भारत वर्तमान और भविष्य की युद्धक चुनौतियों से निपटने हेतु दूरगामी नीति के अंतर्गत अपनी रक्षा तैयारियों पर विशेष बल दे रहा है। भारतीय सेनाओं का आधुनिकीकरण, एकीकृत थिएटर कमांड्स, मेक इन इंडिया के अंतर्गत स्वदेशी हथियार निर्माण, रक्षा क्षेत्र में भारत के आत्मनिर्भर बनने की दिशा में ठोस कदम है।
सेना की ताकत बढ़ाने के लिए रक्षा मंत्रालय ने बड़ी पहल की है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने 3 सितम्बर को 1,44,716 करोड़ रुपए की राशि के दस पूंजी अधिग्रहण प्रस्तावों की स्वीकृति (एओएन) प्रदान की। एओएन की कुल लागत का 99 प्रतिशत हिस्सा स्वदेशी स्रोतों से खरीद (भारतीय) और खरीद (भारतीय-स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित) श्रेणियों के अंतर्गत है।
केंद्र में तीसरी बार सरकार बनाने के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्री के रूप में बरकरार रखा। रक्षा मंत्रालय में अपने दूसरे कार्यकाल में उनके सामने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण, अग्निपथ योजना पर चिंताओं को दूर करने और लम्बे समय से लम्बित थिएटर कमांड सुधार प्रक्रिया को जारी रखने जैसी चुनौतियां हैं।
आधुनिकीकरण
रक्षा-आधुनिकीकरण शस्त्रास्त्र के अलावा रणनीतियों यानी डॉक्ट्रिन के साथ भी जुड़ा है। इन दिनों देश की तीनों सशस्त्र सेनाएं-थल सेना, नौसेना और वायुसेना एकीकृत थिएटर कमांड्स की दिशा में बढ़ रही हैं। आशा है कि शीघ्र ही देश को पहली थिएटर कमांड मिल जाएगी। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान के अधीन सैन्य मामलों का विभाग (डीएमए) भविष्य के युद्धों के लिए तीनों सैन्य सेवाओं को एकजुट कर रहा है।
प्रधान मंत्री मोदी ने 2 जुलाई को संसद में कहा था कि थिएटर कमांड का निर्माण ट्रैक पर है और सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण पूरे जोरों पर है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार और भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में भविष्य के युद्धों से लड़ने की बेहतर तैयारी के लिए थिएटर कमांड बनाने का आश्वासन दिया है। इन सभी कार्यक्रमों के साथ ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जुड़े हुए हैं।
हाल में इस सिलसिले में एकसाथ कई बातें हुई हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गत 5 सितम्बर को लखनऊ में प्रथम संयुक्त कमांडर सम्मेलन की अध्यक्षता की। इस सम्मेलन में विचार-विमर्श थिएटराइजेशन, स्वदेशीकरण और रोबोटिक्स एवं आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस से संचालित स्वायत्त हथियार प्रणालियों के क्षेत्र सहित तकनीकी विकास के व्यापक परिदृश्य जैसे समकालीन मुद्दों तक विस्तृत था। इसके बाद चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने 9 सितम्बर को नई दिल्ली में जल-थल अभियानों के लिए संयुक्त सिद्धांत जारी किया।
टैंक बेड़ा
गत 3 सितंबर को जिन 10 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है उनमें भारतीय सेना के टैंक बेड़े के आधुनिकीकरण से जुड़ा प्रस्ताव बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए फ्यूचर रेडी कॉम्बैट वेहिकल्स (एफआरसीवी) की खरीद के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। एफआरसीवी बेहतर गतिशीलता, सभी क्षेत्रों में पहुंच सकने की क्षमता, बहुस्तरीय सुरक्षा, वास्तविक समय में स्थिति जन्य जागरूकता के साथ घातक एवं सटीक फायर करने की क्षमता से लैस भविष्य का एक मुख्य युद्धक टैंक होगा। भारत इन टैंकों में से लगभग 1,700 का अधिग्रहण करने की योजना बना रहा है, ताकि रूसी मूल के ढ-72 टैंकों के अपने पुराने बेड़े को बदल सके।
स्टैल्थ फ्रिगेट
