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संगठित, जाग्रत हिंदू समाज बनाएगा भारत को विश्वगुरु – विनायकराव देशपांडे

संगठित, जाग्रत हिंदू समाज बनाएगा भारत को विश्वगुरु – विनायकराव देशपांडे

by अमोल पेडणेकर
in नवम्बर २०२४, विशेष, सामाजिक
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भारत हिंदू राष्ट्र है और इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। इसलिए वर्तमान व भविष्य की चुनौतियों से निपटने हेतु हिंदू समाज को जागरूक, संगठित और बलवान बनाना आवश्यक है, ऐसा कहना है विहिप के केंद्रीय संगठन महामंत्री विनायकराव देशपांडे जी का। विश्व हिंदू परिषद के षष्ठी पूर्ति वर्ष के उपलक्ष्य में प्रस्तुत है उनके साक्षात्कार का सम्पादित अंश

विश्व हिंदू परिषद के षष्ठी पूर्ति वर्ष में संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति कहां तक हुई है?

रा. स्व. संघ के प. पू. सरसंघचालक श्री गुरुजी की प्रेरणा से अलग-अलग सम्प्रदाय के साधु संतों ने एकत्रित आकर हिंदू समाज को जागरूक एवं संगठित करने के उद्देश्य से विहिप की स्थापना की थी। उस समय पू. श्री गुरुजी और सारे संस्थापक संतों ने जो सपना देखा था, वह कुछ आंशिक रूप से अब तक यशस्वी हुआ है, ऐसी हमारी धारणा है। हालांकि अभी हमें बहुत काम करना है। एक ओर हमारे मन में आनंद है कि राम मंदिर के संदर्भ में विहिप ने जो योजना बनाई थी, उसकी पूर्ति हो गई। दूसरी ओर जाति भेदभाव के विरोध में सारा हिंदू समाज संगठित हो और विशाल हिंदू समाज का स्वरुप दुनिया में साकार हो जाए, यह लक्ष्य अब तक साध्य नहीं हो पाया है। इसकी वेदना भी हमारे मन में है। कुछ समाधान के विषय है, कुछ वेदना के विषय है। वैसे भविष्य की प्रगति के लिए असमाधान के विषय भी आवश्यक होते हैं।

 विहिप के 60 वर्षों की यात्रा का सिंहावलोकन आप कैसे करते हैं?

विहिप के षष्ठी पूर्ति के उपलक्ष्य में देश भर में विविधकार्यक्रम सम्पन्न हो रहे हैं। उन कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं ने भी अपनी भावना व्यक्त की है कि 60 वर्षों में समाजहित में अपना कार्य तो बड़ा है। मनुष्य जीवन के सभी क्षेत्रों में हम पहुंच गए हैं, लेकिन हमें और भी कुछ करना बाकी है। जब विहिप की स्थापना हुई थी, उस समय समरसता यह शब्द नहीं था। सामाजिक समता निर्माण करना, हिंदू समाज का संगठन करना,  धर्मांतरण रोकना, यह हमारा मुख्य उद्देश्य है। समाज में जाकर प्रत्यक्ष रुप में कार्य करने से ही उद्देश्य की पूर्ति सम्भव है। इसके लिए सभी संतो का प्रवास होना चाहिए और सेवाकार्यों का विस्तार होना चाहिए। विहिप के जो सेवा कार्य चलते हैं वह मात्र दया अथवा सहानुभूति के लिए नहीं होते बल्कि कर्तव्य भाव से बंधुभाव बढ़ाने के लिए होते हैं। जैसे एक भाई अपने छोटे भाई के लिए काम करता है, बहन के लिए काम करता है, उसके उत्थान के लिए परिश्रम करता है। वह उसका कर्तव्य है। यदि हम अपनी वृद्ध माता-पिता की सेवा करते हैं तो उपकार और दया के लिए नहीं करते, यह हमारा कर्तव्य होता है। विहिप का मानना है कि देश एक परिवार जैसा है, उस परिवार का कोई एक घटक यदि आर्थिक दृष्टि से या स्वास्थ के दृष्टि से दुर्बल है, तो बंधुभाव के नाते यह हमारा दायित्व है कि उसे भी सक्षम बनाया जाए। इतने बड़े देश में समस्या तो सभी जगह है, लेकिन जहां धर्मांतरण की चुनौती अधिक है, उन बस्तियों और क्षेत्र को विहिप सेवाकार्य के लिए प्राथमिकता देता है।

 विहिप के सेवाकार्यों का कितना प्रभाव समाज में दिखाई दे रहा है?

वर्तमान समय में पूरे भारत में विहिप के लगभग 5000 सेवा प्रकल्प चल रहे हैं। महाराष्ट्र की बात करें तो उसमें पहला सेवा प्रकल्प ठाणे जिला (अब पालघर) अंतर्गत तलासरी में शुरू हुआ। वहां लगभग 110 छात्रावास है, 33 वृध्दाश्रम चलते हैं। लगभग 500 से ज्यादा विद्यालय चलते हैं। 1600 बस्ती के सेवा सेवा केंद्र चलते हैं। 50 साप्ताहिक आरोग्य केंद्र चलते हैं। संस्कार केंद्र, लघु उद्योग विकास केंद्र है। अनुसूचित जनजातियों और  वनवासी जनजाति क्षेत्र में चलने वाले इन सेवाकार्यों के कारण वनवासी क्षेत्र में बहुत बड़ा परिवर्तन आ रहा है। इस पर मैं आपको 2 उदाहरण देना चाहूंगा। जैसे राजस्थान के बांसवाड़ा में विहिप का सेवा का कार्य चल रहा है। आज बांसवाड़ा में 76 प्रतिशत जनसंख्या जनजाति समाज की है। वहां हमारे 200 से ज्यादा प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय चलते हैं और 18 छात्रावास चलते हैं। 40 से ज्यादा पूर्णकालीन कार्यकर्ता है।  शिक्षा से वहां पर जबरदस्त परिणाम आया हुआ है, इसके साथ ही धार्मिक एवं हिंदुत्व के संदर्भ में सामाजिक जागरण भी हुआ है। इसके कारण यहां 600 गांवों में गणेशोत्सव मनाया जाता है। 500 से ज्यादा गांव में भजन मंडली हैं। यहां साधु संतों का निरंतर प्रवास होता है। बांसवाड़ा में 2007 के बाद एक भी हिंदू ईसाई नहीं बना बल्कि 52 हजार ईसाई हिंदू धर्म में वापस आ गए। विहिप के सेवाकार्यों के माध्यम से इस प्रकार का परिणाम सामने आया है। ऐसे ही पूर्वोत्तर के असम हाफलोंग में हमारा सेवा कार्य चलता है। 1972 में वहां पहले मेडिकल सेंटर शुरू हुआ। फिर वहां छात्र व छात्राओं के लिए छात्रावास और विद्यालय की स्थापना हुई। आज वहां 4 विद्यालय चलते हैं और 5 छात्रावास चलते हैं। वहां बहुत बड़ी संख्या में अपने पूर्व छात्र है।  वहां 95 प्रतिशत से अधिक जनजाति समाज के लोग है। उसमें से दो जनजाति मुख्य है, उसमें से 25 से 30 प्रतिशत जनसंख्या नागा जनजाति की है और 75 प्रतिशत से अधिक दिमासा जनजाति के लोग है, बाकी 10 % अन्य है। देखिए, मणिपुर और नागालैंड में 95 प्रतिशत नागा ईसाई बन गए, लेकिन दिमासा क्षेत्र में 80% से अधिक नागा अभी भी हिंदू हैं। केवल 20 प्रतिशत नागा ईसाई बने जो बहुत पहले धर्मांतरित हुए थे। वह अब 25-30 वर्षों में वहां पर कोई नागा ईसाई नहीं बना है। दिमासा जनजाति में 97 प्रतिशत आज भी हिंदू है। वहां का पहला मेट्रिक, पहला ग्रेजुएट विहिप का पूर्व छात्र है। वहां के धार्मिक, सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण एवं संवर्धन करना और सामाजिक समरसता, जागरूकता लाना तथा धर्मांतरण पर रोक लगे, यही हमारे सेवाकार्यों का मूल उद्देश्य है।

विहिप पर अनेक प्रकार के आरोप लगते रहे हैं, आप इसके संदर्भ में क्या कहना चाहेंगे?

