार ‘रोल्स रॉयल्स’ नेहरू को दी थी। नेहरू इसी में यात्राएं करते थे। शिमला में माउंटबेटन, नेहरू और एडविना की छुट्टियों के दौरान ही माउंटबेटन के भारत विभाजन सम्बंधी मसौदे को नेहरू ने स्वीकार कर लिया था। इससे सम्बंधित घटनाक्रमों का सविस्तार वर्णन तत्कालीन ब्रिटिश पत्रकार और इतिहासकार लियोनार्ड मोसली ने अपनी पुस्तक ‘द लास्ट डेज ऑफ द ब्रिटिश राज’ में किया है। यानी भारत विभाजन के लिए मुस्लिम लीग और जिन्ना तो उतावले थे ही, साथ ही नेहरू की भी भूमिका संदिग्ध और विभाजन के पक्ष में स्पष्ट प्रतीत होती है।
14/15 अगस्त 1947 को भारत के विभाजन के साथ ही पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में हिंसा और नरसंहार खुलेआम शुरू हो गया। पाकिस्तान के हिस्से में गैर मुस्लिमों की सम्पत्तियां तो लूटी ही जा रही थी। इसके साथ ही महिलाओं की इज्जत भी लूटी जा रही थी, उनका बलात्कार किया जा रहा था। मासूमों तक को मौत के घाट उतारा जा रहा था। हिंदुओं को काफिर कहकर खुलेआम उनकी हत्या के लिए खूंखार मुस्लिम आतंकियों की भीड़ चौतरफा आतंक मचा रही थी। पाकिस्तान से हिंदुस्थान के लिए भागते लोग अपनी जमीं और आसमां नाप रहे थे, लेकिन किस पल क्या हो जाए इसका कोई भरोसा नहीं था। वहीं दूसरी ओर हिंदुस्थान के हिस्से में मुस्लिम पूरी तरह सुरक्षित थे, जो पाकिस्तान जा रहे थे उन्हें भी कोई समस्या नहीं थी और जो भारत में रुके उन्हें भी नहीं हुई। विभाजन की त्रासदी के शिकार हिंदू-सिख हुए। तत्कालीन परिदृश्य में विभाजन विभीषिका के समय जो वीभत्स दृश्य दिख रहे थे उसका अनुमान डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर ने बहुत पहले लगा लिया था। उन्होंने ‘पाकिस्तान ऑर द पार्टीशन ऑफ इंडिया’ पुस्तक (1945) में लिखा था कि अगर भारत का विभाजन होता है तो पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों का भविष्य सुरक्षित नहीं रहेगा।
कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल