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चीन की थ्री वॉरफेयर स्ट्रैटेजी

चीन की थ्री वॉरफेयर स्ट्रैटेजी

by रवींद्र सिंह भड़वाल
in नवम्बर २०२४, विशेष
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चीन की आक्रामक नीति बदल गई है। अब वह शस्त्ररहित हो कर भारत व नेपाल के साथ ‘मनोवैज्ञानिक युद्ध’ कर रहा है। भारत में सैन्य बल व जनता के बीच तनाव पैदा कर उनका मनोबल गिरा रहा है।

चीन भारत के विरुद्ध ‘थ्री वॉरफेयर स्ट्रैटेजी’ के माध्यम से मनोवैज्ञानिक, मीडिया और कानूनी तरीकों से कमजोर करने और अपनी ताकत को बढ़ाने की रणनीति पर कार्य कर रहा है। इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य भारत सहित अन्य प्रतिस्पर्धी देशों को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर घेरना और वैश्विक धारणा को अपने पक्ष में मोड़ना है। यह थ्री वॉरफेयर स्ट्रैटेजी न केवल सैन्य संघर्षों में, बल्कि लम्बी अवधि की रणनीतिक प्रतिस्पर्धा भी चीन के लिए लाभकारी रही है। इसमें वह बिना पारम्परिक युद्ध किए ही विरोधी को कमजोर करने की कोशिश करता है। इसकी लागत परम्परागत युद्ध की अपेक्षा कम है, मगर मारकता एवं प्रभाव कहीं अधिक है। दीर्घकाल में इससे होने वाला लाभ निरंतर बढ़ता ही रहता है। थ्री वॉरफेयर स्ट्रैटेजी को चीन ने सुन त्ज़ु के सिद्धांतों के अनुरूप गढ़ा है, जिसके अंतर्गत कुशल नेता वही है, जो बिना किसी लड़ाई के दुश्मन की सेना को वश में कर लेता है और सभी युद्ध धोखे पर आधारित होते हैं।

भारत के विरुद्ध चीन की थ्री वॉरफेयर स्ट्रैटेजी का पहला उपकरण ‘मनोवैज्ञानिक युद्ध’ है। चीन का मनोवैज्ञानिक युद्ध एक गैर-सैन्य युद्ध साधन है। इसका उद्देश्य अपने प्रतिस्पर्धी देशों की सेना, राजनीतिक नेतृत्व और जनता के मनोबल को कमजोर करना होता है। चीन इससे उस देश के रणनीतिक निर्णय लेने की प्रक्रिया और क्षमता को प्रभावित करके उसे असमंजस में डालता है। चीन नियमित रूप से भारत-चीन सीमा पर अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाकर और युद्धाभ्यास करके भारत पर दबाव डालता है। इसका उद्देश्य भारतीय सेना और जनता के बीच तनाव पैदा करना और यह संदेश देना होता है कि चीन की सैन्य शक्ति मजबूत है। इससे वह भारत के आत्मविश्वास को कमजोर करने का प्रयास करता है। चीन अपने सैन्य और कूटनीतिक कदमों से भारतीय नेतृत्व पर दबाव डालता है, ताकि वे तनावपूर्ण और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में गलत या रक्षात्मक निर्णय लेें। चीन मीडिया में लगातार अपनी सैन्य क्षमताओं और तकनीकी को ताकतवर दिखाने का प्रयास करता है, ताकि उसके प्रतिस्पर्धी देश रक्षात्मक मुद्रा में ही रहें। चीन मनोवैज्ञानिक युद्ध में भारतीय सैनिकों पर भी मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का भी प्रयास करता है। इसके लिए चीन कई बार भारत के मीडिया संस्थानों और कुछ राजनीतिक दलों के माध्यम से भारतीय सैनिकों की क्षमताओं और उपलब्धियों पर सवाल उठाता है। भारतीय सेना के विभिन्न सैन्य अभियानों का प्रमाण मांगना चीन की इसी रणनीति का एक हिस्सा है। चीन रणनीतिक द्वंद्व पैदा करके भी भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाता रहा है। जम्मू-कश्मीर इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। चीन जानबूझकर जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर भारत को उलझाकर अन्य रणनीतिक मोर्चों पर से भारतीय नेतृत्व और सेना का ध्यान भटकाता रहा है।

मीडिया युद्ध के अंतर्गत चीन का राज्य-नियंत्रित मीडिया और सोशल मीडिया अभियान एवं प्लेटफॉर्म्स भारत के प्रति नकारात्मक नैरेटिव गढ़ने और प्रसारित करने के प्रयास करते हैं। चीन अपने राज्य-नियंत्रित मीडिया और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार नेटवर्क्स के जरिए भी वैश्विक मंच पर भारत के विरुद्ध नैरेटिव सेट करता है। चीन इसके द्वारा सूचनाओं के प्रभाव से विमर्शों को अपने पक्ष में मोड़ने के साथ-साथ भारत की वैश्विक छवि को कमजोर करने वाले विमर्श तैयार करने की कोशिश करता है। मीडिया माध्यमों से चीन भारतीय नीतियों, सुरक्षा चुनौतियों और विकास प्रयासों की भी आलोचना करता है। चीन प्रायोजित मीडिया भारत को आक्रामक और अस्थिर शक्ति के रूप में चित्रित करता है। दूसरा, चीन सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफार्म्स का प्रयोग करके भारत के विरुद्ध गलत समाचार और अफवाहें फैलाता है। इससे भारत के आंतरिक सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करने और संघर्षों को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता है।

नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने नेपाल में भी मीडिया संचालन पर काफी हद तक नियंत्रण कर लिया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि नेपाली मीडिया से चीन के कर्ज, नेपाली भूमि पर अतिक्रमण और काठमांडू में बीजिंग की राजनीतिक षड़यंत्र पर कवरेज गायब हो गई है। चीन की गतिविधियों से जुड़ी निगेटिव कवरेज मुख्यधारा की मीडिया आउटलेट से गायब कर दी गई है। चीन के मामले में आलोचनात्मक कवरेज अब सिर्फ नेपाल के स्थानीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं तक बचे हैं। नेपाल के अधिकारियों और पत्रकारों के अनुसार चीन ने पिछले 5-6 वर्षों में अनुमानित 9000 नेपाली पत्रकारों को फ्री में ट्रेनिंग के लिए चीन भेजा। हालांकि लौटने पर कोई भी पत्रकार इस सवाल का जवाब नहीं दे सका कि बीजिंग में उन्हें क्या पत्रकारिता प्रशिक्षण मिला, जहां कोई लोकतंत्र नहीं है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। दूसरे इन पत्रकारों के बच्चों को प्रतिष्ठित चीनी विश्वविद्यालयों में दाखिले भी दिए गए। इन्हें प्रवेश दिलाने में सहायता की गई और उनको स्कॉलरशिप दी गई।

कानूनी युद्ध के अंतर्गत चीन अपने प्रतिस्पर्धी देशों को कमजोर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानून और कानूनी साधनों का उपयोग करता है। इसमें चीन अपने रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कानूनी चुनौतियों और कूटनीतिक दबाव का उपयोग करता है। चीन की इस रणनीति का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय कानून, घरेलू कानून और कानूनी प्रक्रियाओं का उपयोग करके अपने भू-राजनीतिक और सैन्य लक्ष्यों को प्राप्त करना है। यह चीन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण है, जिसके जरिए वह अपने हितों को आगे बढ़ाता है और विरोधी देशों पर कानूनी दबाव डालता है। इसी के माध्यम से वह अपने अवैधानिक कार्यों को वैधता दिलाने का प्रयास करता है। उदाहरण के रूप में चीन भारत के साथ सीमा विवाद में अंतरराष्ट्रीय कानूनों की मनमानी व्याख्या करता है। इसी के अंतर्गत यह कई बार ऐसे मानचित्र जारी करता है, जिसमें भारतीय क्षेत्रों को चीनी भाषा में नाम दे देता है, ताकि वह उन पर अपना दावा जता सके। दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय दावों और विवादों को चुनौती देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता और कानूनी चुनौतियों का सहारा लेता है। अन्य देशों को ताइवान को एक सम्प्रभु राज्य के रूप में मान्यता देने से रोकने के लिए कूटनीतिक दबाव बनाना चीन की इसी रणनीति का एक अंग है।

भारत को चीन के विमर्श युद्ध और उसकी थ्री वॉरफेयर स्ट्रैटेजी (मनोवैज्ञानिक युद्ध, मीडिया युद्ध और कानूनी युद्ध) का जवाब देने के लिए एक बहुआयामी रणनीति अपनानी चाहिए, जो प्रभावी, सुसंगठित और स्थिर हो। सबसे पहले भारत को अपने मनोवैज्ञानिक युद्ध के तहत आत्मविश्वास और राष्ट्रीय संकल्प को मजबूत करने के लिए आक्रामक रणनीतियों को अपनाना चाहिए। सरकार और नागरिकों के बीच एकता और विश्वास को बनाए रखने के लिए राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने वाले अभियानों का संचालन किया जाना चाहिए। क्षेत्रीय स्तर पर भारत को अपनी कूटनीतिक रणनीतियों को मजबूत करना चाहिए। इसमें क्वाड जैसे संगठनों में अपनी भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ दक्षिण एशियाई देशों के साथ गहरे आर्थिक और सामरिक सम्बंध स्थापित करने चाहिए। इस विमर्श युद्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि भारत को अपनी स्ट्रेटेजिक कम्युनिकेशन प्रणाली को सुदृढ़ एवं आक्रामक करना चाहिए। भारत को अपने सूचना तंत्र और डिजिटल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करके न केवल चीन के भ्रामक प्रचार को रोकना होगा, बल्कि अपनी सशक्त छवि और सकारात्मक संदेश भी वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने चाहिए। चीन द्वारा फैलाई गई गलत सूचनाओं का जवाब देने के लिए तथ्यों पर आधारित तेज, सटीक और प्रभावी जानकारी के आदान-प्रदान की क्षमता विकसित की जानी चाहिए। इसके लिए भारत को अपना एक वैश्विक मीडिया नेटवर्क विकसित करने पर कार्य करना होगा।

 

 

 

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Tags: #chin #india #world

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