दिल्ली के ठग के नाम से जाने जाने वाले धूर्त, दम्भी, भ्रष्टाचारी केजरीवाल को सत्ताच्युत कर जनता ने उन्हें उनकी असली जगह दिखा दी है। जनता परंतु अब मतदाताओं को सदैव जागृत रहना होगा ताकि भविष्य में लोकलुभावन वादों से उन्हें कोई भ्रमित न कर सकें।
———————————————————————————————————————————————————————————————————–
सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 1973 में केशवानंद भारती विरुद्ध केरल राज्य इस मुकदमे का निर्णय दिया। संविधान के सभी विशेषज्ञ इस निर्णय का वर्णन भारतीय लोकतंत्र को बचाने वाले निर्णय के रुप में करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने दो बातों पर अपना निर्णय दिया। पहला निर्णय सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संसद को मूलभूत अधिकार और संविधान में सुधार (संशोधन) करने का अधिकार है, परंतु किए गए सुधार संविधान के अनुरूप हैं या नहीं, इसकी समीक्षा करने का अधिकार न्यायालय के पास रहेगा। दूसरा निर्णय यानी संविधान में संशोधन करते समय संविधान की मूलभूत रचना से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती हालांकि यह मूलभूत रचना कौन सी है, यह सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट नहीं किया। भविष्य में जब भी संविधान संशोधन का कोई प्रकरण न्यायालय के सामने आएगा, उसी समय उसका निर्णय किया जाएगा, ऐसा इसका अर्थ होता है।
जिस प्रकार 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह ऐतिहासिक निर्णय दिया, वैसा ही निर्णय 8 फरवरी को दिल्ली के मतदाताओं ने दिया। इस निर्णय का वर्णन भी ‘भारतीय लोकतंत्र की गंदगी दूर करने वाला’ शब्दों में किया जाना चाहिए। चुनाव में किसी एक पक्ष की हार या जीत होती है और उसका विश्लेषण भी बाद में किया जाता है, परंतु ‘आप’ पार्टी और स्वयं केजरीवाल की हार भारतीय लोकतंत्र को और अधिक मजबूत करने वाली है। इसलिए जनता के इस निर्णय की तुलना 1973 के केशवानंद भारती मुकदमे के निर्णय से किया जा सकता है। अन्ना हजारे ने 2012 में भ्रष्टाचार के विरुद्ध दिल्ली में भूख हड़ताल और आंदोलन किया। उनके अनशन से सम्पूर्ण देश भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलित हो गया। ‘अन्ना हजारे आंधी हैैं, इस युग का गांधी हैं।’ ऐसे नारे लोगों ने लगाएं। जिसका कोई भी व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं था, जनहित जिसकी प्रेरणा है, ऐसा व्यक्ति मन को आकृष्ट करता है। सभी प्रकार के भेद भूल कर समाज उस व्यक्ति के पीछे खड़ा हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को ‘गांधी’ कहते हैं। इस रूप में सन 2012 में अन्ना हजारे देश के गांधी हुए।
लोकमान्य तिलक कहते थे कि ‘राजनीति, साधु संतों का विषय नहीं है।’ आगे के वाक्य उन्होंने नहीं बताए, परंतु वे हैं ‘राजनीति धूर्त, चाणाक्ष, महत्वाकांक्षी और अवसरवादी लोगों का खेल है।’ ऐसे ही सब लोग अन्ना हजारे के चारों ओर एकत्रित हो गए। संत प्रवृत्ति के अन्ना हजारे को सभी लोग अच्छे लगे। धर्मराज को जिस प्रकार संसार में कोई बुरा नहीं दिखता था, वैसे ही अन्ना हजारे का हुआ। इन अवसरवादी और धूर्त लोगों में सबसे ऊपर अरविंद केजरीवाल थे। 2012 में केजरीवाल का फोटो अन्ना हजारे के साथ समाचार पत्रों में दिखाई पड़ता था। आगे चलकर आंदोलन समाप्त हो गया और परिस्थिति व अवसर का लाभ उठाने के लिए अरविंद केजरीवाल गिद्ध की तरह लपके। उन्होंने ‘आप’ पार्टी की स्थापना की। दिल्ली के चुनाव लड़े और 2013 से लगातार तीन बार दिल्ली के मुख्य मंत्री रहे।
