काले बाल, सिर पर पुराना हैट, हिटलर जैसी तितलीनुमा मूछें, नेपोलियन जैसा चेहरा, नीली आंखें, गोरा रंग, थैले जैसी ढ़ीली-ढ़ाली लंबी पतलून, चुस्त जैकेट, हाथ में लोचदार छड़ी, पंजों से काफी बड़े आकार के जूते अर्थात् बिल्कुल जोकर जैसा पहनावा। जी हां, हम बात कर रहे हैं हास्य के जादूगर चार्ली चैपलिन की। अपने हास्य भरे अभिनय से अपनी विशेष पहचान बनाकर दुनियाभर के सिने दर्शकों का चहेता बना चार्ली चैपलिन नामक यह शख्स भले ही हमारे बीच नहीं है किन्तु उसकी विश्वव्यापी शख्सियत से छोटे-छोटे बच्चे भी परिचित मिल जाएंगे। अपने 75 वर्ष लंबे फिल्मी कैरियर में चार्ली चैपलिन ने बगैर कुछ बोले जिंदगी की त्रासदियों से हंसने की बेजोड़ कला ईजाद की थी तथा हंसी का यह जादूगर 25 दिसम्बर 1977 को दुनिया को अलविदा कह गया था।
16 अप्रैल 1889 को रात्रि के समय दक्षिणी लंदन की कैनिंगटन नामक एक गंदी बस्ती में एक छोटे से घर में जब चार्ल्स स्पैन्सर चैपलिन नामक बच्चे का जन्म हुआ था, तब इसी बस्ती के ही एक बुजुर्ग ने इस बच्चे के बारे में कहा था कि यह लड़का बहुत मनहूस है क्योंकि यह उसी दिन पैदा हुआ है, जिस दिन ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था लेकिन तब किसे मालूम था कि जिस बालक को सिर्फ इस वजह से मनहूस करार दिया जा रहा है कि वह ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाने के दिन जन्मा, एक दिन वह चार्ली चैपलिन के नाम से अपने मूक अभिनय और अपनी अनूठी हास्य शैली से करोड़ों दिलों का चहेता बन जाएगा और दुनिया पलकें बिछाकर उसका सम्मान करेगी।
यह एक अजब संयोग की ही बात थी कि जहां कैनिंगटन की उस बस्ती में एक बुजुर्ग ने चार्ली को मनहूस करार दिया था, वहीं एक मशहूर पादरी ने चार्ली के बारे में कहा था कि यह बहुत किस्मत वाला है और सीधे स्वर्ग जाएगा। यह भी बड़ा अजीब संयोग था कि चार्ली का जन्म उस दिन हुआ था, जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था और मृत्यु उस दिन, जब ईसा मसीह का जन्म हुआ था।
चार्ली बचपन में बहुत बीमार रहते थे और अधिकांश समय बिस्तर पर ही रहते थे। कहा जाता है कि उस दौरान उनकी मां अक्सर खिड़की के पास खड़ी होकर उन्हें बताती रहती थी कि बाहर क्या घटित हो रहा है और इसे भी उनके कॉमेडियन बनने का एक प्रमुख कारण माना जाता है। चार्ली अपनी अनोखी अभिनय प्रतिभा के बूते पर इतने विख्यात हो चुके थे कि उनके प्रशंसक उनके पास अपने पत्र भेजने के लिए पत्रों पर चार्ली का पता लिखने के बजाय पते के स्थान पर सिर्फ चार्ली के हैट और छड़ी जैसी ही तस्वीर बना देते थे और बगैर पते के ही ये पत्र चार्ली तक पहुंच जाया करते थे।
चार्ली के माता-पिता जगह-जगह घूम-घूमकर गा-बजाकर अपनी कला का प्रदर्शन कर किसी तरह अपने परिवार का गुजर-बसर किया करते थे लेकिन प्रकृति को शायद कुछ और ही मंजूर था। जब चार्ली 7 वर्ष के हुए तो उनके पिता का देहांत हो गया। पिता के चले जाने के बाद मां भी बीमार पड़ गई, इसलिए परिवार के समक्ष दो जून की रोटी के भी लाले पड़ने लगे। मां की बीमारी के इलाज तथा दो वक्त की रोटी के जुगाड़ के लिए चार्ली और उनके बड़े भाई सिडनी ने पिता के कई यार-दोस्तों से काम मांगा, किन्तु कहीं से मदद न मिली। उन्हीं दिनों चार्ली के पिता के एक दोस्त ने जगह-जगह घूम-घूमकर लघु नाटक और लोक संगीत पेश करने के लिए ‘एट लंकाशायर लैंड्स’ नामक एक मंडली बनाई थी, जिसमें चार्ली और उनके बड़े भाई सिडनी सहित कुल 8 बच्चों को काम मिल गया।
