बिहार के मिथिला में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। बस उन्हें एक अवसर की आवश्यकता है। इसी चाह में अधिकतर युवा यहां से पलायन कर जाते हैं, परंतु ऐसे लोग भी यहां हैं जो अपनी कला, योग्यता के बल पर आर्थिक स्वावलम्बन का आदर्श समाज के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
बिहार का मिथिला क्षेत्र न सिर्फ प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ की विभीषिका के लिए जाना जाता है, बल्कि अपनी कृषि उर्वरता, अपनी लोककला, संस्कृति और इस क्षेत्र से सम्बंधित जानीमानी हस्तियों की वजह से भी प्रसिद्ध है। यहां की मिट्टी में पले-बढ़े लोग आज केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपने नाम का परचम लहरा रहे हैं। मिथिला में बिहार के तिरहुत प्रमंडलीय जिले दरभंगा, मुंगेर, कोसी, पूर्णिया और भागलपुर प्रमंडल तथा झारखंड के संथाल परगना प्रमंडल के साथ-साथ नेपाल के तराई क्षेत्र के कुछ भाग भी शामिल हैं
उदित नारायण झा : पद्मश्री, पद्मभूषण, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार तथा कई सारे फिल्मी पुरस्कारों से सम्मानित बॉलीवुड के मशहूर गायक उदित नारायण का जन्म 1 दिसम्बर 1955 को बिहार के सुपौल जिले के बायस गोठ गांव के एक मैथिली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह क्षेत्र बिहार और नेपाल का बॉर्डर है। इस कारण उदित नेपाल में भी उतने ही पॉपुलर रहे, जितने की बिहार में। 1970 में नेपाल के रेडियो में लोक गायक के रूप में अपने गायन की शुरुआत करने वाले उदित ने नेपाली फिल्म ‘सिंदूर’ से फिल्मों की दुनिया में कदम रखा था और वर्ष 1980 में बॉलीवुड के एक प्लेबैक सिंगर के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की। हालांकि करीब 18 वर्षों का उनका यह सफर बेहद संघर्षपूर्ण रहा। वर्ष 1988 में रिलीज हुई बॉलीवुड फिल्म कयामत से कयामत फिल्म में गाए गाने ‘पापा कहते हैं’ ने उदित को एक ‘स्टार सिंगर’ के रूप में स्थापित किया। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और तेलुगु, तमिल, मैथिली, मलयालम, कन्नड़, ओडिया, नेपाली, भोजपुरी, बंगाली सहित कई अन्य भाषाओं में कुल मिला कर 4000 से अधिक गाने गाए। भारतीय पार्श्वगायकी में अपने इस विस्तृत योगदान हेतु उदित नारायण को वर्ष 2009 में पद्मश्री पुरस्कार, वर्ष 2016 में पद्मभूषण पुरस्कार, चार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और पांच फिल्मफेयर पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।
उषा झा : बिहार-नेपाल सीमा पर स्थित एक गांव में जन्मीं उषा झा की आरम्भिक पढ़ाई जिला मुख्यालय पूर्णिया में हुई। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करते ही उनकी शादी हो गई और शादी के बाद वह पटना आ गईं। हालांकि शादी के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। निजी ट्यूशन के माध्यम से, पत्राचार पाठ्यक्रम और सरकारी स्कूल से उन्होंने मास्टर डिग्री प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की, लेकिन उनकी इच्छा एक सफल उद्यमी के रूप में अपनी पहचान बनाना था। इसी उद्देश्य से उन्होंने वर्ष 1991 में ‘पेटल्स क्राफ्ट’ की स्थापना की। उषा झा के प्रयासों से बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाली महिलाएं ‘कोहबर’ में बनाई जाने वाली लोककला की सहायता से आर्थिक रूप से स्वावलम्बी हो रही हैं। उषा झा की संस्था मिथिला चित्रकारी के जरिए करीब 300 से अधिक महिलाओं को रोजगार देकर वित्तीय सशक्तीकरण के लिए प्रेरित कर रही हैैं। उनके ग्राहक भारत सहित अमेरिका और यूरोप में भी फैले हैं। उषा झा वर्तमान में ‘बिहार महिला उद्योग संघ’ की भी अध्यक्षा हैं, जिसके द्वारा विभिन्न अवसरों पर देश के अलग-अलग शहरों में महिलाओं के आर्ट एंड क्राफ्ट से सम्बंधित स्टॉल लगाए जाते हैं।
कल्पना झा : अचार का व्यापार शुरू करने वाली 52 वर्षीय महिला कल्पना झा घर में अपने खाने के लिए खुद तरह-तरह के अचार बनाया करती थीं। लोगों को उनके अचार का स्वाद खूब पसंद भी आता था। कोरोना काल में आपदा को अवसर में बदलने के उद्देश्य से उन्होंने अपनी भाभी उमा झा के साथ मिल कर अपनी इस कला को एक व्यवसाय का रूप देने की ठानी। शुरुआत में उन्होंने छोटे रूप में अचार बना कर बाजार में उतारा। फिर मांग बढ़ी, तो सभी तरह के मापदंड के लिए कागजी प्रक्रियाओं को पूरा करके अपने अचार के विभिन्न प्रकारों को ‘झा जी अचार’ के ब्रांड नाम ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म्स में लांच किया। कुछ ही समय में उत्पादन से ज्यादा मांग होने के कारण उन्होंने अन्य लोगों को भी अपने इस व्यवसाय से जोड़ा। इस तरह वर्तमान में ननद-भाभी की ये जोड़ी मिल कर करीब 20 लोगों को रोजगार दे रही हैं। ‘झा जी अचार’ ऑफलाइन के साथ-साथ ऑनलाइन ऑर्डर के जरिए भी लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। इस ब्रांड के अंतर्गत आम, कटहल, नींबू, मिर्च, मिक्स अचार आदि कई तरह के अचारों का स्वाद ग्राहकों भी को भी खूब भा रहा है।
दरभंगा की ननद-भाभी उमा झा और कल्पना झा की यह जोड़ी शार्क टैंक इंडिया सीजन 1 में फंड जुटाने पहुंचीं थी। शो में उन्होंने ‘झा जी अचार’ के लिए 10 प्रतिशत इक्विटी (हिस्सेदारी) के बदले 50 लाख की रकम मांगी थी। उस वक्त शार्क ने ‘झा जी अचार’ के ऑफर को ना कह दिया था, जिस कारण उन दोनों को खाली हाथ लौटना पड़ा था। बाद में शार्क इंडिया सीजन 2 की शुरुआत के साथ ही जज व शुगर कॉस्मेटिक्स की सीईओ विनीता सिंह और एमक्योर फॉर्माक्यूटिकल्स की मालकिन व जज नमिता थापर ने उमा झा तथा कल्पना झा के गांव दरभंगा पहुंच कर ननद-भाभी की जोड़ी को 50 लाख की बजाय 85 लाख रुपए का चेक सौंपा। इसके बदलेे उन्होंने ‘झा जी अचार’ में पहले के ऑफर 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी की जगह सिर्फ 8.5 प्रतिशत शेयर लिया है।
-रचना प्रियदर्शनी