इस तख्तापलट की पृष्ठभूमि में सतही तौर पर तो आरक्षण विरोधी आंदोलन और आंदोलनकारियों की मृत्यु से उत्पन्न जन-विक्षोभ नज़र आता है। 1971 के युद्ध के बाद, पूर्व पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में पुनर्निर्माण हुआ। शेख मुजीबुर्रहमान ने पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए अत्याचारों का सामना करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और पाकिस्तानी प्रताड़ित महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान किया। लेकिन मुजीब की हत्या के बाद इस आरक्षण प्रणाली को कमजोर कर दिया गया।
5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में सेना ने प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्तापलट कर दिया। भारत ने पाकिस्तान की 93000 से अधिक सशस्त्र सेना को आत्मसमर्पण करवा कर 1971 में बांग्लादेश का गठन करवाया था। ‘बंग बंधु’ शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति थे। लेकिन 15 अगस्त 1975 को, बांग्लादेश में सेना ने पहला तख्तापलट किया और शेख मुजीबुर्रहमान और उनके परिवार के अन्य सदस्यों की हत्या कर दी। इस तख्तापलट के बाद वहां कट्टर इस्लामी सरकार का गठन हुआ। तब से अब तक बांग्लादेश में सफल और असफल कुल 29 तख्तापलट हो चुके हैं। जर्मन नेता विल्ली ब्रांट ने कहा था, “जिन्होंने मुजीब की हत्या की, वे कोई भी घृणित कार्य कर सकते हैं।” क्या शेख हसीना की हत्या भी उनके पिता की तरह होती यदि वे तुरंत भारत नहीं आ जातीं? सोशल मीडिया पर एक वीडियो में, बांग्लादेशी सेना का एक जवान शेख हसीना की तस्वीर को नीचे फेंकते और उसके साथी उसे कुचलते हुए दिखते हैं। अगर शेख हसीना सच में उनलोगों के सामने होतीं, तो क्या होता?
इस तख्तापलट की पृष्ठभूमि में सतही तौर पर तो आरक्षण विरोधी आंदोलन और आंदोलनकारियों की मृत्यु से उत्पन्न जन-विक्षोभ नज़र आता है। 1971 के युद्ध के बाद, पूर्व पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में पुनर्निर्माण हुआ। शेख मुजीबुर्रहमान ने पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए अत्याचारों का सामना करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और पाकिस्तानी प्रताड़ित महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान किया। लेकिन मुजीब की हत्या के बाद इस आरक्षण प्रणाली को कमजोर कर दिया गया। बांग्लादेश की आरक्षण प्रणाली ने स्वतंत्रता सेनानियों, महिलाओं, अविकसित क्षेत्रों और जातीय अल्पसंख्यकों को शामिल कर एक व्यापक सामाजिक न्याय का प्रयास किया। मुजीबुर्रहमान की पुत्री शेख हसीना ने अपने पिता की सामाजिक न्याय-निति के अनुसार अपने शासनकाल में आरक्षण जारी रखा।
वर्त्तमान में जो आरक्षण सुधार आंदोलन चलाया गया उसकी शुरुआत 2018 के एक छोटे से छात्र आंदोलन से हुई थीं। 8 मार्च 2018 को, बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने देश में 1972 से चल रहे आरक्षण प्रणाली की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद छात्रों का ये आंदोलन बड़ा रूप ले लिया। तब हसीना सरकार ने सिविल सेवा में सभी आरक्षणों को समाप्त कर दिया। परन्तु छात्र आरक्षण की समाप्ति नहीं, उसके प्रावधानों में सुधार चाहते थे। उन्हें लगा कि अगर मुक्ति योद्धाओं को कोई आरक्षण नहीं मिलेगा तो फिर किसी को भी आरक्षण नहीं मिलेगा। छात्रों और शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन कर आरक्षण को 10% पर सीमित करने की मांग की थी। दो वर्षों तक चर्चाओं का दौर चला। सरकार सभी आरक्षण समाप्त करने के अपने निर्णय पर कायम रही और 2020 में कार्यकारी आदेश लागू हो गया। भारत में वामपंथियों के द्वारा भ्रम फैलाया जा रहा है कि बांग्लादेश में ‘आरक्षण विरोधी आंदोलन’ चल रहा था जबकि वो ‘आरक्षण सुधार आंदोलन’ था।
