देवी अहिल्याबाई के प्रति समस्त देशवासियों की अपूर्व श्रद्धा रही है। सब उन्हें अपनी स्नेहमयी माता और अलौकिक गुणों व शक्ति से संपन्न देवी के समान मानते थे। उनके जीवन काल में ही कई कवियों, लेखकों, राजनीतिज्ञों आदि ने उनका गुण-गौरव बड़े भावपूर्ण शब्दों में किया था। तब से अभी तक उनके गुणगान की पावन धारा सतत प्रवाहित हो रही है।
संस्कृत में सुप्रसिद्ध कवि व विद्वान खुशालीराम ने ‘अहिल्या कामधेनु’ नामक एक सुप्रसिद्ध ग्रंथ लिखा है। ग्रंथ संस्कृत में है। उसने अहिल्याबाई का चरित्र व महत्व बड़ी अच्छी तरह से लिखा है।
वह लिखते हैं-
नित्यं सा ददादि दान देव ब्राह्मण पूजकान्।
काल॑ व्यत्येति सा सम्यग् धर्ममार्गपरायणा ॥
वे सदा देव, ब्राह्मण और पुजारियों को दान देती थीं तथा धर्म कार्यो में अपना समय बिताती थीं।
मराठी के सुप्रसिद्ध कवि मोरापन्त कहते हैं —
देवी अहिल्याबाई। झालीस जगतत्रयांत तू धन्या।
न न्याय-धर्म-निरता अन्या कलिमाजि ऐकिली कन्या ॥
अर्थात हे देवी अहिल्याबाई। तुम तीनों लोकों में धन्य -हो। कलियुग में तुम्हारे जैसी न्यायी और धर्मपरायण अन्य नारी देखी-सुनी नहीं गई।
स्काटलैंड की कुमारी जोना बेली नाम की एक सुप्रसिद्ध कवियित्री अहिल्याबाई के समय में जीवित थी। इस महिला ने देवी की प्रशंसा में एक छोटी-सी पुस्तक लिखी है। पुस्तक में वर्णित लंबी कविता में उनकी महानता व गुणों का बड़ा सुंदर वर्णन है। एक स्थान पर लिखा है, अहिल्याबाई ने तीस वर्ष तक शांति पूर्वक राज्य किया। उनके समय में राज्य का ऐश्वर्य बढ़ता ही गया। सभ्य और असभ्य, बूढ़े और जवान सब उनकी मुक्तकंठ से प्रशंसा करते थे। इससे यह स्पष्ट है कि अहिल्याबाई की कीर्ति भारत की सीमाओं को लांघकर विदेशों तक पहुंच गई थी।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार तथा मध्य भारत के पोलिटिकल एजेंट सर जान मालकम ने अहिल्याबाई के संबंध में पर्याप्त प्रमाणित तथ्य लिखे हैं। वह लिखते हैं – ‘उनका रहन-सहन अत्यंत सरल, सादा और चरित्र अत्यंत महान था। सच्चे वैधव्य का हिंदू आदर्श जैसा उन्होंने निभाया था, वैसा बहुत कम विधवाएं कर सकी हैं। एक महारानी के लिए तो यह और भी सराहनीय है।
भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड एलनबरो ने प्रथम अफगान युद्ध के बाद महाराजा श्री हरिराव होलकर को लिखे पत्र में अहिल्याबाई की महानता का बड़े गौरवपूर्ण शब्दों में उल्लेख कर लिखा था कि वे एक सर्वश्रेष्ठ आदर्श व महान शासिका थीं। देश में सर्वत्र उनके प्रति आदर भाव पाए जाते हैं।
प्रसिद्ध इतिहासकार श्री जदुनाथ सरकार ने तथ्यों के आधार पर देवी को इतिहास की एक महान महिला माना है। वे लिखते हैं-अहिल्याबाई के प्रति मेरा आदर बढ़ गया है। अभी तक केवल एक शासिका, सत्ता व संपत्ति की स्वामिनी होते हुए भी सरल सात्विक जीवन बिताने वाली माता के रूप में में उन्हें आदर देता था। उन्होंने कई मंदिर बनवाए घाट बनवाए, बहुत-सा धन दान-धर्म में दिया। भूमि व गांव इनाम में दिए। पर अब उनका एक दूसरा ही स्वरूप मेरे सामने आया है। मूल कागज-प्रों से यह सिद्ध होता है कि वे प्रथम श्रेणी की राजनीतिज्ञ थीं और इसीलिए उन्होंने इतनी तत्परता से महादजी को सहयोग दिया। यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि अहिल्याबाई के आश्रय के बिना उत्तर भारत की राजनीति में महादजी को इतना श्रेष्ठत्व कदापि नहीं मिलता।’
सुप्रसिद्ध विद्वान इतिहासज्ञ रायबहादुर चिन्तामणि विनायक वैद्य के अनुसार- यह लोकोत्तर महिला अपने अनेक सदगुणों के कारण महाराष्ट्र के लिए ही नहीं, बल्कि समूची मानव जाति के लिए भूषण रूप हुई है।..जीवमात्र के प्रति उनकी दया इतनी व्यापक थी कि अपने नित्य के व्यवहार में उन्होंने पशु-पक्षियों तक को भी नहीं भुलाया। अपनी प्रजा पर उनका इतना प्रेम था कि वे उन्हें अपनी संतान ही मानती थीं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले के अनुसार, “ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले सामान्य परिवार की बालिका से एक असाधारण शासनकर्ता तक की उनकी जीवनयात्रा आज भी प्रेरणा का महान स्रोत है।
विचार विनिमय न्यास, केशवकुंज, झंडेवाला-दिल्ली