भारतीय संस्कृति और सनातन परंपराओं में वैसे तो प्रत्येक एकादशी का विशेष महत्व है लेकिन वर्षभर में आने वाली चौबीस एकादशियों में से ‘निर्जला एकादशी’ का स्थान सबसे विशिष्ट, सबसे पुण्यकारी और सर्वाधिक फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इस दिन निर्जल रहकर उपवास करने से वर्षभर की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
यह एकादशी न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है बल्कि यह आत्म-संयम, तप, श्रद्धा और आस्था की भी प्रतीक है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है और यह 6 जून यानी आज मनाई जा रही है।
श्रद्धालु इस दिन बिना जल ग्रहण किए व्रत रखते हैं और श्रीहरि विष्णु की आराधना करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि की शुरुआत आज अर्धरात्रि में 2 बजकर 15 मिनट पर हुई है और इसका समापन 7 जून को सुबह 4 बजकर 47 मिनट पर होगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार निर्जला एकादशी पर इस बार बने कई शुभ संयोग कुछ राशियों को शुभ फल प्रदान करेंगे। निर्जला एकादशी पर बुध के मिथुन गोचर से भद्र राजयोग बन रहा है, इसके साथ ही मिथुन राशि में बुध और गुरु की युति बन रही है, रवि योग का भी शुभ संयोग बन रहा है। निर्जला एकादशी पर बन रहे शुभ संयोग मेष, मिथुन व सिंह राशि वालों के लिए लाभकारी सिद्ध होंगे।
‘निर्जला’ का शाब्दिक अर्थ है ‘बिना जल के’ और जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह एकादशी अन्य सभी एकादशियों की तुलना में कठिन मानी जाती है क्योंकि इसमें दिनभर तो क्या, अगले दिन पारण तक जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं की जाती। शास्त्रों में इसे ‘भीम एकादशी’ भी कहा जाता है और इसके पीछे एक रोचक पौराणिक प्रसंग है।
महाभारत काल में भीमसेन को भोजन किए बिना रहना अत्यंत कठिन था, इसलिए वे अन्य किसी एकादशी का व्रत नहीं रख पाते थे। उन्होंने जब इस चिंता को महर्षि व्यास से व्यक्त किया, तब व्यासजी ने उन्हें कहा कि यदि वे केवल ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जल व्रत कर लें तो उन्हें वर्षभर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो सकता है। तभी से इसे ‘भीम एकादशी’ भी कहा जाने लगा।
इस व्रत की महानता का उल्लेख विभिन्न पुराणों में मिलता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण, पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तर जैसे ग्रंथों में निर्जला एकादशी को समस्त पापों का नाश करने वाली, मोक्ष देने वाली तथा समस्त एकादशियों के समान पुण्य देने वाली बताया गया है। इस दिन व्यक्ति यदि श्रद्धापूर्वक उपवास करता है तो वह सभी पूर्वजों को तृप्त करता है, स्वर्ग का अधिकारी बनता है और भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त करता है।
इस एकादशी के साथ सहनशीलता, आत्मनियंत्रण और संयम के अभ्यास का आध्यात्मिक संदेश भी जुड़ा है। अत्यधिक गर्मी के इस काल में जल तक नहीं पीने का संकल्प एक प्रकार का तप है, जो व्यक्ति की आंतरिक शक्ति और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रमाण है। यह व्रत केवल भूखा-प्यासा रहने तक सीमित नहीं है बल्कि इसका मूल उद्देश्य आत्मचिंतन, प्रभु भक्ति और परोपकार है।
कहा जाता है कि इस दिन किए गए दान का विशेष महत्व होता है। जल से भरे घड़े, छाता, वस्त्र, पंखा, खरबूजा, चावल, सत्तू, फल आदि का दान करने से अनंत गुना पुण्य प्राप्त होता है। दान की भावना केवल पुण्य अर्जन नहीं बल्कि समाज में परोपकार की चेतना का संचार भी करती है। विशेषकर निर्जला व्रत में जल से भरे घड़े का दान इस बात का प्रतीक है कि हम जीवनदायिनी प्रकृति के प्रति आभार प्रकट कर रहे हैं।
