कांवड़ यात्रा, जीवन यात्रा का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य अनुशासन, सात्विकता और वैराग्य के साथ ईश्वरीय शक्ति से जुड़ना है। कांवड़ यात्रा में नाम, जाति, लिंग का कोई भेदभाव नहीं है। यहां सभी भगवान शंकर के भक्त होते हैं। इस दौरान सभी को भोले या भोली ही पुकारा जाता है। बैरागी भगवान शिव के भक्तों को भी कांवड़ यात्रा के दौरान बैराग्य अपनाना पड़ता है। इस दौरान केवल सात्विक भोजन ही करना होता है। जमीन अथवा तख्त पर सोना होता है। महिला हो या पुरुष, यात्रा के दौरान सौंदर्य प्रसाधन पूरी तरह प्रतिबंधित हैं। कुछ गलत करना तो दूर, उसका विचार लाना भी वर्जित है।
19 अगस्त तक चलने वाली विश्व की सबसे बड़ी पैदल धार्मिक यात्रा अपने परवान पर है। इस दौरान दुर्घटना, हंगामा-बवाल और मारपीट की छिटपुट घटनाओं को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि शिवभक्ति के साथ आत्मानुशासन भी जरूरी हैं। यदि कांवड़ यात्रा में श्रद्धालु इस बात का ध्यान रखते हैं तभी उनकी कांवड़ यात्रा विश्वास का प्रतीक बनकर उभरेगी। उधर, उत्तराखंड पुलिस कांवड़ियों के भेष में शामिल उपद्रवी तत्वों पर कड़ी कार्रवाई की तैयारी में हैं।
सावन का प्रारम्भ भले ही 22 जुलाई को हुआ हो, लेकिन कांवड़ियों के हंगामे की शुरुआत 18 जून से हो गई थी, जब गंगाजल लेने के बाद हरिद्वार हाईवे पर कुछ कांवड़ियों की पुलिस जवानों से नोकझोंक हो गई थी। मामला इतना बढ़ा कि पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा था। लाठीचार्ज में चोटिल कांवड़ियों ने अपने साथियों को गाजियाबाद से बुलाकर हरिद्वार में हंगामा किया। उत्तराखंड के अलग-अलग शहरों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के भी कई जिलों में कांवड़ियों के भेष में अराजक तत्वों ने काफी उत्पात मचाया। हरियाणा के फतेहाबाद में ऐसे ही कुछ कांवड़ियों ने एक वाइन शॉप पर जमकर पत्थर बरसा दिए, इस दौरान उन्होंने स्कूल बस पर भी पत्थर फेंके, हालांकि इस दौरान कोई बच्चा घायल नहीं हुआ। उप्र के बरेली में मुस्लिम बाहुल्य इलाके से कांवड़ निकालने की जिद पर अड़े कांवड़ियों और कांवड़ यात्रा में मौजूद डीजे की अनुमति को लेकर विवाद कर रहे युवकों की पुलिस ने जबरदस्त धुनाई की। उत्तराखंड पुलिस तो हरिद्वार, ऋषिकेश और भगवानपुर की घटनाओं में शामिल उपद्रवियों की पहचान करने के लिए सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो के साथ सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाल रही है।
कांवड़ यात्रा, जीवन यात्रा का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य अनुशासन, सात्विकता और वैराग्य के साथ ईश्वरीय शक्ति से जुड़ना है। कांवड़ यात्रा में नाम, जाति, लिंग का कोई भेदभाव नहीं है। यहां सभी भगवान शंकर के भक्त होते हैं। इस दौरान सभी को भोले या भोली ही पुकारा जाता है। बैरागी भगवान शिव के भक्तों को भी कांवड़ यात्रा के दौरान बैराग्य अपनाना पड़ता है। इस दौरान केवल सात्विक भोजन ही करना होता है। जमीन अथवा तख्त पर सोना होता है। महिला हो या पुरुष, यात्रा के दौरान सौंदर्य प्रसाधन पूरी तरह प्रतिबंधित हैं। कुछ गलत करना तो दूर, उसका विचार लाना भी वर्जित है।
पौराणिक काल से अब तक कांवड़ यात्रा के स्वरूप और आस्था में भी काफी परिवर्तन हुआ है। दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड और राजस्थान की बात करें तो पहले गंगोत्री और हरिद्वार का पैदल रास्ता दुर्गम होने के कारण गंगाजल लेकर आने वालों शिव भक्तों की संख्या गिनती की होती थी, लेकिन अब कांवड़ मार्गो पर प्रशासन की बेहतर व्यवस्था और शिविरों की बढ़ती संख्या ने कांवड़ यात्रा को काफी आसान कर दिया है। कांवड़ियों की संख्या में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। यही हाल बिहार-झारखंड का भी है। शिव भक्त भारी संख्या में सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर लगभग 108 किलोमीटर पैदल यात्रा कर झारखंड के देवघर में बाबा बैद्यनाथ (बाबाधाम) में जल अर्पित करते हैं।
तेज आवाज वाले डीजे और भव्य साज-सज्जा ने कांवड़ यात्रा को एक पर्व बना दिया है। हाईवे पर कांवड़ियों को तिरंगा लेकर चलते देखा जा सकता है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के मुखौटे और मोदी-योगी के चित्र वाली टीशर्ट का भी क्रेज कांवड़ियों में देखा जा रहा है। यही नहीं, शहीदों के नाम पर भी बड़ी संख्या में शिव भक्त कांवड़ उठा रहे हैं। इंडिया गेट की झांकी वाली कांवड़ भी आकर्षण का केंद्र रही। दूसरी ओर स्केट्स और बाइक पर अव्यवहारिक वेशभूषा में भी कतिपय कांवड़ दिख जाते हैं।
उत्तर भारत में कांवड़ मेले की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और सीआरपीएफ, रेलवे सुरक्षा बल, इंटेलीजेंस ब्यूरो को काफी मशक्कत करनी पड़ती है क्योंकि कांवड़ियों के भेष में इस अनुष्ठान में अराजक और उपद्रवी तत्व शामिल हो जाते हैं। तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था और नियम कायदे-प्रतिबंधों के बावजूद पैदल यात्रा के दौरान सड़क दुर्घटनाओं/दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के फलस्वरूप हंगामा-बवाल होना इस धार्मिक यात्रा की बदनामी का कारण बनता है। इसका लाभ कांवड़ियों में शामिल अराजक उपद्रवी तत्व उठाते हैं। यात्रा पथ में हिंदू नाम-चिह्न से चलाने वाले मुस्लिमों के ढाबे भी सौहार्द टूटने का कारण बनते रहे हैं। हरिद्वार में हर की पैड़ी क्षेत्र से अवैध शराब का जखीरा बरामद करते हुए पुलिस ने दो शराब तस्कर पकड़े, जिनमें से एक आरोपी ने कांवड़िए का वेश धारण कर रखा था।
ऐसे में बिना किसी वाद-विवाद के आत्म संयम के साथ कांवड़ यात्रा की पूर्णता में ही इसकी सार्थकता है। भारत के एक स्थान को दूसरे स्थान से जलवहन/कांवड़ की पदयात्रा जोड़ देती है। इस जल संस्कृति से गंगोत्री से रामेश्वरम् तक हमारा भारत एकाकार हो जाता है, इससे राष्ट्र की अखंडता और एकात्मता अभिव्यक्त होती है। इस सामूहिक पदयात्रा से युवाओं का समाजीकरण होता है। उन्हें परिश्रम और उद्यम का संस्कार मिलता है।