उमेश उपाध्याय एक प्रखर पत्रकार थे। एक रिपोर्टर से सम्पादक तक की अविस्मरणीय यात्रा रही उनकी। उन्हें प्रिंट, टेलीविजन, रेडियो व डिजिटल पन्त्रकारिता में गहरी समझ के लिए जाना जाता था। उन्होंने समाचारों के नैतिक प्रसार का समर्थन किया और पत्रकारों की अगली पीढ़ी को मार्गदर्शन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उमेश उपाध्याय हमारे समय के अप्रतिम बुद्धिजीवी, प्रखर वक्ता और सच को बहुत कुशलता के साथ कहने वाले पत्रकार थे। उनके निधन से हिंदी मीडिया का एक सितारा अस्त हो गया। वे वैश्विक मीडिया के भारत विरोधी चेहरे को उजागर करने वाले साहसी पत्रकारों में थे। अनुभवी पत्रकार व संचारक के रूप में उमेश उपाध्याय ने मीडिया की हर विधा में काम किया। टीवी पत्रकारिता से प्रारम्भ कर वे ऑनलाइन माध्यमों और कॉरपोरेट कम्युनिकेशन के भी सिद्ध हस्ताक्षर बने। उन्होंने मैदानी संवाददाता से अनुभवी सम्पादक तक की यात्रा तय की। उमेश उपाध्याय ने ‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया’, ‘ऑल इंडिया रेडियो’, ‘डीडी न्यूज’, ‘नेटवर्क18’, ‘जनमत टीवी’ और ‘जी न्यूज’ सहित कई अन्य न्यूज नेटवर्क के साथ काम किया।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और फिल्म इंस्टीट्यूट आफ इंडिया, पुणे के छात्र रह चुके उमेश उपाध्याय का अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों और मीडिया के प्रति उनका जुनून उनके लेखों में स्पष्ट होता है। उन्होंने कई न्यूज व टॉक शो बनाए। उमेश उपाध्याय ने बदलते समय और तकनीक के साथ-साथ अपनी संचार कला को संवारा और नई धार दी। वे स्वतंत्र लेखक, स्वतंत्र मीडिया सलाहकार और विश्लेषक भी थे। उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड में मीडिया के अध्यक्ष और निदेशक के रूप में काम किया, इससे पहले वे नेटवर्क 18 में समाचार के अध्यक्ष थे। मीडिया की चमकीली दुनिया में वे भारतबोध के सजग प्रवक्ता और व्याख्याकार थे। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन से एक पूरी पीढ़ी को वह दिशा मिली जिससे ‘इंडिया के मीडिया’ में ‘भारत’ भी दिखने लगा। भारत में टीवी मीडिया की पहली पीढ़ी के पत्रकारों में उनका नाम है। ये टीवी के विकास के दिन थे।
भारत में टीवी मीडिया की जो पौध तैयार हुई है, उसमें कई ने उमेश उपाध्याय के मार्गदर्शन में टीवी पत्रकारिता का ककहरा सीखा है। उनके तैयार किए युवाओं में अलग तेज और तेवर दिखता है। आत्मसमर्पण के दौर में उन्होंने अपने विचारों पर गर्व करना और उस पर डटे रहना सिखाया। अपनी गहरी समझ, पेशे के प्रति ईमानदारी और समर्पण से उन्होंने खुद को शीर्ष पर स्थापित किया। उनके साथ काम किए लोग जिस तरह उन्हें याद करते हैं उससे लगता है कि सम्पादक से ज्यादा मनुष्य थे। उन्होंने खुद को कॉरपोरेट का पुरजा नहीं बनने दिया और मानवीय संवेदनाओं के साथ अपनी जिम्मेदारियों और सरोकारों का विस्तार किया। उनके निधन पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक प्रमुख हस्तियों ने संवेदना व्यक्त की। प्रधानमंत्री ने ‘एक्स’ पर लिखा-‘डिजिटल मीडिया से लेकर टेलीविजन के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान देने वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक उमेश उपाध्याय जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनका जाना पत्रकारिता जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।’
