संसार की सर्वोपरि शक्ति-आत्मीयता

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संसार में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं, एक वे जो "शक्तिशाली" होते हैं, जिनमें "अहंकार" की प्रबलता होती है । शक्ति के बल पर वे किसी को भी डरा धमकाकर वश में कर लेते हैं । कम साहस के लोग अनायास ही उनकी खुशामद करते रहते हैं, किंतु भीतर…

‘100’ तक पहुंचने का सफर ‘0’ से ही शुरू होता है

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आज की कहानी पुणे के निवासी रामभाऊ की है। अंगूठा छाप रामभाऊ पढ़े लिखे तो नहीं थे पर "हुनरमंद" ज़रूर थे। वह पेशे से एक माली हैं और बंजर धरा को हरीभरी करने की कला में माहिर हैं। रामभाऊ घर-घर जा कर लोगों के बगीचे संभालते थे। गुज़र बसर लायक…

जरुरत से ज्यादा मोह आपको व्यर्थ बना सकता है

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एक बार गुरू ने अपने शिष्य को समझाते हुए,आम के पेंड की कहानी सुनाई–एक आम का वृक्ष था जिसमें ढ़ेर सारे आम पके हुए थे,एक दिन उस पेड़ का मालिक आया और पेड़ पर चढ़कर सारे आम तोड़ने लगा। परन्तु एक आम का फल वृक्ष से दूर होने का मोह…

“जीवन विद्या” को सीखें और जिंदगी का स्वरूप समझें

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"असुर", "मनुष्य" और "देवता" देखने में एक ही आकृति के होते हैं । अंतर उनकी प्रकृति में होता है। "असुर" वे हैं, जो अपना छोटा स्वार्थ साधने के लिए दूसरों का बड़े से बड़ा अहित कर सकते हैं, "मनुष्य वे हैं", जो अपना "स्वार्थ" तो साधते हैं पर "उचित अनुचित"…

दूसरों पर दोषारोपण करने से पहले स्वयं को जाँचें

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  बहुधा हम सब यह अभियोग करते रहते हैं कि संसार बहुत खराब हो गया है। जिसे देखो वह वैसे ही कार्य करने में लगा हुआ है, जो संसार की दु:ख-वृद्धि करते हैं, पर क्या कभी हम यह भी सोच पाते हैं कि संसार में दु:ख और कष्ट बढाने में…

सभ्य समाज का निर्माण ऐसे करेंगे

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जिस समाज में लोग एक दूसरे के दु:ख-दर्द में सम्मिलित रहते हैं, सुख संपत्ति को बाँटकर रखते हैं और परस्पर स्नेह, सौजन्य का परिचय देते, स्वयं कष्ट सहकर दूसरों को सुखी बनाने का प्रयत्न करते हैं, उसे "देव समाज" कहते हैं । जब जहाँ जनसमूह इस प्रकार पारस्परिक संबंध बनाए…

“वासना” को नियंत्रित कीजिये

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"वासना" में कामुकता मुख्य है । इसमें बरती गई ज्यादती जिंदगी की जड़ों पर कुल्हाड़े से किए जाने वाले वार की तरह घातक सिद्ध होती है । "वासना" की ललक में मनुष्य इससे जुड़ी सारी मान - मर्यादा को भूल जाते हैं । जीवनी शक्ति के इस खजाने का नाश…

सुखी रहने के अचूक उपाय “सादगी” और “मितव्ययता”

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"सादगी", "मितव्ययता" और "सामान्य श्रेणी" का जीवन यापन करने में ही मनुष्य का गौरव है । "सज्जनता" का यही परिधान है। समाज में जब तक यह प्रवृत्ति विकसित न होगी, हम अशांति और असभ्यता की ओर बढ़ते रहेंगे । कहते हैं कि जरूरतों से प्रेरित होकर मनुष्य दुष्कर्म करते हैं,…

प्रसन्न रहने के यथोचित कारण ढूंढने होंगे

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जीवन में बालक से लेकर बूढ़े तक सभी प्रसन्नता चाहते हैं और उसे पाने का प्रयत्न करते रहते हैं । ऐसा करना भी चाहिए। क्योंकि स्थायी "प्रसन्नता" जीवन का चरम लक्ष्य भी है । यदि मनुष्य जीवन में "प्रसन्नता" का नितांत अभाव हो जाए तो उसका कुछ समय चल सकना…

सामाजिक प्रगति के लिए धर्म बुद्धि आवश्यक

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मनुष्य हाड़-मांस का पुतला, एक तुच्छ प्राणी मात्र है, उसमें न कुछ विशेषता है न न्यूनता । उच्च भावनाओं के आधार पर वह देवता बन जाता है, तुच्छ विचारों के कारण वह पशु दिखाई पड़ता है और निकृष्ट "पापबुद्धि" को अपना कर वह असुर एवं पिशाच बन जाता है ।…

आपके घर की दीवारें सब सुनती हैं

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कभी आपने किसी घर में जाते ही वहाँ एक अजीब सी नकारात्मकता और घुटन महसूस की है ? या किसी के घर में जाते ही एकदम से सुकून औऱ सकारात्मकता महसूस की है ? मैं कुछ ऐसे घरों में जाता हूँ जहां जाते ही तुरंत वापस आने का मन होने…

महत्वाकांक्षाएं अनियंत्रित न होने पाए

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आजकल हमारा जीवन संघर्ष इतना बढ़ गया है कि हमें जीवन में संतोष और शांति का अनुभव नहीं हो पाता । बहुत से लोग जीवन भर विकल और विक्षुब्ध ही रहते हैं। हम जीवन में दिन-रात दौड़ते हैं । नाना प्रयत्नों में जुटे रहते हैं । कभी इधर कभी उधर…

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