हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
संघ और भाजपा सम्बंधों का स्वरूप

संघ और भाजपा सम्बंधों का स्वरूप

by अरुण आनंद
in नवम्बर २०२४, विषय
0

भाजपा और संघ की अपनी अलग-अलग कार्यपद्धति है। दोनों के सम्बंधों और उनकी कार्यप्रणाली को लेकर कुछ लोग संघ-भाजपा टकराव का विमर्श गढ़ने में व्यस्त हैं। वैसे देखा जाए तो भाजपा के राजनीतिक दायरे में संघ की कोई भूमिका नहीं होती है।

जून 2024 में लोकसभा चुनावों के परिणाम आने के साथ ही चर्चाओं का दौर आरम्भ हो गया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के बीच संबंधों में तनाव है। भाजपा और संघ के सम्बंधों को लेकर कुछ महीनों के बाद इस प्रकार की चर्चा होना स्वाभाविक हो गया है। पत्रकारों को इसमें आनंद आता है, संघ विरोधी इस चर्चा को आगे बढ़ाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते हैं और अगर भाजपा के लिए चुनाव परिणाम अच्छे न हों तब तो संघ-भाजपा मनमुटाव पर पूरा विमर्श खड़ा होना तय सा ही हो गया है.

इस विमर्श को खड़ा करने का काम कुछ लोग जानबूझकर करते हैं और कुछ अनजाने में। वास्तव में संघ और भाजपा के सम्बंधों का स्वरूप क्या है? इस प्रश्न का सही उत्तर उन लोगों के पास नहीं है जो संघ-भाजपा टकराव का विमर्श गढ़ने में व्यस्त हैं. यह प्रयास 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय से ही चला आ रहा है। 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद भी ‘मन-मुटाव’ की अफवाहें गाहे-बगाहे उड़ती रहीं।

पर सच्चाई क्या है?

संघ को अगर भाजपा के नजरिए से देखेंगे तो भ्रम ही होगा। भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय से ही संघ के कुछ कार्यकर्ताओं को राजनीति के क्षेत्र में जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आग्रह पर भेजा गया। इसके बाद वे कार्यकर्ता वहां जनसंघ को एक संगठन की दृष्टि से मजबूत करने के लिए कार्य करते रहे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, नानाजी देशमुख जैसे लोगों ने जनसंघ का एक मजबूत जनाधार  बनाने में अहम भूमिका निभाई। 1977 में आपातकाल के बाद कांग्रेस को हराने के लिए सभी विपक्षी दल साथ आए तो जनसंघ का भी जनता पार्टी में विलय हो गया। इसके उपरांत मधु लिमये जैसे समाजवादियों द्वारा जनसंघ के सदस्यों के आरएसएस में भी स्वयंसेवक बने रहने पर आपत्ति जताई गई। कुल मिलाकर अपने ही अंतरविरोधों के कारण जनता पार्टी टूट गई। इसके बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। यह जनसंघ का नया अवतार था। जो भूमिका संघ के कार्यकर्ता जनसंघ के दिनों से निभा रहे थे, भाजपा में उनकी वही भूमिका बनी रही। आज भी उनकी वही भूमिका है।

संघ-भाजपा सम्बंधों को लेकर कुछ मूलभूत बातें समझना आवश्यक है जो संघ की कार्यशैली से जुड़ी हैं। पहली बात तो यह कि संघ ने कभी भी अपने स्वयंसंवकों को किसी पार्टी विशेष के लिए काम करने को नहीं कहा, न ही किसी खास पार्टी को वोट देने के लिए कोई औपचारिक व्हिप जारी होता है। संघ का केवल इतना आग्रह रहता है कि ज्यादा से ज्यादा मतदान करवाने में स्वयंसेवक सक्रिय भूमिका निभाएं और राष्ट्र हित में काम करने वाले उम्मीदवारों और दलों को लोग अपना मत दें। वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत से जब सितम्बर 2018 में विज्ञान भवन में तीन दिवसीय कार्यक्रम में प्रश्न पूछा गया था कि संघ के कार्यकर्ता केवल भाजपा में ही क्यों काम करने जाते हैं किसी और दल में क्यों नहीं तो उनका उत्तर था कि भाजपा संघ से कार्यकर्ता मांगती है तो संघ उन्हें कार्यकर्ता देता है, कोई और दल भी मांगेगा तो संघ उस पर भी विचार करेगा।

