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चुनौतियां सबके लिए समान

चुनौतियां सबके लिए समान

by हिंदी विवेक
in अक्टूबर २०२४, ट्रेंडींग, विशेष
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जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव इस बार किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं है। पहले की तुलना में स्थितियां बड़ी तेजी से बदली हैं और चुनौतियां सभी के लिए लगभग समान ही हैं।

चुनाव आयोग ने हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनाव तिथियों की घोषणा कर दी है। स्वाभाविक है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव बहुप्रतीक्षित था क्योंकि अनुच्छेद 370 के निष्प्रभावी होने के उपरांत वहां बहुआयामी विकास के मार्ग प्रशस्त हुए हैं। भारत का संविधान पूर्ण रूप से अब वहां लागू हो रहा है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव के साथ इसी वर्ष झारखंड और महाराष्ट्र के भी विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने हैं। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा रहा है कि 8 अक्टूबर को इन दो राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित होने के उपरांत चुनाव आयोग झारखंड और महाराष्ट्र चुनाव का बिगुल भी फूंक देगा। इन राज्यों के चुनाव परिणाम राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर डालने वाले हो सकते हैं, हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार इन राज्यों का चुनाव इंडी गठबंधन और भाजपा दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। एक तरफ भाजपा लोकसभा चुनाव में मन मुताबिक परिणाम नहीं आने के बाद चाहेगी कि हरियाणा, महाराष्ट्र की सरकार को बचाते हुए जम्मू-कश्मीर और झारखंड में भी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर हो, वहीं इंडी गठबंधन के सामने भी अपने प्रदर्शन को बेहतर करने की चुनौती है क्योंकि फिलहाल झारखंड के अतिरिक्त वह बाकी तीन राज्यों में सत्ता से दूर है। चारों राज्यों का अपना अलग राजनीतिक व सामाजिक समीकरण है और विशेषता भी। अब देखना दिलचस्प होगा कि राज्यों की जनता अपना जनादेश कहां और किस दल को देना पसंद करती है।

हरियाणा: भाजपा को हैट्रिक की उम्मीद

हरियाणा के संदर्भ को देखें तो भाजपा ने पिछले चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया और सरकार का गठन किया, लेकिन इस बार कुछ प्रमुख मुद्दों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

किसान आंदोलन

पिछले कुछ वर्षों में किसान आंदोलन हरियाणा के प्रमुख राजनीतिक मुद्दों में से एक रहा है। हालांकि भाजपा ने कृषि कानूनों को वापस ले लिया है और साथ ही किसान सम्मान निधि, किसान क्रेडिट कार्ड, फसलों की एमएसपी पर खरीद जैसे बड़े कदम भाजपा को हरियाणा में संजीवनी प्रदान कर सकते हैं। उल्लेखनीय होगा कि हरियाणा देश का पहला राज्य बना है, जो सभी फसलों पर किसानों को एमएसपी दे रहा है। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि 10 वर्षों की एंटी इनकंबेंसी के गणित को समझें, उसके बावजूद भाजपा आज भी राज्य में लोगों की आस बनी हुई है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि लोग कांग्रेस की हुड्डा सरकार के समय किसानों की जमीनों पर जबरन कब्जा, दलितों पर अत्याचार और युवाओं के हक को मारते हुए खर्ची-पर्ची के प्रचलन को भूले नहीं हैं। साथ ही कांग्रेस के परिवारवाद और अंदरूनी कलह ने भी कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया है।

स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार

भाजपा सरकार ने राज्य में मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या बढ़ाई, जिससे युवाओं को उच्च शिक्षा के बेहतर अवसर मिले हैं। इसके साथ ही आयुष्मान भारत योजना के माध्यम से गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई गईं। आंकड़े बताते हैं कि भाजपा ने इस एक दशक में 1 लाख 44 हजार सरकारी नौकरियां पारदर्शिता के साथ दी हैं।