विहिप पर अलग-अलग प्रकार के आरोप उसकी स्थापना काल से लगते आए हैं। जैसे विहिप मनुवादी है, सवर्णों का संगठन है, साम्प्रदायिक है और हिंदू-मुसलमानों में धार्मिक टकराव निर्माण करने का कार्य करती है। भारत में गरीबी, बेरोजगारी जैसे अनेक समस्याओं के होते हुए भी आपने राम मंदिर आंदोलन क्यों किया? इस प्रकार के आरोप पहले भी लगे हैं, आज भी लग रहे हैं और आगे भी लगते रहेंगे। बावजूद इसके विहिप का काम तेजी से आगे बढ़ रहा है और देश-विदेश में हिंदुत्व का जागरण हो रहा है। देश की बेरोजगारी-गरीबी और राम मंदिर आंदोलन पर हमारा उत्तर यही होता है कि धर्म और देश के संदर्भ में जब भक्ति निर्माण होती है तब संसाधन ना के बराबर होने पर भी समाज और देश का कितना विकास हो सकता है, इसका साक्षात उदाहरण इसराइल है। इसलिए पहले लोगों में देशभक्ति का भाव और धर्म का अभिमान जागृत होना चाहिए। जब समाज जागरूक हो जाएगा तब अपने आप ही हमारे सामने उपस्थित सारी समस्याएं हल हो जाएंगी। यह बात समझ में तो सभी को आती है, लेकिन जो सोने का नाटक कर रहे हैं, ऐसे लोगों को जगाना बड़ा ही दुष्कर कार्य है। विहिप पर सवर्णो के संगठन का आरोप बिल्कुल गलत है क्योंकि संगठन में हम कभी एक-दूसरे की जाति पूछते तक नहीं है। विहिप में कोई चाहे सवर्ण, पिछड़े, जनजाति या अल्पसंख्यक हो, सारा हिंदू समाज एक है, ऐसी हमारी भावना होती है। ‘जात-पात की करो विदाई, हिंदू-हिंदू भाई-भाई’ यह हमारा नारा है। हालांकि वर्तमान में मीडिया के द्वारा जो झूठे नैरेटिव चलाए जाते हैं, उसका उत्तर देने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार की दृष्टि से हमारे कार्य की गति बढ़ाने की आवश्यकता है। विमर्श की दृष्टि से पिछले एक वर्ष से हमारे संगठन के अंतर्गत चर्चा कर रहे हैं। जनजाति महिला और सिख समाज के संदर्भ में कुछ लोग जान बुझकर गलत धारणाएं निर्माण करना चाहते हैं। ऐसे में सोशल मीडिया के माध्यम से हमें प्रभावी रूप से अपना कार्य करना चाहिए। उसकी एक योजना भी हमने बनाई है, सम्पूर्ण भारत वर्ष में एक टीम इसको रोकने के लिए प्रयास कर रही है। हमें विश्वास है कि इस वर्ष एक अच्छी व्यवस्था हम निर्माण करेंगे। केवल आरोपों का उत्तर देना यही हमारा काम नहीं रहेगा बल्कि सकारात्मक विमर्श खड़ा करना और उसे स्थापित करने का प्रयास भी किया जाएगा।

 भारत हिंदू राष्ट्र हैं और हिंदू राष्ट्र के संदर्भ में विश्व हिंदू परिषद का क्या दृष्टिकोण है?

भारत सनातन काल से हिंदू राष्ट्र है, यह त्रिकालदर्शी सत्य है। पहले भी था, आज भी है और कल भी रहेगा। केवल लोगों को उसका विस्मरण हो गया है। स्वतंत्रता के पूर्व जब किसी व्यक्ति ने यह प्रश्न किया कि ‘कौन पागल कहता है कि भारत यह हिंदू राष्ट्र है’? तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने इसका उत्तर देते हुए कहा कि ‘मैं कहता हूं कि भारत हिंदू राष्ट्र है’। इतने विरोधी वायुमंडल में भी वह अत्यंत आत्मविश्वास से हिंदू राष्ट्र की बात रखते थे। आखिर राष्ट्र क्या है? तो राष्ट्र यह सांस्कृतिक अवधारणा है। समाज किसके आधार पर होता है, जब संस्कृति समान होती है, तब सुख-दुख के बिंदु भी समान होते हैं। सांस्कृतिक एकता, संस्कृत अभिसरण यह राष्ट्र के लिए अत्यंत मूलभूत आवश्यक बातें होती है। अपने यहां धर्म, संस्कृति और आचार-विचार की दृष्टि से आधुनिक राष्ट्र की जो व्याख्या की गई है, उसमें जितने भी मापदंड लगाए गए हैं, वह सारे मापदंडों को देखते हुए कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति इस देश को हिंदू राष्ट्र ही कहेगा। इसलिए हिंदू राष्ट्र के सम्बंध में हमारे मन में कोई भी दुविधा नहीं है। यह बात हमें अत्यंत दमदार और आत्मविश्वास के साथ समाज के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। कहीं भी बैकफुट पर आकर, रक्षात्मक भूमिका में जाकर हिंदुत्व की भूमिका प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है। आज देश में बड़े पैमाने पर समाज में हिंदू राष्ट्र को मान्यता मिली है। केवल भारत सरकार द्वारा हिंदू राष्ट्र घोषित करना शेष है और राष्ट्रहित में यह तत्काल किया जाना चाहिए। पिछले 5-6 वर्ष से इस विषय की चर्चा बड़ी मात्रा में समाज में हो रही है। यह चर्चा क्यों शुरू हुई, क्योंकि हिंदुत्व का प्रभाव समाज में बढ़ रहा है। हिंदुत्व का विचार जितना बढ़ेगा वैसे-वैसे सभी लोग कहेंगे कि भारत हिंदू राष्ट्र है। समाज में छोटी-बड़ी बातें और हार-जीत तो होती रहती है, लेकिन अंतिम विजय हिंदुत्व (धर्म) की ही होगी, यह निश्चित है।

 विश्व हिंदू परिषद का कार्य हिंदुत्व और समाज जागरण से जुड़ा हुआ है, जिसका भाजपा को राजनीतिक लाभ मिलता है, लेकिन क्या भाजपा से आपको भी लाभ मिला है? 

किसी राजनीतिक पार्टी को हमारे लिए कुछ करना चाहिए, ऐसी अपेक्षा हम राजनीतिक पार्टी से कभी रखते नहीं है। राम जन्मभूमि आंदोलन के कारण भारत में राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक परिवर्तन आया है। स्वयं लालकृष्ण आडवाणी जब उप प्रधान मंत्री थे, उस दौरान जनसंघ को 50 वर्ष पूर्ण हुए थे, तब उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि आज जो भाजपा की सक्षम स्थिति आई है, उसका सबसे बड़ा श्रेय राम जन्मभूमि आंदोलन को जाता है। यह सत्य है, भाजपा के विचारों का मूलाधार राष्ट्रवाद है। राजनीतिक पार्टी होने के कारण वह हिंदुत्व नहीं कहेंगे, लेकिन विचारधारा भारतीय संस्कृति ही है। हिंदुत्व का जागरण करने में संघ विचार परिवार का बहुत बड़ा योगदान है। विहिप के चार प्रकल्प को मान्यता मिलनी चाहिए। विहिप को आर्थिक सहयोग मिलना चाहिए, यह हमारी भाजपा से अपेक्षा नहीं है। हमारी अपेक्षा है कि जहां-जहां भाजपा शासित राज्य सरकार है, वहां धर्मांतरण पर कानूनी तौर पर प्रतिबंध लगना चाहिए। 100 प्रतिशत गो हत्या बंदी का कानून लागू होना चाहिए। अभी जैसे तिरुपति का विषय चल रहा है, तो विहिप पहले से ही कह रहा है कि मंदिर की व्यवस्था सरकार के नियंत्रण में नहीं होनी चाहिए। मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने चाहिए। देवस्थान बोर्ड बनना चाहिए। जिसमें राजनीतिक पार्टी का कोई भी व्यक्ति नहीं होना चाहिए। धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक क्षेत्रों के लोग रहने चाहिए। यह कार्य भाजपा करें, ऐसी हम अपेक्षा करते हैं। कुछ प्रमाण में यह कार्य हो भी रहा है, जैसे आज अनेक राज्यों में सम्पूर्ण गोवंश हत्याबंदी का कानून बन गया है। अनेक राज्यों में धर्मांतरण पर कानूनी प्रतिबंध आ गया है। कुछ राज्यों में अंतर होता है, जैसे उत्तर प्रदेश में प्रभावी तौर पर इन कानूनों को अमल में लाया जा रहा है। काम तो सब कर रहे हैं, कोई ज्यादा आगे गया है तो कोई थोड़ा सा आगे बढ़ा है, परंतु यह बात सही है कि सत्ता आने के बाद भी सरकार को अपनी मांग बतानी पड़ती है। पहले भी हम यही करते थे और आज भी हम यही कर रहे हैं, आगे भी हमें यही करना पड़ेगा। कुछ राजनीतिक मजबूरी होगी? क्या होगी हमें मालूम नहीं है, क्योंकि हमें राजनीति का अनुभव नहीं है, परंतु वह आवश्यक है। भाजपा के लोग भी हमें कहते हैं कि आप हमेशा हमें याद दिलाते रहिए, अपना दबाव बनाते रहिए ताकि वह सारा विषय हमारे द्वारा सम्पन्न हो सके। गो माता को राज्य माता का दर्जा देने के लिए महाराष्ट्र राज्य सरकार का मैं विशेष तौर पर अभिनंदन करता हूं। देश के सभी राज्य सरकारों को इस प्रकार से सकारात्मक कदम उठाने चाहिए। आज गोवंश के संरक्षण व संर्वधन हेतु एक अलग मंत्रालय बनाने की आवश्यकता है और देश में जैविक खेती के प्रचार-प्रसार हेतु कृषि मंत्रालय के अंतर्गत सभी राज्य सरकारों को विशेष प्रयास करना चाहिए।

