राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सदैव विमल – डॉ. मोहन जी भागवत
मुंबई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुद्ध व पवित्र है, उसमें कभी मल (मैल) नहीं आ सकता इसलिए वह विमल है। संघ स्वयंसेवक कैसा हो? इसके सर्वोत्तम उदाहरण बिमल केडिया जी हैं। अपने आयु के 65 वर्ष उन्होंने निस्वार्थ भाव से संघ सेवा की है। संघ साधना के बिमल जी साक्षात आदर्श है। यह उद्बोधन रा. स्व. संघ के पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने हिंदी विवेक प्रकाशित ‘अप्प दीपो भव’ ग्रंथ के विमोचन कार्यक्रम के दौरान दिया। उन्होंने आगे कहा कि संघ भाषण पर नहीं बल्कि जीवन पर खड़ा है। ज्ञानेश्वरी के अनुसार ‘ये हृदयींचे ते ह्र्दयीं घातलें’ यही संघ की कार्य पद्धति है।
दुनिया भर से लोग मुझे प्रश्न पूछते है कि संघ ऐसा कौन सा प्रशिक्षण देता है जिससे साधारण स्वयंसेवक भी असाधारण कार्य कर जाते हैं। इसका एक ही उत्तर है, हम जन्मभूमि भारतमाता के लिए कार्य करते हैं। वहीं हमारी प्रेरणा है इसलिए संघ कार्य में हमें कोई कष्ट नहीं होता। यह एक साधना है। इस साधना के चार सोपान है। पहला, दृढ़ संकल्प, प्रत्येक स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आने के बाद एक-दो वर्षों में यह मन में गांठ बांध लेता है कि भारतमाता ने जो हमें दिया है वहीं हम लौटा रहे हैं। इसी कृतज्ञ भावना से वह वे काम करते हैं।
सद्गुण वर्धन और दोष रहित होने का अनुशासन स्वयंसेवक रखते हैं। सतत तत्परता और निस्वार्थ भावना से सभी के कल्याण हेतु यह साधना अखंड शुरू रहती है। बिमल जी केडिया ने अपने 65 वर्षों की संघसेवा में इस अनुशासन का पालन किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुद्ध व पवित्र है, उसमें कभी मल (मैल) नहीं आ सकता इसलिए वह विमल है। मैं स्वयं भी संघ के योग्य बने रहने का सदैव प्रयत्न करता रहता हूं।
संघ स्वयंसेवक कैसा हो?
कंदील के कांच का रंग जैसा होगा, अंदर के बल्ब का प्रकाश उसी रंग का दिखाई देगा। यदि कांच मटमैला होगा तो वह धुंधला दिखाई देगा, परंतु यदि कांच स्वच्छ, सुंदर, निर्मल होगा तो जैसा वह अंदर है वैसा ही दिखाई देगा। संघ स्वयंसेवक भी सदैव स्वयं की जीवनज्योति ऐसा बनाते है कि जैसे निर्मल वे हैं, उसी रूप में वह प्रकट होते हैं। बिमल जी भी वैसे ही है। उनका जीवन भी उनके नाम के अनुसार ही विमल है। संघसेवा करने के दौरान उन्होंने अपने जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव देखें क्योंकि सेवा कभी भी सहजता से नहीं हो पाती। बिमल जी के कार्य पद्धति से प्रभावित होकर अनेक स्वयंसेवक निर्माण हुए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ऐसे बिमल जी रोज तैयार करती है।
संघ निराकार है – बिमल जी केडिया
बिमल केडिया जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि संघ निराकार है इसलिए विविध माध्यमों से संघ कार्य लोगों के सामने लाना पड़ता है। आज वह माध्यम मैं हूं। इसके अलावा मुझमें विशेष कुछ भी नहीं है। ब्रह्मदेश (बर्मा-म्यांमार) में मेरा जन्म हुआ। 1962 में मेरा संघ प्रवेश वहीं हुआ। ढाई वर्ष मैं वहां बाल गट नायक रहा। वहां संघसेवा की जो नींव मजबूत हुई उसके कारण ही यह इमारत सशक्त हो पाई। 1966 में मैं विलेपार्लेकर हो गया। विगत 58 वर्षों से मैं मुम्बई के सांस्कृतिक राजधानी में रहता हूं।
‘उन्होंने अपनी एक याद ताजा करते हुए कहा कि संयोग ऐसा है कि जिस दीनानाथ नाट्यगृह में यह कार्यक्रम हो रहा है। इस स्थान पर पहले मैदान था। यहां संघ शाखा लगती थी और 1970 में मैं इस शाखा का कार्यवाह था। 1938 में डॉ. हेडगेवार जी के कहने पर श्रीगुरुजी ने यह शाखा शुरू की थी। आज भी मैं उस शाखा का स्वयंसेवक हूं। संघ निष्ठा कैसी होती है, इसका साक्षात उदाहरण बिमल जी केडिया ने प्रकट किया।
मुम्बई महानगर के वरिष्ठ स्वयंसेवक बिमल जी केडिया के अमृत महोत्सवी वर्ष के उपलक्ष्य में उनके आदर्श जीवनी पर हिंदी विवेक द्वारा ‘अप्प दीपो भव’ अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया गया है। जिसका विमोचन समारोह बीते सोमवार को विलेपार्ले में डॉ. मोहन भागवत जी की उपस्थिति में हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ।
केशव सृष्टि की ओर से आयोजित किए गए इस कार्यक्रम में बिमल केडिया जी एवं उनकी पत्नी उषा केडिया, महानगर संघचालक सुरेश भगेरिया, केशव सृष्टि के अध्यक्ष डॉ. सतीश मोढ सहित अन्य मान्यवर मंच पर उपस्थित थे।
इस दौरान हिंदी विवेक द्वारा प्रकाशित ‘अप्प दीपो भव’ ग्रंथ और बिमल केडिया द्वारा लिखित ‘संघ जीवन की पाठशाला’ पुस्तक का विमोचन पू. सरसंघचालक के करकमलों द्वारा किया गया। दैनिक मुम्बई तरुण भारत की ओर से प्रकाशित विशेष परिशिष्ट ‘अमृतमयी बिमलजी’ उपस्थित लोगों को भेंट स्वरूप प्रदान किया गया।
विमलजी के साथ काम करने का सौभाग्य मुझे भी मिला। हमारी अंधेरी की वैकुंठ पार्क (अभी रमेश मोरे पार्क) की शाखा जिस दिन पुनः शुरू हुई उसका दायित्व विमलजी को जाता है। और उस पहले दिन मैं भी उनके साथ था। बाद में मैं उस शाखा का तकरीबन 12 साल कार्यवाह था। एक ही मैदान में प्रभात, सायं और रात्र शाखा लगनेवाली शायद यह मुंबई महानगर का पहला मैदान होगा। विमलजी के साथ की बार सहल जाने का और उनके साथ संघगीत गाने का भी सौभाग्य हमारे शाखा के और उस वक्त के पार्ले भाग को मिला।
विमलजी के साथ मैंने भी उनके साथ थोड़ा बहुत संघ कार्य किया है। अदभुत कार्यशैली! जीवेत शरद: शतम।