रंगमंच हमेशा जिंदा रहेगा
रंगमंच को जीवित रखना केवल रंगकर्मियों का ही नहीं दर्शकों का भी कर्तव्य है क्योंकि इसमें होने वाले नित नए प्रयोगों के कारण रंगमंच वह प्रयोगशाला बन जाता है जिसके उत्पाद दर्शकों को बड़े पर्दों, टीवी या ओटीटी पर दिखाई देते हैं।
रंगमंच को जीवित रखना केवल रंगकर्मियों का ही नहीं दर्शकों का भी कर्तव्य है क्योंकि इसमें होने वाले नित नए प्रयोगों के कारण रंगमंच वह प्रयोगशाला बन जाता है जिसके उत्पाद दर्शकों को बड़े पर्दों, टीवी या ओटीटी पर दिखाई देते हैं।
हिन्दी सिनेमा चूंकि सबसे कम खर्च कहानियों पर करता है, इसीलिए रेडीमेड कहानियों की तलाश उसकी मजबूरी हो जाती है। यह जरूरत मसालेदार सत्य घटनाएं आसानी से पूरी कर देती हैं। खबरों के प्रति सिनेमा की इस सहजता की एक वजह उसके दर्शकों के सामने अचानक से आया खबरों का विस्फोट भी है।
जब कोई निर्देशक कोई फिल्म बनाता है तो उसके मस्तिष्क में फिल्म की पूरी ब्लू प्रिंट तैयार होती है। पर्दे पर दिखने के पहले वह निर्देशक की आंखों में उतर चुकी होती है। ऐसे में स्टारडम के बल पर सुपर स्टार्स का फिल्म में हेरफेर करना पूर्णत: अनुचित है। निर्देशकों को अपनी सोच के हिसाब से फिल्म बनाने की छूट मिलना कथा से लेकर उसकी परिणीति तक के लिए अत्यंत आवश्यक है।
फिल्मे ‘आदिपुरुष’ स्पेशल इफेक्ट के सहारे चाहे जितने ‘ब्रह्मास्त्र’ चला लें परंतु अगर कहानी में दम नहीं होगा या उसे तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाएगा तो दर्शकों का प्यार पाना सम्भव नहीं हो पाएगा। हिंदी सिनेमा का दर्शक अभी भी कहानी का भूखा है, केवल स्पेशल इफेक्ट का नहीं।
भारतीय फिल्में फिर एक बार भारतीयता का चोला ओढ़ कर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही हैं। भारतीय इतिहास को बिना तोेड़े-मरोड़े दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने की चुनौती अब भारतीय सिनेमा बनाने वालों को स्वीकार करना होगा।
भारतीय घरों में बच्चे के जन्म से ही उसका नाता परिवार के सदस्यों के साथ-साथ हिंदी फिल्मी संगीत से भी जुड़ जाता है। लोरी, भजन, तीज-त्यौहार गाने, रोमांटिक और दर्द भरे गीतों से हमारे जीवन को संगीतमय करने वाले फिल्मी दुनिया से जुड़े सभी का आभार....।
स्पष्ट है कि विधर्मी सदैव हिंदू प्रतीकों के प्रति अपनी घृणा का प्रदर्शन करेंगे ही किंतु उन्हें रोकने के लिए बनाई संस्थाएं क्या कर रही है?फ़िल्म आदिपुरुष में दिखाए गए हिंदू विरोधी प्रलाप हिंदी सिनेमा में नया नहीं है किंतु ऐसे संक्रमण फैलाने वाले वैचारिक कीड़ों को रोकने के लिए बनाई गई संस्था फ़िल्म सेंसर बोर्ड आखिर कर क्या रही है? फ़िल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी क्या ये कह सकते हैं कि उन्हें कुबेर के पुष्पक विमान और चमगादड़ में कोई अंतर नहीं लगता?
वीएस नेशन मीडिया के अंतर्गत वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र खन्ना ने पानेरी वसई गौरव अवार्ड 2023 का भव्य आयोजन दूसरी बार मुंबई के नजदीक वसई पश्चिम के खूबसूरत बैंक्वेट हॉल ड्रीम्स एरेना में किया। इस अवॉर्ड समारोह में बॉलीवुड के प्रसिद्ध गीतकार सुधाकर शर्मा (चुनरिया फेम), लेखक निर्देशक अभिनेता अश्विन कौशल, रैपर हितेश्वर, अभिनेता टीटू वर्मा, डांसर शिरीन फरीद, फैशन फिटनेस आइकन जैनब लहरी,अभिनेता संजीत धुरी सहित कई बॉलीवुड हस्तियों ने शिरकत की।
यह फिल्म मात्र नहीं, एक सोच है। एक ऐसी सोच जो हमें अपनी आने वाली पीढ़ी के प्रति जिम्मेदारी का भाव जगाने का प्रयास करती है। जाहिर सी बात है कि, तथाकथित सेक्युलर विरोध करेंगे ही। फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ इन दिनों चर्चा में बनी हुई है। इस फिल्म की…
समाज का एक वर्ग, फिल्म 'द केरल स्टोरी' का अंधाधुंध विरोध कर रहा है। तमिलमाडु में जहां सत्तारुढ़ दल द्रमुक के दवाब में प्रादेशिक सिनेमाघरों ने इस फिल्म का बहिष्कार किया, तो प.बंगाल में ममता सरकार द्वारा इसपर प्रतिबंध लगाने के बाद फिल्म देख रहे दर्शकों को सिनेमाघरों से पुलिस…
मुंबई का बच्चा कहलाता है इंदौर। मुंबई स्थित ग्लैमर वर्ल्ड में इंदौर शहर के भी कुछ सितारों ने अपनी जगमगाहट दिखाई है। इनमें लता मंगेशकर, अमीर खान, सलमान खान जैसे बड़े नाम शामिल हैं। इस आलेख में इंदौर में जन्मे प्रमुख कलाकारों के साथ-साथ उन्हें भी शामिल किया गया है,…
भारतीय फिल्मों के पितामह दादासाहब फालके भारतीय संस्कृति धर्म, परम्परा के संवाहक थे। उनकी पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। उन्होंने भारत को सिनेमा के सशक्त माध्यम का परिचय कराया। उस समय उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि, आगे चलकर बॉलीवुड फिल्में हमारी संस्कृति पर…