मानव सभ्यता में मनोरंजन हेतु खेल को ही सर्वाधिक लोकप्रिय माना गया है। मिथिला की मिट्टी में खेले जाने वाले खेल आज भी लोगों को बहुत याद आते हैं। इन खेलों में पिट्टो, कबड्डी, चिक्का, ढेंग-पानी, झिझिर कोना, कित-कित, विष-अमृत, सतघरा, आजन आजू, गोटरस, करिया झुम्मर, रस्सीकूद, कनियापुतरा, घूरमी आदि प्रमुख हैं।
खेल मानव संस्कृति का अभिन्न अंग है। खेल का इतिहास भी उतना ही पुराना है जितना मानव सभ्यता का। हमारे पौराणिक ग्रंथ रामायण और महाभारत में हम तीरंदाजी, पच्चीसी (चौसर), घुड़दौड़, रथ दौड़, मल्ल युद्ध आदि के संदर्भों को उद्धृत पाते हैं। मिथिला में कुछ निम्नलिखित खेल खेले जाते रहे हैं। जिनमें गिल्ली डंडा, पिट्टो, कबड्डी, चिक्का, ढेंग-पानी, झिझिर कोना, कित-कित, पच्चीसी/चौसर, गोली (कंचा), पकड़म-पकड़ी, विष-अमृत, रेलगाड़ी, गुड्डी खेल, पतंगबाजी, आंख मिचौली, लुक्का छिपी, लंगड़ी, अंताक्षरी, चोर-पुलिस-राजा-मंत्री, सतघरा, आजन आजू, गोटरस, करिया झुम्मर, रस्सीकूद, कनियापुतरा, कुश्ती, तैराकी, खो-खो, घूरमी, शिकार आदि खेल शामिल है।
गिल्ली डंडा : गिल्ली डंडा मिथिला का एक प्रसिद्ध और सर्वाधिक खेले जाने वाला खेल है। सामान्यतः यह सर्दियों में खेला जाता है। ये छोटे आयु वर्ग (8 वर्ष से 15 वर्ष) बच्चों के लिए मनोरंजन का सबसे उत्तम खेल है।
पिट्टो : इसे सात समतल और गोल पत्थर के टुकड़ो और एक हल्की गेंद जो कई बार कपड़ों की सहायता से बनी होती है, से खेला जाता है। इसमें दो टीमें होती हैं। एक टीम, एक के ऊपर एक रखे पत्थर के टुकड़ों को गेंद मारकर गिराती है और कोशिश करती है कि दूसरी टीम से एक भी गेंद मारे बिना उन पत्थरों को पूर्ववत सहेज दे। सहेजने में असफल होने पर दूसरी टीम की जीत मानी जाती है।
कबड्डी : कबड्डी मिथिला में खेले जाने वाले सभी खेलों में अग्रिम स्थान पर है। इसे दो दलों के बीच खेला जाता है। हमारे यहां कई सारी छोटी कविताएं भी कबड्डी खेलने के लिए बनी हैं। इसका उपयोग खिलाड़ी खेल के दौरान करते हैं। जब वो दूसरे दल के ऊपर धावा बोलते हैं। इन कविताओं को हमारे यहां फकरा कहते हैं। कुछ फकरा मैं यहां उद्धृत कर रहा हूं –
- चेत कबड्डी चेतकार हार ने टुटए खबरदार।
- चल कबड्डी चटका उठा ले पटका हुली दे बे-खटका।
चिक्का : ये भी दो गुटों के बीच खेला जाने वाला खेल है। जिसमें दोनों पक्ष एक रेखा के दोनों ओर खड़े रहते हैं और अपने विरोधी टीम के खिलाड़ी का हाथ पकड़ अपनी ओर खींचते है। जो टीम सभी खिलाड़ियों को अपने क्षेत्र में ले आती है उसी टीम को विजेता माना जाता है।
ढेंग-पानी : इसे कई सारे बच्चे एक साथ खेलते हैैं। इसमें एक बच्चा लीड करता है और वो कभी ढेंग बोलता है तो कभी पानी। नियम के अनुसार जब ढेंग बोला जाए तब आस-पास की ऊंची जगहों पर जाना होता है और पानी बोलने पर निचले स्थान पर। उदाहरण के लिए यदि बच्चे आंगन में खेल रहे हैं तो जब ढेंग बोला जाए वो बरामदे पर जा सकते हैं और जब पानी बोला जाए वे आंगन में रह सकते हैं। जो लीड करता है वो जब किसी को ढेंग बोलने पर पानी में पकड़ लेता है यानी निचले स्थान में पकड़ लेता है, तो फिर वह व्यक्ति लीड बन जाता है, जिसे खेल की भाषा में चोर भी कहते हैं।
झिझिर कोना : इसे पांच बच्चे एक साथ खेल सकते हैं। यह एक इंडोर गेम है जिसे घर के भीतर खेला जाता है। इसमें चार बच्चे चार कोने में रहते हैं और एक चोर बच्चा (खेल की भाषा में) बीच में रहता है। खेल के नियम में वो सबसे पूछता है कि झिझिरकोना- झिझिरकोना कोन कोना जाऊ, ऐ कोन जाऊ की दोसर कोन जाऊ?
खेल के नियम के अनुसार बीच वाले बच्चे को किसी का कोना कैप्चर करना होता है। जिन बच्चों के पास कोना होता है वो सब आपसी तालमेल से बीच वाले को डिस्ट्रैक्ट करते हैं और अपना घर आपस में बदलते रहते हैं। इसी क्रम में वो बच्चा किसी का घर कैप्चर करने में सफल हो जाता है और जो अपना कोना खो देता है वो वैसे ही करता है जैसे पहले चोर ने किया था।
कित-कित : इसे बच्चियां अधिक खेलती हैं। इसमें मिट्टी के बर्तन का टुटा हुआ भाग उपयोग में लाया जाता है। मिट्टी पर छह घनाकार चिन्ह बना कर खेला जाता है। जिसमें मिट्टी के बर्तन से निकाले गए टुकड़े को एक पैर पर चलते हुए एक सांस में सभी 6 बॉक्स को पार करना होता है।
विष-अमृत : इस खेल को कई बच्चे आपस में मिलकर खेलते हैं। ये आपसी बंधुभाव का खेल है। इसमें एक बच्चा सभी को विष देता है, यानी वो जिसे पकड़ लेता है वो बच्चा खेल के नियम में मर जाता है और स्टेच्यू बन जाता है। बाकी बच्चे उसे अमृत देने का प्रयास करते हैं। इसके लिए वो चोर को डिस्ट्रैक्ट करते हैं और अपने साथी को बचाते हैं।
लुुका छिपी : नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें एक बच्चा चोर होता है और उसे बाकी छुपे बच्चों को पकड़ना होता है।
गोटरस : इसे बच्चियां ही खेलती हैं। इसमें पत्थरों को उछाल कर एक साथ पकड़ना होता है, पर पहले उसे बैलेंस बना कर हथेली के उल्टे भाग पर टिकाना होता है। इन सबके अलावा कनिया पुतरा, सतघरा, आजन आजू आदि प्रमुख खेल है।
भारत में और मिथिला में पारम्परिक खेलों का इतिहास पूर्व वैदिक समय से ही रहा है। खेल हमारे जीवन, शरीर और मन दोनों के लिए नितांत आवश्यक है, परंतु आज के दौर में लोग खेल से दूर होते जा रहे हैं। कई खेल तो अब समाज से जैसे गायब ही हो गए हैं। बिना खेल के बच्चों का सर्वांगीण विकास सम्भव नहीं है।
-अम्बिकेश कुमार मिश्र