रक्षासूत्रों ने पुष्टि की है कि डीएसी ने परियोजना-17बी के अंतर्गत सात उन्नत स्टैल्थ (लोपन) फ्रिगेट के निर्माण के लिए एओएन को मंजूरी दे दी है, जिसके निर्माण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा यार्ड गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई) और माझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) प्रमुख दावेदारों में शामिल हैं। अतीत में भी दो शिपयार्ड के बीच ऑर्डर बांटे गए हैं। इन परियोजनाओं का अनुमोदन इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता के साथ भी है।
नए एफआरसीवी
अधिग्रहण की स्वीकृतियों में सबसे दिलचस्प है एफआरसीवी। नए एफआरसीवी के अगले 35-45 वर्षों तक सेवा में रहने की उम्मीद है और इसलिए इसे युद्ध के मैदान में उच्चतम मारक क्षमता और चपलता प्रदान करने के लिए डिजाइन किया जा रहा है। इसके साथ ही अगली पीढ़ी की परिचालन क्षमताओं और स्वचालन को सक्षम करने के लिए पूरी तरह से डिजिटल डेटा बैकबोन आर्किटेक्चर के साथ इसे जोड़ा गया है। योजना 3-4 वर्षों में पहला प्रोटोटाइप तैयार करने और 2030 से इसे सेना में शामिल करने की है।
रक्षा मंत्रालय का विचार पहले चरण में 590 एफआरसीवी खरीदने का है। इस परियोजना पर पहले भी प्रयास किए गए हैं जो सफल नहीं हुए और अंततः रद्द कर दिए गए। यह सेना के पास बड़ी संख्या में टी-72 और टी-90 मुख्य युद्धक टैंकों की समस्या को हल करने के लिए एक लम्बी परियोजना है।
नई तकनीकें
जून 2023 में डीआरडीओ प्रमुख ने कहा था कि डीआरडीओ एम्का (एएमसीए), एलसीए मार्क-2, लॉन्ग रेंज रेडार, एडवांस मिसाइल टेक्नोलॉजीज और अर्जुन मार्क-2 जैसी और भी नई तकनीकें लेकर आएगा। इससे संकेत मिलता है कि डीआरडीओ भारतीय सेना के एफआरसीवी कार्यक्रम के लिए अर्जुन मार्क-2 पर विचार कर रहा है। एफआरसीवी 55 टन का होगा जिसमें कुछ विशिष्ट प्रौद्योगिकियां होंगी जैसे ड्रोन रोधी क्षमताएं, सक्रिय सुरक्षा प्रणालियां, एलएम को नियोजित करने की क्षमता और यह स्वदेशी डैट्रान 1500 हॉर्सपावर इंजन द्वारा संचालित होगा।
अब डीआरडीओ भविष्य की मुख्य युद्धक टैंक तकनीक विकसित करने पर काम कर रहा है जो न केवल इसके सुरक्षा स्तर को बढ़ाएगी बल्कि वजन भी कम करेगी। ये तकनीकें हाई नाइट्रोजन स्टील हैं जो कम मोटाई के साथ रोल्ड होमोजीनियस आर्मर (आरएचए) की तुलना में बेहतर सुरक्षा प्रदान करती हैं। डीआरडीओ ने नेक्स्ट जेनरेशन एक्सप्लोसिव रिएक्टिव आर्मर (एनजीईआरए) भी विकसित किया है जो अर्जुन टैंक के लिए विकसित ईआरए एमके-2 से भी बेहतर होगा।
एयर डिफेंस रेडार
एयर डिफेंस फायर कंट्रोल रेडार की खरीद के लिए भी एओएन प्रदान की गई, जो हवाई लक्ष्य का पता लगाएगा एवं उसकी निगरानी करेगा और फायरिंग सम्बंधी समाधान प्रदान करेगा। इस प्रस्ताव को फॉरवर्ड रिपेयर टीम (ट्रैक्ड) के लिए भी मंजूरी दे दी गई है, जिसके पास मशीनीकृत संचालन के दौरान घटनास्थल पर मरम्मत करने के लिए उपयुक्त देशव्यापी आवागमन की सुविधा उपलब्ध होगी। यह उपकरण आर्मर्ड वेहिकल्स निगम लिमिटेड द्वारा डिजाइन एवं विकसित किया गया है और मैकेनाइज्ड इनफेंट्री बटालियन तथा आर्मर्ड रेजिमेंट दोनों के लिए अधिकृत है।
भारतीय तटरक्षक (आईसीजी) की क्षमताओं को उन्नत करने के लिए तीन एओएन प्रदान किए गए हैं। डॉर्नियर-228 विमान, खराब मौसम की स्थिति में उच्च स्तर की परिचालन सम्बंधी सुविधाओं वाले अगली पीढ़ी के तेज गश्ती जहाजों और उन्नत तकनीक एवं लम्बी दूरी के अभियान की बेहतर क्षमता से लैस अगली पीढ़ी के अपतटीय गश्ती जहाजों की खरीद से आईसीजी की निगरानी, समुद्री क्षेत्र में गश्त लगाने, खोज एवं बचाव और आपदा राहत अभियान की क्षमता में वृद्धि होगी।