सामाजिक सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण

महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा के लिए कई योजनाएं लागू की गईं, जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और राज्य में महिलाओं के लिए विशेष कानून व्यवस्था। इससे महिलाओं के अधिकारों को और मजबूती मिली है। हरियाणा में 50 लाख परिवारों को हर महीने केवल 500 रूपए में गैस सिलेंडर देने का निर्णय हो अथवा गरीबों की बेटियों के विवाह में शगुन की राशि 1 लाख तक करना, यह भाजपा की नारी शक्ति का सकारात्मक भाव है, जिसका लाभ उन्हें चुनाव में मिलने की आस है।

गौरतलब है कि भाजपा के शासन में राज्य में राजनीतिक स्थिरता बनी रही है। इसने राज्य में आर्थिक विकास और निवेश के अवसरों को बढ़ावा दिया है, जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं। इन सभी मुद्दों और समीकरणों के आधार पर भाजपा यहां सत्ता की हैट्रिक लगाने में कितनी सफल होती है, यह भविष्य के गर्भ में है।

जम्मू-कश्मीर : लोकतंत्र का नया दौर

जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव कई अर्थों में महत्वपूर्ण रहा। धारा 370 हटने के बाद से यह पहला विधानसभा चुनाव था, जिसमें राज्य की जनता ने मताधिकार का प्रयोग किया। यहां वोट को लेकर जनता में जो उत्साह दिखाई दिया, वह लोकतंत्र के लिए बहुत ही सुखद है। आम तौर पर घाटी के चुनाव में ऐसी धारणा बनी हुई थी कि मतदान प्रतिशत कम होंगे, पत्थरबाजी और आतंक के साए में चुनाव होंगे, किंतु अब स्थिति बहुत बदल गई है। प्रत्याशी और पार्टियों ने खुलेपन के साथ देर रात तक चुनावी अभियान को जारी रखा। पहले पंचायत फिर लोकसभा चुनाव में बढ़े वोट प्रतिशत की तरह विधानसभा चुनाव में भी जनता ने अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए बढ़-चढ़ कर भाग लिया। यहां कौन सी पार्टी सत्ता में आती है, यह देखना बहुत रोचक होगा, किंतु दशकों तक जम्मू-कश्मीर की जनता के अधिकार को मारने वाले परिवारवादी पार्टियों पर यहां की जनता शायद ही भरोसा करे ऐसे में शांति और विकासवादी राजनीति के नारे को लेकर जनता के बीच गई भाजपा को बढ़त मिलने का पूरा अनुमान है।

विकास कार्य – भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में बुनियादी ढांचे में सुधार, नई सड़कें, रेल सम्पर्क और बिजली की आपूर्ति जैसे विकास कार्यों पर जोर दिया है। यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास दोनों आज उप-राज्यपाल के नेतृत्व में हो रहा था। पर्यटन, उद्योग, ग्रामीण विकास के मोर्चे पर भी केंद्र सरकार ने सराहनीय कार्य किया है। अब इन विकास कार्यों को जनता क्या पुरस्कार देती है, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे, किंतु लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप इस चुनाव की गूंज देश के साथ विदेश में भी सुनाई देगी।

महाराष्ट्र : गठबंधन की खिचड़ी- कार्यकर्ता भ्रमित

महाराष्ट्र की राजनीति में दलों का जिस तरह बिखराव हुआ है, उससे वहां की राजनीति और पेचीदा हो गई है। एक भाजपा को छोड़ मुख्य राजनीतिक दलों के टूटने से कार्यकर्ता और मतदाता दोनों में बहुत असमंजस की स्थिति बनी हुई है। महाविकास आघाडी और महायुति दोनों अपनी पूरी ताकत के साथ चुनावी तैयारियों में लगे हैं। महाविकास आघाडी लोकसभा चुनाव में मिले परिणामों से उत्साहित तो है, किंतु उसे इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मुद्दे और उसका वोटिंग पैटर्न अलग होता है। थोड़े समय में आई इनकी सत्ता के दौरान राज्य में जिस तरह से भ्रष्टाचार बढ़ा और कानून व्यवस्था ध्वस्त हुई उसको महाराष्ट्र की जनता भूली नहीं हैं। भाजपा विकास कार्यों के साथ इन्हीं मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएगी, जिसका लाभ उसे आगामी चुनाव में मिल सकता है।

