कुष्ठ रोगी, मनोरोगी, विक्षिप्त, दिव्यांग आदि बेसहारा लोगों की सेवा-चिकित्सा के लिए समर्पित अंकितग्राम सेवा धाम (उज्जैन,म.प्र.) के संस्थापक समाजसेवी सुधीर भाई गोयल सच्चे अर्थों में मानवता के पुजारी हैं। हिंदी विवेक को दिए साक्षात्कार में उन्होंने सेवाधर्म और अपने जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं से परिचय कराया है।
आप किन महापुरुषों को अपना आदर्श मानते है?
मैं बाल्यकाल से ही महापुरुषों के जीवन से प्रेरित रहा। स्वामी विवेकानंद, महावीर स्वामी और महाराजा अग्रसेन मेरे आदर्श है और इनके जीवन संदेशों का मुझ पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। 1976 में आचार्य विनोबा भावे, 1987 में मदर टेरेसा और 1988 में बाबा आमटे और के साथ हुई मेरी प्रत्यक्ष भेंट और नानाजी देशमुख के मार्गदर्शन ने मेरे जीवन को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सेवा कार्य करने का विचार आपके मन में कब और कैसे आया?
मेरे बड़े मामा विक्षिप्त थे, मेरी बड़ी दादी मूक बधिर और बाल्यकाल से ही मंदबुद्धि थी। मेरे एक मित्र का भाई दिव्यांग था तो उनकी नारकीय स्थिति को देखकर मेरे मन में उनके लिए कुछ करने का पहली बार विचार आया।
तब आपकी पारिवारिक स्थिति कैसी थी और अब आपको अपने परिवार का कितना साथ मिलता है?
मेरे पिताजी का नाम सत्यनारायण है और वे ग्रामीण विद्यालय में शिक्षक थे। उन्होंने स्वाभिमान के साथ अपना आदर्श जीवन जिया। मेरा अभावों के बीच पालन-पोषण हुआ। हालांकि मेरी मां सत्यवती देवी बहुत बड़े धनाढ्य परिवार से थी। मेरे नाना-नानी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। मेरे फूफा जी रत्नाकर भारतीय बीबीसी लंदन में कार्यरत थे और अटल बिहारी वाजपेयी, राजमाता सिंधिया, लालकृष्ण आडवाणी जब भी लंदन जाते थे तब उन्हीं के यहां रुकते थे। वर्तमान समय में मेरे लिए आनंद की बात है कि सेवाकार्यों में मेरा पूरा परिवार साथ है। मेरी पत्नी कांता और दोंनों बेटियां मोनिका व गौरी भी मेरा पूरा सहयोग करती है और उन्होंने भी सेवाकार्यों को अपने जीवन का ध्येय बना लिया है। इसे मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानता हूं।
आपके जीवन का टर्निंग पॉइंट क्या था?
मैं 1974 में कॉलेज की ओर से बद्रीनाथ गया था, वहां मैं दुर्घटना का शिकार हुआ। ऊपर पहाड़ से 30-35 फीट नीचे गिरा, जिसके कारण मेरा सिर फट गया, लेकिन फिर कैसे ऊपर आया और क्या हुआ? यह भी बड़ी विचित्र चमत्कारिक घटनाक्रम हुआ, जिसमें मुझे एक नया जीवन मिला, जबकि चिकित्सकों ने कहा था मेरे जीवित रहने की कोई आशा नहीं थी। इसे मैं अपने जीवन का टर्निंग पॉइंट मानता हूं अतः मैंने शेष जीवन मानवता की सेवा को समर्पित करने का दृढ संकल्प लिया। पंचमढ़ी में 1979 में बच्चों की जीवन रक्षा में मेरे बाएं आंख की ज्योति गवाई, लेकिन सेवा से पीछे नहीं हटा। इसके बाद सभी ऐश्वर्य सुख को छोडकर अपनी 14 बीघा भूमि दान कर मध्य प्रदेश स्थित महाकाल वन क्षेत्र उज्जैन में गंभीर बांध के समीप अंकित ग्राम सेवाधाम की स्थापना 1989 में की।
आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कब जुड़े?