 लम्बे संघर्ष के बाद राम मंदिर का पुन:निर्माण हो पाया। अब काशी विश्वनाथ और मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति का मार्ग कैसे प्रशस्त होगा?

राम जन्मभूमि आंदोलन के समय मा. मोरोपंत पिंगले जी विहिप के संघ की योजना से पालक मंत्री थे। बैठक में लोग उनसे पूछते थे कि अयोध्या के साथ काशी-मथुरा का विषय भी आंदोलन में होना चाहिए। तो मुझे याद है मोरोपंत जी बैठक में कहते थे कि एक बार अयोध्या में राम मंदिर बन गया तो फिर मथुरा-काशी के लिए आंदोलन करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। राम मंदिर बनने के बाद जल्द ही मथुरा-काशी का विषय हल हो जाएगा और आज हम यह अनुभव कर रहे हैं क्योंकि वर्तमान में समाज में उस प्रकार का परिवर्तन हम महसूस कर रहे हैं। देश में जागरण हो गया है और न्यायालय में मामला चल रहा है। मुझे याद है 25 साल पहले काशी के एक वकील को मा. अशोक सिंघल जी ने कहा था कि काशी-मथुरा के संदर्भ में आप न्यायालय में याचिका दायर करके रखो और उस वकील ने वह काम किया है। वह केस भी अभी चल ही रहा है। आज वायुमंडल बन गया है, इसलिए मुझे लगता है कि काशी-मथुरा का हल बिना संघर्ष किए ही हो जाएगा।

 हमारे देश में जगह-जगह जिहादी भीड़ ‘सर तन से जुदा’ का नारा लगा रही है और बात-बात पर हिंसा करने के लिए आतुर है, इनका मजहबी उन्माद कैसे रोका जा सकता है?

आज देश भर में मुसलमानों की जिहादी मानसिकता दिखाई दे रही है क्योंकि उनके मजहब में ही इस प्रकार की सारी बातें सिखाई जाती है। कुरान में ही यह बातें लिखी है कि जो अल्लाह को नहीं मानता वह काफीर है और काफीर को जिंदा रहने का अधिकार नहीं है। कुरान में एक नहीं, दो नहीं, ऐसी 24 आयते है जो गैरमुस्लिमों के प्रति वैरभाव सिखाती है। यदि जिहादी विचारधारा को रोकना है तो कुरान से इन अमानवीय आयतों को हटाना पड़ेगा और यह काम उनके ही समाज सुधारकों को करना चाहिए तभी देश में शांति स्थापित हो सकती है। हिंदू समाज को इस्लाम की इस विषाक्त विचारधारा के बारे में पता नहीं है इसलिए वे हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई के झांसे में आ जाते हैं। जो लोग कहते हैं ना ‘सर्वधर्म समभाव’, ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ और सभी धर्म, मत, मजहब प्यार और शांति का ही उपदेश करते हैं, वास्तविकता में उन्होंने कुरान और बाइबिल कभी पढ़ा नहीं हैं। जो कुरान और बाइबल पड़ेंगे, वह फिर कभी नहीं कहेंगे कि सारे धर्म प्यार और शांति का संदेश देते हैं और सभी धर्म-मजहब समान है। इस्लाम और हिंदू धर्म के तत्वज्ञान में जमीन-आसमान का अंतर है। हिंदू समाज को इस संदर्भ में जागृत करना अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए यदि हिंदू समाज जागृत और संगठित हो जाएगा तो देश में व्यापक परिवर्तन आएगा। जो दुबला-पतला व्यक्ति होता है, उसका सभी मजाक उड़ाते हैं, लेकिन जो पहलवान होता है, उसका मजाक उड़ाने का कोई साहस नहीं करता।

 भारत और हिंदू समाज की प्रतिष्ठा विश्व भर में बढ़ रही है। इसमें  विहिप के 60 वर्षों के वैश्विक कार्य का योगदान किस प्रकार से है? 

विहिप की स्थापना ही यह सोचकर हुई थी कि विदेश में जो सारे हिंदू रहते हैं, उनसे ‘हिंदू’ नाते से सम्पर्क रखना चाहिए और उन पर स्व-धर्म व संस्कृति का संस्कार नियमित रूप से होना चाहिए। कई बार कुछ विदेशी (एनआरआई) हिंदू, वे श्रीगुरुजी से मिलने के लिए आते थे। अपने भी कुछ कार्यकर्ता, संघ के स्वयंसेवक जो विदेश में गए, वहां से पत्र लिखते थे। आज लगभग 70 से ज्यादा देशों में विहिप का सम्पर्क है और 33 देशों में विहिप की समितियां हैं। आज विदेश में जाएंगे तो संघ का भी काम काफी बड़े पैमाने पर है। अनेक साधु-संत वहां जाते हैं। इसके अलावा विदेशों में इस्कॉन, गायत्री परिवार, आर्ट ऑफ लिविंग, सद्गुरु जग्गी वासुदेव, अमृतानंदमयी मां आदि का काम फैला हुआ है।

वैश्विक स्तर पर पहला काम विहिप ने प्रारम्भ किया कि विराट हिंदू सम्मेलन होना चाहिए। हिंदू के रूप में हम सभी को एकत्रित आना चाहिए। जब पहला सम्मेलन 1966 में प्रयाग में हुआ था, तब लगभग 12 देशों के लोग आए थे। दूसरा सम्मेलन हुआ तो 25 देशों के लोग आए थे। फिर विचार हुआ कि विदेशों में सम्मेलन होने चाहिए। अमेरिका में विहिप के 10 सम्मेलन हुए। वर्ल्ड विजन टूथाउजेंड नाम से विहिप का सम्मेलन वाशिंगटन डीसी में हुआ था, उस सम्मेलन में 40 देशों के 30,000 से अधिक हिंदू आए थे। यह एक बहुत बड़ा कार्यक्रम हुआ था। उसके बाद इंग्लैंड में मिल्टन कीन्स नाम के नगर में दो दिन का एक बहुत बड़ा हिंदू सम्मेलन हुआ। उसमें दुनिया के 50 से ज्यादा देशों के 70,000 हिंदू एकत्रित आए थे। भारत के बाहर हिंदू समाज का सबसे बड़ा कार्यक्रम मिल्टन कीन्स में विहिप के बैनर तले हुआ। यूरोप में पांच, अफ्रीका में तीन, ऑस्ट्रेलिया में चार, न्यूजीलैंड में तीन सम्मेलन हुए। अलग-अलग भाषा, प्रांत और सम्प्रदायों के लोग हिंदू के रूप में जब एकत्रित आते हैं तब उन पर धार्मिक संस्कार होते हैं, हिंदुत्व की भावना निर्माण होती है और सामाजिक जागरण भी होता है। यदि विदेश में किसी हिंदू पर कोई अन्याय हुआ तो विहिप वहां आवश्यक कर्यवाही करती है। जैसे अमेरिका में एक शराब की कम्पनी द्वारा विज्ञापन के लिए राधा-कृष्ण के चित्र का उपयोग किया गया था। विहिप ने इसके विरोध में आंदोलन किया। इंग्लैंड में इस्कॉन को उनके मंदिर से सम्बंधित कुछ समस्या आ रही थी तो विहिप ने उनका साथ दिया और लंदन के नगर निगम को अपना निर्णय बदलना पड़ा। इससे विदेशों में भी विहिप की साख बढ़ गई। इस सफलता में विहिप, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ, हमारे विविध पंथों के साधु-संतों ने विदेश में जो काम किया है, उन सभी का यह एकत्रित परिणाम है।

 जनसंख्या नियंत्रण कानून के विषय में आपकी क्या राय है?