संघ के वरिष्ठ अधिकारी सतत प्रवास पर रहते हैं। जब वे कहीं भी प्रवास पर जाते हैं तो वे समविचारी संगठनों के सभी लोगों से मिलते हैं, कई बैठकें होती हैं। इनमें कई बार भाजपा के लोग भी होते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि संघ के अधिकारी किसी राजनीतिक प्रबंधन की दृष्टि से वहां गए हैं। संघ की कार्यपद्धति का यह मूल मंत्र है कि समाज के सभी वर्गों के साथ सतत सम्पर्क रखना, सम्पर्क का दायरा बढ़ाना और समाज के संगठन में तेजी लाने के लिए संगठनात्मक गतिविधियों को गति और मजबूती देना।

कभी-कभी ऐसा संयोग बन जाता है कि संघ के अधिकारी किसी प्रदेश में जाते हैं तो वहां कोई चुनावी गतिविधि चल रही होती है या भाजपा में कोई राजनीतिक घटनाक्रम चल रहा होता है। ऐसे में कुछ विश्लेषक ‘दो और दो चार’ का फार्मूला लगाकर सीधा निष्कर्ष रख देते हैं कि संघ का फलां अधिकारी इसलिए आया है क्योंकि अब संघ भाजपा के इस मामले को सुलझाने के लिए हस्तक्षेप कर रहा है या फिर संघ चुनाव की कमान हाथ में ले रहा है। ये सब निष्कर्ष एक बड़े भ्रम के कारण हैं। भ्रम यह है कि संघ के पास भाजपा को मजबूत करने, उसे चुनाव जीतवाने के अलावा कोई और महत्वपूर्ण काम नहीं है।

इस भ्रम के उपजने का कारण यह है कि अधिकतर विश्लेषक संघ को भाजपा के नजरिए से देखते हैं। जो संघ का विस्तार जानते हैं, उन्हें पता है कि भाजपा उन तीन दर्जन समविचारी संगठनों में से एक है जो संघ की प्रेरणा से चल रहे हैं। इन सभी संगठनों के कार्यकर्ताओं को वैचारिक दिशा देने का काम संघ का है। इन सभी संगठनों में स्वयंसेवक स्वायत्तता के साथ काम करते हैं। उन्हें जब किसी परामर्श, मार्गदर्शन या सहायता की आवश्यकता होती है तो वे संघ से सम्पर्क करते हैं। संघ अपनी ओर से यथाशक्ति उनके लिए प्रयास करता है और इस प्रक्रिया में अकसर अपने कुछ कार्यकर्ताओं को भी इन संगठनों को काम करने के लिए देता है। भाजपा के साथ कोई विशेष व्यवहार नहीं किया जाता है।

भाजपा और संघ के सम्बंधों को बिना ठीक से समझे केवल विशुद्ध राजनीति या सत्ता के नजरिए से देखने से भ्रम भी होता है और उसी के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष हास्यास्पद भी हो जाते हैं। भाजपा और संघ के सम्बंध दो धरातल पर हैं-पहला औपचारिक और दूसरा अनौपचारिक।

संघ के कुछ कार्यकर्ता एक औपचारिक व्यवस्था के अंतर्गत भाजपा में संगठन मंत्री व सह संगठन मंत्री के रूप में अपना योगदान भाजपा के संगठन को मजबूत करने के लिए देते हैं। अनौपचारिक स्तर पर सम्बंधों की बात करें तो संघ के कई स्वयंसेवक भाजपा व भाजपा नीत सरकारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। भाजपा के अब तक के दोनोें प्रधान मंत्री अटलबिहारी वाजपेयी व नरेंद्र मोदी संघ के प्रचारक रहे हैं। केंद्र व राज्य सरकारों में कई मंत्री, मुख्य मंत्री आदि संघ के स्वयंसेवक हैं। ऐसे में उन्हें संघ की ओर से कोई एजेंडा नहीं दिया जाता है। वे स्वयंसेवक के रूप में संघ में मिले संस्कारों के अनुरूप समाज के रूपांतरण व देश के विकास के लिए जो होना चाहिए वे करने का प्रयास करते हैं। वे ठीक कर रहे हैं या गलत, ये अलग बहस का मुद्दा है। इस पर वैचारिक मतभेद हो सकते हैं पर मुद्दे की बात यह है कि भाजपा के राजनीतिक प्रबंधन में संघ की कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका नहीं है।

अगर आप संघ को भाजपा के नजरिए से देखना बंद कर संघ को उसी के परिप्रेक्ष्य से देखेंगे तो यह स्पष्ट होगा कि सत्ता व राजनीति संघ की प्राथमिकताओं में कभी नहीं रही।

 

 

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #bjp #rss #sangh #hindivivek

अरुण आनंद

Next Post
मोदी 3.0 चुनौती | मार्ग | उपलब्धि

मोदी 3.0 चुनौती | मार्ग | उपलब्धि

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0