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ट्रंप टैरिफ का सच और भारत

ट्रंप टैरिफ का सच और भारत

by अवधेश कुमार
in ट्रेंडींग
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि जब तक हम टैक्स या शुल्क का मामला सुलझा नहीं लेते तब तक भारत के साथ व्यापार वार्ता नहीं होगी। दोबारा राष्ट्रपति पद संभालने के बाद ट्रंप के व्यवहार में जितनी अस्थिरता और उतार चढ़ाव है उसमें आगे वे क्या करेंगे कहना कठिन है । तत्काल यह ऐसी स्थिति है जिसमें भारत को सामूहिक राष्ट्रीय भावनाओं को अभिव्यक्त करना है तो दूसरी ओर अपनी क्षमता को समझ साहस के साथ व्यावहारिक दृष्टि से सामना करते हुए रास्ता भी निकालना है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले 25 प्रतिशत टैरिफ या आयात शुल्क लगाया जो 7 अगस्त से प्रभावी है और पुनः एक कार्यकारी आदेश पर उन्होंने हस्ताक्षर किए जिससे रुसी तेल खरीदने के लिए भारत पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाया गया है जो 27 अगस्त से लागू होगा। इस तरह 50 प्रतिशत का यह सीमा शुल्क अमेरिका द्वारा दुनिया में किसी भी देश पर लगाए गए सबसे अधिक सीमा शुल्कों में से एक है।

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भारत की प्रतिक्रिया बिलकुल स्वाभाविक है। प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि हम अपने किसानों और डेयरी क्षेत्र में लगे लोगों की हर कीमत पर रक्षा करेंगे और इसमें हमको निजी क्षति भी उठानी पड़ेगी। किसी व्यापारिक साझेदार देश के विरुद्ध बगैर किसी अंतरराष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन के एकपक्षीय सीमाशुल्क बढ़ाना यानी जुर्माना लगाना अंतरराष्ट्रीय मानकों के विपरीत है। यह अन्यायपूर्ण और अनुचित दोनों है। हम यह भी मानते हैं कि अमेरिका के साथ सीमा शुल्क बढ़ने से भारत नष्ट नहीं हो जाएगा और दुनिया में उसके लिए निर्यात के रास्ते बंद नहीं होंगे। अमेरिका के उत्पादकों के लिए भी इतना बड़ा बाजार छोड़ना आसान नहीं होगा की पूरी तरह व्यापारिक रिश्ते ही समाप्त हो जाए। किंतु यह तर्क भी व्यावहारिक दृष्टि से गले नहीं उतरता कि 1971 में अमेरिका ने सातवां बेरा भेज दिया हमने फिर भी बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में सफलता प्राप्त की या अमेरिका ने अकाल के समय मदद नहीं दिया या भारत के परमाणु विस्फोट के बाद प्रतिबंध लगा दिया, क्रायोजेनिक इंजन नहीं दिया फिर भी हम एक राष्ट्र के नाते आज दुनिया के शीर्ष देश की श्रेणी में खड़ा होने की स्थिति में हैं।

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वास्तव में ये बातें तब की हैं जब भारत के लिए निर्यातक देश होने की कल्पना कठिन थी। पिछले वित्त वर्ष में भारत का कुल निर्यात 821 अरब डालर था। इनमें 437.42 अरब डॉलर का वस्तु निर्यात और 383.51 अरब डॉलर का सेवा निर्यात शामिल है। इसमें सबसे ज्यादा अमेरिका को 88 अरब डॉलर निर्यात किया गया था। भारत के कुल निर्यात में अकेले अमेरिका की हिस्सेदारी 23% है। भारत के लिए इतने व्यापार अधिशेष यानी व्यापारिक लाभ वाला अमेरिका ऐसा अकेला देश है। अमेरिका के बढ़े सीमा शुल्क का असर भारत के अमेरिका को होने वाले 50-55 % निर्यात पर पड़ेगा। इससे वस्तु निर्यात में गिरावट की संभावना है। भारतीय माल जब अमेरिका में 30-35 प्रतिशत महंगा होगा तो समस्या आएगी। इसकी तत्काल भरपाई संभव नहीं ।

इसका असर विकास पर कितना होगा इसे लेकर अलग-अलग आकलन है। एक व्यवहारिक आकलन यही है कि विकास दर में .4 प्रतिशत की कमी आ सकती है। यही नहीं कपड़ा और परिधान क्षेत्र में 17 लाख, अपैरल में 13 लाख, रसायन और रसायन उत्पादन क्षेत्र में 10 लाख , चमड़ा क्षेत्र में चार लाख तथा रत्न एवं आभूषण में तीन लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। इसके अलावा इनमें परोक्ष रोजगार प्राप्त करने वालों की संख्या भी बहुत बड़ी है। तो एक बड़े भाग के रोजगार पर असर पड़ सकता है। अमेरिका की रिटेल कंपनियां अमेजॉन , वॉलमार्ट ,टारगेट और गैप ने भारतीय निर्यातकों को अगले आदेश तक शिपमेंट रोकने को कहा है। व्यावहारिक स्तर पर इसका अनेक क्षेत्रों में नुकसान होगा जिसमें सर्वप्रमुख है कपड़ा और परिधान। अमेरिका भारत के कपड़ा और परिधान का सबसे बड़ा ग्राहक है। इसका लाभ बांग्लादेश, वियतनाम , इंडोनेशिया जैसे देशों को होगा क्योंकि भारत की तुलना में इन देशों पर औसत सीमा शुल्क 20% है।