विकास की दिशा में ठोस कदम – भाजपा ने महाराष्ट्र में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कई ठोस कदम उठाए हैं। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी केंद्र सरकार की योजनाओं को राज्य में सफलतापूर्वक लागू किया गया, जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। महाराष्ट्र में मुंबई, पुणे और नागपुर जैसे शहरों में आईटी और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का विस्तार हुआ है, जो राज्य की आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। कानून व्यवस्था ठीक करने और किसानों के मुद्दों को हल करने की दिशा में भी प्रयास किया है।

कृषि और ग्रामीण विकास – किसानों के कल्याण के लिए भाजपा सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं, जैसे प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना, प्रधान मंत्री किसान सम्मान निधि योजना और जलयुक्त शिवार योजना, जिसका उद्देश्य किसानों को सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदाओं से राहत प्रदान करना है। इन योजनाओं से महाराष्ट्र के कृषि क्षेत्र में सकारात्मक सुधार हुआ है।

शिवसेना विभाजन – शिवसेना के विभाजन के बाद भाजपा ने एकनाथ शिंदे गुट के साथ गठबंधन किया है, लेकिन उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना अभी भी एक चुनौती है, किंतु वैचारिक आधार पर जिस तरह से उद्धव ठाकरे ने अपना तेवर बदला है उससे उनका कोर वोटर खिन्न है, जिसका लाभ महायुती गठबंधन को मिल सकता है।

झारखंड: भाजपा को सत्ता में वापसी की आस

झारखंड में भाजपा का मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन से है। पिछले पांच साल से सत्ता में आए हेमंत सोरेन के नेतृत्व में इंडी गठबंधन की सरकार पर भ्रष्टाचार के कई गम्भीर आरोप लग चुके हैं। मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन खुद जेल में रहकर आए। इस दौरान चंपाई सोरेन को मुख्य मंत्री बनाया, किंतु हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आते उन्हें पद से हटा दिया गया, जिससे आहत होकर चंपई ने भाजपा का दामन थाम लिया है। बहरहाल युवाओं के बीच पेपर लीक और बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा राज्य के ज्वलंत मुद्दें हैं, जिस पर इंडी गठबंधन की सरकार पूरी तरह बैकफुट पर है।

आदिवासी अधिकार – झारखंड में आदिवासी वोट निर्णायक होते हैं जो कि कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं और हेमंत सोरेन सरकार द्वारा आदिवासी मुद्दों पर राजनीतिकरण बढ़ा है। आदिवासी समुदाय की जमीनों को जबरन हड़पने का मामला बढ़ने से आदिवासी समुदाय के बीच हेमंत सरकार को लेकर काफी नाराजगी है, जिसका नुकसान इंडी गठबंधन को होना तय है।

झामुमो सरकार ने झारखंड में युवाओं के लिए पर्याप्त रोजगार नहीं सृजित किए हैं, जिससे बेरोजगारी बढ़ी है। झारखंड की वर्तमान स्थिति का अवलोकन करें तो भाजपा के पास सत्ता में वापसी का अवसर बढ़ा है, किंतु भाजपा के संगठनात्मक और आदिवासियों से जुड़े विषयों को बहुत संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ाना होगा।

कुल मिलाकर देखें तो इन चार राज्यों के चुनाव सभी राजनीतिक दलों के लिए एक अग्निपरीक्षा की तरह हैं। यदि कोई एक पार्टी इस भ्रम में है कि उसके लिए इस राज्य का चुनाव सरल है तो उसे परिणामों में मात खानी पड़े तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

-आदर्श तिवारी

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