उपनिषदों में कहा गया है कि आप वैसे ही हैं, जैसे आपके फैसले हैं। यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लोदिमिर जेलेंस्की ने ह्वाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टंªप के साथ तू-तू, मैं-मैं करके इसे साबित कर दिया है। कहा जाता है कि सफलता फैसला करने से मिलती है न कि मौके से। लेकिन यह छोटी-सी बात यूक्रेनी राष्ट्रपति के समझ में नहीं आई और उसने बेहतरीन फैसला लेने का मौका हाथ से निकल जाने दिया। कुटनीति की दुनिया में एक अद्भुत कहावत है कि अगर आपकी गर्दन किसी के पैर के नीचे दबी हो तो उसे सहलाना ही श्रेयस्कर है।
लेकिन मद में चूर जेलेंस्की पैर सहलाना तो दूर उस पर कटार चलाना ही चालाकी समझे। नतीजा सामने है। उन्हें बेआबरु होकर अमेरिका का भरोसा गंवाना पड़ा। वे चाहते तो अमेरिका के साथ दुर्लभ खनिजों पर डील करके अपनी स्थिति को मजबूत कर सकते थे। लेकिन जिस तरह उन्होंने अमेरिका को सुरक्षा गारंटियों की कसमें कबूलवाने की जिद् पकड़ी उससे उनका दांव उल्टा पड़ गया। अब अवसर था डोनाल्ड टंªप के भड़कने की। इसका उन्होंने जबरदस्त लाभ उठाया। उन्होंने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि अमेरिकी मदद के बगैर आप दो सप्ताह भी युद्ध नहीं लड़ सकते थे। उन्होंने यह भी कहा कि हमने आपको एक मूर्ख राष्ट्रपति (जो बाइडन) के जरिए 350 अरब डॉलर की मदद की। सैनिकों के लिए साजोसामान दिए लेकिन आप कृतघ्न निकले।
गौर करें तो यह सच्चाई भी है कि अमेरिका ने तीन साल से जारी युद्ध में रुस के खिलाफ यूक्रेन की सहायता के लिए अपने करदाताओं का बहुत अधिक धन खर्च किया। सच्चाई है कि अब अमेरिका पैसा देते-देते थक चुका है। देश के अंदर सवाल उठने लगा है। खुद अमेरिका भी रुस-यूक्रेन युद्ध की व्यवहारिक हकीकत को समझ चुका है। वह जानता है कि मौजूदा परिस्थितियों में जेलेंस्की की हार सुनिश्चित है। इसीलिए टंªंप शांति स्थापित करने का बीड़ा उठाकर अपनी पोजिशनिंग मजबूत करना चाहते हैं। इसीलिए वे बातचीत में जेलेंस्की पर गरजते नजर आए। मौके को भांपते हुए अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेन्स ने भी जेलेंस्की को खूब खरी-खोटी सुनाई। उन्होंने कहा कि आपने इस मदद के लिए अमेरिका का आभार जताना तो दूर अमेरिकी चुनाव में डेमोक्रेट्स के लिए कैंपेनिंग तक की। दोनों नेताओं के बीच तल्खी के उपरांत समझना कठिन नहीं रह जाता है कि जेलेंस्की को लेकर टंªप के मन में क्या चल रहा है और यूक्रेन का भविष्य क्या है। दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति टंªप इस नतीजे पर हैं कि जेलेंस्की शांति नहीं चाहते हैं और वे यूरोपीय देशों के उकसावे पर हैं। उन्होंने कहा भी कि ‘आप लाखों लोगों की जिंदगी से खेल रहे हैं। आप तीसरे विश्व युद्ध की संभावना के साथ जुआ खेल रहे हैं। आप अमेरिका का अपमान कर रहे हैं।
’ विचार करें तो जेलेंस्की का रुख कुछ वैसा ही दिख रहा है। वह परिस्थितियों को समझने को तैयार नहीं हैं। वह रोशनी में बार-बार कपड़े बदलते दिख रहे हैं। उन्होंने टंªप को चेताते हुए कहा कि इस युद्ध का असर अमेरिका पर भी होगा। यानि हम तो भुगत ही रहे हैं तो आप भी भुगतेगें। अर्थात् आप हमें युद्ध में अकेला छोड़कर सुरक्षित नहीं रह सकते हैं। उन्होंने संकेतों के जरिए यह भी संदेश दिया कि अगर अमेरिका साथ नहीं देता है तो भी यूरोपीय देश उनके साथ हैं। गौर करें तो ह्वाइट हाउस में टंªप से तीखी बहस के बाद तकरीबन ढाई दर्जन देशों ने तत्क्षण ही यूक्रेन का समर्थन किया। इनमें कनाडा के अलावा यूरोप के कई देश हैं। मसलन फ्रांस, बेल्जियम, आयरलैंड, जर्मनी, नार्वे, आस्ट्रिया, रोमानिया, स्वीडन, पुर्तगाल, नीदरलैंड, चेक रिपब्लिक और फिनलैंड इत्यादि। लेकिन मजेदार बात यह कि कि इनमें से कोई भी देश अमेरिका के बगैर रुस के खिलाफ युद्ध में खुलकर सामने आने को तैयार नहीं हैं। दरअसल सभी देश अपनी हैसियत को अच्छी तरह जानते हैं। उन्हें यह भी मालूम है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में उन्हें सफलता तभी मिली जब अमेरिका उनके साथ खड़ा हुआ। गौर करें तो टंªंप-जेलेंस्की के बीच तकरार के लिए मुख्य रुप से जेलेंस्की का अव्यवहारिक रुख ही जिम्मेदार है। जब यह पहले से सुनिश्चित था कि यूक्रेनी राष्ट्रपति वाशिंगटन आकर मिनिरल डील पर हस्ताक्षर करेंगे तो इस पर उन्हें कायम रहना चाहिए था। इसलिए कि यह डील उनके लिए रुस के साथ युद्ध में अमेरिकी समर्थन को बनाए रखने के लिए आवश्यक था।
