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जमाना बदल गया है…

जमाना बदल गया है…

by हिंदी विवेक
in चेंज विशेषांक - सितम्बर २०१८, सामाजिक
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मानव संसाधान के क्षेत्र में आमूल बदलाव आए हैं। अब कर्मचारी कम्पनियों के लिए बंधुआ मजदूर नहीं हैं, बल्कि एक बड़ी सम्पदा है। इसलिए तरह-तरह के लाभ दिए जा रहे हैं। यहां तक कि दफ्तर में झपकी लेने की सुविधा भी है। देखना है कि 2015 के बाद आई तरोताजा पीढ़ी हमें किस मुकाम तक पहुंचती है।

विवार की उस सुबह- चाय की चुस्कियां लेते-लेते मैं और मेरे पिता मेरी नई नौकरी और वहां की कार्य-संस्कृति के बारे में बात कर रहे थे। मैंने उन्हें बताया कि मेरा पहला सप्ताह शानदार रहा और काम करने में मुझे आनंद आ रहा है। यह सुनकर वे बहुत खुश हुए और आम भारतीय पिता की तरह मुझे ’अपने जमानेे’ के किस्से सुनाने लगे।

किस्सा था- 20 साल पहले की उनकी नई-नवेली नौकरी के बारे में। कहने लगे- उस जमाने में समय और नियमों की बड़ी पाबंदी थी, घंटों काम किया करते थे, छुट्टी मांगने और उनका काम कैसा रहा यह वरिष्ठों से पूछने में हिचक होती थी,  किसी नए कर्मचारी को निर्णय-प्रक्रिया में कम ही शामिल किया जाता था, औपचारिक बैठकों और अन्य बहुत सी बातों के बारे में भी वे बोलते रहे। आज के युवाओं को ये बातें बड़ी बेतुकी लग सकती हैं। ये कहानियां सुनते समय मुझे लगने लगा कि क्या मैं ऐसी स्थिति में काम कर सकती थी या कि क्या मैं नौकरी ही छोड़ देती? विचारों का एक चक्र दिमाग में कौंधने लगा और मुझे आज के विषय पर ले आया कि कैसे नई पीढ़ी ने कार्यस्थल का स्वरूप ही बदल दिया है।

सोचने लगी, नौकरी छोड़ने का विचार ही सब से पहले मेरे मन में क्यों आया? क्या मुश्किलों का सामना करने का साहस मुझ में नहीं है? शायद नहीं। क्योंकि, मैं ऐसे माहौल में पली-बढ़ी हूं जो बेहतर और आसान था। हम सहस्राब्दिजन (Millennials) हैं। अंग्रेजी में इसे जेन-वाई कहते हैं। इस पीढ़ी के लोग अपने व्यक्तिगत मूल्यों और अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए पुरानी नौकरी छोड़ नई नौकरी पकड़ने में कोई दिक्कत महसूस नहीं करते। वे अपने करियर के बारे में अधिक महत्वाकांक्षी होते हैं और संगठन के साथ चिपके रहना उनके लिए कोई विशेष मायने नहीं रखता। जेन-एक्स और अंग्रेजी में जिसे बेबी बूमर्स कहते हैं, अपने संस्थानों के साथ जुड़े रहते थे और उस समय जो भी थोड़ी-बहुत सुविधाएं उपलब्ध थीं, उनमें संतोष कर लेते थे।

1980 के दशक के अंत में कम्पनियां मानने लगीं कि उनकी बहुत बड़ी सम्पदा तो उनके कर्मचारी हैं। अतः कर्मचारियों को लाभ पहुंचाने के लिए सबसे पहले पेंशन और सेवानिवृत्ति सुविधाओं की पेशकश की गई। परंतु इसका लाभ कर्मचारियों को काफी समय बाद भविष्य में मिलना है। कर्मचारी तो 40-50 साल की उम्र में मिलने वाले लाभों की अपेक्षा आज मिलने वाले लाभों के प्रति अधिक आकर्षित होते हैं। शुरुआती दौर में कर्मचारियों को आकर्षित करने और उनके बने रहने के लिए इस तरह के लाभ दिए जाते थे; लेकिन अब ये लाभ कर्मचारियों के सहभाग, उनकी निष्ठा, संतुष्टि और उत्पादकता बढ़ाने के लिए दिए जाते हैं। कम्पनियां बुनियादी लाभों के अलावा ये सुविधाएं इसलिए मुहैया करा रही हैं ताकि कर्मचारी काम करने के लिए प्रेरित हो। बेबी बूमर्स पीढ़ी से मिलेनियल्स पीढ़ी आते तक इन लाभों में भारी परिवर्तन हुआ है।