जब मैं 13 वर्ष का था तो मैं उज्जैन के महाकाल मंदिर के पास में ही चौराहे पर रहता था। वहां महाकाल शाखा लगती थी और तब मेरे पड़ोसी थे मुकुंद लवलेकर और वासुदेव सुभाष अग्रवाल। मैं उनके साथ में महाकाल शाखा जाने लगा। संघ की शाखा में ही मैंने राष्ट्रधर्म और सेवाधर्म का पाठ सीखा। बचपन से ही मुझ पर संघ संस्कार होने के कारण मैं संकल्पित होकर अपने उद्देश्य व लक्ष्य के प्रति अडिग रह पाया हूं। मेरा सौभाग्य है कि संघ के पू. सरसंघचालक सुदर्शन जी और नानाजी देशमुख जी से मेरी चर्चा और उनके साथ मेरा पत्र व्यवहार हुआ है।
सेवाकार्यों के दौरान आपने क्या खोया?
मेरा सपना चिकित्सक बनने का था, इसके लिए मैंने एमबीबीएस में प्रवेश भी लिया था, लेकिन इसे छोड़कर मैं सेवा कार्यों में जुट गया। आश्रम में 12 साल तक बहुत कठिन परिश्रम भगवान ने करवाया और बहुत सारी परीक्षाएं ली। सबसे पहले उन्होंने 13 दिसम्बर 1991 को मेरे इकलौते पुत्र अंकित को अपनी शरण में लिया। फिर 1992 में मेरी इकलौती बहन के पति की क्रूर हत्या हुई, 1993 में पिता नहीं रहे, लेकिन मैं ध्येय पथ से विचलित नहीं हुआ और मैंने अपने सेवाधर्म को नहीं छोड़ा।
सेवाधाम में किस तरह के रोगियों की सेवा सहायता की जाती है?
बेघर, बेसहारा, पीड़ित, शोषित, निराश्रित, दिव्यांग, मनोरोगी, विक्षिप्त, मरणासन्न, कुष्ठरोगी, संक्रामक रोगों के शिकार, असहाय गर्भवती माता-बच्चे को विशेष तौर पर हम प्राथमिकता देते हैं और उनकी सेवा सहायता करते हैं।
अभी आपके आश्रम में कितने लोगों की सेवा-चिकित्सा करने की क्षमता है?
सेवाधाम में 900 से अधिक बीमार असहाय लोग सेवा-चिकित्सा का लाभ ले रहे है और अधिकतम 700 लोगों की आश्रम की क्षमता है। अब तक 9 हजार से अधिक लोगों को हमने सेवा-चिकित्सकीय लाभ दिया है। भारत में शायद यह पहली संस्था होगी जिसने लगभग 190 लोगों का देहदान किया और 500 से अधिक नेत्रदान किया। हमारे सेवा कार्यों की सारी जानकारी संस्था की वेबसाईट रपज्ञळींसीराीर्शींरवहरारीहीरा.ेीस पर आपको मिल जाएगी।
आपको कुछ सरकारी सहायता भी मिल रही है?
मैं सरकार की आर्थिक सहायता पर कदापि विश्वास नहीं रखता, हालांकि सरकार देना चाहती है, पर हम लेना नहीं चाहते। हमारे लगभग सभी कार्य जन सहयोग से चलते हैं।
आपके सेवाधाम में किस प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाएं रोगियों को प्रदान की जा रही है?