बच्चों की कड़ी मेहनत आखिर रंग लाने लगी और देखते ही देखते यह नाटक मंडली प्रसिद्धि पाने लगी। इन आठों बच्चों में सबसे ज्यादा चार्ली का ही अभिनय लोगों द्वारा पसंद किया जाने लगा। कुछ वर्ष तक इसी नाटक मंडली में काम करने के बाद चार्ली को लंदन के बड़े थियेटरों से बुलावा आने लगा और आखिरकार चार्ली ने यह नाटक मंडली छोड़कर लंदन के वेस्ट एंड थियेटरों में नाम और पैसा कमाना शुरू कर दिया।
15 मई 1916 को रिलीज हुई फिल्म ‘द फ्लोरवाकर’ से लेकर 22 अक्तूबर 1917 को रिलीज हुई फिल्म ‘द एडवेंचरा’ तक चार्ली ने करीब डेढ़ वर्ष की इस अवधि में आधे-आधे घंटे की अवधि की कुल 12 फिल्मों में काम किया और इन फिल्मों में अपने व्यक्तित्व, दमदार अभिनय, सम्मोहक अदाकारी के बल पर चार्ली ने अपार ख्याति और दौलत अर्जित की। उसके बाद तो वह दर्शकों का इतना चहेता बन गया कि लोग उसकी एक झलक देखने को बेताब होने लगे।
1921 में चार्ली ने खुद ‘द किड’ नामक एक फिल्म बनाई, जिसका उन्होंने लेखन और निर्देशन तो स्वयं किया ही, उसमें अभिनय भी किया और उसके बाद तो चार्ली हर दिल अजीज बन गए। यूं तो चार्ली की सभी फिल्मों में उनकी अदाकारी सराहनीय रही किन्तु चार्ली द्वारा बनाई गई फिल्मों ‘ए वूमन ऑफ पेरिस’, ‘द गोल्ड रश’, ‘द सर्कस’, ‘सिटी लाइट्स’, ‘द ग्रेट डिटेक्टर’, ‘मॉन्सर बर्ड’, ‘लाइम लाइट’ इत्यादि फिल्में बहुत सराही गई।
1928 में मूक फिल्मों का दौर खत्म हो गया था तथा बोलती फिल्मों की शुरूआत हो चुकी थी किन्तु चार्ली ने इस बात की परवाह नहीं की और 1940 तक अपनी सभी फिल्मों में उन्होंने मूक अभिनय ही किया क्योंकि चार्ली का कहना था कि जब उनका चेहरा ही सब कुछ बोलने में सक्षम है तो वह संवाद बोलने के लिए अपनी आवाज का सहारा क्यों ले? 1967 में यूनिवर्सल के बैनर तले बनी फिल्म ‘ए काउंटेस फ्रॉम हांगकांग’ चार्ली की अंतिम फिल्म थी।
अपने लंबे फिल्म कैरियर में चार्ली ने छोटी और बड़ी अवधि की कुल 81 फिल्में की और अपने हास्य भरे अभिनय से दुनिया वालों का स्वस्थ मनोरंजन किया तथा जीवन में मुश्किलों का भी हंसते-हंसते सामना करने का मूलमंत्र प्रदान किया। अपने हास्य अभिनय के जरिये ही चार्ली ने अपनी फिल्मों में राजनीति में फैली गंदगी तथा बुराईयों और समाज के दूषित माहौल को भी निशाना बनाया लेकिन खुद राजनीति से सदा दूर ही रहे।
25 दिसम्बर 1977 को स्विट्जरलैंड के विवे नामक क्षेत्र में जिनेवा झील के किनारे बने चार्ली के आलीशान बंगले में चार्ली का देहावसान हुआ और यह हास्य मसीहा हमेशा के लिए दुनिया से विदा हो गया लेकिन अपने पीछे दुनिया में अनेक अमिट यादें छोड़ गया, जो कभी भुलाई नहीं जा सकेंगी और चार्ली को हमेशा हास्य मसीहा के रूप में जिन्दा रखेंगी। अपनी आत्मकथा में चार्ली ने खुद भी यही लिखा था, ‘‘दुनिया वालों, मेरी मृत्यु पर आंसू न बहाओ बल्कि ठहाके लगाओ। यही मेरे प्रति तुम्हारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।’’
– योगेश कुमार गोयल