यदि आपको अज्ञात नम्बर से कॉल आए और किसी परिजन की आवाज में वे तत्काल सहायता के रूप में पैसे की मांग करें तो सर्तक हो जाएं, क्योंकि वह साइबर ठगी का एक नया तरीका हो सकता है, जिसे कॉल स्यूकिंग कहा जाता है।
मथुरा व वृंदावन के आश्रम में रहने वाले चर्चित कथावाचक प्रेमानंद महाराज ने हाल में सोशल मीडिया के माध्यम से एक खास संदेश प्रचारित किया है। उनके आश्रम श्री हित राधा केली कुंज परिकर की ओर से जारी संदेश में कहा गया है कि प्रेमानंद महाराज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का शिकार हो गए हैं। इसमें लोगों को सचेत किया गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दुरुपयोग कर प्रेमानंद महाराज की आवाज की नकल कर कुछ लोग अपने उत्पादों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। यह एक भ्रामक कार्यवाही है क्योंकि प्रेमानंद महाराज ने इन उत्पादों का प्रचार-प्रसार नहीं किया है। उनके आश्रम ने लोगों से सतर्क रहने और इस प्रकार की धोखाधड़ी में नहीं फंसने की अपील की है।
यह एक चर्चित व्यक्ति का मामला है, लेकिन देश में हर दिन सैकड़ों लोगों को ऐसे फोन आते हैं, जिनमें उन्हें दूर से अपने किसी परिचित, मित्र या रिश्तेदार की आवाज सुनाई देती है। ऐसी ज्यादातार आवाजों से वह परिचित व्यक्ति खुद को किसी मुसीबत में फंसा बताता है और तुरंत आर्थिक सहायता (बताए गए खाते में पैसे ट्रांसफर) करने की बात कहता है। जानी-पहचानी आवाज सुनकर बहुत से लोग मांगी गई रकम तुरंत भेजने की गलती कर बैठते हैं। बाद में उन्हें यह सच्चाई पता चलती है कि असल में उस व्यक्ति की आवाज की नकल या क्लोनिंग करके सहायता मांगी गई थी, वास्तविकता में उस व्यक्ति को किसी सहायताा की जरूरत ही नहीं थी। कई बार तो यह सहायता खुद के बच्चों की आवाज में तो कई बार ऐसे परिचित या दोस्त की आवाज में मांगी जाती है, जिससे आपकी वर्षों से मुलाकात नहीं हुई हो। असल में साइबर अपराधियों का यह नया धंधा है, जिसे स्पूफिंग कहा जाता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता से इस फर्जीवाड़े में तेजी आ गई है, हालांकि एआई की दखल से पहले ही अपराधी तत्व ऐसे कारनामे करने लगे थे। जैसे दो साल पहले स्पूफिंग के जरिए ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के नाम से राजनेता साध्वी प्रज्ञा को एक संदेश भेजा गया। संदेश की वास्तविकता पर संदेह करना आसान नहीं था, लेकिन कुछ शक होने पर साध्वी प्रज्ञा ने जब संदेश की जांच कराई तो पता चला कि मामला कॉल स्पूफिंग का है। साइबर हैकिंग से आगे निकलती इस तकनीक को स्पूफिंग कहा जा रहा है। स्पूफिंग एक ऐसा कपटपूर्ण (फ्रॉड) या छलिया व्यवहार है जिसमें कोई संचार अनजान स्रोत से किसी रिसीवर को भेजा जाता है, लेकिन संदेश प्राप्त करने वाले व्यक्ति को वह संचार (कॉल या ईमेल) उसके परिचित या ज्ञात स्रोत से आए संदेश के रूप में मिलता है। यूं तो धोखाधड़ी या छल करके लोगों को लूटना दुनिया में हमेशा होता आया है, लेकिन नई तकनीकों के सहारे लोगों को भ्रमित करते हुए चूना लगाने की यह एक नई कोशिश है, जिसे स्पूफिंग के नाम से जाना जा रहा है।
स्पूफिंग के कई प्रकार
कॉल स्पूफिंग साइबर फर्जीवाड़े का नया धंधा जरूर है, लेकिन यह कई अन्य रूपों में हाल के कुछ वर्षों से साइबर अपराधियों का औजार बना हुआ है। यानी सिर्फ मोबाइल स्पूफिंग नहीं, बल्कि लोगों को आईपी स्पूफिंग, कॉलर आईडी स्पूफिंग, ईमेल स्पूफिंग, एआरपी स्पूफिंग और कंटेंट स्पूफिंग आदि के जरिए भी चूना लगाया जा रहा है। आईपी स्पूफिंग यानी इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस को कॉपी या मास्किंग करने का मामला है। इस तरीके में स्पूफर (साइबर अपराधी) किसी कम्प्यूटर आईपी एड्रेस (वेबसाइट के पते यानी यूआरएल) को इस तरह से मास्क करते (छिपा देते) हैं यानी नकली आईपी एड्रेस तैयार करते हैं ताकि वह