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मिथिला पर मंडराता जनसांख्यिकीय परिवर्तन का संकट

मिथिला पर मंडराता जनसांख्यिकीय परिवर्तन का संकट

by हिंदी विवेक
in नवम्बर २०२४, विशेष
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जिस तरह मिथिला में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि व साथ ही बांग्लादेशी-रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ बढ़ती जा रही है, उससे यहां व्यापक तौर पर जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो रहा है, जिसके कारण स्थानीय लोग पलायन कर रहे हैं। मिथिला की पहचान एवं अस्तित्व संकट में दिखाई दे रहा है।

बिहार के उत्तरी जिलों, विशेष तौर पर मिथिला में मुस्लिम जनसंख्या में बढ़ोत्तरी के साथ एक उल्लेखनीय जनसांख्यिकीय बदलाव हो रहा है। बिहार के सीमांचल में पिछले 3 दशकों में बहुत ही व्यापक जनसांख्यिकीय परिवर्तन देखने को मिला है। सीमांचल का क्षेत्र अपने आप में विशेष है। यहां की संस्कृति, धरोहर, आतिथ्य, सत्कार से लेकर साहित्य और हर एक विधा में यह क्षेत्र अनूठा है। सड़कों के जाल से इस क्षेत्र में विकास की गति को तेजी मिली है, लेकिन इस तेजी से ज्यादा यहां की जनसंख्या की वृद्धि है। अररिया और किशनगंज विश्व में सबसे तेज गति से जनसंख्या वृद्धि वाला क्षेत्र बना हुआ है, लेकिन इस क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि, सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से समानुपातिक नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण जन्म दर के अलावा बांग्लादेशी-रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ, नेपाल के साथ खुला बॉर्डर शामिल हैं।

सीमांचल में तेजी से मुस्लिम जनसंख्या बढ़ी है, जबकि हिंदू जनसंख्या की वृद्धि दर कम हुई है। इतना ही नहीं सीमांचल के अलग-अलग जिलों में जितनी भी नई बसावट हैं, इसमें मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या देखने को मिल रही है। सीमांचल के चार जिले किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया में मुस्लिम जनसंख्या की वर्तमान स्थिति इस प्रकार है।

 किशनगंज – 76.70 प्रतिशत

 कटिहार – 43 प्रतिशत

 अररिया – 40 प्रतिशत

 पूर्णिया – 38 प्रतिशत

इस क्षेत्र में जाने पर हर जगह मदरसे दिखेंगे। मुख्य मार्ग एवं अंदरूनी क्षेत्रों सहित सीमा के क्षेत्रों में इसकी संख्या और भी ज्यादा है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मदरसे और नई मस्जिदें बनी हैं। मदरसों की संख्या बहुत ज्यादा है, जिसको लेकर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह सर्वे कराने की लगातार मांग कर रहे हैं। यहां मदरसे इतने ज्यादा हैं कि इसे गिनना मुश्किल है।

बिहार के सीमांचल जिलों की बदलती जनसांख्यिकी देश के लिए संकट की घंटी है। बिहार में इस्लामिक संगठनों और स्लीपर सेल की गतिविधि और सीमांचल की बदलती जनसांख्यिकी को सम्पूर्णता में देखने की जरूरत है।

किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया जिला सयुंक्त रूप से सीमांचल के नाम से जाने जाते हैं। यहां पर दशकों से बांग्लादेशी मुसलमानों का गैरकानूनी रूप से आकर बसना जारी रहा है। जिसके कारण यहां की जनसांख्यिकी और अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। भारत में मुसलमानों की औसत जनसंख्या 17 प्रतिशत है। वहीं बिहार के सीमांचल में मुसलमानों की औसत जनसंख्या लगभग 48 प्रतिशत है। पिछली जनगणना के अनुसार इन चारों जिलों की कुल जनसंख्या 108 लाख है, जिसमें मुस्लिम जनसंख्या 49 लाख है।

राजनीतिक रूप से बिहार के कुल 243 में से 17 विधायक यहां से चुन कर आते हैं। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि राजनीतिक रूप से बिहार को यहां से प्रभावित करने की कोशिश हो रही है।

राष्ट्रीयता की भी जांच होनी चाहिए
बिहार में जातीय जनगणना हुई है, तो फिर राष्ट्रीयता की भी जांच होनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि जातिगत जनगणना के आकड़ों में घुसपैठी यहां की राष्ट्रीयता प्राप्त कर लें।

