पूरे मिथिला क्षेत्र से रोगी और उनके परिजन उपचार हेतु दरभंगा आते हैं, लेकिन वहां भी रोगी राम भरोसे ही हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव तो है ही, इसके साथ डॉक्टरों की संवेदनहीनता और दुर्व्यवहार पीड़ादायक व असहनीय है। राज्य सरकार विकास के मोर्चों के साथ ही नागरिकों के स्वास्थ्य को लेकर भी गम्भीर नहीं है।
मिथिला के लोग दुनिया भर में जाकर खूब नाम और धन कमा रहे हैं। ऐसे वरिष्ठ आईएएस, आईपीएस अधिकारियों की गिनती मिथिलावासियों ने करना बंद कर दिया है, जो मिथिला से निकल कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के बड़े अधिकारी हैं अथवा सेवानिवृत्त हो चुके हैं। बावजूद इसके किसी ने मिथिला क्षेत्र के प्रति अपना यह दायित्व नहीं समझा कि वहां के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो और मिथिल के निवासी भी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए न तरसें। कहने को अनगिनत अस्पताल और उससे कहीं अधिक स्कूल यहां खुल गए हैं। गली-गली में शिक्षक और डॉक्टर हैं, लेकिन अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है।
स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी चुनौतियां
यदि दरभंगा में स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी कुछ समस्याओं का यहां उल्लेख करें तो उसकी शुरुआत दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (डीएमसीएच) से की जानी चाहिए। यह बिहार का सबसे बड़ा अस्पताल है, लेकिन इस अस्पताल में रोगी और डॉक्टरों के बीच भिड़ंत, डॉक्टरों का इमरजेंसी सेवा बंद कर देना या फिर उनका हड़ताल पर चले जाना आम बात हो गई है। अब स्थानीय लोग स्वच्छता और बुनियादी सुविधाओं की कमी की बात तक नहीं करते। उन्हें गंदगी में अपना उपचार कराने की आदत पड़ गई है। इतना ही नहीं, अस्पताल का भवन भी जर्जर अवस्था में है।
दरभंगा के अंदर जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, वहां जगह और सुविधाओं का घोर अभाव है। इसके कारण स्वास्थ्यकर्मियों को कार्यालय में, वार्ड के बिस्तरों पर और कभी-कभी जमीन पर भी सोना पड़ता है। चिकित्सक और कर्मियों की कमी के कारण लोगों को उपचार के लिए डीएमसीएच भेज दिया जाता है या उन्हें केवटी जाना पड़ता है। केवटी से भी रोगियों को डीएमसीएच ही भेजा जाता है। सितम्बर के दूसरे सप्ताह में डीएमसीएच परिसर स्थित मदर एंड चाइल्ड केयर हॉस्पिटल में उपचार करा रही केवटी से आई महिला मरीज की मृत्यु के बाद परिजनों ने जमकर हंगामा किया। परिजनों ने डॉक्टरों पर उपचार में कोताही बरतने का आरोप लगाया। परिजन शव को साथ ले जाने को भी तैयार नहीं थे। बहुत समझा बुझाकर उन्हें भेजा गया।
यह भी दरभंगा की स्वास्थ्य सुविधा से जुड़ी सच्चाई है कि यहां के लिए पटना से स्वास्थ्य सुविधाएं चलती तो हैं, लेकिन वह सुविधाएं दरभंगा तक नहीं पहुंच पातीं। यह दरभंगा वालों से छुपी हुई बात नहीं है कि डीएमसीएच में मरीजों को सही उपचार नहीं मिल पाता और उन्हें पीएमसीएच या अन्य अस्पतालों में भेज दिया जाता है। क्या मरीजों के साथ इस तरह का व्यवहार करने वाले अस्पतालों का कोई उत्तरदायित्व अपने मरीज के प्रति या उनका केस खराब करने के प्रति नहीं बनती? शहर में अस्पतालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव जस का तस बना हुआ है।
अभी हाल ही में डीएमसीएच से खबर आई कि वहां फ्री डायलिसिस पूरी तरह बंद कर दी गई है और यह हाल पिछले एक महीने से है। इसलिए गरीब मरीजों को मजबूरी में डायलिसिस की दवाइयां तीन हजार रुपए खर्च करके बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं। स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार सरकार की ओर से किडनी रोग के मरीजों को मुफ्त डायलिसिस की सुविधा देने का दावा पूरी तरह से फेल होता दिख रहा है। डीएमसीएच के उपाधीक्षक डॉ. हरेंद्र कुमार मीडिया से बातचीत करते हुए कहते हैं कि उन्हें फ्री डायलिसिस बंद हो जाने की सूचना मीडिया से ही मिली है। जब अस्पताल के उपाधीक्षक को अस्पताल की बदहाली की जानकारी मीडिया से मिल रही है फिर दरभंगा का आम आदमी कैसे डीएमसीएच में अपने परिजनों की भर्ती होने के बाद स्वस्थ होकर उनके घर लौटने का विश्वास करे? हर वर्ष बारिश के मौसम में पूरे अस्पताल में जलजमाव की स्थिति होती है, लेकिन कोई दिन ऐसा नहीं होता जिस दिन लगभग 3000 से अधिक लोग यहां उपचार के लिए ना आते हों। 2000 से अधिक लोग तो अस्पताल की मेन ओपीडी में होते हैैं।
यह बात प्रदेश सरकार को स्मरण कराने की आवश्यकता है कि देश का संविधान भारत के नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा का अधिकार देता है और सरकार का यह कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के इस अधिकार की रक्षा के लिए उन तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाए।
– कुमारी अन्नपूर्णा