उमेश उपाध्याय पढ़ने-लिखने वाले पत्रकार थे। विदेशी मीडिया पर उनकी बहुत पैनी नजर होती थी। सुबह ही वे दुनिया के प्रमुख अखबारों को ऑनलाईन देखते और उसपर चर्चा करते। नई किताबों, फिल्मों और नई तकनीक में उनकी बहुत रूचि थे। वे वास्तव में जीनियस थे। उन दिनों की बात है जब एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) आया ही था। उन्होंने मुझसे इसके बारे में पूछा। मैंने कहा सर मैंने सुना है पर बहुत जानता नहीं। उन्होंने अपने घर पर मेरी पूरी घंटे भर की क्लास ली और अपने लैपटाप पर एआई के कई प्रयोग समझाए। मेरी उनकी आयु में चौदह साल का अंतर था। किंतु नए ज्ञान को प्राप्त करने में वे बहुत आगे थे। इसके साथ ही उनका सबसे बड़ा गुण यह था कि वे किसी को यह अहसास नहीं होने देते कि वह उनकी तुलना में कमतर है। मैं जब भी उनके दिल्ली स्थित आवास पर गया वे हमेशा तीसरे माले से सीढ़ियों से उतरकर मुझे नीचे तक छोड़ने आते। मैं कहता सर इतनी सीढ़ियां क्यों चढ़ना, क्यों उतरना। अपने भुवनमोहिनी मुस्कान से कहते मेरी आदत है। सेहत भी ठीक रहती है। घुटने के आपरेशन के बाद भी बहुत जल्दी वे चलने लगे।
उनके साथ होना हमेशा उत्सव ही था। स्वागतप्रिय और आत्मीय अभिभावक की तरह वे मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गए थे। उनके जाने से दिल्ली फिर मेरे लिए पराई हो गई है। मुझे लगता था वे हैं तो ताकत है। उनसे कुछ भी कह सकते थे, सुना सकते थे। अब दिल की बातें दिल्ली में कौन सुनेगा। उनका का कवरेज एरिया बहुत व्यापक था। वे दिल्ली के शिखर पुरूषों से लेकर नवोदित पत्रकारों और सामाजिक क्षेत्र के लोगों से संवाद रखते थे। कॉरपोरेट घरानों के बड़े पदों पर होकर भी उनमें ‘एक देशी आदमी’ बसता था। अपनों की इस दुनिया में ही वे खुद को सहज पाते थे। कॉरपोरेट दुनिया में रहते हुए भी उन्हें अकादमिक दुनिया से बड़ा प्यार था। देश के श्रेष्ठ मीडिया संस्थानों से उनका रिश्ता और वहां उनकी सतत आवाजाही थी। वे चाहते थे कि भारत में भी कोलम्बिया की तरह मीडिया शिक्षा का कोई वैश्विक संस्थान खड़ा हो। माखनलाल
चतुर्वेदी राष्ट्रीय जनसंचार एवं पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल की प्रबंधन समिति और कार्यकारी परिषद, राष्ट्रीय जनसंचार एवं पत्रकारिता संस्थान, अहमदाबाद की सलाहकार परिषद, आईआईएमसी सोसाइटी, भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली की कार्यकारी परिषद और भारतीय राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय सोसाइटी (एनओएस) के कार्यकारी बोर्ड के वे सदस्य रहे। वे जिन भी अकादमिक संस्थाओं में रहे वहां उन्होंने सक्रिय सहभाग किया। आमतौर पर बोर्डों के सदस्य सजावटी भूमिका में होते हैं। किंतु उमेश उपाध्याय अपनी सक्रियता और समझ से सभी संस्थानों को अपने अनुभवों का लाभ देते रहे।
हाल में आई उनकी किताब ‘वेस्टर्न मीडिया नरेटिव्स ऑन इंडिया फ्रॉम गांधी टू मोदी’ उनके विलक्षण अध्यवसायी और शोधकर्ता होने का प्रमाण है। इस किताब में व्यक्त विचार हिंदुस्तान को देखने की विदेशी मीडिया की पाखंडपूर्ण सोच को उजागर करते हैं। कैसे भारत पश्चिमी मीडिया के निशाने पर है, इसे उन्होंने तथ्यों के साथ उजागर किया। महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी से लेकर वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भी पश्चिमी मीडिया ने नहीं छोड़ा। पश्चिमी मीडिया का मोदी फोबिया अंतहीन है। वह लगातार भारत के विरुद्ध नकारात्मक एजेंडा चलाता रहता है। दरअसल पश्चिम की यह लॉबी अभी भी भारत की आर्थिक प्रगति को स्वीकार नहीं कर पा रही है। इसलिए हर स्तर पर देश को अस्थिर करने के प्रयास किए जाते हैं। इस नरेटिव की जंग में यह किताब एक मील का पत्थर है। उन्होंने पश्चिमी मीडिया के भारतविरोधी रवैये के विषय की गम्भीरता को देखते हुए अनेक विश्वविद्यालयों और संस्थानों में जाकर व्याख्यान दिए, नई पीढ़ी और बुद्धिजीवियों को इस संकट से परिचित कराया। अपनी किताब के बहाने उन्होंने एक अभियान सरीखा छेड़ दिया था। ऐसे समय में जब देश वैश्विक स्तर पर नरेटिव की जंग लड़ रहा है, वैश्विक मीडिया के भारत विरोधी पाखंड को उजागर करने और उसकी समझ रखने वाले पत्रकार का निधन बहुत पीड़ादायक है।
-प्रो. संजय द्विवेदी