आज के आधुनिक युग में जब जीवन भागदौड़ से भरा हुआ है और भौतिकता का वर्चस्व है, ऐसे में निर्जला एकादशी जैसी तपस्या युक्त परंपराएं हमें आत्मचिंतन, धैर्य और ईश्वर से जुड़ने का अवसर प्रदान करती हैं। यह व्रत केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि एक प्रकार की मानसिक और शारीरिक साधना भी है, जो आत्मनियंत्रण और दृढ़ता सिखाता है।
व्रत के दौरान संयमित आचरण, सत्य भाषण, करुणा, दया और सेवा का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन विशेष रूप से गंगा स्नान का भी महत्व है। माना जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है। अनेक श्रद्धालु इस दिन प्रयागराज, हरिद्वार, वाराणसी, उज्जैन, नासिक और गंगोत्री जैसे पवित्र तीर्थों में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। जिन लोगों के लिए तीर्थयात्रा संभव नहीं होती, वे अपने घरों में गंगाजल से स्नान कर व्रत का पालन करते हैं।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो अनेक संत-महात्माओं ने निर्जला एकादशी को आत्मचिंतन और प्रभु स्मरण के सर्वोत्तम अवसर के रूप में अपनाया। तुलसीदास, मीराबाई, सूरदास, कबीर जैसे भक्तों ने भी एकादशी को भक्ति साधना का अनमोल दिन बताया। एकादशी को लेकर एक लोकप्रिय मान्यता है कि यह दिन भगवान विष्णु का अत्यंत प्रिय है और इस दिन उपवास करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
शास्त्रों में भी वर्णन है कि स्वयं माता लक्ष्मी ने एकादशी देवी को उत्पन्न कर समस्त पापों का नाश करने का वरदान दिया था। आधुनिक चिकित्सा और विज्ञान भी यह स्वीकार करता है कि संयम और उपवास शरीर के लिए लाभकारी हैं। निर्जला व्रत निश्चित रूप से कठोर है किंतु यह व्रत शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त करता है, आत्म-शक्ति बढ़ाता है और मन को एकाग्र करने में सहायक होता है। यद्यपि इस व्रत को सभी के लिए अनिवार्य नहीं कहा गया है लेकिन जिनमें श्रद्धा, सामर्थ्य और संकल्प शक्ति हो, वे इस व्रत को पूरी आस्था से करें। रोगी, वृद्ध, गर्भवती महिलाएं या शारीरिक रूप से अशक्त व्यक्ति यदि इस व्रत को करने में असमर्थ हों तो वे आंशिक उपवास, फलाहार, ध्यान और भजन के माध्यम से भी प्रभु की सेवा कर सकते हैं।
वर्तमान समय में जब जल संकट वैश्विक चिंता का विषय बनता जा रहा है, निर्जला एकादशी हमें जल के महत्व की भी स्मृति कराती है। यह दिन केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि जल-संवेदना और प्रकृति के प्रति जागरूकता का भी प्रतीक है। इस दिन का उपवास एक प्रकार से जल की महत्ता को स्वीकारने और संयम से जल उपयोग का भी संदेश देता है। खासकर ऐसे समय में जब दुनिया के अनेक हिस्सों में पीने योग्य जल की भारी किल्लत है, यह व्रत जल की महत्ता को गहराई से समझने का अवसर देता है।
निर्जला एकादशी प्रायः गर्मी के चरम समय यानी जून के महीने में आती है और इस समय इस व्रत का पालन और भी अधिक तपस्विता का प्रतीक बन जाता है। यह व्रत केवल प्यास सहने की क्षमता ही नहीं, मानसिक और आत्मिक दृढ़ता की परीक्षा भी है। जब मनुष्य अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं पर नियंत्रण रखना सीख लेता है, तब वह आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है। सही मायनों में यह दिन एक आध्यात्मिक साधना है, जो सांसारिक मोह-माया से विरक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। अंततः कहा जा सकता है कि निर्जला एकादशी केवल एक पर्व नहीं, आस्था, तप, त्याग और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का एक गहन भाव है।
यह दिन हर उस व्यक्ति के लिए संदेश है, जो आत्म-नियंत्रण और भक्ति की राह पर चलना चाहता है। निर्जला एकादशी हमें बताती है कि एक बूंद जल की कीमत क्या होती है, एक दिन का संयम कैसे हमें आत्म-ज्ञान की दिशा में ले जा सकता है और प्रभु के प्रति सच्ची श्रद्धा किसे कहते हैं। यही इस पावन एकादशी का सार है, संयम, सेवा, श्रद्धा और समर्पण।
-योगेश कुमार गोयल