स्वास्थ्य की दृष्टि से हमारा सबसे बड़ा प्रयत्न रहता है कि औषधी की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़े, इसके लिए हमने जहां एक भी पेड़-पौधा नहीं था, वहां सवा लाख से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए। इसके माध्यम से सम्पूर्ण वातावरण को शुद्ध किया। पौष्टिक आहार पर हम विशेष ध्यान देते हैं। होम्योपैथी और आयुर्वेद पद्धति से रोगियों का उपचार किया जाता है। यहां पर फिजियोथेरेपी सेंटर, ऑक्यूपेशनल थेरेपी सेंटर भी है।
अभी कितने डॉक्टर सेवाधाम में अपनी सेवाएं दे रहे हैं?
अभी अरविंदो इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के 6 चिकित्सक जिसमें हमारी डेंटल यूनिट भी है। आश्रम में वो लोग नियमित रूप से आते हैं और अपनी चिकित्सकीय सेवाएं देते हैं। इसके अलावा अनेक शासकीय-अशासकीय चिकित्सक हमारे रोगियों को देखते हैं। 11 डॉक्टरों की एक टीम भी हमें अपना सहयोग देती है।
समाज और सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं?
अभी वर्तमान में मानसिक अवसाद में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई हैं। सरकार को इसे गम्भीरता से लेते हुए बड़ी संख्या में काउंसलिंग सेंटर शुरू करना चाहिए। योग प्रशिक्षण केंद्र ज्यादा से ज्यादा प्रारम्भ होना चाहिए। मनोरोगियों के उपचार हेतु सभी जगहों पर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
सेवाधाम आश्रम की भविष्य की क्या योजनाएं है?
सेवा धाम आश्रम की आगामी योजना के अंतर्गत रोजगार की दृष्टि से विविध प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से हम पूरे आश्रम को स्वावलम्बी स्वरूप देना चाहते हैं। हमें बाहर की आवश्यकता ही न पड़े, इसलिए आश्रम में कैंसर, टीबी, एचआईवी और मरणासन्न लोगों के लिए 35 हजार स्क्वेयर फीट में हम पॉजिटिव केयर यूनिट का निर्माण कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त वहां पर विशेष बच्चों का हॉस्टल तथा शिक्षा केंद्र निर्माण हो रहा है। प्रधान मंत्री मोदी जी के योगगुरु डॉ. एच. आर. नागेंद्र जी के साथ हमारी प्राकृतिक चिकित्सालय और योग विश्वविद्यालय स्थापित करने के सम्बंध में चर्चा चल रही। हम दिव्यांग लोगों को स्पोर्ट्स एवं पैरालम्पिक के लिए तैयार करने तथा उन्हें प्रोत्साहित करने हेतु प्रयत्नशील है क्योंकि दिव्यांगों के क्षेत्र में कार्य करने की बहुत आवश्यकता है।
आपके सेवाधाम आश्रम में अब तक कितने समाज के गणमान्य जनों ने दौरा किया है?
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्य मंत्री डॉ. मोहन यादव, आचार्य रामसुंदर सुरिश्वर जी, तरुण सागर जी, मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, रा. स्व. संघ के भैयाजी जोशी, पराग अभ्यंकर, विहिप के आलोक कुमार, डॉ. नागेंद्र, पद्मश्री भिकुजी इदाते, पद्मश्री उमाशंकर पाण्डेय, बालयोगी उमेश नारायण, स्वामी भक्ति चारू महाराज, रामभद्रचार्य महाराज, अवधेशानंद, सत्यमित्रानंद, योग गुरु बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण, रमेश भाई ओझा आदि अनेक सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आदि क्षेत्रों से गणमान्यजन सेवाधाम में पधारे है। राष्ट्रपति समेत अनेक राज्यों के मुख्य मंत्रियों और मंत्रियों ने हमारे सेवाकार्यों की भूरी-भूरी प्रशंसा व सराहना की है।
आपके उल्लेखनीय सेवाकार्यों के लिए आपको कौन सा पुरस्कार मिला है?
