31 जुलाई 2025 को महाराष्ट्र के मालेगांव बम ब्लास्ट केस के फ़ैसले ने न केवल पीड़ितों के 17 वर्षों के लंबे इंतज़ार को ख़त्म किया। बल्कि न्यायपालिका ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल श्रीकांत पुरोहित समेत सभी आरोपियों को ससम्मान बरी कर दिया। इस एक फ़ैसले ने उन सबके मुंह पर करारा तमाचा भी मारा और सत्य का शंखनाद भी किया; जिन्होंने भगवा आतंकवाद, हिंदू आतंकवाद जैसी थ्योरी गढ़ी थी। वर्षों तक साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित समेत मामले में कूटरचित ढंग से आरोपी बनाए गए लोगों को प्रताड़ना दी गई। किंतु सत्य तो सत्य ही होता है भला उसे कब तक दबाया जा सकता है? इसके पूर्व स्वामी असीमानंद और अन्य आरोपियों को भी कोर्ट ने बरी किया था। इस षड्सयंत्र के पीछे एक ही उद्देश्य था ‘हिंदू आतंकवाद’ का वैश्विक नैरेटिव सेट करना।
मामले में आरोपी बनाए गए लोगों को प्रताड़ित करते हुए RSS पर बैन लगाने का षड्यंत्र रचना। साथ ही राष्ट्रीय क्षितिज पर उभर रहे नेताओं और सामाजिक चिंतकों का दमन करना।ये केवल भारत में ही नहीं हो रहा था बल्कि वैश्विक स्तर पर हिंदुओं को अपमानित करने का सुनियोजित अभियान चलाया गया।
मालेगांव ब्लास्ट केस के फैसले के दौरान NIA कोर्ट में जज को संबोधित करते हुए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने जो कहा वो अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा — “मैंने शुरू से ही कहा था कि जिन्हें भी जांच के लिए बुलाया जाता है, उनके पीछे कोई न कोई आधार ज़रूर होना चाहिए। मुझे जांच के लिए बुलाया गया और मुझे गिरफ़्तार करके प्रताड़ित किया गया। इससे मेरा पूरा जीवन बर्बाद हो गया। मैं एक साधु का जीवन जी रही थी लेकिन मुझ पर आरोप लगाए गए और कोई भी हमारे साथ खड़ा नहीं हुआ। मैं ज़िंदा हूं क्योंकि मैं एक संन्यासी हूं। उन्होंने साज़िश करके भगवा को बदनाम किया। आज भगवा की जीत हुई है, हिंदुत्व की जीत हुई है और ईश्वर दोषियों को सज़ा देगा। हालांकि, भारत और भगवा को बदनाम करने वालों को आपने ग़लत साबित नहीं किया है।”
अर्थात् सुस्पष्ट है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने ‘हिंदू और भगवा’ को बदनाम करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं अपनी खिसकती हुई राजनीतिक ज़मीन को बचाने के लिए कांग्रेस ने पूर्व की भांति ही RSS का भी दमन करने का षड्यंत्र भी रच रही थी। इस संबंध में महाराष्ट्र ATS के पूर्व अधिकारी
महबूब मुजावर ने जो कुछ कहा वो किसी को भी चौंकाने वाला है।साथ ही इस बात की पुष्टि भी करता है कि कांग्रेस किस स्तर पर जाकर षड्यंत्रों के जाल बिछा रही थी। महबूब मुजावर के अनुसार —“मुझे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया था। भगवा आतंकवाद स्थापित करने के लिए भागवत की गिरफ्तारी का दबाव बनाया गया था।मेरे पास इस दावे के दस्तावेज मौजूद हैं। कोई भगवा आतंकवाद नहीं था। सब कुछ फर्जी था। मैं किसे के पीछे नहीं गया, क्योंकि मुझे वास्तविकता पता थी।मोहन भागवत जैसे व्यक्ति को पकड़ना मेरी क्षमता से बाहर था। अब इस मामले में सातों आरोपियों को बरी किया गया है। इससे ATS के फर्जी कामों का पर्दाफाश हो गया।”
इतना ही नहीं मालेगांव बम ब्लास्ट के फैसले के बाद वो यूपीए सरकार के किसी बड़े मोहरे की कलई भी खोलते हैं —“इस फैसले ने एक फर्जी अधिकारी की फर्जी जांच को उजागर कर दिया है। मैं यह नहीं कह सकता कि ATS ने तब क्या जांच की और क्यों, लेकिन मुझे राम कलसांगरा, संदीप डांगे, दिलीप पाटीदार और RSS प्रमुख मोहन भागवत जैसी हस्तियों के बारे में कुछ गोपनीय आदेश दिए गए थे। ये सभी आदेश ऐसे नहीं थे कि कोई उनका पालन कर सके।”
