हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
क्षमादिन बने राष्ट्रीय त्योहार

क्षमादिन बने राष्ट्रीय त्योहार

by हिंदी विवेक
in संस्कृति, सामाजिक
0

 

बहुविधता यह भारतीय संस्कृति का मूलाधार है। अलग-अलग भाषा, धर्म, पंथ, रीति-रिवाज, विचारधारा ये सारे अपनी भारतीय संस्कृतिकी उदात्तका की चरणकमलोंपर बहुतही सुखचैनसे एकसाथ निवास करती हैं। दुनिया में जो भी कुछ अच्छा है वो अपने में बहुतही सहजतासे समां लेने कीअद्भुत क्षमताहै जोइस संस्कृतिमें कूट-कूट कर भरी हुई है। इसलिए दुनिया में किसी भी देश में इतनी विविधता जोहमारे देश में नहींदिखाई देती है। यहां के हर व्यक्तिमें वो इस तरह समाई है कि अपनी अलग पहचान बताते हुए भी हर किसी के बीच इसी भारतीय संस्कृति ही पनपा है यह सिद्ध हो जाता है। यहां के मूलनिवासी में कौन और बाहर के कौन यह पहचान पाना भी अब असंभवसा है। इसीलिए बाहर के किसी भी देश के परिमाण यहां लागू नहीं होते। इतनी विविधता के बावजूद आप सब एक कैसे? इस प्रश्न का उत्तर भी एक ही है, और वो है इस देशकी संस्कृति और सभ्यता ।

आधुनिक भारत का निर्माण करते समय भी हमने कई नईपरम्पराए अपनाई । विज्ञान-तंत्रज्ञान के साथ में नये उत्स, नई वेशभूषा, उत्सव ये सारा हमने बहुतही उत्साहसे अपनाया। इस नयेपन को भी हमने अपने भारतीय संस्कृति की चौखट में कुछ इस तरह से ढाल दिया की ये अपनी अलग पहचान ही भूल गए। भारत की यही विशेषता पूरे संसार को अपनी ओर आकर्षित करती है। नया, अच्छा कुछ भी स्वीकार  करने में कभीभी पीछे ना रहनेवाले भारतने भी दुनियाको कई नई परंपरा, विचारधारासे अवगत कराया और पूरी दुनिया मे वो बखूबी निभाई जा रही है।

हमारे देश के कुछ मानचिन्ह हैं, जैसे मोर राष्ट्रीय पक्षी, सिंह राष्ट्रीय पशु, अशोकचक्र, तिरंगा आदि. ‘स्वतंत्रतादिन’ और प्रजासत्ताकदिन’ ये हमारे देश के राष्ट्रीय त्योहार। इसी तरह दिवाली, क्रिश्मस आदि। कई त्योहार अलग-अलग धर्मो की मान्यताओंपर उसी परंपरा के अनुसार मनाए जाते हैं। लेकिन इस में एक कमी अकसर अखरती है कि अपने देश मे अपनी परंपरा, विचारधारा, सोच के अनुसार सभी के लिए एकभी त्योहार नहीं है। हमारी संस्कृतति की उदात्तता, महानता को प्रकट करने वाला सभी मना सके ऐसा कोई त्योहार होना बहुत ही जरुरी है। परंपरा से चलते आ रहे किसी भी त्योहार मे कोई परिवर्तन, बदलाव किए बगैर हमारी उच्चतम परंपराओं को, विचारोंको, तत्त्वज्ञान को अपने मे समा सके। ऐसा एक सर्वसमावेशक त्योहार अपनाने की आज जरुरत है। दुनिया के सामने कई आदर्श प्रस्तुत करनेवाले भारतने इस त्योहार के माध्यम से एक सर्वसमावेशक, सब विचारधाराओंको साथ लेकर चलनेवाला, उच्च आदर्श प्रस्तुत करनेवाला त्योहार स्थापित करना अत्यावश्यक हो गया है।

भारत मे कई धर्म, पंथ एकसाथ बड़े ही भाईचारे के साथ गुजर-बसर करते हैंक्योंकि इस देश की संस्कृति ने उन्हें अपने-अपने तरीकेसे चलने की अनुमति दी है। सब धर्मो का मूल एकही हैं, सब धर्म मानव उत्थानकाही मार्ग सीखाते हैं। सब धर्मो का मूलभूत तत्त्वज्ञान हमने बगैर किसी शर्त के और सहर्ष स्वीकार किए इसीलिए ये संस्कृति इतनी महान बन पाई। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन और उन्नति करने के लिए, और संवेदनक्षम बनाने के लिएऔर उदार बनाने के लिए हमने मानवता के कई विचारों को अपनाया। ‘क्षमा’ यह तत्त्व हमने इसी तरह स्वीकृत किया है। वो हमारे वैयक्तिक और सामाजिक जीवन का एक अविभाज्य अंग है। दुनिया के हर धर्म ने ‘क्षमा’ को अपने तत्त्वज्ञान मे बहुत ही उच्च स्थान दिया है। ‘क्षमा मांगना’ और ‘क्षमा करना’ ये दोनों भी बाते हर धर्म में, तत्त्वज्ञान मे अलग अलग तरह से सम्मिलित हैं।

इसी तरह जैन धर्म मे भी क्षमापना पर्व को असाधारण महत्त्व है। इस पर्व का पालन जैनधर्मीय बड़े ही श्रद्धा से करते हैं। हर धर्म मे बड़ा महत्त्व रखनेवाले इस क्षमापना पर्व को हर व्यक्ति तक उसकी पूरी गरिमा के साथ पहुंचाना आज की असहिष्णुतापूर्ण वातावरण में अत्यावश्यक बन गया है।

हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी, सिख, कोई भी धर्म लीजिए, उसमे क्षमा को बहुतबड़ा स्थान दिया गया है। सब धर्मग्रंथों मे, त्योहारों में यह बात बड़ी स्पष्टता से प्रतीत होती है। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार कार्य की समाप्ति एक निशाद के बाण से हुआ। अपना देह त्यागते समय भगवन ने उसको स्वर्ग प्राप्ति का वरदान दिया। अपने को क्रूस पर चढ़ा कर कील मारने वालों को भगवान क्षमा करे, यही प्रार्थना प्रभु येशू की दिल से निकली थी। कुरान मे कहा है की जो क्रोध को काबू मे रखकर दूसरों को क्षमा करता है, अल्लाह उसी नेक बंदे से प्यार करता है। गुरु ग्रंथसाहिबमें क्षमा करना ये वीरता का लक्षण माना गया है। भगवान बुद्ध कासारा जीवन की प्रेम, करुणा और अहिंसा पर आधारित था।

ऐसे इस क्षमाभाव को अपने जीवनमे लाने के लिए, उसके सातत्यपूर्ण आचरण के लिए, इसे अपने संस्कारों में पूरी तरह से उतारने के लिए आज प्रेरक की आवश्यकता है। यह प्रेरणा का काम कर सकता है एक नया राष्ट्रीय त्योहार | किसी भी जाति या धर्म का नहींफिर भी सबको यही होता है राष्ट्रीय त्योहार। इस त्योहार की एक विशेषता यह भी होगी की वह धार्मिक, सामाजिक या राष्ट्रीय किसी भी तरह उतनीही सार्थकता के साथ मनाया जा सकता है। इसे मनाने की कोई नई संकल्पना भी निश्चित की जा सकती है। यह त्योहार व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक रुप से भी मनाना संभव है।

१५ ऑगस्ट और २६ जनवरी ये अपने देश के दो महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय त्योहार हैंलेकिन यह दोनों भी त्योहार एक ऐतिहासिक घटनाओंपर आधारित हैं। देश की आजादी और प्रजातंत्रका स्वीकार इन घटनाओंके स्मरण में हम इन्हें मनाते हैं। भारतीय संस्कृति हजारों वर्षों में बनी हैं, विकसित हुई है। इसके विकान मे कई कठिनाई, कई मोड़, कई रुकावट, कई आक्रमण हुए। उन सब का सामना करते-करते ही यह संस्कृति और परिपूर्ण, समृद्ध बनती गई। इस संस्कृति की विकसन के समुद्रमंथन से निकला हुआ एक अनमोल रत्न है ‘क्षमा’ क्षमा का तत्त्वज्ञान प्रत्येक व्यक्ति के दिल में, दिमाग में और आचरण में भी पूरी तरह से उतरना अत्यावश्यक है। इसके आचरणसेही समाजमें बंधुभाव, प्यार बढ़ेगा, सुख-शांति और समृद्धी अपना द्वार खटखटाएगी ।

हजारों वर्षों से सभी महापुरुष यही बात हमें बताते आए, लेकिन आज का माहौल देखकर लगता है की हम उन्हें समझने मे कुछ गलती कर रहे हैं। अच्छी बातें समाज के सामने प्रखरता से लाने के लिए उतनीही ताकत से कोशिश जरुरी है । हमारी उत्सवप्रियता को ध्यान में रखकर उसी माध्यम का उपयोग करते हुए एक नया त्योहार आज समाज को देना जरुरी है और उसे हम मना सकते हैं‘क्षमादिन’ ये राष्ट्रीय त्योहार के रुप में। इस त्योहार को किस तरह मनाया जाय इसपर कई सूचना आ सकती है, लेकिन यह त्योहार होगा व्यक्ति, समाज, राष्ट्र को भी लांघकर पूरे विश्व को अपने आगोश में लेनेवाला। दुनिया को कई अनमोल तोहफे देने वाले भारत ने ‘क्षमापना दिन’ को राष्ट्रीय त्योहार के रुप से स्वीकार कर दुनिया को क्षमापना की ओर जाने का एक नया रास्ता दिखानाही चाहिए।

भारतीय संस्कृति दुनिया की एक प्राचीनतम संस्कृतिहै। इसकी कई अच्छी बातें दुनियाभर मेंबड़े ही प्यार से आचरण मे लाई जाती है। जो तत्त्वज्ञान सर्वमान्य है, सर्वस्वीकृत है उस ‘क्षमा’ के तत्त्वज्ञान को अपनाना आज के हिंसापूर्ण, द्वेषमूलक वातावरण मे अत्यावश्यक बन गया है। पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने की आज फैशन सा बन गया है। ऐसे समय मे फिर एक बार पूर्व की ओर से, भारतीय संस्कृति की ओर से दुनिया को ‘क्षमा’ का तत्त्वज्ञान देना हमारा कर्तव्य है। ‘क्षमापना’को राष्ट्रीय त्योहार के रुप में मनाकर हम दुनिया के सामने एक नया आदर्श त्योहार रख सकते हैं, जो सभी के जीवन मे आनंद की, सुख की, समृद्धी की बरसात कर सके, सुखमय जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दे सके।

…………………………………………….

 

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #india #fastival #world #hindu #sanatan # sangh

हिंदी विवेक

Next Post
उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर क्यों खुलता है सिर्फ साल में एक दिन

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर क्यों खुलता है सिर्फ साल में एक दिन

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0