पिछले दिनों अचानक से रेलवे में दुर्घटनाओं की बाढ़ सी आ गई। इस तरह दुर्घटनाओं के पीछे लोगों ने तरह-तरह की आशंकाएं व्यक्त की। इसके पीछे काफी सच्चाई भी है, तो कई जगह रेलवे कर्मचारियों की वजह से यह दुर्घटनाएं हुई हैं। कुछ जगह रील बनाने के चक्कर में तो कहीं भारत सरकार को बदनाम करने की मंशा से रेलवे की पटरियों पर कहीं पत्थर, तो कहीं साइकिल तो कहीं फिश प्लेट खुली हुई पाई गईं।
भारतीय रेल देश में यातायात और माल ढुलाई में अग्रणी भूमिका निभाती है। आंतरिक परिवहन की दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था में भारतीय रेलवे का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। भारत के रेल यातायात का एशिया महाद्वीप में प्रथम तथा विश्व में चौथा स्थान है। अप्रैल 1853 में, मुंबई और ठाणे के बीच यात्रा करने के लिए जनता के लिए भारत का पहला रेलवे नेटवर्क खोला गया था। आज यह देश के कोने-कोने तक फैल चुका है।
पिछले दिनों अचानक से रेलवे में दुर्घटनाओं की बाढ़ सी आ गई। इस तरह दुर्घटनाओं के पीछे लोगों ने तरह-तरह की आशंकाएं व्यक्त की। इसके पीछे काफी सच्चाई भी है, तो कई जगह रेलवे कर्मचारियों की वजह से यह दुर्घटनाएं हुई हैं। कुछ जगह रील बनाने के चक्कर में तो कहीं भारत सरकार को बदनाम करने की मंशा से रेलवे की पटरियों पर कहीं पत्थर, तो कहीं साइकिल तो कहीं फिश प्लेट खुली हुई पाई गईं।
भारत सरकार और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसे काफी गम्भीरता से लिया। पिछले दिनों मानसून-सत्र में रेल दुर्घटनाओं को लेकर विपक्ष ने भारत सरकार और खासकर रेल मंत्री को कटघरे में खड़ा किया था। रेल मंत्री ने आरोपों का उत्तर देते हुए कहा कि हम काम करने वाले लोग हैं, रील बनाने वाले नहीं। इस तरह की घटनाओं की जांच कराने और दोषियों को दंडित करने की भी बात कही।
आरटीआई कार्यकर्ता अजय बोस के अनुसार 7 जुलाई 2021 में अश्विनी वैष्णव ने रेलमंत्री का पदभार सम्भाला था। पिछले तीन सालों में हर महीने दो पैसेंजर ट्रेन और 1 मालगाड़ी डिरेल हुई है। आरटीआई के जरिए रेलवे की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार 7 जुलाई 2021 से 17 जून 2024 तक 131 ट्रेन दुर्घटनाएं हुई हैं, इनमें से 92 ट्रेन डिरेलमेंट की घटनाएं हैं। इन दुर्घटनाओं में 64 पैसेंजर ट्रेन और 28 मालगाड़ी शामिल हैं।
भारतीय रेलवे में इस तरह की दुर्घटनाओं का सिलसिला थम नहीं रहा है। 18 जुलाई को उत्तर प्रदेश के गोंडा में ट्रेन हादसा हुआ था। इसके कुछ ही दिनों बाद 30 जुलाई को फिर से झारखंड के टाटानगर के पास चक्रधरपुर में रेल हादसा हो गया।
इससे विपक्ष को रेल मंत्री पर आरोप लगाने का एक सुनहरा मौका मिल गया। अश्विनी वैष्णव ने संसद में इन पर उत्तर देते हुए कहा, “हम रील बनाने वाले लोग नहीं हैं, हम कड़ी मेहनत करते हैं, न कि आप जैसे लोग, जो दिखावे के लिए रील बनाते हैं।” उन्होंने देश की जीवनरेखा और देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण संगठन के रूप में रेलवे के महत्व पर प्रकाश डाला।
वैष्णव ने संसद सदस्यों से रेलवे का राजनीतिकरण न करने और देश के लाभ के लिए इसके सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की अपील की। रेल मंत्री ने रेलवे सुरक्षा के मामले में पिछली यूपीए सरकारों के खराब ट्रैक रिकॉर्ड की ओर भी इशारा किया। उन्होंने प्रश्न किया कि वे अपने 58 साल के शासन के दौरान 1 किमी के लिए भी ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (ओटीपी) क्यों नहीं लगा पाए।
