इस दुनिया में कितने लोग है जो मिलने वाली सहयोग राशि के लिए मरना चाहेंगे? कितने माता-पिता होंगे, जो ऐसी रकम के लिए अपने बच्चों को मरने के लिए मौत के मुंह में ढकेल देंगे? ऐसा कोई नहीं मिलेगा! सहयोग राशि अपनी गलतियों पर लीपापोती और अपने बचाव के लिए दी जाती है और कुछ नहीं। जहां इस राव कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में डूबकर हुई तीन छात्रों की मौत के बाद पूरा देश गमगीन है। वही तथाकथित भारत के प्रसिद्ध कोचिंग गुरु सब अपने बचाव की मुद्रा में आ गए हैं।
उस दिन 27 जुलाई को बारिश नहीं हुई थी, दिल्ली में विपत्ति बरस रही थी। ऐसे में राजेंद्र नगर स्थित राव कोचिंग सेंटर के बेसमेंट की लाइब्रेरी में तीन छात्र पढ़ाई करने के कारण रूके थे, मगर बेसमेंट में पानी के निकासी की कोई व्यवस्था नहीं थी और बेसमेंट की दीवार भी आसपास की इमारतों की नींव से नीची थी। आसपास कोई सुरक्षा रक्षक भी नहीं था। राजेंद्र नगर स्थित राव कोचिंग संस्थान ने ड्रेनेज सिस्टम को पूरी तरह से ब्लॉक कर दिया था। साथ ही संस्थान में बचाव की कोई व्यवस्था नहीं थी। जिस प्रॉपर्टी में कोचिंग सेंटर चल रहा था, उसकी पार्किंग की ऊंचाई आसपास की प्रॉपर्टी के मुकाबले कम था। क्षेत्र की अन्य इमारतों में भारी जल भराव की स्थिति में बारिश के पानी को पार्किंग एरिया और बेसमेंट में जाने से रोकने के लिए बैरियर वॉल लगाई गई थी, पर राव कोचिंग सेंटर ने ऐसा कोई प्रबंध नहीं कर रखा था। उस दिन दिल्ली में बहुत बारिश हुई थी। इन कमियों की वजह से आसपास से बारिश का पानी बहुत तेजी से सीधे राव कोचिंग वाली इमारत की बेसमेंट में जमा होने लगा, वहां पढ़ रहे छात्रों को स्थिति समझने और सावधान होने का मौका तक नहीं मिला, उस पर बिजली नदारद होने के कारण से ऑटोमैटिक दरवाजा भी नहीं खुल रहा था। स्थिति भयावह हो गई थी, बेसमेंट गहरा तालाब बन चुका था और वो तीनों छात्र डूब कर मर गए। ये वही छात्र थे, जो भविष्य में जिला अधिकारी बन कर देश के विकास में सहयोग कर रहे होते, लेकिन कोचिंग संस्थान की गैरजिम्मेदारी ने उन छात्रों को असमय ही लील लिया।
छात्रों के विरोध और प्रशासन की सख्ती झेलने के बावजूद दिल्ली के चार नामी गिरामी कोचिंग सेंटरों ने बड़ा दिल दिखाते हुए मृतक छात्रों के परिवारों को 10-10 लाख रुपए और अन्य छात्रों को मुफ्त कक्षाएं देने की पेशकश की है। जिस कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में यह हादसा हुआ था, उस राव कोचिंग इंस्टीटयूट ने भी मृतक छात्रों को 50-50 लाख देने की पेशकश की है, लेकिन इस सब पेशकशों से होगा क्या? क्या वे छात्र पुनः जीवित होकर लौट आएंगे?
