आजकल बच्चों के आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ने की एक बहुत बड़ी वजह इस तरह की उपेक्षा ही है। एकल परिवारों का बढ़ता चलन, माता-पिता दोनों का नौकरीपेशा होना, घर में होने पर भी दिन भर मोबाइल फोन, टीवी, रील्स या अन्य कामों में व्यस्त रहना, बच्चों की बातों को सुनने-समझने की फुर्सत नहीं निकालना, किसी एक बच्चे को अधिक प्राथमिकता देना आदि कई ऐसे कारण हैं, जिनके चलते बच्चे खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। इससे उनमें दुख, क्षोभ, क्रोध, निराशा और कुंठा का भाव उत्पन्न होता है, जो कई तरह के अपराधों को जन्म देता है।
विगत दिनों बिहार के सुपौल जिले के त्रिवेणीगंज के लालपट्टी स्थित सेंट जॉन बोर्डिंग स्कूल की नर्सरी क्लास में पढ़ रहे 5 वर्षीय छात्र ने उसी स्कूल के कक्षा तीन में पढ़ने वाले बच्चे को गोली मार दी। गोली छात्र के बाएं हाथ में लगी और गम्भीर रूप से घायल हो गया। उससे पूर्व गत वर्ष जनवरी माह में उत्तर प्रदेश के कासगंज में एक प्राइवेट स्कूल की पांचवी कक्षा में पढ़नेवाले छात्र द्वारा उसी स्कूल की नर्सरी कक्षा में पढ़नेवाली छात्रा के साथ रेप करने का मामला सामने आया था।
वर्तमान समय में बाल अपराध की समस्या उन प्रमुख समस्याओं में से एक है जिसे आपराधिक व्यवहार के क्षेत्र में सर्वाधिक महत्व दिया जा रहा है। यह एक ऐसी समस्या है जो मूल रूप से परिवार और समुदाय के विघटन का परिणाम है। दुनिया के लगभग सभी देशों में बाल अपराधों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि चिंता का विषय है क्योंकि जिन बच्चों पर देश या राष्ट्र का भविष्य निर्भर करता है यदि वे असामान्य बच्चे बन जाते हैं तो देश का भविष्य बिगड़ सकता है।
पिछले कुछ समय में ऐसे मामलों में बेतहाशा वृद्धि होती दिख रही है। जिस मासूम बचपन से हम खेलने, खाने-पीने, हंसने, नाचने-गाने, लोगों की नकल करने, खिलौनों की जिद करने आदि ‘बचपन वाली’ हरकतों की उम्मीद किया करते थे। आज वहीं बचपन हत्या, बलात्कार, चोरी, मारपीट, नशा जैसे गम्भीर अपराधों को अंजाम देता दिख रहा है। भारत सहित पूरी दुनिया में ऐसे मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हर कोई इस बात से हैरान दिखता है कि आखिर ऐसा हो क्यूं रहा है? मेरे विचार से कारण सबको पता है। समस्या है, तो बस उन्हें स्वीकारने और उसके निदान की दिशा में पहल करने की।
माता-पिता या अभिभावकों की उपेक्षा : कहते हैं परिवार किसी बच्चे की पहली पाठशाला होती है और मां उसकी पहली शिक्षिका। जन्म के बाद करीब पांच-छह वर्षों तक (जब तक कि उसका स्कूल में नामांकन न हो जाए) बच्चा अपने मां-बाप या परिवार के आसपास रह कर ही पलता है। इसी कारण बच्चों की परवरिश में माता-पिता या अभिभावकों की भूमिका को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। जीवन भर इंसान का भावात्मक लगाव भी परिवार के साथ ही सबसे अधिक होता है। ऐसी स्थिति में यदि किसी बच्चे को अपने माता-पिता या अभिभावकों से समुचित प्रेम, प्रोत्साहन, ध्यान और देखभाल नहीं मिलती और वह खुद को उपेक्षित महसूस करता है, तो यह उपेक्षा उसे अपराध के गर्त में धकेल सकती है।