विहिप समान नागरिक कानून और जनसंख्या नियंत्रण की मांग पहले से कर रही है। जब हम कहते हैं कि हमारा देश सेकुलर है तो सेकुलर देश में धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून कैसे होंगे? इसलिए समान नागरिक कानून होना चाहिए। जैसे अभी उत्तराखंड में भाजपा प्रयोग कर रही है, समान नागरिक कानून होने के कारण अपने आप एक ही शादी करना वैध होगा। तलाक, विवाह विच्छेद आदि पर थोड़ा सा नियंत्रण होगा। जनसंख्या वृद्धि के आंकड़े देखें तो पता चलेगा कि कैसे जनसंख्या प्रतिशत बढ़े हैं। गत 75 वर्षों में हिंदू समाज की जनसंख्या केवल साढ़े तीन गुना बढ़ी है और मुसलमान-ईसाइयों की जनसंख्या सात गुना बढ़ी है। यदि इसी तेज गति से जनसंख्या बढ़ती रही तो अगले 25 वर्षों के बाद क्या होगा? 2047 में हमारी स्वतंत्रता को 100 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे और 2047 में ही पीएफआई ने भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है। इसे हमें गम्भीरता से लेना होगा और दूरगामी नीति के अंतर्गत जनसंख्या नियंत्रण हेतु उपाय योजना बनानी होगी ताकि जनसांख्यिकीय परिवर्तन न हो। आज कहा जाता है कि मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 14.5 प्रथिशत हैं, लेकिन वे लगभग 17 प्रतिशत के आसपास हैं। ऐसा ही चला तो वे 30 प्रतिशत से अधिक हो जाएंगे, जो कि उनका लक्ष्य है। मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि के तीन कारण हैं, पहला है धर्मांतरण। हर वर्ष 3 से 3.5 लाख हिंदुओं का धर्मांतरण होता है, अत: धर्मांतरण बंद होना चाहिए और परावर्तन की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। सरकार को कानून बनाना चाहिए और सारे समाज को मिलकर परावर्तन के लिए प्रयत्न करना चाहिए। विहिप उसके लिए जोरदार प्रयत्न कर रही है और हमें उसके लिए कुछ पैमाने पर ही सही, लेकिन सकारात्मक प्रतिसाद भी मिल रहा है। दूसरा कारण है घुसपैठ। 4 करोड़ से अधिक बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठिए भारत में है और अब रोहिंग्या भी गत 5 वर्षों में लाखों की संख्या में आ गए हैं। घुसपैठियों को रोकने और देश से बाहर करने के लिए जनजागरण के साथ-साथ केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के द्वारा कड़े कानून बनाने चाहिए और पुलिस व प्रशासन को भी सतर्क रहना चाहिए। तीसरा कारण है हिंदुओं की प्रजनन दर कम होना और मुसलमानों की प्रजनन दर अधिक होना है।

 क्या अखंड हिंदू राष्ट्र का निर्माण सम्भव है, इस पर आपके विचार क्या है?

यह प्रश्न लोग तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस से भी पूछते थे और पत्रकार भी पूछते थे। भारत के आसपास के जो छोटे देश हैं वे सारे भारत को बड़ा भाई मानते ही हैं। उनमें यह विश्वास कुछ पैमाने पर निर्माण हो रहा है कि भारत दादागिरी करने वाला बड़ा भाई नहीं है, वह तो छोटे भाई को सम्भालने वाला बड़ा भाई है। छोटे भाई की उसके सुख-दुख में हर प्रकार की सहायता करने वाला बड़ा भाई है। भारत जब आर्थिक दृष्टि से विकसित हो जाएगा, संगठित हो जाएगा और जागृत हो जाएगा, तब पड़ोसी देशों में रहने वाले भारत विरोधी तत्व थोड़ा शिथिल हो जाएंगे और जो भारत के लिए सकारात्मक विचारधारा रखने वाले लोग है, वह और अच्छे ढंग से भारत का साथ देंगे। राजनैतिक दृष्टिकोण से सारे देश समाप्त होकर भारत कब एक होगा, यह तो मैं कह नहीं सकता हूं, लेकिन सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक दृष्टि से वे देश अखंड भारत का हिस्सा बन सकते हैं। इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, बर्मा आदि देशों का समावेश हो सकता है। इसके साथ ही भ्रातृ भाव से प्रेरित होकर भारत के आसपास के जो छोटे देश हैं वो भी भारत की सभी प्रकार से मित्रता करने या अखंड भारत का अंग बनने के लिए आतुर हो जाएंगे। हालांकि मुसलमानों की जिहादी मानसिकता इसमें सबसे बड़ी बाधा है, उसे कैसे नियंत्रण में रखें इस पर भी थोड़ा चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है। मेरा ऐसा मानना है कि पाकिस्तान के कुछ वर्षों में टुकड़े हो जाएंगे। 5 वर्षों में होंगे, 10 वर्षों में होंगे, यह मैं नहीं बता सकता क्योंकि मैं भविष्यवक्ता नहीं हूं, परंतु पाकिस्तान की आज जो स्थिति है, उससे ऐसा लगता है कि कभी न कभी वह टूटेगा ही। फिर जितने टुकड़े होंगे, वे भारत से सहायता मांगेंगे। आज चीन हमसे आगे है, लेकिन उसकी यह स्थिति ऐसी ही बनी रहेगी, ऐसा आवश्यक नहीं। भारत बड़ा बनेगा और भारत दीर्घकाल तक बड़ा रहेगा। इसलिए भारत ही सभी की दृष्टि से एकमात्र आशा का किरण है। आज चीन, अमेरिका या अन्य कुछ देश जो भारत का विरोध करते हैं, उनको यही डर लगता है कि भारत यदि विश्वगुरु बनेगा तो फिर हमारा क्या होगा? इसलिए डीप स्टेट के माध्यम से भारत को कमजोर करने का षडयंत्र चल रहा हैं।

 ‘हिंदू बटेगा तो कटेगा’ यह सीधी बात हिंदुओं की समझ में क्यों नहीं आ रही है, हिंदुओं के मन तक यह बात पहुंचाने के लिए क्या करना होगा?

हिंदुओं के मन में भाव निर्माण नहीं हो रहा है तो यह हमारी कमी है। हम तो हिंदू समाज को जागृत करने के लिए ही निकले हैं। हमारा काम भी अच्छा है, बढ़ रहा है, लेकिन उतना प्रभावी नहीं है। अत: हिंदू समाज की मानसिकता जितने बड़े पैमाने पर बदलनी चाहिए, उतनी नहीं बदली है, यह तो मान्य करना ही होगा। यदि यह मानसिकता बदलनी है तो हमारी गति, हमारा काम और अधिक बढ़ना चाहिए। संघ का भी बढ़ना चाहिए, विहिप का भी काम बढ़ना चाहिए। संघ विचार परिवार के कारण भारत में और सारी दुनिया में भी अपना धर्म-संस्कृति के संदर्भ में कितना जागरण हुआ है। हम सभी विगत 10-15 वर्षों  में उसका अनुभव कर रहे हैं। आज अपना जितना काम है उसमें 30-40 प्रतिशत बढ़ोत्तरी होगी तो उसका प्रभाव भी बढ़ेगा।

हिंदू समाज की एक विशेषता है। वह हिंदी फिल्म के महानायक जैसा है। हिंदी फिल्मों के अंत में नायक और खलनायक का फाइट सीन होता है। खलनायक, नायक को इतना मारता है कि लगता है नायक मर गया, लेकिन अंत में नायक, खलनायक को मार देता है। लेकिन मार खाने के बाद ही नायक की प्रतिक्रिया होती थी। हिंदू समाज पर भी आक्रमण के बाद ही समाज का प्रतिक्रियात्मक जागरण होता है। लोकसभा चुनावों के बाद हिंदू समाज को ध्यान में आ गया कि मुसलमानों का तो एक गठ्ठा मतदान हो गया, पर हमने तो ऐसा किया नहीं। 3-4 प्रतिशत भी वोट यदि अधिक मिलता तो आज जैसी परिस्थिति है, उसका बिल्कुल उल्टा हो जाता। यह बात अब समाज को ध्यान में आ गया है, पर हमें निरंतर समाज को जागृत करने हेतु प्रयत्न करते रहना होगा।

 हिंदू पर्व-त्योहार और शोभा यात्रा के दौरान मुस्लिम समाज पथराव और दंगे-फसाद क्यों करते हैं?