ट्रंप का पहला आरोप यह कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा सीमा शुल्क वसूलता है। भारत द्विपक्षीय व्यापार वार्ता द्वारा इसे सुलझाने की कोशिश कर रहा था। अमेरिकी मांगों को स्वीकार करना या उनके दबाव के आधार पर निर्णय करना भारत के लिए न संभव था और न व्यावहारिक ही होता। कृषि और डेयरी उत्पादों में अमेरिका अपने किसानों को जबरदस्त सब्सिडी देता है जिस कारण उनके उत्पाद सस्ते होते हैं। दूसरे , अमेरिका अपने गायों को चारा में मांसाहार भी कराता है जबकि भारत में दूध और उसके सारे उत्पादन निरामिष और वैष्णव भजन की श्रेणी में आते हैं। यह ऐसा संस्कृतिक अंतर है जिसे किसी सूरत में पाटा ही नहीं जा सकता। भारत में जीएम फूड और बीज का उपयोग नहीं किया जा सकता जबकि अमेरिका इसके लिए दबाव डाल रहा है। कृषि क्षेत्र के बाजार को अमेरिकी कल्पना के अनुरूप खोला ही नहीं जा सकता।

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रूस से तेल खरीदने का विषय भी जटिल है। व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने कहा कि भारत अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल रुसी तेल खरीदने में कर रहा है और यही पैसा रूस अपने हथियारों के लिए इस्तेमाल करता है। अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर दे तो उसे 1.2 अरब डॉलर का अतिरिक्त आयात बिल चुकाना पड़ेगा। 2022 से रूसी तेल की खरीद में काफी वृद्धि हुई। आज भारत के तेल आयात में रुस की हिस्सेदारी 35.01% है। हालांकि भारत ने धीरे-धीरे रुसी तेल आयात में कमी लाती है क्योंकि 2022 में अमेरिका और यूरोप द्वारा रुसी तेल मूल्य पर कैप लगाने से भारत को काफी मुनाफा हुआ। धीरे-धीरे रुसी तेल भी महंगे होते गए। भारत ने अपने तेल स्रोतों का विस्तार लगभग 40 देशों तक किया हुआ है। लेकिन भारत‌ रुस से तेल खरीदना बंद नहीं कर सकता। वैसे आज भी यूरोप रूस से तेल खरीद रहा है‌ स्वयं अमेरिका पेट्रोलियम उत्पादों से लेकर अपने परमाणु और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए जो सामग्रियां लेता है उसके विवरण हमारे सामने है।

एक परिपक्व देश अचानक प्रतिक्रियात्मक वक्तव्यों व कार्रवाइयों से बचता है। भारत इस मामले में अभी तक परिपक्वता दिखाता रहा है। हमें अमेरिकी निर्यात का विकल्प ढूंढने के साथ आय बढ़ाने की दृष्टि से अपने तीर्थ व पर्यटन तीर्थ स्थलों आदि के विकास पर जोर लगाना चाहिए जो लग भी रहा है। वैसे हमारा सेवा क्षेत्र का निर्यात बढ़ रहा है। वर्तमान वित्त वर्ष की पहली तिमाही में पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि से 10% ज्यादा का हमने सेवा निर्यात किया। व्यापार की दृष्टि से हमने इंग्लैंड से अभी द्विपक्षीय व्यापार समझौता किया है तो यूरोपीय संघ से कर रहे हैं। अन्य देशों के साथ भी व्यापार समझौते की योजनाएं हैं। अमेरिका के अंदर डोनाल्ड ट्रंप की इस नीति के विरुद्ध कई स्तरों पर आवाज उठ रहे हैं। कुछ उदाहरण। संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के सदस्य ग्रेगडी मिक्स ने कहा कि ट्रंप के टैरिफ युद्ध ने अमेरिका भारत साझेदारी को मजबूत बनाने के वर्षों में किए गए काम को जोखिम में डाल दिया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बौल्टन ने लिखा है कि चीन के मुकाबले भारत पर कठोर व्यापार शुल्क लगाना ट्रंप की बड़ी भूल है। मित्र और दुश्मन दोनों पर समान रूप से शुल्क लगाकर अमेरिका ने दशकों में बनी भरोसे की पूंजी कमाई है। तो आवाजें उठ रहीं हैं।

सीमा शुल्क बढ़ने से उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद महंगे होंगे और अनेक क्षेत्रों में नौकरियां जानें आदि की समस्याएं उत्पन्न हो रही है। अमेरिका का एक वीडियो वायरल है जिसमें पेनसिलवेनिया के सांसद प्रतिनिधि वाणिज्य मंत्री से केला उठाकर पूछ रहे हैं कि आपने इस पर कितना सीमा शुल्क लगाया है? उनका जवाब होता है कि 10 प्रतिशत तो प्रत्युत्तर मिलता है, वालमार्ट ने लगभग उतना मूल्य बढ़ा दिया है क्योंकि हम केला पैदा नहीं करते हैं। यह एक उदाहरण अमेरिका के अंदर इस नीति से बढ़ते असंतोष का है। समाचार है कि मिशीगन की गवर्नर ग्रेटचेन व्हिटमर ने व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति ट्रंप से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात कर ऑटो उद्योग पर असर डाल रहे सीमा शुल्क में परिवर्तन का आग्रह किया है। उन्होंने कहा है कि मिशीगन की 6 लाख विनिर्माण नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। आप शुल्क बढ़ाते हैं तो इसका असर समूची अर्थव्यवस्था और खासकर विकास पर भी पड़ता है। तो भारत आंतरिक रूप से आत्मनिर्भरता, चिन्हित क्षेत्र पर फोकस करे तथा अमेरिका के साथ समस्या सुलझाने के लिए जो संभव है करता रहे। भारत दबाव में आने वाला देश नहीं है और इससे हमें कोई लाभ भी नहीं होने वाला।

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