भारत में भी जोशुआ का ईसाई मिशन अपने पांव पसारने लगा है। कई ऐसे राज्य हैं जहां गरीब व वंचित समाज के लोगों को लालच देकर ईसाई बनाया जा रहा है। क्या यह हमारी संस्कृति पर हमला नहीं है। अधिक से अधिक लोगों का कन्वर्जन कर ईसाई बनाने का जाल किस तरह भारत में फैल रहा है, इस आलेख में विस्तार से चर्चा की गई है।
भारत पुरातन काल से ही अपनी विराट सनातन संस्कृति के लिए जाना जाता रहा है। सैंकड़ों बार हमारी संस्कृति को समाप्त करने के लिए आघात किए गए। उदाहरण के तौर पर शक, हूण, मुस्लिम आक्रांता और अंत में अंग्रेज आए। सबने हम पर हमला किया, हमारी संस्कृति को समाप्त करने की कोशिश की फिर भी भारत की संस्कृति बची रही। हालांकि इन हमलों में हमें कुछ भी नुकसान नहीं हुआ, यह नहीं कहा जा सकता। भारत में कई लोगों को जबरन इस्लाम कबूल करवाया गया और अंग्रेजों के जमाने में कई लोगों को लोभ, लालच और भय दिखाकर ईसाई बनाया गया। इन सब के बावजूद हमारी जनसंख्या का बड़ा हिस्सा जो सनातन संस्कृति को मानता है वह आज भी बचा हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि भविष्य में भी यह बचा रहेगा क्या?
अंग्रेजों के जमाने से ही मिशनरी संस्थाएं भारत में हावी होने लगी थी। शुरू से ही उनके निशाने पर भारत का जनजातीय और वंचित समाज रहा है। यह लोग उनके बीच में भ्रम का वातावरण बनाते हैं, उसके बाद उनके गरीबी और लाचारी का लाभ उठाकर उन्हें ईसाई बना देते हैं। यह काम सदियों से चल रहा था लेकिन 29 साल पहले इन लोगों ने इसको बेहद व्यवस्थित तरीके से करने की योजना बनाई। इसके तहत वर्ष 1995 में जोशुआ प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई। यह अमेरिका से किसी संस्थान के द्वारा चलाया जाता है। इनका काम पूरे विश्व के हर एक व्यक्ति का विवरण इकट्ठा करना होता है। उसके बाद ये लोग उस आंकड़े के आधार पर अपनी योजना बनाते हैं ताकि अधिक से अधिक लोगों का कन्वर्जन करवा कर उन्हें ईसाई बनाया जा सके।
भारत की आर्थिक भौगोलिक और सामाजिक स्थिति को देखते हुए जोशुआ प्रोजेक्ट के निशाने पर है। जोशुआ प्रोजेक्ट की वेबसाइट के अनुसार भारत में कुल 2272 जातियों का समूह है जहां तक उन्हें ईसाइयत को लेकर जाना है। इनमें से जोशुआ 103 जातियों में छोटी संख्या में लोग ईसाइयत को मानने लगे हैं। वहीं 128 जाति समूह ऐसे हैं, जिनमेें बड़े पैमाने पर ईसाइयत की घुसपैठ हो चुकी है। जोशुआ प्रोजेक्ट के अनुसार ये लोग 143 करोड़ की जनसंख्या में 6 करोड़ लोगों तक ईसाइयत पहुंचा चुके हैं।
इसी के आंकड़े के अनुसार कई जातियों में 10 प्रतिशत से 100 प्रतिशत तक को ईसाई बनाया जा चुका है। उदाहरण के तौर पर तेलंगाना के मडिगा और माला समुदाय में 21000 की जनसंख्या को ईसाइयत में बदल कर उसे आदि ईसाई नाम भी दे दिया गया है। बोडो समुदाय की 15.7 लाख जनसंख्या में से लगभग 1.5 लाख जनसंख्या को ईसाइयत में लाया गया गया है। झारखंड में उरांव जनजाति के 26% लोग, मुंडा जनजाति के 32% संथाली जनजाति के 8% खड़िया जनजाति के 73% सहित कई जनजाति और पिछड़े समाज के लोगों तक इनकी पहुंच हो गई है।
