ठीक 12.30 पर फैक्ट्री से लौटते हुए साइकिलों पर हजारों कामगारों का निकलना हुआ कि सर पर कफ़न बांधे सभी क्रांतिकारियों ने पत्रक बांटने शुरू कर दिये। लगभग आधे घण्टे में ही दो हजार पत्रक वितरित कर दिये गये। पत्रक समाप्त होने के बाद सभी ने इंकलाब जिंदाबाद, भारत माता की जय, स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और वन्दे मातरम् के उदघोष से आसमान गूंज गया। एक अतिउत्साहित क्रातिवीर किशोर ने जोर से नारा बुलंद किया… बोलने की आजादी जो दे न सके… सभी ने जोर से कहा… वो सरकार बदलनी है। तभी हम लोगों ने पुलिस बल को आते देखा।
दीपावली के बाद देव उठनी एकादशी भी दिवाली जैसी ही मनाई जाती थी। उस दिन शनिवार था, तीनों रक्षा उत्पादक फैक्ट्रियां 12 बजे ही छूटनी थीं। यह 50 साल पुरानी बात है, तब कामगार साईकिल से ही फैक्ट्री आया-जाया करते थे। सतपुड़ा से कांचघर तक का रास्ता उनके वापस लौटने की भीड़ से पट जाता था इसलिए उस रास्ते के बीच में पड़ने वाला लालमाटी चौक एकमात्र ऐसा स्थान था, जहां तानाशाही के विरुद्ध सम्पूर्ण क्राति का आंदोलन करना सर्वथा उपयुक्त था। हम 15 युवकों ने दो दिन पहले ही गुप्त रूप से साइक्लोस्टाल मशीन से पत्रक छाप लिए थे। छपे हुए पत्रक में स्वतंत्रता की अलख जगाने जनता का आव्हान था और तानाशाही के विरुद्ध इन्कलाब का पैगाम था।
अश्विनी माह तक तो ठंड का पता ही नहीं चलता है, लेकिन कार्तिक मास के लगने के साथ ही गले में ऊनी मफलर पड़ जाता है। दिवाली तक तो ऐसे ही चलता है लेकिन दिवाली के बाद नवम्बर माह में देव उठनी एकादशी तक बिना बाहों का हॉफ स्वेटर पहन ली जाती हैं। ठंड एकदम सुबह और रात को ही पता लगती है, दोपहर में तो ऊनी कपड़े बोझ लगते हैं। लेकिन आजादी के मतवालों को इतना सोचने का समय ही कहां था। एक सप्ताह पहले ही तय हुआ था कि जयप्रकाश नारायण जी के स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन सम्पूर्ण क्रान्ति को उग्र करना है। इसलिए गुप्त रूप से बैठकों का दौर चला।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित कर दिया गया था। संघ के स्वयंसेवकों की धर पकड़ चालू थी। समाचारपत्रों पर सेंसरशिप लगे होने के कारण पता ही नहीं चल पाता था कि संघ के कौन-कौन से कार्यकर्ताओं एवं अधिकारियों को शासन के आदेश पर पुलिस ने उन्हें पकड़ कर जेल में ठूंस दिया है। छपे हुए पत्रक में बंदी बनाए गए उन अधिकारियों का भी जिक्र था। संविधान की धारा 252 का उपयोग कर तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा द्वारा 25 जून 1975 की रात में आंतरिक आपातकाल घोषित करने के साथ ही सबसे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघचालक जी को गिरफ्तार कर लिया गया एवं संघ के सभी राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारियों सहित हर शहर के माननीय संघचालक जी भी बंदी बना लिए गए थे।
गोधूली बेला के बाद शाम का धुंधलापन होते-होते एक-एक कर सभी स्वयंसेवक बैठक के लिए पहले से ही तय स्थान पर पहुंचने लगे। अभी देव उठनी एकादशी के आगमन में एक सप्ताह का समय शेष है। गुप्त रूप से एक बैठक का आयोजन हुआ था। जिसमें संघ के एक अधिकारी ने शांतिपूर्ण आंदोलन की रूपरेखा बताई।