मालेगांव बस ब्लास्ट के समय केंद्र और महाराष्ट्र में यूपीए सरकार थी। उस समय केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल और महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर. आर पाटिल थे। इतना ही नहीं शरद पवार जैसे नेता आतंकी घटनाओं में ‘हिंदू संगठनों’ की भी जांच की गुहार लगा रहे थे। पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, पी चिंदबरम और दिग्विजयसिंह जैसे नेताओं ने — बारंबार ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे नैरेटिव चलाए। वस्तुत: भगवा, हिंदू और हिंदुत्व से कांग्रेस की चिढ़ और राष्ट्रीय विचारों से भय खाना — ये कोई नई बात नहीं थी। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे सांस्कृतिक संगठनों की छवि को आघात पहुंचाने के लिए वे किसी भी सीमा तक गिर चुके थे। इसीलिए डॉ मोहन भागवत की गिरफ्तारी के लिए उन्हें झूठे केस में फंसाने का षड्यंत्र रच रहे थे। लेकिन सत्य के सामने असत्य भला कब तक टिक पाता? अतएव हर षड्यंत्र उन्हीं की शातिर चालों के साथ ध्वस्त होते गए। लेकिन इन्होंने जिस प्रकार से सभी का मानमर्दन किया।वो वीभत्स और घातक है। इससे पहले भी गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के बहाने — कांग्रेस ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी षड्यंत्रों में फंसाने में पूरी ताक़त झोंक दी थी। हालांकि वो इसमें भी कभी सफल नहीं हुई। न्यायपालिका से नरेन्द्र मोदी कुंदन की भांति तपकर निकले थे। यहां तक कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘मौत का सौदागर’ तक कहा था।
तनिक सोचिए, मालेगांव केस के बाद ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी गढ़ने वाले सत्ता के लिए किस स्तर तक गिर चुके थे। वे हिंदुओं को आतंकी घोषित करने के लिए बकायदे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। इसीलिए कूटरचित ढंग से षड्यंत्रों की पूरी पटकथा लिखी गई। झूठ के सहारे पूरे एक केस को भगवा आतंकवाद, हिंदू आतंकवाद की थ्योरी गढ़ने के लिए प्रयोगशाला बनाया गया। देश-विदेश की मीडिया में हिंदुओं और भारतीय संस्कृति के मूल अधिष्ठान के प्रतीक ‘भगवा’ को आतंक से जोड़ने की मुहिम चलाई गई। इसी सिलसिले में कांग्रेस पोषित कम्युनिस्ट गैंग ने वर्षों तक लंबे-चौड़े लेख लिखे। पब्लिक डिबेट्स और डॉयलॉग के ज़रिए हिंदू और हिंदुत्व के विरुद्ध लगातार विष-वमन किया जाता रहा। राष्ट्रीय विचारों से जुड़े संगठनों और व्यक्तित्वों के दमन की योजनाएं बनाई गईं। इन सबके पीछे केवल वैचारिक विरोधियों की छवि धूमिल करना, उन्हें षड्यंत्रों में फसाना ही उद्देश्य नहीं था। बल्कि इसके ज़रिए भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान और भारत की सांस्कृतिक चेतना को लांछित करने की कुत्सित सोच थी। जोकि सत्ता के माध्यम से देश की संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता को छीन रही थी। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सत्ता— विपरीत विचार रखने वालों को बुरी तरह कुचलने के लिए तैयार थी। ये ठीक वैसा ही था जैसे आपातकाल के समय इंदिरा गांधी सरकार में देश के लोकतन्त्र की हत्या की गई। क्रूरता की पराकाष्ठा पार की गई।
सोचिए सत्ता के लिए कैसे कोई दल राष्ट्र की संस्कृति की हत्या करने पर अमादा था। पूरी दुनिया में हिंदुओं को बदनाम करने की सरकारी साज़िशें रची गई। ये सब वही लोग कर रहे थे जो अक्सर तथाकथित संविधान के रखवाले होने का दावा करते हैं। आपातकाल में संविधान की हत्या करने वाले आजकल संविधान की प्रतियां लहराते नज़र आते हैं। लेकिन वो संविधान और जांच एजेंसियों को किस तरह से बंधक बनाए हुए थे। ये सब न्यायालय ने अपने फ़ैसलों के ज़रिए आइने की तरह साफ कर दिया है। षड्यंत्रों के मुखौटे निकल चुके हैं और हिंदू आतंकवाद-भगवा आतंकवाद कहने वाले बेशर्मी के साथ न जाने कौन से बिल में छुप गए हैं। लेकिन सवाल यही है कि देश-विदेश में हिंदू-हिंदुत्व और भगवा को आतंक से जोड़ने वालों पर क्या कोई कार्रवाई होगी? भारतीय संस्कृति पर इन दलों, नेताओं ने जिस प्रकार से कुठाराघात किया। क्या उसका कोई दंड इन्हें मिलेगा?
पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर इस फैसले की गहरी पड़ताल करते हैं। ‘आतंकवाद के राजनीतिकरण और वैश्विक हिंदुत्व-विरोधी तंत्र की हार’ — शीर्षक से लिखे गए लेख में वे लिखते हैं कि _ “यह राजनीतिक स्वार्थ के चलते आतंकवाद के राजनीतिकरण का मामला है। मालेगांव केस को शुरुआत से ही राजनीतिक चश्मे से देखा गया। उस दौर में भारत सरकार और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता, जैसे पी. चिदंबरम, सुशील शिंदे और दिग्विजय सिंह ने ‘संघी आतंकवाद’ और ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द इस्तेमाल करके एक दूषित राजनीतिक विमर्श खड़ा किया।”
( पाञ्चजन्य 1 अगस्त 2025)
आगे अपने लेख में वे कांग्रेस यूपीए सरकार की ओर से जांच एजेंसियों पर बनाए गए दबाव के संदर्भों को भी उल्लेखित करते हैं। वे लिखते हैं कि— पूर्व एनआईए अधिकारी आर.वी.एस. मणि ने खुलकर कहा कि उन पर ‘हिंदू आतंकवाद’ या ‘भगवा आतंकवाद’ की पुष्टि करने का दबाव था। सुरक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी के अनुसार, ‘‘भारत में ‘हिंदू आतंकवाद’ का नैरेटिव इस्लामी आतंकवाद की वैश्विक आलोचना के विरुद्ध एक रणनीतिक ढाल था।’’
( पाञ्चजन्य 1 अगस्त 2025)
मालेगांव ब्लास्ट केस के माध्यम से जिस प्रकार से कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने एक क्रूर और वीभत्स खेल रचा। वो न केवल हिंदू-हिंदुत्व की महान सभ्यता और संस्कृति पर चोट करने का षड्यंत्र था। बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीकों, मानबिंदुओं और स्वाभिमान को नष्ट करने की कूटरचित योजना थी। जो पूरी तरह से झूठ की बुनियाद पर खड़ी की गई। इस्लामिक तुष्टिकरण और वोटबैंक के लिए ‘हिंदुओं’ को विश्व समुदाय के बीच नीचा दिखाने का हथकंडा अपनाया गया। ये सब इसीलिए किया गया क्योंकि वो सत्ता के सहारे भारत और भारतीयता के बोध को समाप्त कर देना चाहते थे। अन्यथा और क्या कारण हो सकता था कि इतना बड़ा षड्यंत्र रचा जाए? वो विश्व समुदाय के बीच आतंकियों की धारा में — हिंदुओं को भी घसीटना चाहते थे। भारत के परम् पावन पुनीत भगवा ध्वज को आतंक के पर्याय के तौर पर सिद्ध करना चाहते थे। क्योंकि वो हिंदू-हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति से नफ़रत करते हैं। भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान और भारत की आत्मचेतना का वो तिरस्कार करते हैं। ध्यान दीजिए कि ऐसा करने वाले ये वही लोग हैं जिन्होंने भारत को अपनी बपौती मानी और सत्ता को जन्मसिद्ध अधिकार माना। लेकिन जब देश की जनता ने बारंबार ख़ारिज किया तो वो घुटनों पर आ गए।लेकिन प्रपंचों और विभाजन के पैंतरों को आज़माना नहीं छोड़ा।
अपने इन्हीं षड्यंत्रों-कुकृत्यों के चलते वो अब सत्ता से बाहर हैं लेकिन विभाजन के एजेंडे को लगातार बढ़ा रहे हैं। पहले हिंदू आतंकवाद जैसी थ्योरी गढ़ने की क्रूरता की। इसके बाद वो अब जातीय विमर्श में उतर आए हैं। हिंदू समाज को जातियों में लड़ाकर वो सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने की जुगत में लगे हुए हैं।इसीलिए वो लगातार समाज की समरसता और एकता पर चोट कर रहे हैं। विध्वंस और वैमनस्य फैला रहे हैं। क्योंकि उन्हें मालूम है कि हिंदू समाज अगर हिंदुत्व और राष्ट्रीयता के विचारों से एकाकार है तो वे उसे किसी भी हाल में नहीं तोड़ सकते हैं। जब वे सत्ता में रहते हैं तो हिन्दुओं को आतंकी घोषित करने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी लगा देते हैं। फिर जब सत्ता से बाहर होते हैं तो हिन्दुओं के बीच विभाजन की दीवार खड़ी करने लगते हैं। समाज को बांटने में जुट जाते हैं। उनका उद्देश्य एकदम स्पष्ट है और आपका? मालेगांव ब्लास्ट केस का फ़ैसला आत्मचिंतन करने के लिए एक बड़ी केस स्टडी है। आप तय कीजिए कि संविधान-कानून का असली रक्षक और भक्षक कौन है? वो जो सत्ता में रहते हुए संवैधानिक मशीनरी का दुरुपयोग करता है-षड्यंत्रों के जाल बिछाता है। वैचारिक विरोधियों को झूठे केस में फंसाता है-दमन करता है। याकि सत्ता से बाहर आते ही छटपटाते हुए — भारत की समस्त संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास जताता है। झूठ पर झूठ बोलता है। समाज के बीच विभाजन फैलाने के लिए ज़हर बोता है।
~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल