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चित्त को आनंद देने वाला संघ घोष सत्कर्म की प्रेरणा देता है – डॉ. मोहन भागवत जी

चित्त को आनंद देने वाला संघ घोष सत्कर्म की प्रेरणा देता है – डॉ. मोहन भागवत जी

by हिंदी विवेक
in संघ
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि संघ में कार्य की सांघिकता और अनुशासन के अभ्यास के लिये संघ में संगीत अर्थात् घोष को सम्मिलित किया गया. सीमित साधनों में संघ के स्वयंसेवकों ने घोष का विकास किया. चित्त को आनंद देने वाले भारतीय रागों से कार्यकर्ताओं में अनुशासन और सत्कर्म की प्रेरणा मिलती है. सरसंघचालक जी मालवा प्रांत के घोष प्रात्यक्षिक कार्यक्रम स्वर-शतकम में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किया जाने वाला घोष वादन किसी प्रदर्शन की प्रेरणा से नहीं, अपितु विशुद्ध देशभक्ति और संघकार्य की प्रेरणा है. संघ की आज्ञा पर घोषवादन सीखना, एक साथ वादन करना, एक ही प्रकार की रचना का साथ-साथ वादन करना, संघ का अनुशासन है. संघ घोष, स्वयंसेवकों में सदवृत्तियों की वृद्धि करता है. संघकार्य के व्रत को धैर्य और सातत्य देने में घोष एक साधन भी है. एक ताल में सबके साथ, सबमें एक होने के लिये संयमित होकर वादन करना, अनुशासन का अभ्यास है. सबके आनंद के लिये, सबको सुख की अनुभूति देने वाला, यह एक संहतिबद्ध घोष वादन है.

सरसंघचालक जी ने कहा कि भारत से बाहर का संगीत चित्त वृत्तियों को उत्तेजित करके उल्लसित करता है, जबकि भारतीय संगीत चित्त वृत्तियों को शांत करके आनंद देता है. वृत्तियों के शांत होने पर सच्चिदानंद आनंद प्राप्त होता है. उन्होंने वैभव संपन्न भारत के निर्माण के लिये पूरे समाज से सक्रिय होने का आह्वान करते हुए कहा कि व्यक्तिगत और सामूहिक दृष्टि से गुण संपन्न होकर, मैं और मेरा के भाव से रहित होकर, विशुद्ध आत्मीयता के भाव से देश और देशवासियों को बड़ा करने के लिये, जो-जो जब-जब करना पड़ता है, ऐसा स्वयंसेवकों का व्यवहार सभी के जीवन में आना चाहिये. सौ वर्षों से साधनारत स्वयंसेवकों के परिश्रम की अनुभूति सभी में हो. राष्ट्र पुनर्निर्माण के संघ के महाअभियान में समाज भी संघ के साथ कार्य करे.

मालवा प्रांत के तीन दिवसीय घोष शिविर के समापन पर आयोजित स्वर-शतकम कार्यक्रम में मंच पर मुख्य अतिथि के रूप में कबीर भजन गायक पद्मश्री कालूराम बामनिया, प्रांत संघचालक प्रकाश शास्त्री और विभाग संघचालक मुकेश मोढ़ उपस्थित थे.

संघ के शताब्दी वर्ष में कार्य विस्तार एवं गुणवत्ता कार्यक्रम की श्रृंखला में मालवा प्रांत में घेाष वादन का गुणवत्तापूर्ण कार्यक्रम स्वर-शतकम संपन्न हुआ. इसमें मालवा प्रांत के सभी 28 जिलों से सम्मिलित हुए 868 वादकों ने पचास से अधिक घोष रचनाओं की पचास मिनट से अधिक की अनवरत प्रस्तुति दी. पिछले छः माह से मालवा प्रांत के विभिन्न स्थानों पर स्वयंसेवकों ने वेणु, शंख, आनक, त्रिभुज, पणव, गौमुख, नागांग और तूर्य वाद्यों का प्रशिक्षण लिया. स्वर-शतकम कार्यक्रम में हजारों की संख्या में जनसामान्य और गणमान्य नागरिक शामिल हुए.

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