उनका लिबास बदला हुआ था शायद नाम भी। उन्होंने यह भी सूचित किया कि पुलिस यातना देगी और पूछताछ भी करेगी। शासन मीसा या डीआईआर के तहत अनिश्चितकाल के लिए जेल में ठूंस देगी। बिना यह बताए हुए कि अपराध क्या है। उन्होंने बताया कि 25 जून 1975 को दिल्ली के दशहरा मैदान में श्री जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में सभी राजनैतिक पार्टी इकट्ठा हई थीं और सभी ने सत्ता परिवर्तन का संकल्प लिया था क्योंकि 1971 में रायबरेली चुनाव में राजनारायण की हार और इंदिरा की जीत घोषित हुई थी। इंदिरा की जीत को राजनारायण जी ने न्यायालय में चुनौती दी। सभी गवाहों और दस्तावेजी साक्ष्य के आधार पर प्रयागराज उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश श्री जगमोहन सिन्हा जी ने इंदिरा की जीत अवैध घोषित कर दी एवं उसे 6 वर्ष के लिए अपात्र तो घोषित कर ही दिया, साथ ही सदन में वोट करने के अधिकार से भी वंचित कर दिया। जिससे बौखलाई हुई इंदिरा ने बिना मंत्रीमंडल की स्वीकृति लिए ही आधी रात को राष्ट्रपति श्री फ़ख़रुद्दीन अली अहमद से हस्ताक्षर कराकर संविधान की धारा 19 की जघन्य हत्या कर दी गई, जिसके तहत देश भर के नागरिकों के आधारभूत अधिकार और भारतीय संविधान प्रदत्त बुनियादी आजादी समाप्त कर देशभर में आपातकाल घोषित कर दिया था।
उस अधिकारी जी ने सम्पूर्ण क्रान्ति आंदोलन कब, कैसे और कहां करना है इस सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा। लेकिन इतना जरूर कहा कि अंधकारमय भविष्य से और यातनाओं के डर से माफी मांग कर जेल से छूटने की बजाए घर पर ही रहना ज्यादा उपयुक्त है। लेकिन यदि अपनी भारत माता को इस दुर्दशा से बाहर निकालने हेतु कृतसंकल्प हो, तो ही सम्पूर्ण क्रान्ति का आन्दोलन करना अन्यथा नहीं।
संघ के अधिकारी जी के जाने के दूसरे दिन पुनः गुप्त बैठक हुई जिसमें जबरदस्ती प्रधान मंत्री पद को जकड़ी हुई इंदिरा द्वारा आपातकाल लगते ही प्रेस की आजादी पर लगे अंकुश के कारण सही और वास्तविक समाचार न मिलने पर चर्चा हुई। जिसमें इंदिरा और उसके छोटे बिगड़ेल बेटे संजय ने किस तरह संघ को समाप्त करने और हिंदुओं की जनसंख्या को खत्म करने के लिए आपातकाल की आड़ में गुंडागर्दी मचाई है। ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजया राजे सिंधिया को जेल की गंदी काल कोठरी में वैश्यागिरी और हत्यारिन महिला कैदियों के साथ रहने पर मजबूर कर दिया है। उनके सचिव वयोवृद्ध श्री सरदार आंग्रे भी बंदी बना लिए गए थे एवं देश के राष्ट्रीय नेताओं में मोरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी, चौधरी चरण सिंह, मधु लिमये, चंद्रशेखर इत्यादि नेताओं को गिरफ्तार किया जा चुका है। किस तरह व्यापारियों और उद्योगपतियों से मनमाना धन वसूल किया जा रहा है और धन न देने वालों को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार करके जेल में ठूंस दिया गया है। इस बैठक के समाप्त होने के बाद अब सम्पूर्ण क्रान्ति के लिए अंतिम और निर्णायक बैठक होनी शेष थी।
सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलनकारियों में ज्यादातर किशोर ही थे। उन्हीं में से मैं भी एक था। साइंस कालेज में प्रथम वर्ष का छात्र माता-पिता की इकलौती संतान के नाते यह भी नहीं सोचा कि इसका उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इन काले स्याह दिनों को लिखना मेरे लिए ठीक वैसा ही है जैसे घोर संकट के क्षणों में प्रार्थना करना। इसे लिखते हुए मैं उसी प्रार्थना को मन ही मन दोहरा रहा हूं। आंदोलनकारी किशोर स्वातंत्र्य संग्राम में अपनी आहुति देने मन, वचन और कर्म से सिद्ध थे। सो आनन-फानन में आन्दोलन की रूपरेखा तैयार हो गई। स्थान और समय तय हो जाने के बाद पत्रक में छापने हेतु, कौन-कौन सी घटनाएं हुईं हैं और शासन के दमन चक्र की दास्तान के साथ ही प्रधान मंत्री इंदिरा की सत्ता लोलुपता के लिए न्यायालयीन प्रक्रिया और संविधान की हत्या के संबंध में कुछ किशोरों ने इन विषयों की सामग्री इकट्ठी की। यह तय हुआ कि इन्हें सारांश में उद्धृत किया जाये जिससे दो पृष्ठों में ही सब समाहित हो सके।