आजकल बच्चों के आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ने की एक बहुत बड़ी वजह इस तरह की उपेक्षा ही है। एकल परिवारों का बढ़ता चलन, माता-पिता दोनों का नौकरीपेशा होना, घर में होने पर भी दिन भर मोबाइल फोन, टीवी, रील्स या अन्य कामों में व्यस्त रहना, बच्चों की बातों को सुनने-समझने की फुर्सत नहीं निकालना, किसी एक बच्चे को अधिक प्राथमिकता देना आदि कई ऐसे कारण हैं, जिनके चलते बच्चे खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। इससे उनमें दुख, क्षोभ, क्रोध, निराशा और कुंठा का भाव उत्पन्न होता है, जो कई तरह के अपराधों को जन्म देता है।
आस-पड़ोस या संगति : कहावत है- ‘संगत से गुण होत है, संगत से गुण जात। बास-फास मिसरी सब एके भाव बिकात।’अर्थात इंसान जिस तरह के लोगों के साथ रहता या उठता-बैठता है, वह वैसा ही बन जाता है। वैसा नहीं भी बने, तो भी लोगों के मन में उसकी वैसी छवि बन जाती है। इससे पता चलता है कि हमारे जीवन में अड़ोसी-पड़ोसी मित्र आदि का कितना अधिक महत्व है। आप जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहां की रिहाईश (क्षेत्र के निवासी) कैसी है, आपके बच्चे किनसे मिलते-जुलते हैं, किनसे बातचीत करते हैं, उनके दोस्त कौन और कैसे हैं इत्यादि पर नजर रखना हमेशा से ही बेहद जरूरी रहा है।
घर का वातावरण : एक बार एक बच्चे ने अपने क्लास के दूसरे बच्चे की पेंसिल चोरी कर ली। जब उसने वह पेंसिल अपनी मां को दिखाई तो उसकी मां ने बजाय उसे डांटने के उसे पेंसिल को छिपा कर रखने की सलाह दी। कुछ दिनों बाद उस बच्चे ने मुहल्ले के किसी बच्चे के साथ मारपीट की। इस बार उसके पिता ने बजाय अपने बेटे को डांटने के दूसरे बच्चे की गलती बताते हुए उसे ही डांट लगा दी। इसी तरह आगे भी जब-जब उस बच्चे ने कोई गलती की, उसके अभिभावकों ने अपना लाड़ जताते हुए अपने बच्चे की गलती न स्वीकार करके सामने वाले को ही बुरा-भला कहा। इसी तरह छोटे-मोटे अपराध करते-करते एक दिन उस व्यक्ति ने एक बैंक में डकैती कर डाली। जब अदालत में जज ने उसकी गलती बताते हुए उसे अपना अपराध स्वीकार करने के लिए कहा, तो उसने कहां कि मेरे साथ-साथ मेरे अभिभावकों को भी इसके लिए दंडित किया जाए, क्योंकि उन्होंने कभी उसे सही-गलत में फर्क करना नहीं बताया। यह कहानी हमें बताती है कि बच्चे की परवरिश में घर के वातावरण का बड़ा ही अहम योगदान होता है। बच्चे की परवरिश में लाड़-प्यार के साथ-साथ थोड़े अनुशासन, जीवन मूल्यों और कभी-कभार दंड (नकारात्मक प्रोत्साहन) की भी जरूरत होती है। इनके अभाव में बच्चे सही-गलत, अच्छा-बुरा आदि के बीच विभेद करना नहीं सीख पाते, जो कि उनके व्यक्तित्व विकास के लिए बेहद जरूरी है।
हॉर्मोनल असंतुलन : कुछ बच्चे जन्म से ही अपराधी प्रवृत्ति के होते हैं। इसके सम्भवत: कई कारण हो सकते हैं – पहला, जिन बच्चों के शरीर में जन्म से ही टेस्टारोन हार्मोन की अधिकता होती है, उन्हें गुस्सा अधिक आता है। वे प्राय: अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाते। गुस्से की वजह से उनमें मारने-पीटने या चीखने-चिल्लाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। ऐसे बच्चों में कार्टिसोल नामक हॉर्मोन का स्तर भी अधिक होता है, जिसके चलते उनमें तनाव, चिंता या कुंठा आदि देखने को मिलता है। इसके अलावा छोटी उम्र में उनके जीवन में घटित किसी सदमे (दुर्व्यवहार, उपेक्षा, आक्रामकता आदि) के कारण भी उनमें आपराधिक व्यवहार के पनपने की सम्भावना रहती है।