जोशुआ प्रोजेक्ट अपने काम को पांच स्तर पर मापता है। जिन जातियों में ईसाइयत में धर्मांतरण नहीं हो पाया है, उन्हें जोशुआ ‘अनरीच्ड’ के वर्ग में रखता है। इसके अलावा जिन जातियों-जनजातियों में ईसाइयत को फैलाने में आंशिक सफलता मिली है, उन्हें ‘मिनिमली रीच्ड’ वर्ग और इससे ऊपर ‘सुपरफिशियली रीच्ड को रखा जाता है। इसके अलावा भी दो वर्ग हैं।
जोशुआ प्रोजेक्ट की वेबसाइट ने देश में हर साल करीब 24 लाख लोगों को ईसाई बनाने का दावा किया है। इसके लिए कई गांवों में नए चर्च बन गए हैं। इसके तहत देश में 2,272 जातियों के हर वर्ग का एक एजेंट नियुक्त किया गया है जिसका जाल पूरे देश में फैला हुआ है। इसे फैलाने के लिए ये लोग बड़ी-बड़ी कॉर्पोरेट कम्पनी की तरह काम कर रहे हैं। सभी का काम, पद और वेतन निर्धारित है। उदाहरण के तौर पर सबसे पहले हर गांव में एक व्यक्ति को प्रचार की पदवी दी जाती है जिन्हें मासिक वेतन के तौर पर 1500 रुपए दिए जाते हैं। इनका काम लोगों को चर्च में ले जाना है और ईसाइयत का प्रचार करना होता है। इन्हें कन्वर्जन के नाम पर 2000 रुपए और एक शादी करवाने के लिए 1500 रुपए कमीशन भी मिलता है। प्रचारक के ऊपर पास्टर होता है जिसे 10 से 20 हजार का वेतन मिलता है। इनका काम प्रचारक से रिपोर्ट इकट्ठा करना होता है और चर्च के लिए नई जगह खोजना होता है। पास्टर पादरी को रिपोर्ट करते हैं और पादरी को लगभग एक लाख रुपए मासिक वेतन मिलता है। इन्हें वेतन देने के लिए किसी मिशनरी विद्यालय का प्रधानाचार्य बना दिया जाता है या फिर उसे विद्यालय का प्रमुख। यही पादरी अपनी रिपोर्ट अपने ऊपर बिशप को देते हैं। इन लोगों का काम कन्वर्जन में आ रही हर प्रकार की अड़चनों को रोकना होता है।
नियुक्त किए गए एजेंट के माध्यम से ये लोग गांव-गांव में घूम कर सभी लोगों से मिलते हैं उनका विवरण इकट्ठा करते हैं, एक वीडियो दिखाते हैं, इच्छुक व्यक्ति का नाम और विवरण अलग से लिखकर रख लेते हैं। इनमें से कई बीमार और परेशान लोगों को यह लोग प्रार्थना सभा तक लाते हैं और उसके बाद अंधविश्वास के नाम पर इन लोगों की समस्या को दूर करने की बात कही जाती है और अंत में इन्हें ईसाई बना दिया जाता है।
ऐसा ही मामला बिहार के गया जिले के फतेहपुर गांव से भी देखने को मिला। यहां पर वंचित समाज के कई लोग जो गरीबी में गुजर-बसर कर रहे थे। उनके पास उनके एजेंट और पादरी पहुंचकर उन्हें गरीबी और बीमारी से दूर करने का लालच दिया। पहले उन्हें प्रार्थना सभा ले जाया गया। उसके बाद उन्हें बताया गया कि उन पर भूत-प्रेत का साया है, उनके घरों से हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हटवाई गईं और उन्हें पूर्ण रूप से ईसाई बना दिया गया है। अब इनमें से ही कई लोग कमीशन के लालच में इनके प्रचारक बन चुके हैं और जगह-जगह पर ईसाइयत का प्रचार करते हैं। सुविधा के नाम पर उनके बच्चों को पढ़ने के नाम पर झारखंड की राजधानी रांची में लाया गया है। भविष्य में जाकर यही लोग प्रचारक, पास्टर और पादरी बनेंगे और फिर पूरे देश भर में इन्हें प्रचार के लिए घुमाया जाएगा।