सम्भवतः किसी ने भी अपने घर परिवार में न तो आन्दोलन में शामिल होने की भनक लगने दी, न ही किसी से सलाह ली। तय दिन जब सभी लोग श्री विष्णु जी के योगनिद्रा से बाहर आने की प्रतीक्षा समाप्त होने का उत्सव छोटी दिवाली मनाने में व्यस्त थे, तब सभी किशोर चुपचाप घरों से निकल कर गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे। एक-एक करके सभी लाल माटी चौक पर इकट्ठे हो गए। लाल माटी चौक के दक्षिण में ही घमापुर थाना है, जहां पर्याप्त पुलिस बल हमेशा मौजूद रहता है। ठीक 12.30 पर फैक्ट्री से लौटते हुए साइकिलों पर हजारों कामगारों का निकलना हुआ कि सर पर कफ़न बांधे सभी क्रांतिकारियों ने पत्रक बांटने शुरू कर दिये। लगभग आधे घण्टे में ही दो हजार पत्रक वितरित कर दिये गये। पत्रक समाप्त होने के बाद सभी ने इंकलाब जिंदाबाद, भारत माता की जय, स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और वन्दे मातरम् के उदघोष से आसमान गूंज गया। एक अतिउत्साहित क्रातिवीर किशोर ने जोर से नारा बुलंद किया… बोलने की आजादी जो दे न सके… सभी ने जोर से कहा… वो सरकार बदलनी है। तभी हम लोगों ने पुलिस बल को आते देखा।
पुलिस बल को अपनी ओर आते हुए देखते ही किशोर क्रांतिवीरों ने पुनः जोर शोर से नारे लगाये… तानाशाही नहीं चलेगी… नहीं चलेगी और आपातकाल वापस लो… वापस लो। पुलिस ने सभी पर लाठी बरसाना शुरू कर दिया किन्तु कोई भी उस स्थान से भागा नहीं उल्टे लाठी की हर चोट पर भारत माता की जय और वन्दे मातरम् निकलने लगा।
पुलिस के लिए यह अनहोनी थी। ज्यादातर मामलों में लाठीचार्ज से भगदड़ मच जाती है लेकिन ये आजादी के मतवाले किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे। सो पुलिस सभी को हथकड़ी पहना कर थाने ले गई। थाने पहुंचते ही थानेदार साहब ने सभी का स्वागत मां बहन की गंदी गलियों से करते हुए अंदर एक अंधेरी कोठरी में खड़ा कर दिया… क्यों बे लौंडों, ये क्या नौटंकी मचा रखी है? … कुछ ज्यादा ही नेतागिरी सूझ रही है? बोलते-बोलते लगभग सभी क्रांतिकारियों को थप्पड़ लगाते हुए दायीं ओर के टी आई रूम में चला गया। हम लोगों ने एक साथ भारत माता का जयकारा लगाया, तभी दो हवलदार अंदर आये और मां बहन की गंदी गलियों के साथ कमर के नीचे डंडे मारने लगे, दोनों ने दीवार की ओर मुंह करके खड़े होने का आदेश दिया। इसके बाद पीठ पर और हिप्स पर तड़ातड़ डंडे मारने लगे। अब स्थिति खड़े होने लायक़ न थी। सभी जमीन पर ही गिर पड़े।
तभी दो स्टार वाले एक इंस्पेक्टर का प्रवेश हुआ और ग्रुप लीडर श्री ईश्वरदास रोहाणी को अपने साथ दूसरे कमरे में ले गया, शायद पूछताछ के लिए। उनके बाद मेरा नम्बर आया। मुझसे नाम और मेरा सम्पूर्ण परिचय के साथ ही कालेज और संघ की शाखा आदि की जानकारी लेते हुए रजिस्टर में दर्ज करते हुए एक हवलदार को कहा इस बेचारे को चाय-पानी कराओ, सुबह से भूखा है। उसने सहृदयता दिखाते हुए पूछा कि सायक्लोस्टाइल मशीन कहां है जिस पर ये पत्रक छापा गया है, मैंने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि मुझे नहीं मालूम, मुझे लाल माटी चौक पर एक आदमी दे गया था। उसने पूछा किन अधिकारी के आदेश पर ये सब किया जा रहा है? वे कहां रहते हैं? उनका हुलिया कैसा है? कौन-कौन से और अधिकारी हैं? तुम्हारे और सहयोगी कौन-कौन हैं? तुम्हारे घर के अगल-बगल कौन-कौन रहते हैं? जब उसे मुझसे किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिला तब उसने मुझे प्यार से समझाया कि जो-जो पूछा है सच-सच बता दो तो तुझे छोड़ देंगे वरना तेरे बाप को भी यहां घसीट लायेंगे, तुझे तो डंडा बेड़ी में जेल की सेल में डाल दिया जाएगा और तेरे बाप को भी लाक अप में डाल देंगे। अभी तो तुझसे प्यार से पूछ रहे हैं नहीं बतायेगा तो तेरी तुड़ाई होगी।
दोपहर एक बजे हमलोगों को हथकड़ी पहना कर थाने लाया हुआ था तब से 4 घंटे बीत चुके हैं। जाड़ों में शाम जल्दी ही घिर आती है, 5 बजे के लगभग हवलदार मुझे लेने आया कि चलो तुम्हें चाय-पानी करा देते हैं। वो मुझे थाने के पीछे वाली कोठरी में ले गया, जिसमें कोई खिड़की वगैरह नहीं थी। मोटी दीवार पर लोहे की दो कड़ियां ऊपर और नीचे लगीं हुईं थीं। उसने दोनों हाथ में हथकड़ी लगाकर ऊपर की दोनों कड़ियों में लाक कर दी और दोनों पैरों को नीचे वाली कड़ियों में लाक कर चला गया। लगभग आधे घंटे बाद एक इंस्पेक्टर अंदर आया और आते ही उसने पेट पर जोर से लात जमाई, बाल पकड़ कर झिंझोड़ते हुए बोला हरामजादे बहुत सयाना बनता है तू। पांच महीने से जिन अधिकारियों के अंडर में काम करता आ रहा है, तुझे उनके बारे में कुछ भी नहीं पता, क्यों बे यही ना। यह कहते हुए उसने दो घूंसे पेट में जमाते हुए दोनों गालों पर हाथ खींच कर जमा दिये और ताबड़तोड़ पीटने लगा।
इतने में ही पहले वाला इंस्पेक्टर आया और उसे डांटते हुए मुझे हथकड़ी से मुक्त कर अपने साथ थाने के सामने वाले आगंतुक कक्ष में ले आया। उसने मुझे बैठाया और पीने के लिए पानी दिया। उसने बताया कि तेरे साथी शशिकांत ठाकरे और अजय बेनरजी ने सब उगल दिया है तेरे ग्रुप लीडर ईश्वरदास रोहाणी ने भी बताया कि तू ही मेन है तू ही कर्ताधर्ता है। तेरे बाकी के साथी भी तेरे बारे में यही यही सब बता रहे हैं। अब सब कुछ खुल चुका है इसलिए अब तू सिलसिले बार सब बताता जा। मैंने उनसे कहा मुझे कुछ भी जानकारी नहीं है और न ही मैं ये सब करता था और मुझे एक आदमी ने ये पत्रक लाल माटी चौक पर बांटने के लिए दिए थे, मैं उसे नहीं पहचान सका क्योंकि वे मुंह ढके रहते थे। इस पर उसने मुझे फिर उसी ताड़ना कक्ष में पहुचा दिया। वहां मेरे उपर कंबल डाल कर मेरी लोहे के पाइप से पिटाई और धुनाई चालू हो गई। मुझे अथाह पीढ़ा होती रही और मेरी चेतना लुप्त हो गई। मुझे होश आया तब मैं थाने के बरामदे की बेंच पर लेटा हुआ था, रात के 11.30 हुए थे।
मुझे कोरे कागज पर हाथ के अंगूठे से निशान देने और दस्तखत करने का आदेश दिया गया। मैंने इंकार कर दिया। लगभग 12.30 पर पुलिस की लारी आई, हमें उसमें चढ़ा दिया गया। रात एक बजे लारी सेंट्रल जेल के सामने आकर खड़ी हुई। हमें उतार कर जेल के छोटे वाले गेट में सिर झुका कर अंदर ठेल दिया गया। जेल के मुख्य गेट के अंदर पीले साफे वाले ने हमारे पूरे कपड़े उतार कर पूरा नंगा खड़ा कर दिया और शरीर के चिन्हों आदि की जांच कर रजिस्टर में दर्ज कर लेने के बाद हमें हाथ का बना सूती खादी का मटमैला सफेद कैदी वाला कच्छा और बंडी पहना कर बड़ी गोल की बैरक नं 6 में भेज दिया गया।
-दीपक संघी