नशे की लत : सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने वर्ष 2018 के दौरान देश में नशीले पदार्थों के प्रयोग की सीमा और स्वरूप के सम्बंध में राज्यवार ब्योरा एकत्र करने के लिए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया था। इस सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि 10 से 17 वर्ष आयु समूह के लगभग 1.48 करोड़ बच्चे और किशोर अल्कोहल, अफीम, कोकीन, भांग सहित कई तरह के नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे हैं।
यह बेहद चिंता का विषय है। नशे की लत के चलते किशोर आक्रामक हो रहे हैं और इसके न मिलने पर वे ‘कुछ भी’ करने से नहीं चूकते। प्राय: ऐसा देखा गया है कि घर-परिवार में कोई न कोई व्यक्ति किसी तरह का नशा करता है तो ऐसी परिस्थितियां भी किशोरों को नशे के लिए प्रेरित करती हैं। इस स्थिति के लिए बच्चे से कहीं ज्यादा उसके अभिभावक दोषी हैं, जो अपने बच्चों के कुकृत्यों की अनदेखी करते हैं। बच्चों को पैसा देकर अच्छे कॉलेज, संस्थानों में भर्ती करवा देते हैं और अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री मान लेते है। बच्चा कहां जा रहा है, कैसे रह रहा है, किन लोगों की संगत कर रहा है, इसका कुछ भी ध्यान नहीं रखते। इससे बच्चे कुसंगति का शिकार हो जाते हैं और नशे की गिरफ्त में भी आ जाते हैं। ऐसे में बच्चे कई बार खुद को उपेक्षित महसूस करने लगते हैं। इस वजह से भी वे बुरी संगत में पड़कर नशे की गिरफ्त में आ सकते हैं। इसलिए बच्चों और उनकी जरूरतों का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए। साथ ही परिवार और समाज स्तर पर इस बुराई को नष्ट करने के प्रयास होने चाहिए।
ऑनलाइन मीडिया से बढ़ती दोस्ती
अनेक अध्ययन दर्शाते हैं कि ऑनलाइन माध्यमों पर बच्चे यौन दुर्व्यवहार व शोषण की चपेट में आ रहे हैं और उन्हें शिकार बनाए जाने के तौर-तरीकों में तेजी आ रही है। इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ऐसी ऑनलाइन सामग्री भी उपलब्ध होती हैैं, जोकि बच्चों की आयु के अनुकूल नहीं है। कई बार वयस्कों या उनके हम उम्र बच्चों द्वारा ऑनलाइन यौन शोषण भी किया जा सकता है। झूठी व नग्न (वशशषिरज्ञशी, वशशर्पिीवशी) फोटो व वीडियो समेत कम्प्यूटर के जरिए तैयार की जाने वाली तस्वीरों, ऑन डिमांड लाइव स्ट्रीमिंग और एक्सटेंडेट रिएलिटी से भी बाल यौन दुर्व्यवहार व शोषण की गतिविधियों को बल मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अनुमानित रिपोर्ट के अनुसार बाल यौन दुर्व्यवहार सामग्री से जुड़े मामलों में वर्ष 2019 के बाद से अब तक 87 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
मानवाधिकार विशेषज्ञों की राय है कि विभिन्न देशों की सरकारों और कम्पनियों को इस सम्बंध में एक साथ मिल कर प्रयास व निवेश करना होगा और बच्चों की, भुक्तभोगियों व जीवित बचे व्यक्तियों और अन्य हितधारकों की आवाजों को सुनना होगा, ताकि सत्यनिष्ठ डिजिटल उत्पादों को विकसित किया जा सके।
– पूनम वर्मा