प्रयागराज के संगम घाट पर एक बुज़ुर्ग महिला अनमनी से बैठी है. उनके चहेरे पर चिंता, असमंजस और असहायता के बादल छाये हुए है. दरअसल ये महिला कुम्भस्नान का पुण्य कमाने आयी हुई है, लेकिन करोड़ों की भीड़ में अपने परिजनों से बिछड़ गयी है. क्या करना, कहा जाना, किस पे भरोसा करना समझ नहीं आ रहा है. पास में मोबाइल भी नहीं है. ऐसे में करे तो क्या करे? तभी दो युवतियों का ध्यान उन पर गया. वो दोनों लोकल ही थी और घाट-घाट घूम कर जिस किसी को सहायता की आवश्यकता हो मदद कर रही थी. उन्होंने मध्य प्रदेश से आयी हुई उस बुज़ुर्ग महिला की समस्या को जाना. सौभाग्य से उन माताजी को अपने पति का मोबाइल नम्बर जबानी याद था. उस पर फोन लगाया, लेकिन फोन लग ही नहीं रहा था. दोनों ने माताजी को सान्तवना दी और फोन लगाने का प्रयास करते रहे. ऐसे ही तीन-चार घंटे बित गए. फोन नहीं लगा. शाम हो गई तो उन तरुण महिलाओं ने माताजी को अपने घर ले चलने की तैयारी दिखाई, लेकिन माताजी तय नहीं कर पा रही थी कि उन अनजान महिलाओं पर कितना विश्वास किया जाए. अंत में निरुपाय होकर वो उनके साथ चल दी. दो में से एक तरुण महिला उनको लेकर अपने घर आयी. गरम पानी से स्नान करवा कर उनकी थकान दूर की. बाद में भोजन भी कराया और रात्रि निवास की व्यवस्था की. बिच-बिच में माताजी के परिजनों से संपर्क का प्रयास चल ही रहा था. उनके पति जिनके साथ वो कुम्भ में आयी थी उनसे तो संपर्क नहीं हो पाया, लेकिन किसी तरह से उनके बेटे से संपर्क हुआ. बेटे से एड्रेस वगेरा की जानकारी लेकर दूसरे दिन सुबह माताजी को मध्य प्रदेश की बस में बैठा दिया गया. रास्ते में खाने के लिए भोजन भी दिया, बस ड्राइवर और कंडक्टर से महिला को ठीक से पहुंचाने की सिफारिश भी हो गई और माताजी के बेटे को फोन पर बस की सूचना भी दे दी गई. दूसरे दिन जब घर पहुंचकर उन माताजी ने फोन किया तो आँसूभरे स्वर में धन्यवाद दे रही थी. तब यह सारी व्यवस्था को बड़ी सहजता से करनेवाली दोनों महिला जो राष्ट्र सेविका समिति की कार्यकर्ता है उन्होंने केवल इतना ही उत्तर दिया के हमने आपके लिए कुछ नहीं किया है यह सब तो गंगामैया की आप पर कृपा है.
काशी प्रान्त के प्रचार प्रमुख ऋचा जी नारायण और क्षेत्र प्रचारिका शशि दीदी ने ऐसे कई किस्से बताये जिसमें सेविकाओं ने सेवा के उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किये है. वही दूसरी और इन किस्सों में झलक रही इस पुरातन देश की अद्भुत परंपरा, श्रद्धालुओं की गंगा मैया के प्रति अनन्य भक्ति और संगम स्नान के लिए असीम श्रद्धा का दर्शन भी हुआ.
महाकुम्भ से कई महीने पहले ही उसकी व्यवस्था में हम अपना सहभाग कैसे दे सकते है, इस विषय को लेकर राष्ट्र सेविका समिति के काशी प्रान्त में बैठके शुरू हो गई थी. १० जनवरी को हुई विभाग बैठक में कार्यकर्ताओं की सूची लेकर कौन क्या करेगा और किस दिन किस की कहा ड्यूटी रहेगी, उसका पूर्ण नियोजन हो गया था. उस दिन से लेकर आज तक महाकुम्भ के क्षेत्र में प्रतिदिन २०० कार्यकर्ता बहने प्रत्यक्ष सेवा कार्य कर रही है. ये बहने अपना पारिवारिक कर्तव्य निभाते हुए समाजकार्य में अपना सहभाग से रही है. इनमे से कई कार्यकर्ता नौकरीपेशा भी है, जो छुट्टी लेकर बारी-बारी से आकर अपनी सेवा दे रही है. काशी प्रान्त के सभी सात विभागों से समिति कार्यकर्ता तन-मन- धन से इस कार्य में लगी हुई है.
