हिंदी गानों के अलावा वे मगही, मैथली, वज्जिका, भोजपुरी भाषा में सैकड़ों पारंपरिक एवं लोकगीत को अपनी अवाज से सजाया है. बिहार में विवाह, मुंडन, छट्ठी, सत्ईसा से लेकर समा चकेवा, छठ तक के गीत गाकर परंपरा को अपनी मधुर स्वर से जीवंत करके “बिहार स्वर कोकिला” बन गई. उन्हें मिथिला विभूति, संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार, बिहार गौरव, भिखारी ठाकुर सम्मान, बिहार रत्न सम्मान के साथ १९९१ में पद्मश्री और २०१८ में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था.
बिहार में कल नहाए खाए से छठ महापर्व की शुरूआत हुई. चारों तरफ छठ गीत से माहौल धार्मिक बना था, उसी बीच रात लगभग साढ़े नौ बजे मोबाइल फोन पर एक संदेश आया ‘शारदा सिन्हा जी ने एम्स में ली अंतिम सांसे…’ और मन उदास होकर पुरानी यादों में डूब गया.
शारदा जी का जन्म १९५२ में बिहार के सुपौल जिला में हुआ था. संगीत में पीएचडी करने के साथ वो समस्तीपुर के महिला कॉलेज में संगीत प्रशिक्षण का कार्य करने के साथ दूरदर्शन के लिए पारंपरिक गीत गाया करती थी. १९८९ में उन्होंने बॉलीवुड के लिए एक गाना गाया “कहे तो से सजना….” ने उन्हें क्षेत्रीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दी. बॉलीवुड में नदिया के पार, हम आपके हैं कौन और गैंग्स ऑफ वासेपुर में उन्होंने अपनी आवाज से जादू बिखेरा.
हिंदी गानों के अलावा वे मगही, मैथली, वज्जिका, भोजपुरी भाषा में सैकड़ों पारंपरिक एवं लोकगीत को अपनी अवाज से सजाया है. बिहार में विवाह, मुंडन, छट्ठी, सत्ईसा से लेकर समा चकेवा, छठ तक के गीत गाकर परंपरा को अपनी मधुर स्वर से जीवंत करके “बिहार स्वर कोकिला” बन गई. उन्हें मिथिला विभूति, संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार, बिहार गौरव, भिखारी ठाकुर सम्मान, बिहार रत्न सम्मान के साथ १९९१ में पद्मश्री और २०१८ में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था.
लगभग सवा महीना पहले शारदाजी के पति का अस्सी साल के आयु में निधन हो गया था और उसके कुछ दिनों बाद से ही वो दिल्ली एम्स में मल्टीपल मायोपिया से जद्दोजहद कर रही थी. वो अपने शारीरिक कष्ट के साथ अपने साथी से बिछड़न से भी दुखी थी और बीते दिनों सोशल मीडिया पर पोस्ट कर अपना दर्द साझा करते हुए लिखी भी थी कि ” सिंदूर बिन मंगिया ना शोभे… तब उन्होंने यह भी लिखा था कि सिन्हा जी मैं आपकी यादों के सहारे अपनी संगीत की यात्रा जारी रखुंगी और उनके बेटे अंशुमन सिन्हा के माध्यम से उन्होंने पहले से इस छठ के लिए रिकॉर्ड किए एक गीत को भी रीलिज करवा दिया, जो चंद घंटों में रिकॉर्ड तोड़ सफलता हासिल की.
अभी यह लिखते समय मेरे एक चाचाजी अपनी स्मृति साझा करते हुए मुझे बता रहे थे कि किसी प्रयोजन से वो १९८४ में कलकत्ता गए जहां वो एक जीप में बैठे हुए ग्रैंड होटल के पास से गुजर रहे थे तो वहां भीड़ दिखी। उन्होंने ड्राइवर से पूछा कि इतनी भीड़ यहां कैसे है? उसने बताया कि एक नया कैसेट आया है गाने का उसी को सुनने के लिये भीड़ लगी है। उन्होंने उससे कहा कि वापस चलो, ऐसा कैसा गाना है जिसे सुनने के लिए इतने लोग भीड़ लगा दें। वह गाड़ी घुमा कर मुझे वहां यह कहते हुए ले गया कि वहां पुलिस वाला गाड़ी देर तक खड़ा नहीं करने देगा। फिर भी चलो, उन्होंने कहा। थोड़ी देर में लोग जीप में बैठे-बैठे भीड़ का हिस्सा बन गए। गाना बज रहा था, “पनियाँ के जहाज से पलटनिया…”। उन्होंने कोतूहल वश एक आदमी से पूछा कि ये कौन गा रहा है? उसने बताया कि कोई शारदा सिन्हा हैं बिहार की। उन्होंने पूछा कि वह तो भजन गाती हैं? वह बोला कि गाती होंगी पर अभी तो यह गाना सुनिये। यह कैसेट जहां बजता है, इतनी ही भीड़ जमा होती है। कभी-कभी रास्ता जाम हो जाने पर पुलिस खदेड़ती है लोगों को।
जिसका गायन आपका रास्ता रोक कर सुनने के लिए मजबूर कर दे उन विदुषी गायिका का चले जाना बहुत भारी पड़ता है।
अभी यह लेख लिखते समय मेरे मुहल्ले में छठ की गीत बज रही है. शारदा जी का पार्थिव शरीर मेरे घर के पास स्थित उनके घर पर पहुंच गया है. ट्वीटर के माध्यम से प्रधान मंत्री से लेकर लाखों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है. उनका शरीर भले शांत पड़ा है, लेकिन उनके गीत अब भी हमारे शहर को भक्तिभाव में डुबाए हुए है..
-अनुपमा कुमारी