यह हम सभी को गम्भीरता से सोचने का विषय है कि इस वर्ष विशेषत: गत तीन-चार माह के दौरान महाराष्ट्र और गुजरात में हिंदुओं के धार्मिक कार्यक्रमों में मुसलमानों ने एकतरफा सामाजिक आक्रमण, पथराव व हिंसा क्यों किया? लोकसभा चुनाव के समय कुछ राजनीतिक समर्थन मुस्लिम समाज को मिला, उनको यह ध्यान में आ गया कि हम यदि संगठित हो जाते हैं तो इस पद्धति का राजनीतिक परिवर्तन हो जाता है, इससे उनका मनोबल बढ़ा और उनको ऐसा लगने लगा कि हम कुछ करेंगे तो हिंदू समाज डर जाएगा और फिर हम जो कहेंगे वैसा होगा क्योंकि इतनी राजनैतिक पार्टियां भी हमारे पीछे हैं। लेकिन यह उनका भ्रम है, ऐसा नहीं होगा बल्कि हिंदू समाज अब और अधिक जागृत हो जाएगा। राज्य सरकारों को भी ध्यान में आ गया कि उन्होंने यदि तत्काल कार्यवाही नहीं की तो यह और अधिक परेशानी खड़ी करेंगे। इसलिए जिन चार-पांच राज्यों में तनावपूर्ण वातावरण बना, वहां की सरकार ने तुरंत कार्यवाही की और उसके अच्छे परिणाम सामने आए। ऐसे ही सख्त कार्यवाही यदि सरकार करेगी तो उपद्रवी लोगों का मनोबल गिरेगा और वे हतोत्साहित होंगे।

 अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद समाज में मंदिरों के प्रति एक विशेष चेतना जागृत हुई है। ऐसे में मंदिरों को समाजाभिमुख बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

मैंने पूर्व में कहा कि विहिप में मंदिर एवं अर्चक पुरोहित सम्पर्क नामक हमारा आयाम है। विहिप का मानना है किमंदिर सरकारी नियंत्रण में नहीं होने चाहिए। प्राचीन काल में मंदिर ही सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक सभी गतिविधियों के केंद्र थे। नृत्य, गायन, संगीत आदि कलाओं का विकास मंदिर में ही हुआ। पहले विवाह के सारे कार्यक्रम मंदिरों में होते थे। गांव के लोग बैठक भी मंदिरों में करते थे। अत: विहिप अभी के मंदिरों के जो ट्रस्टी हैं, मैनेजमेंट के लोग हैं, उनके साथ बैठक करके यह बात रखते हैं कि मंदिर समाजाभिमुख होना चाहिए। उन्हें बताते हैं कि मंदिर के माध्यम से हम क्या-क्या कर सकते हैं। मंदिर में काम करने वाले अर्चक, पुरोहित, मंदिरों के प्रबंधन समिति के सदस्य, मंदिर के न्यासी और मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले भक्त, इन सभी का एक आपस में सामंजस्य और समन्वय होना चाहिए। भक्तों के प्रतिनिधि के स्वरूप में इनकी बैठक होनी चाहिए और इन सभी को मिलकर मंदिर के माध्यम से जागरण व संस्कार की दृष्टि से हम और क्या-क्या अच्छा कर सकते हैं, इसका विचार करना चाहिए। परिषद ने आग्रह किया है कि सभी मंदिरों में सभी जाति बिरादरी के हिंदुओं को मुक्त प्रवेश मिलना चाहिए।

विहिप मंदिरों के अर्चकों पूरोहितों का जागरण कर रही है। यदि वे संस्कारित हो जाएं, उनके मन में समाज के संदर्भ में एक अच्छी भावना निर्माण हो जाए, सामाजिक समरसता का भाव जागृत हो जाए। अर्चक यदि हिंदुत्व निष्ठ व समाजाभिमुख बन गया तथा उसमें समरसता की दृष्टि आ गई तो उस अर्चक के द्वारा भी एक बड़े पैमाने पर समाज का जागरण हो सकता है क्योंकि अर्चक-पूरोहितों पर लोगों की श्रद्धा होती है। तमिलनाडु, केरल में इस तरह विहिप प्रयोग भी कर रही है। वहां जो ग्रामीण क्षेत्र के मंदिर है, उन मंदिरों के अर्चकों का प्रशिक्षण, उनका जागरण कराना, उनकी बैठकें करना, उनके सम्मेलन करना ये काम विहिप ने वहां शुरू कर दिया है और धीरे-धीरे ये सारे देश में होगा। अर्चक, पुरोहित, मंदिरों के ट्रस्टी और मंदिर प्रबंधन समिति के लोगों को जागृत करके उनके मन में इस भाव का निर्माण हो, यह विहिप का प्रयत्न है। हमने उसके लिए कुछ बिंदु भी निकाले हैं। अभी हमारा यह काम ज्यादा बड़ा नहीं है, मर्यादित है, परंतु आगामी दो-तीन साल में सारे देश के सभी जिलों में हमारा काम बढ़ेगा और मुझे ऐसा लगता है कि उसका मंदिर समाजाभिमुख होने की दृष्टि से अच्छा परिणाम दिखाई देगा।

 विहिप के आयाम बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी व मातृशक्ति के कार्य का परिणाम किस प्रकार समाज में दिखाई दे रहा है?

बजरंग दल और दुर्गा वाहिनी युवाओं के लिए एक हिंदुत्वनिष्ठ संगठन है। विशेष तौर पर बजरंग दल युवाओं के लिए, दुर्गावाहिनी युवतियों के लिए और प्रौढ़ महिलाओं के लिए मातृशक्ति संगठन है। बजरंग दल का कार्य तो बहुत ही जबरदस्त है। बजरंग दल विहिप का एक मुख्य अंग है। विहिप में काम करनेवाले युवाओं को हम बजरंग दल कहते है, लेकिन क्रेज तो विहिप से भी अधिक बजरंग दल का ज्यादा है क्योंकि बजरंग दल में बड़ी संख्या में युवा जुड़े हुए है। युवकों में उत्साह और जोश रहता है, इसलिए जोश को ज्यादा महत्व संगठन में दिया जाता है। आंदोलनों में युवक ही आगे आते हैं, उसके कारण बजरंग दल का नाम ज्यादा लोगों को मालूम है। भारत में लगभग 70 हजार से ज्यादा स्थानों पर बजरंग दल की इकाई विहिप के अंतर्गत है। लाखों युवा बजरंग दल से जुड़े हुए है, बजरंग दल का काम तो बहुत अच्छा व साहसिक है। हालांकि जितना बजरंग दल का काम है उतना दुर्गावाहिनी और मातृशक्ति का नहीं है। हमारी तो यही इच्छा है कि जहां-जहां विहिप का कार्य है, वहां-वहां महिलाओं का काम शुरू होना चाहिए। विहिप का काम भारत में 80 हजार स्थानों पर है और उसमें से 25 प्रतिशत महिला कार्यकर्ता है। शहरी क्षेत्रों में महिला कार्यकर्ताओं की संख्या अधिक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं कार्यक्रमों में आती है, लेकिन कार्यकर्ता के नाते उनकी संख्या कम है। इस वर्ष वीरांगना रानी दुर्गावती की पंच शताब्दी और अहिल्याबाई होलकर की त्रि शताब्दी वर्ष है, इस उपलक्ष्य में विहिप द्वारा वर्ष भर अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इन कार्यक्रमों के माध्यम से माहिलाओं से सम्पर्क भी बढ़ेगा और महिलाओं में जाग्रति भी आएगी। मध्य प्रदेश के मालवा प्रांत स्थित इंदौर-उज्जैन क्षेत्र के कुछ जिलों में विहिप की समिति जितने गांवों में है, उससे अधिक गांवों में दुर्गावाहिनी का प्रभावी काम है। इसी तरह हर जगह महिलाओं का काम बढ़े, इस दृष्टि से हम प्रयत्न कर रहे हैं और हमें अच्छा प्रतिसाद भी मिल रहा है।

 पूर्वोत्तर भारत में विहिप का प्रभावी कार्य किस प्रकार है?