मुझे विशेष तौर पर ‘इस्कॉन प्राइड ऑफ उज्जैन’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अभी हाल ही में तेलंगाना में लता राजा फाउंडेशन द्वारा राष्ट्रीय सेवा धार्मिक सम्मान 2024 और इंडियन ब्रेव हर्टस् द्वारा नई दिल्ली के भारत मंडपम् में राष्ट्रीय गौरव सम्मान 2024 से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा भी अन्य पुरस्कार मिले हैं। मुझे सिस्टर निर्मला जी के द्वारा सेवाधाम आश्रम को डेढ़ करोड़ रु. और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार देने की घोषणा हुई थी, जिसे मैंने अस्वीकार कर दिया। ईसाई मिशनरियों ने मुझे अनेक प्रकार के प्रलोभन दिए, लेकिन मैंने उनकी सहायता लेने से स्पष्ट मना कर दिया। मुझे सच्चे अर्थों में अपने सेवाधाम आश्रम को सनातन धर्म की एक विशिष्ट सेवा संस्था के तौर पर ही स्थापित करना है।
आश्रम की व्यवस्था कैसे संचालित होती है?
सेवाधाम में जिनकी हम सेवा चिकित्सा करते हैं, उनमें से ही हमारे स्वयंसेवक तैयार होते हैं। आश्रम की 80 प्रतिशत व्यवस्था का संचालन वहीं कर रहे हैं। भोजनशाला, गोशाला, सेवाकार्य, स्वच्छता आदि कार्य वह पूरे मनोयोग से कर रहे हैं।
आपके सेवाधाम में गौशाला भी है?
जी, हां, हमारे सेवा धाम आश्रम में गोशाला भी है और उसमें अभी 100 से 125 के बीच गोवंश है। हालांकि उसमें केवल चार-पांच गाय ही दूध देती है और उन्हें हम छोटे बिमार, कमजोर बच्चों में बांट देते है।
सुना है आप अपने पद से मुक्त होने वाले है?
आज भी लोग चाहे वह 80 या 90 वर्ष के हो गए हों, अपने पद को छोड़ना नहीं चाहते। विशेषकर संस्थाओं में ऊंचे पदों पर आसिन लोग अपने पद से चिपके रहना चाहते हैं। अभी मेरी आयु 67 साल है, 68 वां चल रहा है। मैं 26 जनवरी 2025 को अपने समस्त दायित्वों से मुक्त हो रहा हूं। इसके बाद मैं ग्रामीण भारत का भ्रमण करूंगा। आगे का जीवन लोगों को सेवाकार्यों की प्रेरणा देने तथा उनके सेवाकार्यों को और उत्कृष्ट बनाने के लिए मार्गदर्शन दूंगा। सेवाकार्यों से लोगों को कैसे जोड़ सकते हैं, प्रेरणा दे सकते हैं और विशेष तौर पर युवाओं को कैसे जोड़ सकते हैं? इसके लिए मैं सदैव मार्गदर्शक की भूमिका में रहूंगा।
हिंदी विवेक के पाठकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
चाहे आप जिस क्षेत्र में भी कार्यरत हो, वहां पूरी निष्ठा से अपने दायित्वों का निर्वहन करे। यदि हम अपनी पूर्ण क्षमता के साथ दायित्वों का निर्वहन करते हैं तो अपने कार्यों को और अधिक हम उत्कृष्ट बना सकते हैं तथा अपने जीवन को उत्कृष्ट बना सकते हैं। सत्य और नीति मूल्यों पर चल कर आप अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। अपनी आलोचनाओं को कभी अन्यथा नहीं लेना चाहिए बल्कि आलोचकों को अपना कल्याण मित्र समझना चाहिए। हिंदी विवेक राष्ट्रीय वैचारिक आंदोलन में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है और लोगों को विविध विषयों के माध्यम से जागृत करने का काम कर रहा है। हिंदी विवेक के माध्यम से सेवा के क्षेत्र में एक ऐसी क्रांति हो, जिसके माध्यम से विविध क्षेत्रों के सेवाकार्यों में लोग अग्रणी बनें। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ हिंदी विवेक के सभी पाठकों को दीपावली पर्व की बहुत-बहुत बधाई।