1 – डॉ. संजय जायसवाल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष-भाजपा

वहां की वस्तुस्थिति पर लोगों ने जानकारी दी कि पिछले कई दशकों से उन्हें राजनीतिक दलों ने केवल वोट बैंक की तरह उपयोग किया है और वहां की स्थिति गैरकानूनी रूप से बांग्लादेशी लोगों के आने से भयानक होती जा रही है।

सीमावर्ती जिले बिहार के पिछड़े क्षेत्रों में से प्रमुख हैं। यहां पर साक्षरता दर बिहार की कुल साक्षरता से लगभग आधी है। पोठिया नामक प्रखंड बिहार का ही नहीं बल्कि एशिया का सबसे पिछड़ा प्रखंड है। किशनगंज मिनी पाकिस्तान बन गया है। पूर्णिया जिले के अंदर पाकिस्तान नाम का एक गांव भी है।

यूपीए सरकार ने इस संदर्भ में उदासीनता दिखाई। एनडीए की सरकार भाजपा के नेतृत्व में केंद्र में 2014 से शासन में है। इसके पहले भी शासन में रही है। बिहार में नीतीश कुमार के साथ 15 वर्षों तक शासन में रही है। इसके बावजूद भी कोई ठोस पहल नहीं की गई। एनआरसी की बात केवल चुनाव के समय होती है। बिहार में सरकार चला रही, कभी भाजपा की भागीदार रही जेडीयू ने एनआरसी के मुद्दे पर अपना स्टैंड स्पष्ट किया कि वो बिहार में रह रहे सभी को बिहारी मानती है। उसके लिए बांग्लादेशी कोई मुद्दा नहीं है।

लोगों के अनुसार बिहार में भाजपा ने सत्ता में बने रहने के लिए अपने को जदयू के सामने समर्पित कर दिया था। परिणामत: सीमांचल में जनसांख्यिकी की बदलती स्थिति को रोकने के लिए कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुईं। लोगों ने कहा कि राजनीतिक संदर्भ में जेडीयू के लिए अपने वोट बैंक के राजनीतिक लाभ के लिए न तो एनआरसी कोई मुद्दा है, न ही बांग्लादेश से आए घुसपैठी।

2 – जनसंख्या विस्फोट पर नियंत्रण आवश्यक
इस क्षेत्र में जनसंख्या नियंत्रण बहुत जरूरी है, क्योंकि अब यह जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में पहुंच गया है, जबकि संसाधन सीमित हैं।
– रामसूरत राय, पूर्व मंत्री, बिहार सरकार

मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या और डेमोग्राफी चेंज- 

यूं तो मिथिला में सामाजिक सद्भाव अपने उत्कृष्ट रूप में देखा जाता रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में मिथिला क्षेत्र में मुस्लिमों की बढ़ती जनसंख्या ने पूरे डेमोग्राफी को ही चेंज कर दिया है। दरभंगा जिले की बात करें तो यहां 2011 में मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 8.81 लाख थी, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या 30.42 लाख थी। वहीं 2024 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 10.88 लाख है, जबकि हिंदुओं की अनुमानित जनसंख्या लगभग 37.55 लाख है। कटिहार बिहार का सबसे अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाला जिला है। 2011 के सेंसस के अनुसार कटिहार जिले में 13.65 लाख मुस्लिम थे, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या 16.84 लाख थी। वहीं 2024 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 16.85 लाख हो गई है, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 20.79 लाख है। 2011 की जनगणना के अनुसार पूर्णिया जिले में 12.55 लाख मुस्लिम थे, वहीं हिंदुओं की जनसंख्या 19.89 लाख थी। वहीं 2024 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 15.49 लाख हो गई है, जबकि हिंदुओं की अनुमानित जनसंख्या लगभग 24.55 लाख है। 2011 में अररिया जिले में 12.07 लाख मुस्लिम थे और हिंदुओं की जनसंख्या 15.93 लाख थी। वहीं 2024 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 14.90 लाख हो गई है, जबकि हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 19.67 लाख के करीब हो सकती है। किशनगंज बिहार का ऐसा जिला है जहां हिंदू से भी अधिक मुसलमानों की जनसंख्या है। 2011 की जनगणना के अनुसार इस जिले में 11.49 लाख मुस्लिम थे और हिंदुओं की जनसंख्या 5.31 लाख थी। वहीं 2024 में मुसलमानों की अनुमानित जनसंख्या 14.18 लाख हो गई है और हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 6 लाख 55 हजार होने का अनुमान है। धार्मिक आधार पर भारत में जनसांख्यिकीय बदलाव के आंकड़े को लेकर बिहार में सियासी बवाल मचा हुआ है।