असम में विहिप का काम अच्छा है, वहां सेवाकार्य की दृष्टि से भी हमने ज्यादा प्रयत्न किया। विगत 10-15 वर्ष से अरुणाचल प्रदेश में विहिप का कार्य बढ़ रहा है। मेघालय और त्रिपुरा में भी विहिप का काम बढ़िया है। मणिपुर के मैतेई बहुल क्षेत्र में विहिप का काम है, लेकिन मिजोरम और नागालैंड की स्थिति थोड़ी अलग है क्योंकि इन दोनों जगह 95 प्रतिशत से अधिक ईसाई है। वहां विहिप के नाम से काम करना भी कठिन है। नागालैंड के दीमापुर में विहिप के नाम से छोटे-बड़े कार्यक्रम होते हैं, लेकिन दीमापुर से आगे इम्फाल या उससे आगे जाएंगे, तो मिजोरम जैसी स्थिति है क्योंकि विहिप के नाम में ही हिंदू शब्द है और वहां इतने बड़े पैमाने पर ईसाईकरण हो गया है कि हिंदू संगठनों का कार्य करना मुश्किल है। भारत में ईसाई जहां बहुसंख्यक हो जाते है, वहां अन्य धर्म के प्रचार-प्रसार की स्वतंत्रता नहीं होती। हालांकि भारत माता, देशभक्ति, राष्ट्रभाव इस नाते से काम कर सकते हैं। कल्याण आश्रम का वहां प्रभावी काम है। संघ विचार परिवार के अनेक संगठन देशभक्ति-राष्ट्र भक्ति से जुड़कर कार्य कर रहे हैं और उन्हें अच्छा प्रतिसाद भी मिल रहा है। महाराष्ट्र के भैया जी काने ने 5 दशक पूर्व मणिपुर में संघकार्य शुरू कर दिया था, उनके कार्य से प्रभावित होकर अनेक कुकी और नागा संघ से जुड़े, परंतु अभी वहां का वायुमंडल इतना बिगड़ गया है कि कोई भी सकारात्मक कार्य वहां सम्भव दिखाई नहीं देता, उसके लिए बहुत समय लगेगा। वहां की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर पहल करनी होगी क्योंकि मणिपुर की घटना अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा है।

 गोवंश हत्या बंदी और उसके संवर्धन-संरक्षण हेतु केंद्रीय कानून बनाने की मांग विहिप क्यों कर रही है?

सम्पूर्ण गोवंश हत्या बंदी होनी चाहिए, यह केवल विहिप की ही नहीं बल्कि पूरे हिंदू समाज की मांग है और महात्मा गांधी ने भी इसके लिए काफी प्रयास किया था। हमारे देश में गाय की रक्षा के लिए कितने आंदोेलन हुए हैं। मुस्लिमों के शासनकाल में भी पंजाब में नामधारी सम्प्रदाय के रामसिंह कुका के नेतृत्व में कुका आंदोलन हुआ, जिसमें सैकड़ों कुकाओं ने गोरक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। अंग्रेजों के शासनकाल में भी हिंदू समाज ने गोरक्षा को लेकर आंदोलन किया और उस दौरान हिंदू-मुस्लिम दंगे भी गोरक्षा को लेकर हुए। तब भी हुए, उसके बाद में हुए और अब भी हो रहे हैं। देश में सम्पूर्ण गोवंश हत्या बंदी कानून लागू करने हेतु 1952 में संघ ने लगभग 2 करोड़ लोगों का हस्ताक्षर लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया था। उस समय 2 करोड़ बहुत बड़ी संख्या थी, तब यातायात के साधन भी नहीं थे, उस समय संघ ने देश के लाखों गांवों में सम्पर्क किया था। 1966 में जब विहिप का सम्मेलन प्रयाग में हुआ, उस समय गोरक्षा का प्रस्ताव पारित किया गया था। 1994 के बाद बड़े पैमाने पर गोरक्षा और गोसंवर्धन हेतु विहिप ने काम शुरू किया। विहिप द्वारा पारित किए गए प्रस्ताव के अंतर्गत इन 3 निम्नलिखित विषयों पर बल दिया गया है –  पहला, सम्पूर्ण गोवंश हत्या बंदी कानून होना चाहिए। केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों द्वारा यह कानून लागू करना चाहिए। यदि सरकार गोरक्षा के लिए कुछ करती है या नहीं करती है तो हम सभी को इसके लिए संघर्ष करना चाहिए। गोवंश हत्या हम सहन नहीं करेंगे। कसाइयों के कब्जे से गोवंश को मुक्त करना चाहिए। विहिप ने अब तक लगभग 35 लाख गोवंश को कसाइयों के कब्जे से मुक्त किया है। इस संघर्ष में विहिप के 10 कार्यकर्ताओं का बलिदान भी हुआ है। आज भी हमारे सैकड़ों कार्यकर्ताओं पर न्यायालय में केस चल रहा है।  दूसरा, भारतीय नस्ल की गाय का संवर्धन-संरक्षण होना चाहिए। न्यूजीलैंड के गोवंश विशेषज्ञ ने कहा कि भारतीय नस्ल की गाय में ए-2 तत्व होता है और विदेशी गाय में ए-1 तत्व होता है। ए-1 तत्व के कारण बीमारियां होती है क्योंकि वे व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक शक्ति को कम करती है और भारतीय नस्ल की गाय के दुध में ए-2 तत्व होने के कारण रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए ब्राजील, इजराइल आदि अनेक देशों ने भारतीय नस्ल की गाय को अपने देश ले जाकर लाखों की संख्या में इन नस्लों का संवर्धन किया और उसके आधार पर वे आगे बढ़ रहे हैं। तीसरा, जैविक खेती अर्थात गोवंश आधारित कृषि का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। आज रासायनिक खाद का बहुतायत में उपयोग हो रहा है, उसके कारण भी बीमारियां बढ़ रही है। आज पंजाब में सबसे अधिक कैंसर के रोगी है क्योंकि रासायनिक खाद और दवाओं का उपयोग सबसे अधिक पंजाब में होता है। गोवंश आधारित खेती शुरू होने पर भारतीय नस्ल के गोवंश का संरक्षण व संवर्धन हो जाएगा और बिमारियों से भी मुक्ति मिल जाएगी। अशोक सिंघल ने कहा था कि जब जैविक खेती हिंदुस्थान में बढ़ेगी तो भारतीय नस्ल की देशी गोवंश की स्वयं रक्षा हो जाएगी और गोमूत्र की इतनी मांग बढ़ेगी कि दूध से भी अधिक महंगी हो जाएगी। 1995-96 में विहिप ने देवलापार में गोविज्ञान केंद्र की स्थापना की। अभी हमने देवलापार के माध्यम से लगभग 60 हजार किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया। आज हमारे सैकड़ों कार्यकर्ता अपने-अपने गांव में जैविक खेती का प्रचार प्रसार करते हैं। हमारे प्रधान मंत्री भी जैविक खेती पर बल दे रहे है और राज्य सरकार भी इस दिशा में कार्य कर रही है। सभी राज्य सरकार ऐसा ही करें, यही विहिप की भूमिका, प्रयत्न और मांग है।

 देश में हिंदू विरोधी राजनीति क्यों बढ़ रही है?

हिंदू समाज यदि एकजुट हो गया तो सेक्युलर कहलाने वाली राजनीतिक पार्टियों का अस्तित्व संकट में आ जाएगा। राजनीतिक तौर पर हिंदू समाज बंटा रहे, इसलिए जातिगत जनगणना और दलित, ओबीसी, आदिवासी के नाम पर जातिवादी राजनीति की जा रही है। इससे निपटने हेतु हमें दो तरह से काम करना चाहिए। हमारे धर्म के श्रेष्ठ तत्वज्ञान के प्रचार-प्रसार हेतु प्रयत्न करना चाहिए। हमारे घरों में भी संस्कारों का क्षरण हो रहा है, हमारी नई पीढ़ी को ही अपने धर्म संस्कृति के सम्बंध में जानकारी पहले की तुलना में कम हो गई है। यदि हमारी युवा पीढ़ी में ही भ्रम का निर्माण हो जाएगा और उन्हें आधा अधुरा ज्ञान होगा तो कैसे उनके मन में अपने धर्म के प्रति श्रद्धा का भाव निर्माण होगा? हिंदू धर्म की अच्छी बातें हमें अपनी पीढ़ी को बतानी चाहिए। घर, विद्यालय और सार्वजनिक जीवन में भी संस्कार होना चाहिए। उसके लिए प्रयत्न करना आवश्यक है, यह हमारा पहला काम है। इसके साथ ही विमर्श के मुद्दे पर जो हमारे धर्म का विरोध करते हैं, उन्हें करारा उत्तर भी देना होगा। हिंदू समाज संगठित शक्तिशाली और जागरूक हो गया तो विरोध करने वाली शक्तियों का प्रभाव कम हो जाएगा। जो लोग राजनीतिक दृष्टि से हिंदू विरोध करते है उन्हें उनकी ही राजनीतिक भाषा में उत्तर देना चाहिए, इसके लिए हिंदू समाज को राजनीतिक बोध कराना आवश्यक है। हिंदुत्वनिष्ठ जो राजनीतिक पार्टियां है वो करेंगे, ऐसा मुझे लगता है।

 विदेशों में विहिप का कार्य कैसे संचालित होता है?

