अपने ऊर्जावान व्यक्तित्व व जोशीले डान्स से जाने जानेवाले शम्मी कपूर की फिल्मी यात्रा आसान नहीं थी। उन्हें भी स्वयं को स्थापित करने के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ा। अनेक असफलताओं के बाद आखिरकार उन्हें सफलता मिल ही गई। ‘तुमसा नहीं देखा’ फिल्म ने उन्हें स्टार बना दिया।
पृथ्वीराज कपूर के तीन बेटे राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर को ऐसे तो हिंदी सिनेमा की दुनिया में प्रवेश मिल गया था, लेकिन तीनों भाईयों के लिए यह इतना आसान नहीं था। पृथ्वीराज कपूर स्वयं जीवन में कठिन संघर्ष करने के बाद ही इस पड़ाव पर पहुंचे थे। वो नहीं चाहते थे कि उनके बेटों को यह लगे कि उन्हें जिंदगी में सब कुछ आसानी से मिल सकता है। राज कपूर केदार शर्मा के सहायक बन गए थे। शशि कपूर और शम्मी कपूर फिल्मों में अभिनय करने के अवसर ढूंढने लगे। शम्मी कपूर में पृथ्वीराज कपूर की झलक आती थी, लेकिन राह उनके लिए आसान नहीं थी। पृथ्वीराज कपूर ने उन्हें भी राज कपूर और शशि कपूर की तरह आम लड़कों की तरह जीवन अपनाने और संघर्ष करने की सलाह दी अर्थात उन्हें भी बसों, ट्रामों और लोकल ट्रेन से स्टुडियो दर स्टुडियो जाना पड़ता था।
शम्मी कपूर एक आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। अभिनय उन्हें विरासत में मिला था। पृथ्वीराज कपूर के नाटकों का सफलतापूर्वक मंचन पृथ्वी थियेटर में हो रहा था। शम्मी ने कुछ दिन पृथ्वी थियेटर में काम किया। फिल्मों में उनका संघर्ष जारी था। आखिरकार उन्हें अपने संघर्ष का परिणाम मिला और उन्हें ‘जीवन ज्योति’ फिल्म मिली। शशि कला और लीला मिश्रा उनकी सहनायिकाएं थीं। यह फिल्म असफल रही, फिर भी निर्देशकों के विश्वास के कारण उन्हें रेल का डिब्बा और गुल सनोवर आदि फिल्में मिली। रेल का डिब्बा में उनकी नायिका उस जमाने की सबसे सुंदर अभिनेत्री मधुबाला थीं। यूं तो मधुबाला की खूबसूरती देख हर कोई हैरान हो जाता था, लेकिन शम्मी कपूर ने जब उन्हें पहली बार देखा तो वह हक्के-बक्के रह गए थे। इस बात की चर्चा अपनी बायोग्राफी में उन्होंने की है। उन्होंने स्वीकार किया था कि पहली बार फिल्म ‘रेल का डिब्बा’ के सेट पर मधुबाला से मिले तो वह दंग रह गए थे। बल्कि उन्हें देखकर एक्टिंग करना ही भूल गए थे। हालांकि बॉक्स ऑफिस पर यह भी फिल्म नहीं चली। ये सभी फिल्में बुरी तरह असफल हो रही थीं। फिर आई ‘तुमसा नहीं देखा’ जिसने शम्मी को स्टार बना दिया। इस फिल्म ने उन्हें स्टाइलिश प्लेबॉय और डांसर की छवि प्रदान की थी। इसके बाद उन्होंने सफलता का एक सुनहरा दौर देखा। दिल देके देखो, उजाला, जंगली, प्रोफेसर, तीसरी मंजिल, एन ईवनिंग इन पेरिस, दिल तेरा दिवाना, चाईना टाउन, राजकुमार, कश्मीर की कली, ब्रम्हचारी आदि फिल्में सुपरहिट रही थीं। वे हिंदी सिनेमा के सर्वाधिक बिकनेवाले स्टारों में शामिल हो गए थे। यह भी कहा जाने लगा कि नई हिरोईनों को अपना कैरियर शम्मी की फिल्मों से शुरु करना चाहिए क्योंकि उनकी अधिकांश फिल्मों की नायिकाओं को पहली बार ब्रेक मिला था। उनके नृत्य में एक अलग तरह की खासियत थी। अपनी गर्दन को अनोखे ढंग से और अपने बाल को एक अलग तरह से झटकना उनके नृत्य की विशेषता थी। उन्हें हिंदी सिनेमा का एल्विस प्रीसले भी कहा जाने लगा। उनके उन्मुक्त अभिनय ने पूरे देश को दीवाना बना रखा था। सही अर्थों में वे हिंदी सिनेमा के पहले डांसिंग स्टार थे।