मिलेनियल्स पीढ़ी को अब सवेतन छुट्टी, प्रायोजित अवकाश, सप्ताह के हर दिन चौबीसों घंटे निःशुल्क भोजन की सुविधा, कर्मचारी और उसके परिवार के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना, यही क्यों उनके पालतू जानवर की व्यवस्था, व्यायामशाला, मनोरंजन कक्ष, पुस्तकालय, ई-लर्निंग, प्रसूति और पितृत्व अवकाश, कामकाज के निर्धारित घंटे न रखना, औपचारिक पोशाक का बंधन न रखना, हॉट डेस्क याने अलग-अलग समय पर एक ही डेस्क पर विविध लोगों द्वारा काम करना, कामकाज में खुलापन, कपड़ों की गीली और शुष्क धुलाई याने लाँड्री सेवाएं, सुस्ताने लायक कुर्सियां और न जाने कितनी और सेवाएं उपलब्ध करा दी गई हैं। प्रश्न उठ सकता है कि आखिर मिलेनियल्स के इतने लाड़ क्यों किए जा रहे हैं? ध्यान रहे, मिलेनियल्स वह पीढ़ी है, जो जेन-एक्स और बेबी बूमर्स से प्रतिपोषित हुई है। उनकी परवरिश इस तरह हुई है कि वे अपने आपको को विेशेष समझें। उन्हें ट्रॉफी लाने वाली पीढ़ी भी कहा जाता है; क्योंकि उन्हें महज भागीदारी करने पर भी ट्रॉफी दे दी जाती है। मिलेनियल्स आत्मविश्वास, साहसिक वृत्ति, रचनात्मकता से लबरेज हैं। वे सम्मानजनक व्यक्ति के अलावा और किसी के आगे नहीं झुकते, वे मार्गदर्शक चाहते हैं, न कि हुक्मरान। पुरानी पीढ़ियां इसके विपरीत थीं। वे परंपरागत, काम में अत्यधिक उलझीं, औपचारिक, चौकन्नी थीं, अधिकारियों के प्रति बेहद आदर रखती थीं और अपने संगठन के प्रति निष्ठा रखती थीं।

मिलेनियल्स पीढ़ी की कार्यशैली को लेकर उन पर कई आरोप लगाए जाते हैं। उसे आलसी, अपने में ही मगन और बिगड़ैल कहा जाता है; लेकिन उसी समय उसके सामूहिक नवाचार और पैसे के अलावा अन्य बातों के लिए भी काम करने की आकांक्षा की सराहना की जाती है। इसलिए उनकी प्रतिभा और रचनात्मकता के अनुकूल कार्य संस्कृति निर्माण करनी होती है।

ये 9 से 5 क्या है? वे बेहद परिश्रमी हैं; लेकिन बेबी बूमर्स जैसे लम्बे समय तक काम में सिर खपाए नहीं रहते। मिलेनियल्स लक्ष्योन्मुख हैं, न कि समयोन्मुख। नेटफ्लिक्स जैसी कई कम्पनियां हैं, जो निर्धारित कार्यालयीन समय का आग्रह नहीं रखतीं। कम्पनी केवल यह देखती है कि काम क्या हुआ। जब तक काम ठीक हो रहा है तब तक कम्पनी यह नहीं देखती कि आप कार्यालय में 9 घंटे थे, 2 घंटे थे या थे ही नहीं। यदि कर्मचारी को लगता है कि वह घर में बैठकर बेहतर काम कर सकता है तो यही सही!  ये ऐसी पीढ़ियां हैं जो काम और जीवन को संतुलित रखना चाहती हैं, सवेतन अवकाश चाहती हैं। वे चाहती हैं कि पहले काम पूरा कर लें और फिर उसे भूल जाए ताकि जीवन का आनंद उठा सकें। इसके लिए कम्पनियां अपनी ओर से उन्हें अवकाश के साथ धन भी देती हैं। इसके पीछे सोच यह है कि यदि कर्मचारियों को अवकाशादि के दौरान पैसे की किचकिच न रही तो वे छुट्टियों का सही आनंद लेकर लौटेंगे और अधिक क्षमता से काम कर सकेंगे।