जो हानि होनी थी, वो तो हो चुकी। अब यह सहयोग राशि सिर्फ अपने कुकर्म छुपाने भर के लिए दी जा रही है। समय रहते उस कोचिंग संस्थान ने अपनी सुरक्षा को मजबूत किया होता, कमियों को दूर किया होता तो आज वो तीनों छात्र जीवित भी रहते और सहयोग राशि के तौर पर इतनी बड़ी रकम देने की जरूरत भी न पड़ती। कोई भी रकम जीवन के हुई हानि की भरपाई नहीं कर सकता है। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नही है।
इस दुनिया में कितने लोग है जो मिलने वाली सहयोग राशि के लिए मरना चाहेंगे? कितने माता-पिता होंगे, जो ऐसी रकम के लिए अपने बच्चों को मरने के लिए मौत के मुंह में ढकेल देंगे? ऐसा कोई नहीं मिलेगा! सहयोग राशि अपनी गलतियों पर लीपापोती और अपने बचाव के लिए दी जाती है और कुछ नहीं। जहां इस राव कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में डूबकर हुई तीन छात्रों की मौत के बाद पूरा देश गमगीन है। वही तथाकथित भारत के प्रसिद्ध कोचिंग गुरु सब अपने बचाव की मुद्रा में आ गए हैं।
एक समय था जब पूरे भारत में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी का मुख्य केंद्र प्रयागराज (इलाहाबाद) था, लेकिन अब यह पूरी तरह से दिल्ली की तरफ शिफ्ट हो गया है। दिल्ली में तो यह हाल है कि सिविल सेवा की तैयारी के लिए अब जगह-जगह कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग सेंटर उग आए हैं जो परीक्षा की तैयारी के नाम पर छात्रों को सुनहरे भविष्य के दिवा स्वप्न दिखा कर अंधाधुंध पैसा छाप रहे हैं, लेकिन सुरक्षा और सुविधा के नाम पर विद्यार्थियों की जान से खिलवाड़ करते हैं। इनका केवल एक ही उद्देश्य है सिर्फ पैसा कमाना, बाकी सब राम भरोसे चल रहा है।
डॉक्टर, इंजीनियर बनाने के सपने दिखाने वाले कोटा शहर और कलेक्टर बनाने वाले दिल्ली शहर में अब बहुत ज्यादा फर्क नहीं रह गया है। यह केवल दिल्ली में तीन डूबे बच्चों की कहानी नहीं है, इसके अलावा कई ऐसे बच्चे भी हैं, जो हताशा-निराशा के शिकार होकर आत्महत्या कर लेते है जिनकी कहानी छुपा ली जाती है। कोटा में भी यही होता रहा है, अभी भी होता है। कोटा में हर साल आत्महत्या करने वाले नौनिहालों का आकड़ा आसानी से दो दहाई पार कर जाता है और दिल्ली में भी आजकल आत्महत्या की दर इसी के आसपास है।
दिल्ली में हुए ऐसे हादसों का जिम्मेदार कौन है? केंद्र सरकार सारा दोष दिल्ली सरकार पर डाल देती है, जबकि पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है तो राज्य सरकार अपना बोझ नगर निगम के कंधो पर धर देती है, जबकि प्रशानिक अधिकार राज्य सरकार के पास है। एक आम आदमी को पता ही नहीं होता है कि कौन सा अधिकार किसके पास है? अपने कार्य के विषय में किस से सहायता लेनी है। आम आदमी संशय में होता है कि वह अपना काम करवाने कहां जाए, कहां नहीं? और इसी स्थिति का लाभ राजनेता और प्रशानिक अधिकारी उठाते हैं। गडबड़ी होने पर वे एक दूसरे के सर गलती और जिम्मेदारी मढ़ते रहते हैं।
यह मामला अब उच्च न्यायालय में चला गया है। इस मामले में न्यायालय ने कहा कि तीन लोगों की मौत हुई है और निगम का हाल यह है कि वो इसकी जिम्मेदारी तक लेने को तैयार नहीं हैैं। किसी को तो इसकी जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। न्यायालय ने कहा कि एमसीडी का हाल तो यह है कि हम आदेश पारित करते रहते हैं, पर उन्हें कोई असर नहीं पड़ता है। दिल्ली पुलिस भी अपनी जिम्मेदारी से दूर भागती नजर आ रही है, फिलहाल न्यायालय ने यह मामला सीबीआई को सौंप दिया है।
– डॉ. धीरज फूलमती सिंह