विदेशों में अलग तरह से विहिप का कार्य चलता है। वहां बजरंग दल, दुर्गावाहिनी, मातृशक्ति जैसा कार्य नहीं होता। अभी हाल ही में अमेरिका के एक राज्य में वहां के मंदिर प्रबंध समिति के पदाधिकारी, अर्चक, ट्रस्टी, कुल मिलाकर 100 से अधिक मंदिरों के 200 के करीब लोगों का वर्कशॉप हुआ। अमेरिका के अलग-अलग राज्यों में विहिप द्वारा 18 वर्कशॉप किए गए। आदर्श मंदिर कैसे बनाने चाहिए, मंदिर की प्रबंध व्यवस्था कैसी होनी चाहिए, संस्कार देने के लिए मंदिर के माध्यम से क्या भूमिका होनी चाहिए, इस दृष्टि से ये वर्कशॉप चल रहे हैं। जैसे अमेरिका में हो रहे हैं, वैसे ही विदेशों में जहां-जहां विहिप का काम है, वहां-वहां मंदिर से जुड़े इस तरह के कार्यक्रम चल रहे हैं। दीवाली के उपलक्ष्य में दीपावली मिलन, होली मिलन, रक्षाबंधन आदि जैसे पर्व-त्योहारों के निमित्त हिंदुओं का एकत्रीकरण करना और उनका प्रबोधन करना, राष्ट्र-धर्म के संस्कारों का बीजारोपण करना इत्यादि जैसे कार्य किए जाते हैं। विदेशों में कुछ जगह बाल संस्कार केंद्र भी विहिप द्वारा चलाए जा रहे हैं।

न्यूजीलैंड में युवा हिंदू सम्मलेन भी 3-4 बार हुआ है। युवाओं में धर्म के प्रति जागरण करने हेतु विविध प्रकार के कार्य किए जाते हैं। भारत के साधू-संतों के विदेशी प्रवास का नियोजन, उनके वहां के कार्यक्रम का नियोजन तथा कार्यक्रम के निमित्त वहां के हिंदुओं के एकत्रीकरण के लिए सदैव विहिप प्रयासरत है।

विहिप के स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में 2014 में पहली बार वर्ल्ड हिंदू कांग्रेस का आयोजन नई दिल्ली में किया गया था। स्वामी विवेकानंद का ऐतिहासिक भाषण शिकागो में 1893 में हुआ था और उसके 125 साल पूर्ण होने पर 2018 में दूसरी वर्ल्ड हिंदू कांग्रेस शिकागो में हुई। तीसरी 2022 में होने वाली थी, लेकिन कोरोना के कारण वह आगे बढ़ गई और नवम्बर 2023 में बैंकॉक में हुई। विदेशों में विहिप वर्ल्ड हिंदू कांग्रेस के अंतर्गत वर्ल्ड हिंदू इकोनॉमिक फोरम, वर्ल्ड हिंदू डेमोक्राटिक फोरम, हिंदू एजूकेशन फोरम, हिंदू वीमेन फोरम, हिंदू यूथ फोरम, हिंदू मीडिया फोरम आदि के माध्यम से भी अपने कार्य का विस्तार कर रही है।

 लव जिहाद, लैंड जिहाद और वक्फ बोर्ड की गैर कानूनी गतिविधियों पर कैसे अंकुश लगाया जा सकता है?

लव जिहाद के मामले में विहिप ने हजारों युवतियों को बचाया है। कुछ ऐसी भी घटनाएं हमारे साथ हुई कि जिन लड़कियों को हमने वापस लाया, उसे उनके ही माता-पिता ने उन्हें घर पर लेने से मना कर दिया। ऐसी युवतियों को अपने कार्यकर्ताओं के घर शरण देकर उनकी हिंदू लड़के से शादी करवाई गई। ‘केरला स्टोरी’ फिल्म आने के बाद लव जिहाद के संदर्भ में बहुत जागरण हुआ है, परंतु हम सभी को अंतर्मुख होकर विचार करना है कि हिंदू लड़कियां इतनी बड़ी संख्या में क्यों जाती है? इसका उत्तर है संस्कारों की कमी। आज कुटम्ब व्यवस्था छोटी हो गई है, दादा-दादी घर में नहीं है। बड़े बुजुर्गों के न होने से बच्चों पर आवश्यक संस्कार नहीं हो पाते। आज परिवार की स्थिति यह है कि परिजनों का आपसी संवाद भी कम होता जा रहा है। घर में माता-पिता हो या बच्चे सभी मोबाइल में लगे रहते हैं। ऐसे में बच्चों और युवाओं में संस्कार कैसे होगा? विहिप के दुर्गावाहिनी-मातृशक्ति के माध्यम से महिलाओं का काम बढ़ना महत्वपूर्ण है क्योंकि इनके द्वारा घरों में संस्कार भी दिए जाते हैं। संघ द्वारा कुटुंब प्रबोधन गतिविधि चलाई जा रही है ताकि घरों में संस्कारों का संवर्धन हो। इस नाते से हम सभी को प्रयत्न करना चाहिए। सरकार और शासन-प्रशासन भी अब जागरूक हुए है। पुलिस प्रशासन भी पीड़ित परिवारों का साथ देते हैं। कानून अपनी जगह है, लेकिन अपने धर्म के संदर्भ में श्रद्धा व निष्ठा निर्माण करना बहुत आवश्यक है। इस्लाम क्या है, इस्लाम कितना भयावह है, महिलाओं के प्रति मुसलमानों का दृष्टिकोण कैसा है, उनका इतिहास किस प्रकार महिला अत्याचार से भरा हुआ है, यह सच्चाई हमारी हिंदू लड़कियों को मालूम ही नहीं है। यह हमारी ही कमी है न? यदि युवतियों को इस्लाम और मुसलमान की सच्चाई पता चल जाएगी तो वह भी इस बात पर विचार करेगी और लव जिहाद का शिकार होने से बच जाएगी। जिहाद मुसलमानों की प्रवृत्ति बन चुकी है। लव जिहाद, लैंड जिहाद, वोट जिहाद आदि जिहाद के जो विविध प्रकार हैं, वो तो उन्हें बचपन से सिखाए जाते हैं,उन्हें यही संस्कार दिए जाते हैं। वक्फ बोर्ड क्या है? वह भी लैंड जिहाद का ही हिस्सा है। उनका उद्देश्य ही है काफिरों की जमीन पर कब्जा करना, महिलाओं पर अत्याचार करना और धमार्तंरण कर मुसलमान बनाना। इस्लाम की मूल विचारधारा क्या है, यह हिंदू समाज, सरकार और शासन-प्रशासन को जानना आवश्यक है।

 बाबरी ढांचा गिराने के बाद विहिप ने हिंदू समाज को किस प्रकार से मार्गदर्शित किया है?

विहिप के सभी आंदोलनों में से रामजन्मभूमि का आंदोलन सबसे प्रसिद्ध रहा है। शिलापूजन, पहली कारसेवा, दूसरी कारसेवा, पादुका पूजन आदि कार्यक्रम बार-बार होते थे। उस दौरान चारों ओर हिंदुत्व का बहुत ही जबरदस्त वातावरण था। लाल कृष्ण आडवाणी की यात्रा ने भी देश भर में जागरण किया। ढांचा गिरने के बाद फिर वैसा ही आंदोलन करने की आवश्यकता नहीं थी। कुछ लोगों को लगता है कि राम जन्मभूमि आंदोलन के बाद विहिप का कार्य धीमा हो गया है जबकि ऐसा नहीं है। राम जन्मभूमि आंदोलन समाप्त होने के बाद रामजी से जुड़े छोटे-बड़े कार्यक्रम बाद में भी हुए। रामसेतु को बचाने के लिए 2007 में देशव्यापी आंदोलन हुआ। दिल्ली में 15 लाख लोगों की विराट जनसभा हुई, तब जनाक्रोश को देखकर केंद्र सरकार को पीछे हटना पड़ा। टीपू सुल्तान को लेकर पूरे कर्नाटक में विहिप का 15 दिनों तक आक्रामक आंदोलन हुआ, जिसमें हमारे दो कार्यकर्ताओं का बलिदान भी हुआ और सैकड़ों कार्यकर्ता जेल गए। 1995 से गोरक्षा के लिए संघर्ष बहुत बड़े पैमाने पर हुआ। रामजन्मभूमि आंदोलन का समाचार टीवी न्यूज और समाचार पत्रों में आने के कारण लोगों को लगता था कि कुछ कर रहे हैं। अब विहिप का मीडिया में कुछ नहीं आ रहा है तो लोगों को लगता है कि कुछ नहीं कर रहे हैं, लेकिन यह सच नहीं है। विहिप का काम संगठन और जागरण का पहले भी था, अभी भी है और भविष्य में भी रहेगा।

भारत हिंदू बहुल देश होने के बाद भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विहिप जैसे संगठनों के निरंतर कार्य की आवश्यकता क्यों पड़ रही है?