स्वतंत्रता सेनानी परिवारों के सात सदस्यों ने सरकार के इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की। हसीना सरकार की ओर से एटॉर्नी जनरल उपस्थित थे, लेकिन अदालत ने सरकार के खिलाफ फैसला सुनाते हुए 2018 के आरक्षण निरस्त करने संबंधी परिपत्र को रद्द कर दिया। उच्च न्यायालय के इस निर्णय के खिलाफ, सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की। लोगों को लगा कि चूंकि अदालत ने आरक्षण प्रणाली को पुनर्स्थापित किया है तो श्रीमती हसीना यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगी कि स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए पहले की तरह 30% आरक्षण नए आरक्षण प्रणाली में पुन: लागू किया जाए। इसने वर्तमान विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया। जब तक सरकार की अपील सुनी नहीं जाती तब तक के लिए बांग्लादेश की सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय की आरक्षण बहाली के आदेश पर रोक लगा दी थी। श्रीमती हसीना ने छात्रों से अपील की कि वे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी करने का समय दें। हालांकि, न्यायपालिका के निर्णय के बारे में असमंजस था। छात्रों ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि वे उनके और अन्य संबंधित पक्षों से परामर्श करें और एक समावेशी आरक्षण प्रणाली तैयार करें, जिसे कार्यकारी आदेश के माध्यम से लागू किया जाए। इधर 21 जुलाई को, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि 93 प्रतिशत सरकारी नौकरियां मेरिट के आधार पर दी जाएंगी, जबकि पांच प्रतिशत मुक्तियोद्धाओं के परिवारों के लिए आरक्षित होंगी। शेष दो प्रतिशत आरक्षण जातीय अल्पसंख्यकों, ट्रांसजेंडर और विकलांग लोगों के लिए रखा जाएगा। न्यायालय के इस निर्णय के पश्चात छात्रों का आंदोलन रूक गया।
21 जुलाई 2024 इण्डिया टुडे में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ढाका स्थित वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ रॉय ने बताया कि “यह अब जमात और अन्य इस्लामिक कट्टरपंथी समूहों का आंदोलन बन गया है। लगभग 1,000 की भीड़ में केवल तीन-चार छात्र ही मौजूद हैं। अधिकांश छात्रों ने यह समझ लिया है और आंदोलन से हट गए हैं।” जब सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण में सुधार की मांग के अनुरूप आदेश दे दिया और आंदोलन थम भी गया तब वो कौन से लोग थे जिन्होंने प्रधानमंत्री के ‘रजाकार’ वाले बयान पर माफ़ी के बहाने से छात्र आंदोलन को हथिया लिया और अपने एजेंडे के तहत आगे बढ़ने लगे। श्रीमति हसीना ने अपील की “गोनो भवन (प्रधानमंत्री आवास) के दरवाजे खुले हैं। मैं आंदोलन कर रहे छात्रों के साथ बैठकर उनकी बातें सुनना चाहती हूँ। मैं कोई संघर्ष नहीं चाहती हूँ।”
परन्तु आरक्षण सुधार आंदोलन को अब असहयोग आंदोलन में बदला जा चुका था। 3 अगस्त 2024 को डेली स्टार में एक खबर प्रकाशित हुई, सेन्ट्रल शहीद मीनार के विशाल जनसभा में अब आंदोलन के संयोजकों का एक सूत्री मांग है: प्रधानमंत्री का पदत्याग! इस आंदोलन के एक संयोजक आशिफ महमूद ने 15 बिंदुओं में अपने असहयोग आंदोलन की बात जनता के सामने रखी। इसी क्रम में बांग्लादेश की सेना ने शांति स्थापित करने हेतु शेख हसीना को पदत्याग करने पर मजबूर कर दिया।