इन सारी सुविधाओं के कारण कम्पनियों को वाकई लाभ भी मिल रहा है। इससे बेहतर प्रतिभाओं को बनाए रखा जा सकता है। मिलेनियल्स अपनी पूर्व पीढ़ियों की अपेक्षा बहुत अधिक आत्मविश्वासी हैं। मिलेनियल्स अपनी राय और अपने विचारों को व्यक्त करने या अपने वरिष्ठों तक को चुनौती देने में नहीं झिझकते। इससे समस्याओं और उनके अभिनव समाधानों के बारे में कम्पनियों को नई दिशा मिलती है। वे नवाचार लाते हैं, नेतृत्व के नए सोपान सृजित करते हैं, आसान तकनीक और जटिल प्रौद्योगिकी पर समान अधिकार रखते हैं।

मिलेनियल्स ने कम्पनी की सोच, उसके स्वरूप, कार्यों और संवाद में एक क्रांति ला दी है। जिस तरह पुरानी पीढ़ी अपने मिलेनियल साथियों के साथ काम कर रही है, उसी तरह कर्मचारियों की अगली नई पीढ़ी अब परिदृश्य में मौजूद है- जिसे जेन-ज़ेड़ कहते हैं और इसी वर्ष से वह पदार्पण कर रही है।

जेन-ज़ेड अधिक सक्षम है, अपना काम खुद करने की मानसिकता रखती है। इनमें से 69% तो ऐसे हैं जो किसी अन्य के साथ काम करने के बजाय खुद अपने तईं काम करना पसंद करते हैं। मिलेनियल्स तो सहयोगी के रूप में काम में रुचि रखते थे; जबकि जेन-ज़ेड और अधिक स्वतंत्र रूप से काम करना चाहते हैं। जेन-ज़ेड अपनी आकांक्षाओं के प्रति बहुत सजग होते हैं और उसकी परिपूर्ति के लिए सक्रिय रहते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि पुरानी पीढ़ियों की अपेक्षा जेन-ज़ेड़ प्रौद्योगिकी में अधिक कुशल हैं; फिर भी वे डिजिटल संवाद की अपेक्षा आमने-सामने सीधी बात करना अधिक पसंद करते हैं! यही क्यों, जेन-ज़ेड़ उस संकट के दौर में पली-बढ़ी पीढ़ी है, जिसने देखा है कि नौकरी खोने से क्या भोगना पड़ता है और इसीलिए वे अपने मिलेनियल्स साथियों की अपेक्षा नौकरी में बने रहने के इच्छुक होते हैं। ये निर्णायक युवा एक बार फिर कार्यस्थल का स्वरूप बदल देंगे- परिणाम फिर चाहे अच्छे हों या बुरे। और मुझे इस बात की प्रतीक्षा रहेगी कि देखें जेन-ज़ेड़ हमारे कार्यस्थलों को किस मुकाम तक ले जाते हैं।

 

पीढ़ियों का वर्गीकरण

पश्चिमी दुनिया में पीढ़ियों का वर्गीकरण और नामकरण निम्न रूप से किया गया है और वही अनुक्रम एवं संक्षिप्ताक्षर हमारे देश में भी चल रहे हैं–

पीढ़ी का संकेत नाम  अवधि में जन्मी पीढ़ी

बेबी बूमर्स          1944 से 1964

जेन–एक्स          1965 से 1979 

जेन–वाई           1980 से 1994 

जेन–ज़ेड़     1995 से 2015   

 

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