डेढ़ लाख से अधिक पदों पर नहीं हुई है कोई भर्ती
ट्रैक मेंटेनेंस कर्मचारियों के पदों को न भरा जाना भी इसके पीछे एक मुख्य कारण है। मध्य प्रदेश के आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ के अनुसार भारतीय रेलवे में 10 लाख पद सुरक्षा की श्रेणी में स्वीकृत हैं। एक आरटीआई के जरिए पता चला है कि इनमें से करीब डेढ़ लाख पद अभी भी खाली हैं। इनमें लोको पायलटस, ट्रैक मेंटेनर्स, प्वाइंट्स मैन, इलेक्ट्रिक सिग्नल मेंटेनर्स जैसे महत्वपूर्ण पद शामिल हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण रेलवे लाईन की देखरेख पर इसका सीधा असर पड़ता है।
रेल पटरी से उतरना दुर्घटना का मुख्य कारण
भारतीय रेलवे हर दिन एक लाख किमी से अधिक फैले देशव्यापी ट्रेक नेटवर्क पर करीब ढ़ाई करोड़ यात्रियों को अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचाती है। साल 2019-20 में जारी सरकारी रेलवे सुरक्षा रिपोर्ट के अनुसार 70 प्रतिशत रेलवे दुर्घटनाओं के लिए उनका पटरी से उतरना जिम्मेदार था, जो पिछले वर्ष से 68 प्रतिशत अधिक था। इसके बाद ट्रेन में आग लगने और टक्कर लगने के मामले आते हैं, जो कुल दुर्घटनाओं में क्रमश: 14 और 8 प्रतिशत जिम्मेदार हैं। इस रिपोर्ट में साल 2019-20 के दौरान 33 यात्री ट्रेनों और 7 मालगाड़ियों से सम्बंधित 40 पटरी से उतरने की घटनाएं गिनाई गईं। इनमें से 17 पटरी से उतरने की घटनाएं ट्रैक खराबियों के कारण हुई। वहीं 9 घटनाएं ट्रेनों, इंजन, कोच, वैगन में खराबी के कारण हुई हैैं। रेलवे बोर्ड के पूर्व अधिकारी के अनुसार ट्रेनों का पटरी से उतरना परेशानी का मुख्य कारण है।
रेलवे बोर्ड के एक पूर्व अधिकारी का कहना है कि ट्रेनों का पटरी से उतरना रेलवे के लिए परेशानी का मुख्य कारण बना हुआ है। ट्रेन जब डिरेल होती है तो उसके पीछे कई कारण होते हैं। ट्रैक के रखरखाव में कमी हो सकती है, कोच खराब हो सकते हैं और गाड़ी चलाने में ड्राइवर से गलती हो सकती है।
ट्रेन हादसों को रोकने के लिए ट्रेन की पटरियों का लगातार मरम्मत कार्य होते रहना बहुत जरूरी है। धातु से बनी रेलवे पटरियां गर्मी के महीनों में फैलती हैं और सर्दियों में मौसम में तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण सिकुड़ जाती है। ऐसे में इनके नियमित रख-रखाव की जरूरत होती है। हल्की सी लापरवाही बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है। ढीले ट्रैक को कसना, स्लीपर बदलना और अन्य चीजों के अलावा चिकनाई और समायोजन स्विच। इस तरह का ट्रैक निरीक्षण पैदल, ट्रॉली, लोकोमोटिव और अन्य वाहनों द्वारा किया जाता है।
इनमें सबसे मुख्य कारण रेलवे ट्रैक पर मैकेनिकल फॉल्ट यानी रेलवे ट्रैक पर लगने वाले उपकरण का खराब हो जाने को माना जाता है। समय पर इनकी मरम्मत न होने के कारण ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं।
इसके अलावा ये दुर्घटनाएं उस वक्त होती हैं, जब पटरियों में दरार पड़ जाती हैं। वहीं ट्रेन के डिब्बों को बांधकर रखने वाले उपकरण का ढीला होना भी इसका एक कारण होता है।
इतना ही नहीं, एक्सेल जिस पर ट्रेन की बोगी रखी होती है, उसका टूटना भी ट्रेन के डिरेल होने की एक सम्भावित वजह हो सकता है।
– हरेश कुमार