आज यही स्थिति मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और बिहार जैसे कई राज्यों में देखने को मिल सकती है। कन्वर्जन के लिए मिशनरी संस्थाओं के लोग हर तरीके के हथकंडे अपना रहे हैं। झारखंड के गुमला जिले के मेराल गांव के 250 घरों में से 150 से अधिक ईसाई बन चुके हैं। इसके लिए इन्हें नौकरी देने का लालच दिया गया। झारखंड के ही गिरीडीह, खूंटी, हजारीबाग, कोडरमा, चाइबासा, पाकुड़, राजमहल, दुमका, सिमडेगा, लोहरदगा सहित कई जिलों में प्रतिदिन कन्वर्जन का खेल चल रहा है।
छत्तीसगढ़ में धर्मजागरण समन्वय के अध्यक्ष और घर वापसी कार्यक्रम के प्रमुख प्रबल प्रताप सिंह जूदेव के अनुसार छत्तीसगढ़ में 10 साल में 50 हजार से अधिक लोगों का कन्वर्जन हो चुका है।
हालांकि भारत में अब जोशुआ प्रोजेक्ट का पर्दाफाश होता जा रहा है। कई राज्यों में अवैध तरीके से कन्वर्जन करवाने के विरुद्ध शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। इसके साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय से खुफिया एजेंसी को भी अलर्ट जारी कर दिया गया है। उन्होंने हर राज्य में जोशुआ के एजेंट की खोज शुरू कर दी है। खुफिया एजेंसी छत्तीसगढ़ के खूंटा पानी गांव के प्रचार के काम में लगे मदन तिग्गा से भी पूछताछ कर रही है। इधर पता चला है कि छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण रोकने के लिए एक नया कानून बनाया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा के अनुसार अवैध कन्वर्जन रोकने के लिए नया कानून जल्द ही विधानसभा में पेश किया जाएगा और जिन जनजातीय समाज की जमीनों पर अवैध तरीके से चर्च बनाए गए हैं उन्हें जल्द ही मुक्त कराया जाएगा।
भारतीय जनजाति सुरक्षा मंच के कार्यकर्ताओं ने छत्तीसगढ़ के जशपुर के सिटी कोतवाली थाने में जोशुआ प्रोजेक्ट के विरुद्ध मामला दर्ज करवाया है। हम अगर अब भी नहीं जागे तो आने वाले समय में भारत के अंदर भारत की संस्कृति को मानने वाले लोग शायद ही मिलेंगे। वर्तमान भारत के अंदर इस बार जो हमले हो रहे हैं वह चौतरफा हमले हो रहे हैं। मार्क्सवाद की विचारधारा हमें सांस्कृतिक रूप से कमजोर कर रही है, इस्लामी कट्टरपंथ हमारे पर्व-त्यौहार, हमारी जमीनें और हमारी बहू-बेटियों पर नजर गड़ाए बैठा है और चर्च और मिशनरी संस्थाएं अंदर ही अंदर हमें खोखला कर रही हैं। कुल मिलाकर अगर इस राष्ट्र को बचाना है तो सबसे पहले हमें हमारी संस्कृति को बचाना होगा और हमें सजग रहना होगा।
– रितेश कश्यप