हालांकि इसमें सच्चाई यह भी है कि मिनिरल डील टंªप की प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा है। राष्ट्रपति टंªप यूक्रेन से पहले ही अनुरोध कर चुके थे कि वह अपने दुर्लभ अर्थ मिनिरल का 50 फीसदी हिस्सा अमेरिका के नाम कर दे ताकि जो बाइडेन के कार्यकाल के दौरान दिए गए अरबों डॉलर के वॉरटाइम सपोर्ट के लिए मुआवजा प्राप्त कर सकें। यूक्रेन के लिए अमेरिका के साथ अपने खनिज संसाधनों जैसे तेल और गैस का संयुक्त विकास करने के लिए तैयार होना मजबूरी थी। दरअसल इस समझौते का मकसद रुस के साथ संघर्ष में अमेरिका का साथ बनाए रखना था। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि यूक्रेन के लोग इस डील के पक्ष में नहीं हैं और वे जेलेंस्की पर डील न करने का दबाव बना रहे हैं। दरअसल वहां के नागरिकों का मानना है कि अगर यह डील हुई तो यूक्रेन दशकों तक अमेरिका का गुलाम हो जाएगा। अब जेलेंस्की के आगे कुंआ और पीछे खाई है। कहा जाता है कि कुएं और खाई के चयन में किनारा कहीं नहीं होता। अगर जेलेंस्की अमेरिका के साथ डील करते हैं तो अपने नागरिकों का कोपभाजन बनना होगा।
और अगर डील नहीं करते हैं तो रुस के हाथों सर्वस्व लूट जाने के लिए तैयार रहना होगा। यह सच्चाई है कि 20 फरवरी, 2022 को प्रारंभ हुए रुस-यूक्रेन युद्ध के बाद अब तक यूक्रेन के तकरीबन 11 फीसदी हिस्से पर रुस का कब्जा हो चुका है। रुस के रक्षा मंत्रालय की मानें तो रुसी सेना ने यूक्रेन और रुस के कुर्स्क ओब्लास्ट दोनों में अनुमानित 1600 वर्ग मील से अधिक भूमि पर कब्जा कर लिया है। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार रुस के हमले से यूक्रेन को सीधे तौर पर 152 अरब डॉलर अर्थात् 13 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि अगर यह युद्ध थम जाता है तब भी यूक्रेन को खड़ा होने में कई साल लग जाएंगे। इसके लिए उसे 486 अरब डॉलर अर्थात 41 लाख करोड़ रुपए की जरुरत होगी। जाहिर है कि यूक्रेन के लिए इस नुकसान की भरपाई आसान नहीं है।
इसलिए और भी कि यहां महंगाई अपने उच्चतम स्तर 10 फीसदी के आंकड़े को पार कर चुकी है। निर्यात शुन्य से 35 हजार करोड़ रुपए से नीचे चल रहा है। यूक्रेन संसद की बजट कमेटी के मुताबिक युद्ध के दौरान उनके देश को रोजाना 14 करोड़ डॉलर अर्थात 1200 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है। गौर करें तो इस युद्ध से सिर्फ यूक्रेन और रुस को ही नहीं बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी तगड़ा झटका लगा है। दोनों देशों के बीच युद्ध से पहले 2021 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का ग्लोबल इकोर्नामी का अनुमान 6.6 फीसदी था जो आज आधे से भी कम रह गई है।
आज की तारीख में अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के सभी देश महंगाई की चपेट में हैं। बेरोजगारी दर उच्चतम शिखर पर है। लाजिमी है कि इन परिस्थितियों के बीच रुस से युद्ध लड़ रहे यूक्रेन को अगर अमेरिका का साथ नहीं मिला तो उसका भविष्य क्या होगा। अमेरिका का साथ छुटने के बाद यूक्रेन को रुस के आगे घुटने टेकना होगा। यूक्रेन जिस डील को अमेरिका के साथ अंजाम देने से बच रहा है उस खनिज संपदा पर रुस हमेशा के लिए आधिपत्य जमा सकता है। आज की तारीख में यूक्रेन और जेलेंस्की के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि अमेरिका के साथ रिश्ते की गांठ मजबूत करने की है। लेकिन इस सच्चाई को यूक्रेन का हास्य अभिनेता समझ नहीं रहा है और वह यूक्रेन की बर्बादी की पटकथा लिखने के लिए आमादा है। सच तो यह है कि अगर रुस-युक्रेन युद्ध थमता नहीं है तो तीसरे विश्व युद्ध की घंटी बजनी तय है।
-अरविंद जयतिलक