किशोरों में कई समग्र परिवर्तन बहुत तेजी से होते हैं. किशोरावस्था जीवन का एक महत्वपूर्ण चरण है, जो बचपन और बुढ़ापे को जोड़ता है. प्रत्येक बालकों को अपना बचपना छोड़कर अब हम बड़े हो रहे हैं, इसका एहसास किशोर अवस्था में होता है. इस समय शारारिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक, वैचारिक बदलाव तेजी से होता है. साथ ही यौन अंगों का विकास भी इसी अवधि में होता है. किशोर अवस्था में उन्हें योग्य मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, परंतु यह मार्गदर्शन मैत्रीपूर्ण संवाद के माध्यम से दिया जाना चाहिए क्योंकि बड़ों द्वारा कही गई बातें उन्हें उपदेश-सलाह जैसी लगने लगती है.
भारत की जनसंख्या का 1/5 का हिस्सा किशोरों का है अर्थात 10 से 19 के बीच आयुवर्ग का है. किशोर और युवा देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास को आकार दे सकते हैं. यद्यपि युवाओं में ऊर्जा और दृढ़ संकल्प होता है, परंतु शारारिक विकास और मानसिक स्थिति में परिवर्तन उनके मन में कई प्रश्न व शंकाएं उत्पन्न करते हैं. इसका उत्तर उन्हें कोलेज में नहीं मिलता. ऐसे में यदि उन्हें दूसरी जगहों से गलत जानकारी मिलती है तो उनकी यात्रा उन्हें अलग राह पर ले जा सकती है और उन्हें रोकना कठिन हो सकता है. इसलिए यह आवश्यक है कि उनकी शारीरिक और मानसिक समस्याओं का समय पर और सटीक तरीके से समाधान किया जाए. इसके लिए शहरी, अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के लिए किशोरी विकास परियोजना लागू की जाएगी. इसमें मुख्य रूप से लड़कियों के लिए किशोरी विकास परियोजना शामिल होगी.
भूमिका: किशोरावस्था के दौरान लड़कियां अधिक संवेदनशील और भावुक हो जाती हैं. उन्हें शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है तथा पर्याप्त मार्गदर्शन और जानकारी के अभाव के कारण वे भ्रमित रहते हैं.
इससे किशोरों की व्यक्तिगत, सामाजिक और शैक्षिक वृद्धि एवं विकास प्रभावित हो सकता है. इसके परिणामस्वरूप अवसाद, अपराध बोध, उदासीनता, शारीरिक और मानसिक विकास में रुकावट जैसे नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं और इस उम्र में हुआ मानसिक आघात जीवन भर याद रहता है. इसके लिए किशोरी बालिकाओं को उचित मार्गदर्शन एवं मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना आवश्यक है.
उद्देश्य: किशोरी विकास परियोजना के तहत किशोरियों को अपने अधिकारों को अभिव्यक्त करने के लिए एक मंच या प्लेटफॉर्म प्रदान करना.