प्रमाणिक, विश्वसनीय और वास्तविक आईपी एड्रेस प्रतीत हो, जबकि असलियत में यह एक फर्जी (फेक) आईपी एड्रेस होता है जो देखने में असली लगता है। इस किस्म की स्पूफिंग में स्पूफर ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकाल (टीसीपी) तकनीक से वास्तविक आईपी एड्रेस के स्रोत (सोर्स) और गंतव्य की जानकारियों की खोज करते हैं। ये जानकारियां मिल जाने पर उनमें आईपी एड्रेस की स्पूफिंग की तरह मोबाइल पर कॉल या मैसेज की स्पूफिंग के लिए स्पूफर कॉलर आईडी सिस्टम के डिस्प्ले तकनीक में सेंध लगाते हैं। इससे उन्हें एक मोबाइल उपयोगकर्ता और उसके परिचय के दायरे में आने वाले लोगों के मोबाइल नम्बरों की जानकारी और पहचान प्राप्त हो जाती है। साथ ही आवाज की नकल करके लोगों को उनके परिचितों के नाम से फोन किया जाता है और पैसे मांगे जाते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने मामले को सिर्फ आवाज तक सीमित नहीं रहने दिया है, बल्कि अब तो वीडियो कॉल करके भी लोगों को फंसाने की कोशिश हो रही है। हालांकि वीडियो कॉल में चेहरे के हावभाव ध्यान से देखने में पकड़ में आ जाते हैं, लेकिन नकल की गई आवाज में अंतर पकड़ना आसान नहीं होता है। कुछ समय पहले तक स्पूफिंग नामक इस तकनीक का प्रयोग जासूसी या एफएम रेडियो चैनलों द्वारा शरारतन की जाने वाली प्रैंक गतिविधियों में किया जाता था, लेकिन अब इसे स्पूफर्स ने धोखा देकर पैसा कमाने का जरिया बना लिया है।
ईमेल स्पूफिंग एक अन्य प्रकार की धोखाधड़ी है जिसमें फर्जी ईमेल (स्पैम) भेजकर लोगों को भ्रमित करते हुए उन्हें आर्थिक या भावनात्मक चपत लगाई जाती है। इस तरह की स्पूफिंग में संदेश प्राप्तकर्ता को यह नहीं पता चलता है कि यह ईमेल आखिरकार कहां से आया है। चूंकि इस तकनीक में ईमेल भेजने वालों को ईमेल प्रमाणिकरण (ऑथेंटिकेशन) की प्रक्रिया यानी सिंपल मेल ट्रांसफर प्रोटोकॉल से नहीं गुजरना पड़ता है, इसलिए ईमेल पाने वालों को पता नहीं चलता है कि उन्हें यह कहां से मिला है। प्राय: इस तकनीक का प्रयोग स्पैमर करते रहे हैं। इसके जरिए वे फिशिंग, वायरस फैलाने या लोगों की निजी व बैंकिंग सम्बंधी जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
स्पूफिंग का एक अन्य प्रकार एआरपी स्पूफिंग है। एआरपी यानी एड्रेस रिजॉल्यूशन प्रोटोकॉल स्पूफिंग। इसमें स्पूफर किसी भी नेटवर्क (वायर्ड और वायरलेस, दोनों तरह के नेटवर्क) के ट्रैफिक को अपने कब्जे में लेकर मन मुताबिक ढंग से परिवर्तित (मॉडिफाइ) या बाधित (ब्लॉक) कर सकता है। ऐसा करने के बाद स्पूफर इंटरनेट ट्रैफिक को री-डायरेक्ट करते हुए एक फर्जी एआरपी कम्यूनिकेशन भेजता है, जो लोगों को असली लगता है और वे झांसे में आ जाते हैं। इंटरनेट ट्रैफिक को परिवर्तित करने के कारण ऐसी स्पूफिंग को एआरपी री-डायरेक्ट के नाम से जाना जाता है।
इंटरनेट पर सबसे अधिक प्रचलित स्पूफिंग का एक प्रकार कंटेंट स्पूफिंग का है। असली या वैध वेबसाइट जैसी फर्जी वेबसाइट कंटेंट स्पूफिंग का ही प्रकार है। इस तरीके से स्पूफर असल में वैध वेबसाइट की विस्तृत प्रतिलिपि (कॉपी) कर देते हैं। असली वेबसाइट का कंटेंट कॉपी करने के लिए स्पूफर डायनैमिक एचटीएमएल और फ्रेम आदि तकनीकों का प्रयोग करते हैं और असली वेबसाइट का सारा कंटेंट कॉपी कर लेते हैं। सिर्फ यही नहीं, कंटेंट स्पूफिंग में ग्राहकों को उसी तरह ईमेल अलर्ट और अकाउंट नोटिफिकेशन मिलते हैं जैसे असली वेबसाइट की ओर से आते हैं। ऐसे में बहुत से लोग फर्जी वेबसाइटों के झांसे में आ जाते हैं और निजी जानकारियों से लेकर पैसे तक गंवा देते हैं। आपने प्राय: ऐसी खबरें सुनी होंगी, जब ओएलएक्स जैसी पुराने सामान खरीदने-बेचने वाली या टूर पैकेज बेचने वाली असली जैसी दिखने वाली फर्जी वेबसाइटों पर अपनी सूचनाएं साझा करने के बाद लोगों को अपनी जमा पूंजी गंवानी पड़ी है। ऐसे सारे उदाहरण कंटेंट स्पूफिंग से जुड़े होते हैं।