तख्तापलट होते ही बांग्लादेश में हिन्दुओं के घरों पर आक्रमण, मंदिरों में आगजनी, तोड़फोड़, सम्पतियों का लूटपाट और आपस में बटवारे की कबीलाई बर्बर परंपरा चालू हो गई। बांग्लादेश से हिन्दू युवतियों के सामूहिक बलात्कार के वीडियो और इस कुकृत्य को बढ़ावा देने वाले उत्तेजक संदेश जो वहां इस्लामिक ताकतें अपने लोगों को उन्मादित करने के लिए प्रसारित कर रही थीं, सोशल मीडिया के माध्यम से भारत में भी देखे जा रहे थे। चुन-चुन कर हिन्दूओ की हत्या का सिलसिला जारी है। आवामी लीग के हिन्दू नेता हराधन रॉय और उनके भतीजे को बर्बर तरीके से पिट कर मार दिया गया।
इसे भारत के परिप्रेक्ष्य में देखना आवश्यक है। बांग्लादेश के विभिन्न प्रोजेक्ट्स में भारत की सहभागिता बढ़ रही थी। अमेरिका 1950 से ही बंगाल की खाड़ी में रणनीतिक स्थिति पर अपनी मजबूत पकड़ चाहता है। हसीना ने पहले कहा था कि “उनकी सरकार को अमेरिका से आलोचना का सामना इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि उन्होंने अमेरिका को बंगाल की खाड़ी में सेंट मार्टिन द्वीप पर एक नौसैनिक अड्डा स्थापित करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था।” इधर चीन भी भारत को घेरने के लिए बांग्लादेश में अपनी पैठ बनाना चाहता है। परन्तु शेख हसीना सरकार का झुकाव अपने पड़ोसी भारत की और अधिक था। उन्होंने तीस्ता नदी परियोजना में चीन की जगह भारत के साथ मिलकर काम करना चाहा था और इस सम्बन्ध में उन्होंने जून 2024 में सार्वजनिक वक्तव्य भी दिया था। ऐसे परिस्थिति में विशेषज्ञो का कहना है कि बांग्लादेश के तख्तापलट में विदेशी षड्यंत्र होने की पूरी संभावना है।
मजेदार बात तो ये भी है कि भारत में वामपंथी जमात आरक्षण के पक्ष में आंदोलन और संघर्ष करता है पर बांग्लादेश की स्थिति में वे कोलकाता की सड़कों पर आरक्षण के विरोध में उतर कर प्रदर्शन किये। जो लोग चीन में वामपंथी पार्टी के सौ वर्ष पुरे होने का यहाँ आनंद मनाते हों, और गर्व से कहते हो कि ‘अपने पिता का नाम भूल जायेंगे पर वियतनाम नहीं भूलेंगे’ उनकी चीनी हितों के प्रति वामपंथी निष्ठा असंग्दिग्ध मानी जानी चाहिए। बांग्लादेश की सड़कों पर हसीना सरकार को फासिस्ट कहते हुए नारे लिखे गए, ग्राफिटी बनायीं गई, और ‘जर्मनी निवासी वामपंथी कठपुतली’ ने शेख हसीना को तानाशाह कहते हुए वीडियो बनाया! तख्तापलट के बाद अमेरिका ने लोकतंत्र पर खतरे पर अपनी कड़ी नजर वाली प्रतिक्रिया भी नहीं दी! ऐसी परिस्थिति में भारत के प्रधानमंत्री मोदी को अधिक सजग हो कर भारत और सरकार विरोधी गतिविधियों में लिप्त किसी भी समूह, संस्था या व्यक्ति के विरूद्ध त्वरित न्यायिक करवाई सुनिश्चित करनी चाहिए। पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, और बिहार में अनुप्रवेशकारी ताकतों को कड़ी निगरानी में रखने की आवश्यकता है।
कोलकाता में तो इस तख्ता पलट का जश्न भी मनाया जा चूका है! वामपंथी जमात, उनके एन जी ओ, अर्बन नक्सल्स और भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त विभिन्न देशों के राजदूतों, पत्रकारों और ‘सोशल एक्टिविस्टों’ की गतिविधियों पर नियंत्रण समय की आवश्यकता है। देश और विशेषकर पश्चिम बंगाल की जनता चाहती है कि बांग्लादेश में हिन्दू जनसंहार को रोकने के लिए भारत सरकार परिणामदायी पहल करे। सेना और सरकार की अन्य सभी तंत्रों की सक्रियता की खबरों के बीच अजित डोवाल का शेख हसीना से मिलना हर भारतीय मन को सरकार की इस चुनौती से निपटने की नीतियों के प्रति आश्वस्त करता है!
- विप्लव विकास