1963 में पहली बार उन्हें फिल्म ‘प्रोफेसर’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता की श्रेणी में नामांकन मिला, लेकिन नायक के तौर पर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार केवल एक बार फिल्म ‘ब्रम्हचारी’ के लिए मिला। बॉक्स आफिस पर अवश्य वो लम्बे समय तक सोलो स्टार बने रहे। उनकी व्यस्तता राजेश खन्ना के लिए एक तरह से वरदान था। निर्देशक शक्ति सामंत शम्मी के साथ एक बड़ी फिल्म की योजना बना रहे थे, लेकिन शम्मी के पास उनके लिए समय नहीं था। उन्हें किसी ने सलाह दी कि शम्मी की प्रतीक्षा करने की बजाय किसी नए कलाकार के साथ एक छोटी सी फिल्म बना लें। इस तरह आराधना का जन्म हुआ जिसने राजेश खन्ना को सुपर स्टार बना दिया। इन्हीं राजेश खन्ना के साथ नायक के रूप में उनकी आखिरी फिल्म ‘अंदाज’ थी, जिसमें सुपर स्टार राजेश खन्ना मेहमान कलाकार थे, लेकिन फिल्म उनकी वजह से ही चली थी। नायक के रूप में शम्मी कपूर को यह एहसास हो गया था कि अब उनका जमाना नहीं रहा है। इस कलाकार को अपनी लापरवाही का नतीजा भुगतना पड़ा। अनियंत्रित खान-पान की जीवनशैली ने उन्हें जल्दी ही प्रौढ़ता के घेर में ले लिया। उनकी दूसरी सफल पारी 1977 में फिल्म परवरिश से शुरु हुई, जिसमें वो विनोद खन्ना और अमिताभ बच्चन के पिता बने थे। आगे भी वो ज्यादातर पिता की भूमिका में नजर आए। उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में परवरिश, प्रेम रोग, विधाता, बेताब, हीरो, सोहनी महिवाल, वांटेड, हुकूमत, दाता, तहलका, चमत्कार, शालीमार, गर्दिश आदि हिट फिल्में शामिल हैं। पोते रणबीर कपूर के साथ ‘रॉकस्टार’ उनकी अंतिम फिल्म थी। ‘विधाता’ के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। उन्होंने एक फिल्म ‘मनोरंजन’ का निर्देशन भी किया जो अपने विषय के कारण काफी चर्चित भी रही और हिट भी हुई। फिल्मफेयर, जी सिने अवार्ड्स, आईफा आदि संस्थाओं ने उन्हें लाईफटाईम एचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया।
व्यक्तिगत जीवन में उनका नाम कुछ अभिनेत्रियों से जुड़ा। इनमें मुमताज का नाम भी शामिल है। जिनके साथ ‘ब्रम्हचारी’ में काम करते-करते बेहद करीब आ गए थे। बात विवाह तक पहुंच गई थी, लेकिन टल गई। अभिनेत्री गीताबाली से उन्होंने विवाह किया। आदित्यराज कपूर और कंचन कपूर उनकी संताने हैं जो फिल्मों से कभी नहीं जुड़े। गीता बाली की मृत्यु के बाद उन्होंने राजकुमारी नीला देवी गोहिल से दूसरा विवाह किया। क्रोनिक किडनी फेल्योर से पीड़ित होने पर 7 अगस्त 2011 को ब्रीच कैंडी अस्पताल, मुंबई में हिंदी सिनेमा के पहले डांसिंग हीरो का निधन हुआ। कपूर भाईयों में सबसे अनोखे और लीक से हटकर अभिनय करनेवाले शम्मी कपूर इस वर्ष 21 अक्टूबर को 93 वर्ष के होते यदि वो जीवित होते।
-राजीव रोहित