सिनेमा के बारे में ऐसा कहा जाता है कि कोई अभिनेता या अभिनेत्री एक रात में लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच जाता है। राजनीति में हमेशा ऐसा नहीं होता, परंतु अरविंद केजरीवाल कम आयु के मुख्य मंत्री के रूप में एक रात में देश की पहली श्रेणी के राजनेता हुए। राजनीति में आने के बाद उन्होंने घोषणा की कि मैं भ्रष्टाचार नहीं करूंगा, सुरक्षा व्यवस्था नहीं लूंगा, महंगी कारों का उपयोग नहीं करूंगा, मेरा शेष जीवन जनहित के लिए समर्पित होगा, मैं एक्सपर्ट लोगों को साथ लेकर पार्टी चलाऊंगा, उनको उत्तरदायित्व दिया जाएगा, जनहित ही मेरा श्वास होगा।
जनता को ऐसा लगा कि अन्ना हजारे का यह सच्चा शिष्य है, अन्य राजनीतिक लोगों की तरह यह सम्पत्ति एकत्रित करने के पीछे नहीं भागेगा, जनता का हित देखेगा। भारतीय जनता अत्यंत बुद्धिमान है, लेकिन उतनी ही भोली है। ऐसी जनता से छलावा आसान होता है। अरविंद केजरीवाल उच्च विद्याविभूषित और अतिशय बुद्धिमान हैं। उन्होंने सोचा विद्या और बुद्धि का उपयोग लोगों को ठगने के लिए कैसे कर सकते हैं? उन्होंने मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली, मुफ्त शिक्षा की घोषणाएं कीं। भोली-भाली जनता खुश हो गई।
अब्राहम लिंकन का एक वचन है, “आप सब लोगों को कुछ समय के लिए मूर्ख बना सकते हैं और कुछ लोगों को हमेशा मूर्ख बना सकते हैं, परंतु सब लोगों को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बना सकते।” 1858 के भाषण का यह एक वाक्य है। बुद्धिमान केजरीवाल को यह वाक्य पता नहीं होगा ऐसा नहीं, परंतु उन्हें ऐसा लगा होगा कि यह जनता है, इसको मैं आसानी से ठग सकता हूं।
यह ठग, शराब घोटाले में तिहाड़ जेल गया। करोड़ों रुपए लगाकर उसने अपने लिए आलीशान बंगला बनवाया। बंगले के टॉयलेट के फोटो सभी मीडिया में दिखाए गए। उसके इन गैर कानूनी कार्य की एक-एक सरस कथा बाहर आने लगी। दिल्ली का प्रदूषण, नल से आने वाला गंदा पानी, मुफ्त की बिजली का घोटाला, सब कुछ जनता के सामने आने लगा और तब भोली-भाली जनता की बुद्धिमत्ता जागृत होने लगी। जनता ने निश्चित किया कि जनता के सिर पर कीचड़ रखने वाला और स्वयं मक्खन का स्वाद चखने वाले इस मुख्य मंत्री को घर अब घर पर बिठाना चाहिए। जनता का यह ऐतिहासिक निर्णय 8 फरवरी को सामने आया। अरविंद केजरीवाल और उसकी पार्टी ‘आप’ भारतीय लोकतंत्र के लिए एक संकट है। हिटलर जिस प्रकार अनेक विषयों में पारंगत था, सत्ता क्या होती है, वह कैसे प्राप्त की जा सकती है, लोगों को कैसे लुभाया जा सकता है, लोगों को लुभाने के लिए कौन से विषय चुनें, भाषण कैसे दें, अपनी धाक कैसे जमाएं, इन सब में हिटलर, हिटलर ही था। हिटलर भी लोकतांत्रिक मार्ग से हिटलर बना। अरविंद केजरीवाल बुद्धिमान और अच्छा वक्ता होने के कारण अपने सहयोगियों, पार्टी कार्यकर्ताओं और लोगों को कैसे मुर्ख बनाएं, इस कला में पारंगत थे।
मुख्य मंत्री बनने के तुरंत बाद उन्होंने मोदी के साथ स्पर्धा प्रारम्भ की। बिना कुछ बोले उन्होंने स्वयं को देश का भावी प्रधान मंत्री होने की प्रतिमा बनानी शुरु की। दिल्ली विधानसभा में उनका एक भाषण हुआ। भाषण का विषय था ‘चौथी पास राजा’। इस चौथी पास राजा की कथा उन्होंने सुनाई। आप के विधायक दांत दिखाते हुए हंस रहे थे। आतिशी भी अपनी बत्तीसी दिखा रही थीं। नरेंद्र मोदी चौथी पास हैं, आधे पागल हैं, मूर्ख हैं इत्यादि, इत्यादि। इस कथा के माध्यम से केजरीवाल को लोगों को यही बताना था। देश के प्रधान मंत्री का अब तक किसी विरोधी पार्टी के नेता ने इतना घोर अपमान नहीं किया होगा।
अंत में पाप का घड़ा भर गया। कुछ लोगों को कुछ काल तक आप मूर्ख बना सकते हैं, परंतु सब लोगों को अनिश्चितकाल तक मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। अब्राहम लिंकन का यह वाक्य तलवार बनकर केजरीवाल की गर्दन पर पड़ा है। केजरीवाल से हमें यह सीख मिलती है कि मतदाताओं को सदैव जागृत रहना चाहिए। झूठे आश्वासनो में फंसकर स्वत: का नाश नहीं करना है। इसलिए हमें विचार करना चाहिए कि एक केजरीवाल हमारे लिए बस है, अब दूसरा केजरीवाल निर्माण नहीं होना चाहिए। दिल्ली के निर्णय का यही संदेश हमें आत्मसात करना चाहिए।