देश की रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 2002 में शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य सैन्य हार्डवेयर की खरीद को व्यवस्थित और समयबद्ध तरीके से करना था। रक्षा खरीद नीति-2020 में दीर्घकालिक एकीकृत परिप्रेक्ष्य योजना (एलटीआईपीपी) की अवधि को 15 साल से घटाकर 10 साल कर दिया गया। साथ ही इसका नाम बदलकर एकीकृत क्षमता विकास योजना (आईसीडीपी) कर दिया गया।
सुखोई विमानों के इंजन
इसके पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने सोमवार को लड़ाकू सुखोई विमानों के लिए 240 एयरो-इंजन की खरीद को भी मंजूरी दे दी। भारतीय वायु सेना के इन विमानों के लिए एयरो-इंजन की डिलीवरी एक साल बाद शुरू होकर 8 साल की अवधि में पूरी होगी। इन इंजनों में 54 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री होगी। इनकी खरीद सभी करों और शुल्कों सहित 26 हजार करोड़ रुपए से अधिक है। इनका निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के कोरापुट प्रभाग में किया जाएगा। एसयू-30 एमकेआई, भारतीय वायु सेना के बेड़े में शामिल सबसे शक्तिशाली और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण विमानों में से एक है। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा एयरो इंजन की आपूर्ति भारतीय वायुसेना के बेड़े की प्रमुख आवश्यकताओं को पूरा करेगी। इस व्यवस्था से निर्बाध गतिविधियों के साथ देश की रक्षा तैयारियां मजबूत होंगी।
अपग्रेडेशन
इन इंजनों की खरीद सुखोई विमानों के सामान्य संचालन के लिए की जा रही है, जबकि इनके अपग्रेडेशन की प्रक्रिया भी चल रही है। भारतीय वायुसेना के मुख्य विमान सुखोई-30 एमकेआई को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स द्वारा अपग्रेड किया जाएगा। विमान की क्षमताओं को बढ़ाने में डीआरडीओ और अन्य स्वदेशी निजी कंपनियां भी सहयोग करेंगी। यह प्रक्रिया रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में रक्षा अधिग्रहण परिषद की आधिकारिक बैठक में 30 नवंबर 2023 को मंजूरी के बाद हुई है, जिसमें एचएएल द्वारा स्वदेशी अपग्रेड की स्वीकृति की अनुमति दी गई है।
सुपर सुखोई भारतीय वायुसेना के बेड़े को उन्नत करने का एक कार्यक्रम है, जिसे इसके बेड़े की रीढ़ के रूप में जाना जाता है। इसमें कुल मिलाकर 51 प्रणालियों को उन्नत किया जाएगा, जिनमें से 30 एचएएल द्वारा, 13 डीआरडीओ द्वारा और 8 निजी क्षेत्र की कम्पनियों द्वारा की जाएंगी। इस अपग्रेड के अंतर्गत कई पुराने रूसी सब-सिस्टम को उन्नत आधुनिक भारतीय सब-सिस्टम से बदला जाएगा। शुरुआत में करीब 90 विमानों को इन मानकों के अनुसार अपग्रेड किया जाएगा।
एक रिपोर्ट के अनुसार इस परियोजना को दो चरणों में विभाजित किया गया है, जिसमें शुरू में नए एवियॉनिक्स और रेडार लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, उसके बाद फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम में सुधार किया जाएगा।
दूसरे चरण में फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम को बेहतर बनाया जाएगा। इससे विमान आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और इंफ्रारेड सर्च और ट्रैक सिस्टम के लिए तैयार हो जाएंगे। स्वदेशी एकीकरण प्रक्रिया से सुखोई एसयू-30 एमकेआई की हवा से हवा और हवा से जमीन पर निशाना साधने और नष्ट करने की क्षमता में और वृद्धि होगी।
यह कार्यक्रम भारतीय निजी क्षेत्र के लिए बढ़ावा होगा, क्योंकि इस परियोजना के लिए विभिन्न स्वदेशी कंपनियों की विशेषज्ञता और घटकों की आवश्यकता होगी, जो 50 प्रतिशत तक स्वदेशी सामग्री होगी।
सुखोई की मारक क्षमता बढ़ाने के लिए इसमें एसा (एईएसए) रेडार, नए इंजन, आईआरएसटी सेंसर, अगली पीढ़ी के आरडब्ल्यूआर, एडवांस जैमर, वैमानिकी, नए ईडब्ल्यू सुईट, डीएफसीसी, भारतीय मिसाइलें और बम लगाए जाने हैं। एचएएल में अपग्रेड होने के बाद सुखोई-30 वस्तुतः रूसी जेट नहीं रहेगा, बल्कि 78 प्रतिशत स्वदेशीकरण होने के बाद भारतीय जेट में बदल जाएगा।