जब तक हिंदू समाज की आदर्श स्थिति नहीं आएगी, तब तक तो काम करना ही है। जिस दिन सारा हिंदू समाज जागृत हो जाएगा, तब संघ और विहिप की आवश्यकता नहीं होगी। वो दिन शीघ्रातिशीघ्र आए, यह हम सभी अपेक्षा करते हैं, लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता तब तक हमें अपनी पूरी शक्ति लगाकर संगठन का विस्तार सतत करना होगा, क्योंकि संगठन में शक्ति है और उसी से समाज में जागरण आएगा।

 विहिप का घोष वाक्य है ‘धर्मो रक्षति रक्षित:’, समाज को इसका व्यापक अर्थ कैसे समझाया जा सकता है?

आप यदि धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म आपकी रक्षा करेगा। रक्षा करना संघर्ष तो है ही। संघर्ष के साथ-साथ, अपना जो धर्म है, अपनी जो संस्कृति है, उसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए और उसको अपने आचरण में लाना चाहिए। यदि ये हमारे आचरण में नहीं आएंगे तो धर्म की रक्षा कैसे होगी? विहिप इसी ध्येय से काम करती है। जब हिंदू समाज अपनी संस्कृति, जीवन मूल्यों को आचरण में लाएगा तो उससे एक जागरण होगा और शक्ति निर्माण होगी। जिससे स्वयं की और सभी की रक्षा हो सकेगी। आप धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म आपकी रक्षा करेगा। कर्तव्य को भी हमने धर्म ही कहा है। पितृ धर्म, मातृ धर्म, पुत्र धर्म, पड़ोसी धर्म। धर्म मतलब कर्तव्य। हरेक व्यक्ति को अपने-अपने धर्म यानी कर्तव्य का पालन करना चाहिए। यदि सारे लोग अपने-अपने कर्तव्य यानी धर्म का पालन करेंगे तो बाद में संघर्ष ही नहीं रहेगा। यदि संघर्ष नहीं होगा तो देश व समाज की रक्षा हो सकेगी।

 60 वर्ष पूर्ण होने पर विहिप किस ऊंचाई पर पहुंचा हैं?

उपलब्धियां तो हैं परंतु जो अपना ध्येय, उद्देश्य है उसमें अभी भी बहुत कुछ काम करना है। इसलिए प्रारम्भ में मैंने कहा कि समाधान भी है और असमाधान भी है। मैं केवल दो उदाहरण देता हूं। पहला सामाजिक भेदभाव का है। जब तक सामाजिक भेदभाव होगा तब तक हिंदू समाज एक नहीं हो पाएगा। हां, कोई आंदोलन या संघर्ष के कारण एक होना वो अलग बात है। लेकिन एकता व सामंजस्य की जो एक स्वाभाविक स्थिति आनी चाहिए वो अपने समाज में आई है क्या? नहीं! जितनी आनी चाहिए उतनी नहीं आई है। बहुत कुछ काम आज भी हमें करना है। मुंबई, दिल्ली, पुणे बड़े-बड़े महानगरों में ऊपर-ऊपर के स्तर पर देखा जाए तो भेदभाव नहीं दिखता। कुछ लोगों की मानसिकता बदली है, कुछ लोगों की 50% बदली है, लेकिन कुछ लोगों की अभी भी नहीं बदली है। अत: हमें बहुत कुछ करना बाकी है। एक बहुत बड़ी चुनौती आज भी है। दूसरा जो विषय है वो धर्मांतरण के सम्बंध में है। विहिप जागरण का काम करती है, लेकिन अभी भी अपने देश में धर्मांतरण हो रहा है। कुछ जगहों पर कम हुआ होगा लेकिन समाप्त नहीं हुआ है। यह समस्या अभी भी बहुत बड़े पैमाने पर है। चाहे संघ की धर्म जागरण गतिविधि हो, विश्व हिंदू परिषद हो, वनवासी काल्याण आश्रम हो, हम सब लोग प्रयत्न करते हैं, लेकिन अभी भी धर्मांतरण की बीमारी समाप्त नहीं हुई है।

 आपका संघ कार्य, विहिप कार्य और आपके अभी तक के दायित्वों की जानकारी दीजिए।

मेरा जन्म तो मुंबई का ही है। विद्यालय व कॉलेज की पढ़ाई मुंबई से ही हुई। मैं पोद्दार कॉलेज का छात्र था। कॉमर्स से स्नातक हूं। 1974 में मैं संघ का प्रचारक बना। मैं लातूर सहित तीन तहसीलों का तहसील प्रचारक था। आपातकाल लगा तो भूमिगत होकर काम करना पड़ रहा था। 1976 में आज का जो रायगढ़ जिला है उसका जिला प्रचारक आपातकाल में ही बना। 1980 तक मैं वहां जिला प्रचारक था। फिर 1980 से 1983 तक तीन साल मैं नासिक विभाग प्रचारक था। 1983 में विश्व हिंदू परिषद की एकात्मता यात्रा, गंगा माता-भारत माता यात्रा, का आयोजन होने वाला था। संघ से कोई कार्यकर्ता इस हेतु देने का प्रस्ताव रखा गया, तो वह काम मुझे दिया गया। 1983 जून से लगभग जनवरी 1984 के अंत तक विश्व हिंदू परिषद की एकात्मकता यात्रा की मेरे पास सहप्रमुख के रूप में जिम्मेदारी थी। उसके बाद संघ के ही कुछ छोटे-बड़े काम जो प्रांत प्रचारक देते थे मैं करता था। 1984 में फिर विश्व हिंदू परिषद की जिम्मेदारी मेरे पास आई। पहले एक साल तक महाराष्ट्र प्रांत का सहसंगठन मंत्री था, फिर प्रांत संगठन मंत्री बना। जैसे-जैसे अलग-अलग जिम्मेदारी आती रही प्रांत की, क्षेत्र की फिर केंद्र की मैं निभाता गया। अभी केंद्रीय सहसंगठन महामंत्री के रूप में जिम्मेदारी निभा रहा हूं। पिछले 6 साल से मैं दिल्ली में हूं।

 भविष्य में विहिप किस रूप में भारत को देखना चाहता है?

मैं संगठित और जाग्रत भारत, जो विश्व गुरु बन गया है, देखना चाहता हूं। मेरे जीवित रहते यह हो पाएगा या नहीं यह मालूम नहीं, पर ये सभी का ध्येय है जो साकार होगा ही। समय कितना लगेगा यह मैं नहीं कह सकता हूं, लेकिन साकार होगा, इतना अवश्य है।

 विहिप के देश-विदेश में फैले कार्यकर्ता और हिंदी विवेक  मासिक पत्रिका के पाठकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?

मैं तो इतनी ही अपेक्षा करता हूं कि हम सभी को अपने धर्म, अपनी संस्कृति पर श्रद्धा और निष्ठा रखनी चाहिए। अपने जीवन मूल्यों के अनुसार सभी को आचरण करना चाहिए। हिंदू होने का, हिंदू धर्म का, अपने देश का, भारत माता का अभिमान रखें और अपनी  संस्कृति के अनुसार जीवन में आचरण करें। इसके लिए ही तो हम सभी काम कर रहे हैं। हिंदी विवेक भी राष्ट्र भावना, हिंदुत्व भावना सारे समाज में निर्माण करने के लिए ही काम कर रहा है। हम संगठन के माध्यम से और हिंदी विवेक पत्रिका एक प्रचार माध्यम के रूप में काम कर रही है। उद्देश्य तो दोनों के एक ही हैं। इसलिए हिंदी विवेक के पाठकों के मन में भी ऐसी भावना हो, संस्कार निर्माण हो।

 

 

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अमोल पेडणेकर

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