3 – विदेशी फंडिंग औरहवाला कारोबार की हो जांच
जिस तेजी से इस क्षेत्र में मदरसा बन और बढ़ रहा है, इसकी फंडिंग की भी जांच होनी चाहिए क्योंकि विदेशी फंडिंग के जरिए इन सबकी आड़ में हवाले का भी कारोबार चल रहा है।
– राजीव सिन्हा, विशेषज्ञ

4 – मदरसों का होना चाहिए सर्वे
तुष्टिकरण की वजह से यहां ऐसा हो रहा है और 1961 से घुसपैठियों के कारण यहां मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ी है, साथ ही इस क्षेत्र में मदरसे भी लगातार बढ़े हैं। जिसमें ज्यादातर निजी हैं, इसलिए उत्तर प्रदेश की तरह बिहार में भी मदरसों का सर्वे होना चाहिए।
– गिरिराज सिंह, केंद्रीय मंत्री

5 – डेमोग्राफिक चेंज पर होना होगा मुखर और आक्रामक
प्रवासी मैथिलि समाज या इनसे जुड़ी संस्था, संगठन, देश-विदेश में कितनी ही मैथिलि भाषा, संस्कृति, सभ्यता, गौरवशाली एवं समृद्ध इतिहास का गुणगान करे, लेकिन जब तक वे मुस्लिमों की बढ़ती जनसंख्या, लैंड जिहाद, धर्मांतरण एवं डेमोग्राफिक चेंज जैसे ज्वलंत मुद्दों पर आक्रामक नहीं होंगे और समाज को जागरूक नहीं करेंगे, तब तक उनकी सामाजिक सक्रियता (कार्यक्रमों) पर प्रश्नचिन्ह लगा रहेगा।
– मनोज ठाकुर, सामाजिक कार्यकर्ता

6 – लैंड जिहाद के कारण हो रहा स्थानीय लोगों का पलायन
1980 तक सीमांचल के क्षेत्र में जनसंख्या को लेकर कोई बात नोटिस लेने जैसी नहीं थी, लेकिन 1980 के बाद धीरे-धीरे स्थिति बदलनी शुरू हुई और अब जनसंख्या विस्फोट की स्थिति है। यहां जमीन जेहाद भी चल रहा है। जिसके कारण स्थानीय लोग पलायन कर रहे हैं और ऊंची कीमत पर मुस्लिम समाज के लोग जो घुसपैठिए हैं वे इसे खरीद रहे हैं। यहां आने के बाद आधार कार्ड से लेकर सभी तरह के सरकारी प्रपत्र ये बना लेते हैं और इन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है क्योंकि ये यहां के वोट बैंक बन जाते हैं।
– राजीव रंजन, विशेषज्ञ

संभावना एवं चुनौतियां

वर्तमान समय में प्रशांत किशोर राजनीति की एक नई अवधारणा स्थापित करने में लगे हैं। पूर्व में एक राजनैतिक प्रबंधकार रहे प्रशांत किशोर ने भिन्न-भिन्न विचारधारा के साथ काम किया है, जिनका आपस में विरोधाभास भी रहा है। समय और परिस्थितियों के अनुसार एक राजनीतिक संयोजक की भूमिका में उन्होंने भिन्न-भिन्न नीतियों का समर्थन एवं विरोध किया है।

राजनीतिक विरोधियों द्वारा उन्हें विशुद्ध रूप से व्यवसायिक सम्बोधित करना हो, राजनीतिक पंडितों के द्वारा उनकी विद्वत्ता की प्रशंसा करना हो अथवा जन सामान्य द्वारा उनके तार्किक विचारों का समर्थन करना हो, लोगों के उनके प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण को दर्शाता है। विगत वर्षों में पदयात्रा करना हो अथवा जन संगोष्ठी आयोजित करना हो या फिर अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय, ऊर्जा, धन तथा बल समाज के लिए समर्पित करना हो, ये सभी प्रयास उनकी बिहार के प्रति प्रतिबद्धता एवं कर्तव्यनिष्ठा को इंगित करते हैं।

 

– भास्कर झा

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