महाकुम्भ में आवागमन और अन्य व्यवस्था : –
१४४ वर्षो में एकबार होनेवाले विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयोजन महाकुम्भ में करीब ४० से ४५ करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है. यह मेला करीब ४००० हेक्टर यानि ४० वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. बाहर से आये हुए यात्रियों को मेले के स्थान से करीब १५ से २० किलोमीटर की दुरी पर अपने वाहनों को छोड़कर बाकि का अंतर पैदल चलना होता है. यात्रियों में बुज़ुर्ग, बच्चे और महिलाएं, जो चलने के लिए असमर्थ हो, उनको समिति की सेविकाएं स्कूटी पर बैठाकर अपने गंतव्य तक पंहुचा रही है. इसके उपरांत जगह-जगह पर भीड़ को नियंत्रित करने का तथा यात्रियों को सही रास्ता दिखाने का काम भी कर रही है. करीब १२ किलोमीटर तक फैले हुए विविध घाटों पर सेविकाएं यात्रियों के लिए चाय-बिस्कुट, पकोड़े, खिचड़ी, पूरी-भाजी ऐसी भोजन की व्यवस्था में भी जुटी हुई है. यह सारी व्यवस्थाएं निशुल्क है.
केवल यात्रियों के लिए ही नहीं तो समिति की सेविकाएं स्थानीय नागरिकों के बारे में भी चिंता रखती है. कुम्भ के बिच ही स्कूलों में परीक्षा का मौसम भी था. इतनी भीड़ के बिच में बच्चे समय पर स्कुल पहुंचकर परीक्षा दे सके, इसकी व्यवस्था भी बहनो ने की. उत्तर भारत की ठण्ड से अपरिचित यात्रियों के लिए अन्य सामाजिक संस्थाओं को साथ ले कर कम्बल उपलब्ध कराये. यात्रियों के लिए महाकुम्भ क्षेत्र में डेढ़ लाख से भी ज्यादा टेंट बनाये गए है. इन टेन्टों में घूम-घूम कर बीमार यात्रियों के लिए दवा देना और अधिक बीमारों को डॉक्टर के पास लेकर जाना, यह काम भी आयुष मंत्रालय के साथ मिलकर सेविकाएं कर रही है.
स्वच्छता और पर्यावरण :-
इतने अधिक लोग जहां एक साथ आ रहे हो, वहां स्वछता बनाये रखना प्रशासन के लिए भी टेढ़ी खीर है. ऐसे में समिति के बहने जगह-जगह पर खड़ी रहकर लोगो को स्वच्छता का आग्रह करती हुई दिखाई दे रही है. वही अगर किसी स्थान पर कचरे का जमावड़ा हुआ हो तो तुरंत प्रशासन को खबर देकर उस स्थान को साफ करावा रही है. अगर कोई प्लास्टिक की थैली लिए दिखा तो तुरंत उसे कपड़े का थैला देकर उनसे प्लास्टिक की थैली ले लेती है और साथ में पर्यावरण के प्रति जागरूक रहने की बात भी कह देती है.
तेजस्वी हिन्दू राष्ट्र के पुनर्निर्माण के ध्येय की पूर्ति के लिए १९३६ में राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना हुई थी. आज यह देश का सबसे बड़ा महिला संगठन है. राष्ट्र एवं समाज की उन्नति में अपना योगदान देने के लिए महिलाओं को जागृत करने का कार्य समिति ने अपने हाथ में लिया है और कुम्भ की व्यवथा का अंग बनना, उसी महान कार्य की पूर्ति की दिशा में उठाया गया एक कदम है.
-डॉ. रूपा रावल